उत्पाद नियोजन क्या है- अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ, आवश्यकता, तत्व, महत्व एवं क्षेत्र

उत्पाद नियोजन का अर्थ 

विपणन कार्यक्रम उत्पाद नियोजन से ही प्रारम्भ होता है। उत्पाद नियोजन दो शब्दों- उत्पाद + नियोजन के मिलन से बना है। उत्पाद से अभिप्राय उपभोक्ताओं को सन्तुष्टि प्रदान करने वाली किसी भौतिक वस्तु या सेवा से है। नियोजन से अभिप्राय भविष्य में क्या करना है, इसे पहले से ही निर्धारित करने से है। इस प्रकार उत्पाद नियोजन से तात्पर्य उन सभी क्रियाओं से है जिनके तहत् यह निर्णय लिया जाता है कि व्यावसायिक उपक्रम की उत्पाद पंक्तियों में कौन-कौनसी उत्पाद मदें शामिल की जायें जिससे कि व्यावसायिक उपक्रम प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति में उपभोक्ताओं की अधिकतम सन्तुष्टि प्रदान करते हुए अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकें।

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उत्पाद नियोजन की परिभाषा 

उत्पाद नियोजन को कुछ प्रसिद्ध विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है-

जोन्सन के अनुसार-"उत्पाद नियोजन उत्पाद को उन विशेषताओं का निर्धारण करता है जिससे कि उपभोक्ताओं की अनंत इच्छाओं को सर्वोत्तम ढंग से पूरा किया जा सके एवं उत्पादों में विक्रय योग्यता को जोड़ा जा सके और उन विशेषताओं को निर्मित उत्पादों में सम्मिलित किया जा सके।"

मैसन एवं रथ के अनुसार-"उत्पाद के जीवन की जन्म से लेकर उसका कम्पनी की उत्पादन पंक्ति से परित्याग तक के नियोजन, निर्देश एवं नियन्त्रण की सभी स्थितियाँ उत्पाद नियोजन कहलाती हैं।"

कार्ल एच. टिटजन के अनुसार-"उत्पाद नियोजन से आशय नये उत्पादों की खोज, जाँच-पड़ताल, विकास एवं व्यावसायीकरण, वर्तमान पंक्तियों में सुधार और सीमान्त या अलाभकारी उत्पादों के परित्याग आदि के सम्बन्ध में एक सीमा निश्चित करना और पर्यवेक्षण करना है।"

विलियम जे. स्टॉण्टन के अनुसार-"उत्पाद नियोजन में वे सब क्रियाएँ शामिल की जाती हैं जो निर्माता और मध्यस्थ को इस योग्य बनाती है कि वे यह निर्धारित कर सकें कि कम्पनी की वस्तु पंक्ति में कौन-कौनसी वस्तुएँ होनी चाहिए।"

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि उत्पाद नियोजन में यह निश्चित किया जाता है कि किन-किन उत्पादों का निर्माण करना है, कौन-कौन से उत्पाद समाप्त करने हैं, उत्पाद-श्रेणी में क्या विस्तार या संकुचन करना है, उत्पादों में किस प्रकार के सुधार अपेक्षित हैं, प्रत्येक वस्तु का उत्पादन कितनी मात्रा में तथा किस-किस समय किया जाना है और मूल्य निर्धारण का क्या आधार होगा ?

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उत्पाद नियोजन की विशेषताएँ अथवा लक्षण

  1. नये उत्पादों का उत्पादन करने से पूर्व जाँच-पड़ताल की जाती है, ताकि प्राहकों की आवश्यकताओं के अनुसार उत्पादन किया जा सके।
  2. उत्पाद नियोजन में उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाली बातों का पता लगाकर उत्पादों को व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया जाता है।
  3. उत्पाद पंक्तियों (Product lines) में फेर-बदल करने का निर्णय लेना।
  4. यदि वर्तमान उत्पाद में कुछ परिवर्तन करने से उसकी माँग में वृद्धि होने की सम्भावना है तो इस सम्बन्ध में तर्कों को एकत्र करना एवं उनके अनुरूप उत्पादों में परिवर्तन करना उत्पाद नियोजन में आता है।
  5. अलाभकर वरतुओं के बारे में सूचनाएँ एकत्रित करके यदि भावी लाभदायकता की सम्भावना न रहे तो उनके उत्पाद को बन्द करना।
  6. उत्पाद नियोजन विपणन कार्यक्रम का प्रारम्भिक बिन्दु होता है अर्थात् सम्पूर्ण विपणन कार्यक्रम उत्पादों को ध्यान में रखकर ही बनाया जाता है।

उत्पाद नियोजन का आवश्यकता

उत्पाद नियोजन विपणन कार्यक्रम का महत्वपूर्ण पहलू होता है। बिना उत्पाद नियोजन के विपणन कार्यक्रम का निर्धारण नहीं किया जा सकता है क्योंकि ग्राहक क्या चाहता है, यह विपणन कार्यक्रम का आधार है तथा उसी वस्तु का उत्पादन करने के लिए उत्पाद नियोजन आवश्यक होता है।

उत्पाद नियोजन के महत्व को हम निम्न तथ्यों के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं:

(1) विपणन कार्यक्रम का आधार-

उत्पाद नियोजन सम्पूर्ण विपणन कार्यक्रम का आधार होता है। विपणन कार्यक्रम की सफलतां इस बाद पर निर्भर करती है कि उपक्रम का उत्पादित माल बिक जाए। इसके लिए उत्पाद नियोजन के माध्यम से उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करने का प्रयास किया जाता है जो आसानी से एवं यथाशीघ्र बिक सके।

(2) सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाना-

एक विपणनकर्ता का सामाजिक उत्तरदायित्व होता है कि वह उसी प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करे जो समाज के जीवन-स्तर को ऊँचा उठा सके । उत्पाद नियोजन व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने का साधन है। व्यवसायी उपभोक्ता अनुसन्धान द्वारा समाजं की आवश्यकताओं का पता लगाता है और और जिस प्रकार की वस्तुएँ चाहता है, उन्हीं का उत्पादन करने का प्रयत्न किया जाता है।

(3) उपक्रम की लाभ क्षमता में वृद्धि-

विपणनकर्ता का प्रमुख उद्देश्य दीर्घकाल में अपने लाभों को अधिकतम करना होता है। इसके लिए केवल उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन किया जाना चाहिए जिनको लाभों के साथ आसानी से बेचा जा सके। उत्पाद नियोजन में ये सभी बातें सम्भव हैं।

(4) उपक्रम के साधनों का सवर्वोत्तम उपयोग- 

उपक्रम के साधनों का संर्वोत्तम उपयोग करने में भी उत्पाद नियोजन का महत्वपूर्ण स्थान होता है। उत्पाद नियोजन इस प्रकार किया जाता है कि कोई साधन बेकार न पड़ा रहे तथा किसो साधन का आवश्यकता से अधिक उपयोग न किया जाये।

(5) प्रबन्धकीय कुशलता में वृद्धि-

उत्पाद नियोजन से प्रबन्धकीय कुशलता में वृद्धि होती है क्योंकि इसके द्वारा पहले से ही निर्धारित कर दिया जाता है कि क्या उत्पादित करना है तथा किस रंग, डिजाइन, किस्म तथा आकार की वस्तु का निर्माण करना है। इससे उत्पाद कार्य आसान हो जाता है। यदि कोई उत्पादक फर्म उत्पाद नियोजन नहीं करती है तो यह माना जाता है कि उस फर्म में योग्य, अनुभवी तथा दूरदर्शी प्रबन्धकों का अभाव है। उत्पाद नियोजन के अभाव में फर्म की वहीं स्थिति होगी जो एक नाव को समुद्री लहरों के सहारे छोड़ने पर नाव की होती है। यहाँ पर यदि यह कहा जाए कि उत्पादित नियोजन का अभाव प्रबन्धकीय दिवालियेपन का परिचायक है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

(6) प्रतिस्पर्धी हथियार-

वर्तमान गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा के युग में उत्पाद नियोजन का महत्व और भी बढ़ गया है। प्रतियोगी वस्तुओं की तुलना में कम्पनी के किसी उत्पाद का अस्तित्व बनाये रखने के लिए तथा उचित लाभ के साथ वस्तुओं का विक्रय करने के लिए उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन किया जाना चाहिए जिनकी बाजार में माँग है। प्रतिस्पर्द्धा में टिके रहने के लिए, ग्राहक, सेवाओं, विज्ञापन, विक्रय तथा मूल्य निर्धारण आदि से सम्बन्धित लिये जाने वाले निर्णयों की सफलता उत्पाद नियोजन पर ही निर्भर करती है। अतः उत्पाद नियोजन का सहारा लिया जाता है।

(7) व्यापक क्षेत्र (Wide Scope)- 

उत्पाद नियोजन का व्यापक क्षेत्र है। इसमें वस्तु का विकास, नवाचार, नाम, रंग, रूप, आकार, मूल्य, किस्म, ब्राण्ड, पैकेजिंग आदि का समावेश है।

उत्पाद नियोजन के तत्व

उत्पाद-नियोजन के प्रमुख तत्वों को अग्र प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. उत्पादन से पूर्व खोजबीन-

नई वस्तु के बारे में उत्पादन से पूर्व विस्तृत रूप से खोजबीन की जाती है जिससे कि वस्तु ग्राहकों को अधिक से अधिक मात्रा में सन्तुष्ट कर सके। उत्पादन से पूर्व खोजबीन के तहत् यह पता लगाया जाता है कि उपभोक्ता के दृष्टिकोण से उत्पादन की जाने वाली वस्तुओं में क्या विशेषताएँ होनी चाहिये।

2. निर्माण विधि की सम्भावना- 

उपभोक्ताओं से सम्बन्धित बातों की जाँच-पड़ताल के बाद उत्पादन की व्यावहारिकता की दृष्टि से यह देखना भी जरूरी हो जाता है कि जो विशेषताएँ उपभोक्ता चाहता है, क्या उन्हें ध्यान में रखते हुए वस्तु का निर्माण किया जा सकता है अथवा नहीं अतः वस्तु के उत्पादन की सम्भावना के विषय में भी वस्तु-नियोजन के तहत् ध्यान दिया जाता है।

3. वस्तु श्रेणी में परिवर्तन-

वस्तु नियोजन में यह भी देखा जाता है कि वर्तमान उत्पाद श्रेणी में परिवर्तन की जरूरत है या नहीं और यदि जरूरत है तो किस सीमा तक, ताकि ग्राहकों की माँग को पूरा किया जा सके।

4. अलाभकारी वस्तुओं के उत्पादन को बन्द करना-

जिस उत्पाद की बिक्री निरन्तर कम हो रही है और इस कारण उस उत्पाद से प्राप्त होने वाले लाभ भी कम हो रहे हैं तो उसके उत्पादन को बन्द करने का निर्णय भी उत्पाद नियोजन के तहत् ही लिया जाता है।

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5. वस्तुओं में सुधार का निर्णय- 

वर्तमान उत्पादन में किसी सुधार के सम्बन्ध में निर्णय लेना भी वस्तु नियोजन में ही शामिल होता है क्योंकि प्रतिस्पर्धा के तहत् उत्पाद में सुधार ही वस्तु को बाजार प्रदान करने में समर्थ होता है।

6. मूल्य निर्धारण- 

वस्तु का मूल्य प्रतिस्पर्धा को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जायेगा या लागत के आधार पर निश्चित किया जायेगा अथवा बाजार माँग के अनुसार मूल्य का निर्धारण होगा, इस तथ्य के सम्बन्ध में निर्णय उत्पाद नियोजन के तहत् लिया जाता है।

उत्पाद-नियोजन का महत्व

उत्पाद नियोजन के महत्व को निम्न शीर्षकों के तहत् स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) विपणन कार्यक्रम का आधार- 

उत्पाद नियोजन विपणन कार्यक्रम का आधार है। इसी कारण विलियम जे. स्टाण्टन ने कहा था कि "उत्पाद नियोजन एक फर्म के सम्पूर्ण विपणन कार्य का प्रारम्भिक बिन्दु है।" इसका तात्पर्य यह है कि यदि किसी संस्था को अपना विपणन कार्यक्रम बनाना है तो उसको सबसे पहले उत्पाद नियोजन तैयार करना चाहिए जिससे कि उत्पाद में वे सभी विशेषताएँ आ जायें जिनकी उपभोक्ताओं द्वारा आशा की जाती है। यदि इस बात का ध्यान न रखा गया तो यह सम्भव है कि विपणन कार्यक्रम आगे चलकर असफल हो जाये अर्थात उस उत्पाद का विक्रय न हो या अपेक्षित मात्रा से काफी कम विक्रय हो। अतः उत्पाद नियोजन के द्वारा उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करने का प्रयत्न किया जाता है जो आसानी से बिक सके।

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(2) प्रबन्धकीय कुशलता में वृद्धि- 

उत्पाद नियोजन से प्रबन्धकीय कुशलता में वृद्धि होती है क्योंकि इसके द्वारा पहले से ही निर्धारित कर दिया जाता है कि क्या उत्पादित करना है तथा किस रंग, डिजाइन, किस्म तथा आकार की वस्तु का निर्माण करना है। इससे उत्पाद कार्य आसान हो जाता है। यदि कोई उत्पादक फर्म उत्पाद नियोजन नहीं करती है तो यह माना जाता है कि उस फर्म में योग्य, अनुभवी तथा दूरदर्शी प्रबन्धकों का अभाव है।

(3) सामाजिक उत्तरदायित्वों को निभाना- 

प्रत्येक व्यावसायिक उपक्रम का यह सामाजिक उत्तरदायित्व है कि वह समाज को उसकी इच्छाओं और आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पादन प्रदान करे। इस सामाजिक उत्तरदायित्व की पूर्ति उत्पाद नियोजन से ही सम्भव है क्योंकि उत्पाद नियोजन के अन्तर्गत यह पता लगाया जाता है कि समाज को किसी प्रकार की उत्पादों की आवश्यकता है औरर उस प्रकार की उत्पादों का उत्पादन करने के लिए निर्णय लिया जाता है। इस सम्बन्ध में ठीक ही कहा गया है कि उत्पाद नियोजन व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने का साधन है।

(4) प्रतिस्पर्धा हथियार- 

आधुनिक प्रतिस्पर्धा के युग में उत्पादों के मूल्य का निर्धारण, विज्ञापन एवं विक्रय संवर्धन कार्यक्रमों की सफलता काफी सीमा तक उत्पाद नियोजन पर निर्भर करती है। किसी व्यावसायिक उपक्रम को प्रतिस्पर्धा की स्थिति में बिना उत्पाद नियोजन के सफलता मिलना कठिन है।

(5) उपक्क्रम की लाभ क्षमता में वृद्धि- 

विपणनकर्ता का प्रमुख उद्देश्य दीर्घकाल में अपने लाभों को अधिकतम करना होता है। इसके लिए केवल उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन किया जाना चाहिए लाभों के साथ आसानी से बेचा जा सके। उत्पाद नियोजन में ये सभी बातें सम्भव है।

(6) उपक्रम के साधनों का सर्वोत्तम उपयोग-

उपक्रम के साधनों का सर्वोत्तम उपयोग करने में भी उत्पाद नियोजन का महत्वपूर्ण स्थान होता है। उत्पाद नियोजन इस प्रकार किया जाता है कि कोई साधन बेकार न पड़ा रहे तथा किसी साधन का जरूरत से अधिक उपयोग न किया जाये।

उत्पाद नियोजन का क्षेत्र

उत्पाद नियोजन का क्षेत्र काफी व्यापक है, फलस्वरूप इसमें वस्तु से सम्बन्धित निम्नलिखित बातों को सम्मिलित किया जाता है-

(1) उत्पाद निर्णय- 

यह उत्पाद नियोजन का सर्वप्रथम कदम है। किसी भी उत्पाद का उत्पादन करने से पहले उत्पादनकर्ता काफी सोच-समझकर यह निर्णय लेता है कि किस उत्पाद की बाजार में माँग है तथा कौन-सा उत्पाद ज्यादा बेचा जा सकता है। उत्पाद का निर्णय लेने से पहले उत्पादनकर्त्ता पूर्ण रूप से विपणन अनुसन्धान करता है और उपभोक्ताओं की जरूरतों तथा मनोवृत्तियों का पता लगाता है।

(2) उत्पाद की डिजाइन एवं आकार- 

उत्पाद नियोजन के क्षेत्र के अन्तर्गत उत्पाद की डिजाइन एवं उसके आकार को भी शामिल किया जाता है। यहाँ डिजाइन का आशय उत्पाद की शक्ल, रंग-रूप आदि से है तथा आकार का आशय उत्पाद की आकृति से है। अतः इसमें यह अध्ययन किया जाता है कि ग्राहक किस डिजाइन एवं आकार की वस्तु अधिक क्रय करना पसन्द करत हैं।

(3) उत्पाद की किस्म-

उत्पाद नियोजन में उत्पादक की किस्म का भी विशेष स्थान होता है। उपभोक्ता प्रायः अपनी सीमित आय का इस प्रकार उपयोग करना चाहते हैं कि उनको क्रय-शक्ति का पूरा-पूरा सदुपयोग हो सके। उत्पाद का जिस उद्देश्य से ग्राहक उपयोग करना चाहे, उसके लिए उसे वस्तु का प्रयोग करते समय कोई कठिनाई न आए। उत्पादों का निर्माण करते समय उत्पादकों द्वारा सावधानी से किस नियन्त्रण करना चाहिए।

(4) उत्पाद का मूल्य-

किसी भी उत्पाद का मूल्य उसकी बिक्री को अधिक मात्रा में प्रभावित करता है। अतः उत्पाद नियोजन में उत्पाद की कीमत पर विशेष ध्यान दिया जाता है। एक ग्राहक उत्पाद के अन्य गुणों के साथ-साथ विभिन्न उत्पादों के मूल्यों की सापेक्षिक तुलना भी करता है। उत्पाद की कीमत काफी सोच-समझकर ही निर्धारित की जानी चाहिए।

(5) उत्पाद का नाम- 

उत्पाद नियोजन के अन्तर्गत उत्पाद के नाम का चयन भी शामिल किया जाता है। उत्पाद का नाम ऐसा होना चाहिए ताकि उसे आसानी से पुकारा जा सके, याद रखा जा सके एवं जो उत्पाद की किस्म को प्रदर्शित करे। जैसे-बजाज स्कूटर, मारूति कार, ऐवरेडी बैट्ररी, फिलिप्स बल्ब आदि।

(6) उत्पाद का रंग-

उत्पाद का रंग भी ग्राहकों को उत्पाद खरीदने के लिए आकर्षित करता है। अतः उत्पाद नियोजन बनाते समय विपणनकर्ता को उपभोक्ताओं की रुचियों के अनुरूप अपने उत्पादों का रंग रखना चाहिए।

(7) उत्पाद का ब्राण्ड, पैकेजिंग एवं लेबिल-

उत्पाद नियोजन के अन्तर्गत उत्पाद का ब्राण्ड, उसका पैकेजिंग एवं लेबिल का भी निर्धारण किया जाता है। ब्राण्ड का प्रयोग उत्पाद का नाम याद रखने के लिए किया जाता है। पैकेजिंग का प्रयोग उत्पाद लाने ले जाने में सुविधा देने एवं उत्पाद को खराब होने से बचाने के लिए किया जाता है। उत्पाद पर कागज का एक लेबिल भी लगाया जाता है जिसका प्रयोग जालसाजी रोकने के लिए किया जाता है।

(8) उत्पाद शैली- 

उत्पाद शैली का अर्थ किसी उत्पाद के विशिष्ट कलात्मक तरीके से प्रस्तुतीकरण, निर्माण तथा क्रियान्वयन से लिया जाता है। उत्पाद शैली से बेची जाने वाली वस्तु का सौन्दर्य या आकर्षण बढ़ाया जा सकता है। उत्पाद शैली में सुधार उत्पाद की माँग में वृद्धि करता है।

(9) उत्पाद की गारण्टी सेवा- 

इसके तहत् निर्माता या विक्रेता द्वारा ग्राहकों को यह गारण्टी प्रदान की जाती है कि यदि उत्पाद जल्दी खराब हो जायेगा तो उसे बदल दिया जायेगा अथवा उसकी मुफ्त मरम्मत कर दी जायेगी। गारण्टी सेवा का उद्देश्य उपभोक्ता को यह विश्वास दिलाना है कि उनके द्वारा क्रय किया गया उत्पाद उपयुक्त है।

(10) उत्पाद नवाचार- 

आजकल उत्पाद नवाचार उत्पाद नियोजन का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है। उत्पाद नवाचार से आशय उत्पाद में नवीनता लाना है। उत्पाद नवाचार के लिए अनुसन्धान कार्य भी किये जाते हैं। उत्पाद नवाचार का उद्देश्य ग्राहकों को अधिकतम सन्तुष्टि प्रदान करना एवं विक्रय में वृद्धि करना है।

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