उत्पाद विकास का अर्थ
किसी उत्पाद के उत्पादन करने के पहले सर्वप्रथम उस उत्पाद के बारे में जरूरी जानकारी प्राप्त करके उत्पाद नियोजन किया जाता है। उत्पाद नियोजन के पश्चात् उत्पाद के विकास के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाता है। उत्पाद के विकास से तात्पर्य उस उत्पाद के बारे में यह पता लगाने से है कि उसका उत्पादन तांत्रिक एवं वाणिज्यिकरण के आधार पर हो सकता है अथवा नहीं अर्थात् उस उत्पाद का उत्पादन व्यावसायिक उपक्रम के लिए उपयोगी है या नहीं। दूसरे शब्दों में, उत्पाद विकास से अभिप्राय क्रय में नये उत्पादों का जोड़ना, चालू उत्पादों के आकार, डिजाइन, गुण आदि में सुधार करने एवं हानिकारक उत्पादों का परित्याग करने से है।
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उत्पाद विकास की परिभाषा
विभिन्न विद्वानों ने उत्पाद नियोजन को निम्न प्रकार परिभाषित किया है-
विलियम जे. स्टेण्टन के अनुसार-"उत्पाद अनुसन्धान, इंजीनियरिंग एवं डिजाइन से सम्बन्धित तकनीकी क्रियाएँ उत्पाद विकास कहलाती हैं।"
लिपसन तथा डार्लिंग के अनुसार-"उत्पाद विकास वह प्रक्रिया है जिसमें सामान्यतः एक वर्ष की दी हुई अवधि के लिए उत्पाद रेखा में नवीन उत्पाद जोड़े जाते हैं, चालू उत्पाद हटाये जाते हैं एवं संशोधित किये जाते हैं।"
विलियम लेजर के अनुसार-"उत्पाद विकास वह प्रक्रिया है जो तकनीकी एवं विपणन क्षमताओं को संयोजित करती है और पतनोन्मुख उत्पादों के पुनर्स्थापनों के रूप में उत्पाद अथवा संशोधित उत्पाद बाजार में प्रस्तुत करती है।"
अत: संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि उत्पाद विकास से तात्पर्य उत्पाद पंक्ति में नयी उत्पादों को जोड़ने, चालू उत्पादों के आकार, डिजाइन, गुण, पैकिंग आदि में सुधार करने एवं अलाभकारी उत्पादों के परित्याग से है।
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उत्पाद विकास के मूल तत्व
उत्पाद विकास के मूल तत्व निम्न हैं-
(1) उत्पाद के उत्पादन की व्यावसायिकता का पता लगाना;
(2) उत्पाद के गुण विकसित करना;
(3) उत्पाद के विभिन्न मॉडल अथवा डिजाइन बनाना;
(4) सर्वोत्तम मॉडल अथवा डिजाइन का चयन करना;
(5) उत्पाद का पैकिंग निश्चित करना;
(6) उत्पादों में सुधार करना;
(7) उत्पाद पंक्ति में विस्तार अथवा संकुचन करना;
(8) अलाभकारी उत्पादों का परित्याग करना।
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उत्पाद विकास के सिद्धान्त
उत्पाद विकास के सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवेचन निम्न प्रकार है-
(1) उपयुक्तता का सिद्धान्त
उत्पाद विकास का यह एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। यह सिद्धान्त इस बात की व्याख्या करता है कि जिस उद्देश्य को ध्यान में रखकर उत्पाद विकास किया जा रहा है, वह उसी के अनुरूप होना चाहिए, अन्यथा उत्पाद के सफल होने की सम्भावना कम होगी।
(2) प्रमापीकरण का सिद्धान्त
यह सिद्धान्त इस बात पर जोर देता है कि उत्पादों के प्रमाण निश्चित होने चाहिये। ये प्रमाण उत्पादों के आकार, रंग-रूप किस्म, भौतिक एवं रासायनिक लक्षणों के रूप में हो सकते हैं।
(3) विशिष्टीकरण का सिद्धान्त
यह सिद्धान्त उत्पाद विकास के क्षेत्र में अनावश्यक उत्पाद विविधीकरण को समाप्त करने और विशिष्ट क्षेत्र में नेतृत्व प्राप्त करने पर जोर देता है जिससे उपक्रम की कार्यकुशलता बढ़ती है, व्ययों में मितव्ययिता होती है और ग्राहकों को अधिकतम सन्तुष्टि मिलती है।
(4) सरलीकरण का सिद्धान्त
यह सिद्धान्त अनावश्यक उत्पाद भिन्नताओं, आकार-प्रकार, किस्म, डिजाइन आदि में कमी करने पर जोर देता है। इससे विपणन कार्यक्रमों को आसानी से क्रियान्वित किया जा सकता है, उत्पादन, भण्डारण एवं वितरण लागतों में कमी होती है और उत्पाद का अप्रचलन देर से होता है।
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उत्पाद विकास के लाभ
उत्पाद विकास के प्रमुख लाभ निम्न हैं-
(1) फर्म के लाभों में वृद्धि
नवीन उत्पाद विकास कार्यक्रम फर्म के लाभों में वृद्धि करते हैं क्योंकि नवाचार फर्म की निष्क्रिय क्षमता की प्रयुक्ति एवं नवीन औद्योगिकी के लाभों की उपलब्धि को नव उत्पादों के विकास द्वारा सम्भव बनाता है, प्रमापीकरण से फर्म की क्षमताओं का पूर्ण सदुपयोग होता है; विशिष्टीकरण से फर्म की ख्याति बढ़ती है और सरलीकरण से फर्म के साधनों का सदुपयोग सम्भव होता है। इसी प्रकार फर्म की प्रतिस्पर्द्धा स्थिति एवं लाभों की मात्रा में सुधार होता है।
(2) ग्राहकों को अधिकतम सन्तुष्टि
उत्पाद विकास से उपभोक्ताओं को अपनी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिये श्रेष्ठ किस्म की उत्पादें प्राप्त होती हैं जिससे ये उपक्रम के स्थायी ग्राहक बन जाते हैं।
(3) विक्रय की मात्रा में वृद्धि
नवीन उत्पाद विकास के फलस्वरूप उत्पाद की किस्म में काफी सुधार होता है जिसके कारण ग्राहक सन्तोष में वृद्धि होती है। ग्राहक सन्तोष में वृद्धि के परिणामस्वरूप संस्था द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विक्रय की मात्रा में तीव्र गति से वृद्धि होती है।
(4) बाजार का विस्तार
नवीन उत्पाद का विकास होने से उसके बाजार का विकास होता है। बाजार का क्षेत्र स्थानीय सीमाओं को पार करके राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय सीमाओं को पार करके अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं में प्रवेश कर लेता है।
(5) उत्पाद जीवन
चक्र में वृद्धि-नवीन उत्पाद विकास से उत्पाद के जीवन-चक्र में वृद्धि होती है। उत्पाद अपेक्षाकृत अधिक अवधि तक चलता है।
(6) प्रतिस्पर्द्धा का सामना
नवीन उत्पाद विकास से उत्पाद की किस्म में सुधार होता है जिसके परिणामस्वरूप उसकी प्रतिस्पर्द्धा करने की शक्ति में वृद्धि होती है।
(7) संस्था की ख्याति में वृद्धि
संस्था द्वारा नवीन उत्पाद विकास कार्यक्रम को नियमित रूप में चलाये जाने के फलस्वरूप उसके उत्पाद काफी लोकप्रिय होते जाते हैं। उत्पादों के लोकप्रिय होने से उनके निर्माता अथवा कम्पनी की ख्याति में वृद्धि होती है। संस्था का नाम उसके उत्पाद के साथ जुड़ जाता है, जैसे- टाटा टी, बाटा शूज, टाटा स्टील, फिलिप्स बल्ब, गोदरेज फर्नीचर आदि।