उपभोक्ता व्यवहार क्या है- अर्थ, परिभाषा, प्रकृति, घटक, सिद्धांत, एवं महत्व

उपभोक्ता व्यवहार का अर्थ 

उपभोक्ता या क्रेता अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं की सन्तुष्टि के लिए क्या, कब, कितनी, कैसी, कहाँ और किससे वस्तुएँ एवं सेवाएँ खरीदते हैं और ऐसी खरीद किस व्यवहार का परिणाम होती है उसे उपभोक्ता व्यवहार या क्रेता व्यवहार कहा जा सकता है। बाजार की स्थिति जानने के लिए उपभोक्ताओं के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

    उपभोक्ताओं के व्यवहार का अध्ययन इसलिए भी किया जाता है कि ताकि विक्रय में वृद्धि हो सके और ग्राहकों को मनचाही वस्तु मिल सके। वर्तमान समय में बाजार में जो क्रेता या उपभोक्ता पाये जाते हैं वे रुचि, स्वभाव, फैशन, मानसिक स्तर, आदत, शैक्षिक स्तर, जीवन स्तर व आर्थिक स्तर आदि दृष्टियों से अलग-अलग पाये जाते हैं। इस दशा में प्रत्येक क्रेता का व्यवहार एक सा होना सम्भव नहीं है। साथ ही यह देखने में आता है कि प्रत्येक उपभोक्ता का व्यवहार पल-पल बदलता है। और इसके अनेक कारण होते हैं।

    उपभोक्ता का व्यवहार एक मनोवैज्ञानिक कारण है जिसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि वस्तु खरीदते समय उपभोक्ताओं द्वारा किस प्रकार का व्यवहार किया जाएगा अर्थात् उपभोक्ता वस्तु क्रय करना पसन्द करेंगे अथवा नहीं, किन क्रेताओं द्वारा वस्तु खरीदी जाएगी, वस्तु का कितना मूल्य क्रेताओं द्वारा मिलने की आशा है, वे किस किस्म का एवं कितनी मात्रा में माल क्रय करना चाहते हैं, आदि बातों का अध्ययन करना ही उपभोक्ता व्यवहार है।

    उपभोक्ता व्यवहार की परिभाषा 

    उपभोक्ता व्यवहार की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं-

    वाल्टर एवं पॉल के अनुसार-"उपभोक्ता व्यवहार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति यह निर्णय लेता है कि वस्तुओं और सेवाओं को खरीदना है तो क्या, कब, कहाँ और किससे खरीदना है।"

    शौल एवं गुल्टीनन के अनुसार-"उपभोक्ता व्यवहार मानव व्यवहार का वह भाग है जिसका सम्बन्ध व्यक्तियों द्वारा उत्पादों के क्रय व उपभोग के सम्बन्ध में लिये गये निर्णयों एवं कार्यों से होता है।"

    स्टिल, कण्डिफ एवं गोवोनी के अनुसार-"क्रेता उपभोक्ता व्यवहार वह क्रमबद्ध प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत कोई व्यक्ति बाजार-स्थान अथवा उत्पाद एवं सेवा सम्बन्धी निर्णय लेने के लिए अपने वातावरण से परस्पर प्रभावित होता है।" 

    वैब्सटर  के अनुसार-"क्रय व्यवहार से आशय उन सम्भावी क्रेताओं के मनोवैज्ञानिक सामाजिक एवं भौतिक व्यवहार से है जो मूल्यांकन, क्रय, उपभोग के लिए जाग्रत होते हैं और दूसरे क्रेताओं को उत्पादों एवं सेवाओं के बारे में बताते हैं।" 

    इस प्रकार उपभोक्ता व्यवहार का आशय यह पता लगाना है कि बाजार में उपभोक्ता किस तरह का व्यवहार करता है ? दूसरे शब्दों में, उपभोक्ता या क्रेता व्यवहार वह प्रक्रिया है जो किसी वस्तु या सेवा के क्रय सम्बन्धी निर्णयों तथा चयन को बताती है।

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    उपभोक्ता व्यवहार की प्रकृति

    उपभोक्ता व्यवहार की प्रकृति को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

    (1) मानव व्यवहार का अंग

    उपभोक्ता व्यवहार मानव व्यवहार का ही एक अंग है जो वस्तुओं एवं सेवाओं के क्रय से मुख्य रूप से सम्बन्धित है।

    (2) मानसिक चिन्तन

    उपभोक्ता व्यवहार मानसिक चिन्तन है जिसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं के मस्तिष्क में चलने वाले विचारों, उद्वेगों, तरंगों एवं धारणाओं का अध्ययन किया जाता है।

    (3) अनिश्चितता का तत्व

    उपभोक्ता व्यवहार में अनिश्चितता का तत्व निहित है, क्योंकि यह गारण्टी से नहीं कहा जा सकता कि उपभोक्ता अमुक समय पर किस प्रकार का व्यवहार करेगा। 

    (4) अन्तर्विषयक प्रकृति

    उपभोक्ता व्यवहार में अन्तर्विषयक प्रकृति है। इसे समझने के लिए विभिन्न विषयों, जैसे- मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, मानव-शास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र आदि का अध्ययन करना होगा।

    (5) विपणन अवधारणा का आधार

    वर्तमान उपभोक्ता व्यवहार विपणन अवधारणा का मूलाधार है। समस्त विपणन प्रक्रियाएँ उपभोक्ता व्यवहार के चारों ओर मँडराती हैं। विपणन अवधारणा की सफलता ही उपभोक्ता व्यवहार के अध्ययन पर निर्भर करती है।

    (6) गत्यात्मक क्रिया

    उपभोक्ता व्यवहार एक क्रिया है जो स्थायी न रहकर निरन्तर बदलती रहती है। आज जो वस्तु उपभोक्ता क्रय करता है, यह आवश्यक नहीं, वह आगे भी उसी वस्तु को क्रय करेगा। अब वह बाजार में विभिन्न प्रकार के उत्पाद देखता है तो उसका मन चलायमान हो जाता है।

    (7) व्यापक प्रक्रिया 

    वास्तव में उपभोक्ता व्यवहार एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न प्रश्नों का हल खोजा जाता है, जैसे- उपभोक्ता कौन है ? उपभोक्ता क्या खरीदता है ? उपभोक्ता किससे खरीदता है ? उपभोक्ता कहाँ से खरीदता है ? उपभोक्ता क्यों खरीदता है ? उपभोक्ता कब खरीदता आदि है ?

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    उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले घटक 

    उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटकों को निम्न प्रकार समझाया जा सकता है- 

    (I) आर्थिक घटक

    उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले प्रमुख आर्थिक घटक निम्न हैं-

    (1) व्यक्तिगत आय- व्यक्तिगत आय क्रेता की क्रय करने की शक्ति को प्रभावित करती है। व्यक्ति की आय यह स्पष्ट करती है कि उपभोक्ता किस सीमा तक सेवाओं का प्रयोग कर सकता है ?

    (2) परिवार की आय- भारत जैसे देश में जहाँ संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित है, व्यक्ति की आय के साथ उसके परिवार की आय और परिवार का आकार भी उपभोक्ता क्रय व्यवहार को प्रभावित करता है। यदि परिवार की आय गरीबी की रेखा से नीचे है तो उनका क्रय आय से अधिक होगा और उनका व्यवहार उन व्यक्तियों से भिन्न होगा जिनकी आय गरीबी की रेखा से काफी अधिक है।

    (3) आय की सम्भावनाएँ- उपभोक्ता अपने व्यय की योजना केवल अपनी वर्तमान आय के आधार पर ही नहीं बनाता, वरन् भविष्य में होने वाली आय की सम्भावनाओं को भी ध्यान में रखता है। साधारणतया भावी आय की सम्भावना एक व्यक्ति को अधिक क्रय करने के लिए प्रेरित करती है, जबकि भविष्य में आय की सम्भावना न होने पर कम क्रय की सम्भावना रहती है।

    (4) उपभोक्ता की साख- उपभोक्ता अपने क्रय व्यवहार को बाजार में अपनी साख के आधार पर भी निर्धारित करता है। यदि किसी क्रेता को कोई वस्तु उधार मिल रही है तो उसका व्यवहार कुछ और होता है और जब वस्तु नकद मिलती है तो उसका व्यवहार कुछ और होता है। 

    (5) सरकारी नीति- सरकार की नीति भी क्रेता के व्यवहार को प्रभावित करती है। यदि सरकारी नीति आयकर को बढ़ाने की है तो उपभोक्ता की क्रय शक्ति कम हो जायेगी और उसके द्वारा आवश्यकताओं को कम किया जायेगा।

    (II) मनोवैज्ञानिक घटक

    उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले प्रमुख मनोवैज्ञानिक घटक निम्न प्रकार हैं- 

    (1) ज्ञान या सीखना- ज्ञान सिद्धान्त उपभोक्ता के व्यवहार को प्रभावित करता है। उचित ज्ञान के अभाव में घरों में गैस सिलैण्डर के प्रयोग का विरोध किया जाता था लेकिन उचित ज्ञान होने पर इसका प्रयोग व्यापक रूप से बढ़ा है। इस सम्बन्ध में विक्रेता या उत्पादक विज्ञापन के द्वारा अथवा भ्रान्तियों के निवारण द्वारा उपभोक्ताओं को उचित जानकारी प्रदान कर सकता है।

    (2) आवश्यकताओं का क्रम- उपभोक्ता व्यवहार इस बात से भी प्रभावित होता है कि उसे अपने किस स्तर की आवश्यकता की पूर्ति करनी है, अर्थात् वह मूल आवश्यकता की पूर्ति कर रहा है या आरामदायक और विलासिता की आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहा है।

    (3) उपभोक्ता की कल्पना- किसी उत्पादक, वस्तु, ब्राण्ड या किस्म के प्रति उपभोक्ता के मन में कल्पना भी उसके क्रय व्यवहार को मुख्य रूप से प्रभावित करती है।

    (III) सामाजिक घटक

    उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले प्रमुख सामाजिक घटक निम्न प्रकार हैं-

    (1) परिवार- परिवार का वातावरण, परिवार में वस्तुओं का प्रयोग उस परिवार के व्यक्तियों के क्रय व्यवहार को प्रभावित करता है।

    (2) सन्दर्भ समूह- मित्रों, परिचितों, रिश्तेदारों के साथ काम करने वाले व्यक्तियों इत्यादि की राय, सुझाव और अनुभव भी उपभोक्ता के व्यवहार को काफी सीमा तक प्रभावित करते हैं। ( सादा जीवन उच्च विचार, खाओ पिओ मौज करो)।

    (3) सामाजिक वर्ग- आय, जाति या धर्म की दृष्टि से सामाजिक वर्ग भी उपभोक्ता के क्रय व्यवहार को निर्धारित करता है।

    (4) संस्कृति- खान-पान, वस्त्र इत्यादि के क्रय में उस क्षेत्र विशेष की संस्कृति का काफी प्रभाव पड़ता है जहाँ पर उपभोक्ता अपने परिवार सहित निवास कर रहा है।

    उपभोक्ता व्यवहार के सिद्धान्त

    एक विपणन प्रबन्धक द्वारा उपभोक्ता व्यवहार जानने के लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों को अपनाया जाता है-

    (1) स्वाभाविक उपभोक्ता व्यवहार 

    स्वाभाविक उपभोक्ता व्यवहार से तात्पर्य ऐसे व्यवहार से है जो उसकी अन्तर्निहित आवश्यकताओं से प्रेरित होता है, जैसे- भूख लगना, प्यास लगना, विश्राम की इच्छा होना, सुरक्षा की आवश्यकता महसूस करना आदि। इन आवश्यकताओं से प्रेरित होकर वस्तु क्रय को स्वाभाविक उपभोक्ता व्यवहार कहा जायेगा।

    (2) मनोवैज्ञानिक उपभोक्ता व्यवहार

    मनोवैज्ञानिक उपभोक्ता व्यवहार से आशय उपभोक्ता के व्यक्तित्व एवं उत्पाद की विशेषताओं अथवा गुणों के संयोजन से है। जैसे- एक व्यक्ति भूख लगने पर क्या खायेगा एवं कितनी मात्रा में खायेगा यह उसकी आदत, कीमत, भावना, हैसियत, इन्द्रियों की सन्तुष्टि, सुविधा, प्रतिष्ठा आदि बातों पर निर्भर करता है।

    (3) सीखे हुए उपभोक्ता व्यवहार

    सीखे हुए उपभोक्ता व्यवहार से आशय ऐसे व्यवहार से है जिसे व्यक्ति अपने वातावरण एवं सामाजिक परिवेश में सीखता है। जैसा समाज होगा वैसा ही व्यक्ति का व्यवहार होगा। भूख शान्त करने के लिए व्यक्ति रोटी खाये या माँस खाये अथवा फलों का प्रयोग करे इसका निर्धारण व्यक्ति समाज से सीखकर ही करता है।

    (4) भावनात्मक उपभोक्ता व्यवहार

    भावानात्मक उपभोक्ता व्यवहार से आशय ऐसे व्यवहार से है, जिसमें मस्तिष्क या विवेक के स्थान पर हृदय या भावना की प्रधानता रहती है। इसमें अहंकार, प्रतिष्ठा, ईर्ष्या, शत्रुता, प्रेम, सुन्दरता आदि को शामिल किया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार विक्रय-प्रबन्धक भावनात्मक क्रय प्रेरणाओं का पता लगाकर उनके प्रचार द्वारा उपभोक्ता की भावना को प्रेरित करता है।

    (5) सामाजिक उपभोक्ता व्यवहार

    उपभोक्ता एक सामाजिक प्राणी है और वह किसी न किसी रूप में समाज से सम्बन्धित अवश्य होता है, अत: उसका व्यवहार सामाजिक तत्वों से अधिक प्रभावित होता है। वह वस्तु को खरीदने का निर्णय लेने से पहले इस बात पर अवश्य विचार करता है कि उसके द्वारा क्रय की समाज में क्या प्रतिक्रिया होगी। अतः इस सिद्धान्त के अनुसार एक विक्रयं प्रबन्धक को समाज की रीति-रिवाजों, आदतों, फैशन आदि का ध्यान रखना चाहिए।

    (6) विवेकपूर्ण उपभोक्ता व्यवहार 

    विवेकपूर्ण उपभोक्ता व्यवहार से तात्पर्य ऐसे व्यवहार से है जिसमें वस्तु क्रय करने का निर्णय करने के लिए उपभोक्ता विवेक एवं बुद्धि को प्रधानता देता है। इस सिद्धान्त के अनुसार उपभोक्ता द्वारा क्रय की जाने वाली वस्तु की कीमत, उपभोग, स्थिरता, सेवा, विश्वसनीयता आदि तत्वों पर विचार करके ही क्रय करने का निर्णय लेता है। इस प्रकार के व्यवहार में क्रेता को निर्णय लेने के लिए अधिक समय एवं ध्यान की जरूरत होती है।

    उपभोक्ता व्यवहार का महत्व

    उपभोक्ता व्यवहार के महत्व को निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है-

    (1) उत्पादन सम्बन्धी नीतियाँ बनाने में सहायक

    उत्पादन से सम्बन्धित नीतियाँ बनाने में उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन परम आवश्यक है। जैसे- यदि प्रबन्धक को उपभोक्ता व्यवहार के अध्ययन से पता चल जाता है कि क्रेता उसकी वस्तु को अच्छी पैकिंग के कारण पसन्द करते हैं तो प्रबन्धक वस्तु की पैकिंग पर अधिक ध्यान देगा।

    (2) विक्रय प्रवर्तन सम्बन्धी निर्णय में सहायक

    वस्तु के विक्रय वृद्धि के लिए विक्रय प्रवर्तन सम्बन्धी नीति उपभोक्ताओं के व्यवहार से काफी सीमा तक प्रभावित होती है और इस प्रकार क्रेता व्यवहार के अध्ययन के बिना विक्रय संवर्द्धन के प्रयास सफल नहीं हो सकते हैं क्योंकि वस्तु कौन क्रय कर रहा है ? क्रेता वस्तु को किस समय खरीद रहा है ? कहाँ से खरीद रहा है ? और कैसे खरीद रहा है ? आदि बातें विक्रय प्रवर्तन कार्यक्रमों को प्रभावित करती हैं। क्रेताओं के व्यवहार को ध्यान में रखकर भिन्न-भिन्न विक्रय संवर्द्धन योजनाएँ सम्बन्धी निर्णय लिये जाते हैं।

    (3) गलाकाट प्रतियोगिता का सामना 

    वर्तमान समय में प्रत्येक वस्तु के अनेक उत्पादक हैं। प्रत्येक उत्पादक अपनी वस्तु को यथाशीघ्र बेचना चाहता है। कुछ उत्पादक तो अपनी वस्तु को लागत से कम कीमत पर बेचने के लिए तत्पर हो जाते हैं। इस गलाकाट प्रतियोगिता में वही उत्पादक अपने अस्तित्व को बचाये रख सकता है जिसने उपभोक्ता, के व्यवहार का अध्ययन किया हो।

    (4) मूल्य नीतियाँ बनाने में सहायक

    किसी वस्तु का मूल्य निर्धारण करते समय उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन किया जाना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, यदि आपकी वस्तु के क्रेता निम्न वर्ग के लोग हैं तो आपको किस्म की तुलना में कम मूल्य रखने को प्राथमिकता देनी होगी। इसके विपरीत, यदि आपकी वस्तु के क्रेता उच्च वर्ग के लोग हैं जो किसी वस्तु को इसलिए खरीदते हैं कि उनके खरीदने से क्रेता का समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा तो वह उस वस्तु का अधिक मूल्य रख सकता है।

    (5) फैशन में परिवर्तन की जानकारी

    आज फैशन में बड़ी तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। जो उत्पाद आज उपभोक्ता/क्रेता पसन्द कर रहे हैं, वह कुछ ही दिनों में अप्रचलन में आ जाता है और उपभोक्ता उसका त्याग कर देते हैं। ऐसी स्थिति में उत्पादक को उपभोक्ता की पसन्द. का अध्ययन करना-परम आवश्यक है और उसी के अनुसार उत्पाद में आवश्यक परिवर्तन करते रहना चाहिए।

    (6) विक्रय एवं वितरण सम्बन्धी निर्णयों में सहायक

    विक्रय एवं वितरण सम्बन्धी निर्णयों के लिये भी क्रेता व्यवहार का अध्ययन सहायक होता है। उदाहरण के लिये, किसी वस्तु की बिक्री केवल इसलिये होती है कि वह बाजार में नियमित रूप से और सरलता से उपलब्ध है। अब यदि विक्रेता क्रेता व्यवहार का अध्ययन करके वितरण सुविधाओं पर बल देता है तो उसकी बिक्री में वृद्धि की सम्भावनायें बढ़ जायेंगी।

    उपभोक्ता व्यवहार के आंकलन की तकनीकें

    उपभोक्ता व्यवहार के आंकलन के लिए प्रयुक्त की जाने वाली प्रमुख तकनीकें निम्न हैं-

    (1) अनुभव एवं ज्ञान का प्रयोग 

    जो विक्रय अधिकारी प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं के सम्पर्क में आते हैं, उनका अनुभव एवं ज्ञान इस दिशा में काफी उपयोगी रहता है। उन्हें अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर यह निर्धारित करना चाहिए कि वस्तुओं की जानकारी प्राप्त करते समय या उनका क्रय करते समय क्रेता या उपभोक्ता का व्यवहार क्या रहता है ?

    (2) प्रश्नावली विधि 

    उपभोक्ता व्यवहार जानने की यह एक परम्परागत विधि है, जिसमें कुछ प्रश्न चुनकर एक प्रश्नावली बनायी जाती है और फिर कुछ चुने हुए उपभोक्ताओं के पास भेजा जाता है तथा उसने उस प्रश्नावली को भरकर भेजने की प्रार्थना की जाती है।

    (3) साक्षात्कार विधि

    इस विधि के अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता उपभोक्ता से एक स्वाभाविक एवं मुक्त वातावरण में बातचीत करता है और स्वयं एक श्रोता अथवा लेखक की भूमिका निभाता है। यह स्पष्ट है कि इस तकनीक का प्रयोग केवल अत्यन्त कुशल भेंटकर्ताओं द्वारा ही सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

    (4) प्रलम्बनात्मक तकनीक 

    वर्तमान समय में उपभोक्ता व्यवहार का आंकलन करने के लिए कुछ प्रलम्बन तकनीकों का उपयोग भी किया जाता है। इस विधि में उपभोक्ताओं से अप्रत्यक्ष रूप से प्रश्न पूछे जाते हैं, जिससे कि उपभोक्ताओं के मन में छिपी हुई भावनाओं, विचारों एवं प्रेरणाओं का पता लगाया जा सके। इस विधि में उपभोक्ता को कहा जाता है कि वह अपने को किसी अन्य व्यक्ति की हैसियत से देखें और बतायें कि उसकी राय में वह अन्य व्यक्ति क्या सोचेगा या कहेगा। इस तकनीक के तहत् उपभोक्ताओं से किसी अपूर्ण वाक्य को पूरा करने के लिए अनुरोध किया जा सकता है।

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