कुछ विश्वविद्यालयों ने पत्राचार पाठ्यक्रमों की भी शुरुआत की। कुछ प्रान्तों में कृषि, व्यावसायिक, तकनीकी और इंजीनियरिंग शिक्षा में भी प्रसार किया गया। परन्तु इस सबकी गति बहुत मन्द थी। तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने इस शिक्षा नीति को ईमानदारी से लागू करने पर अनेक बार बल दिया, परन्तु संसाधनों की कमी के कारण प्रान्तीय सरकारें इसे पूर्ण रूप में लागू नहीं कर सकीं। तभी केन्द्र में जनता दल सत्तारूढ़ हो गया, मोरारजी देसाई प्रधानमन्त्री बने।
सत्ता सम्भालने के कुछ ही दिन बाद मोरारजी ने 10+2+3 के स्थान पर 8+4+3 की बात कही और प्रथम 8 वर्षीय शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क करने की बात कही। जनता दल के सांसद पहली बार सत्ता में आए थे, उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लिए आवाज उठानी शुरु की। बस क्या था, तत्कालीन केन्द्रीय शिक्षा मन्त्री श्री प्रतापचन्द्र चन्दर ने कुछ शिक्षाविदों और संसद सदस्यों के सहयोग से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार की और अप्रैल, 1979 में उसकी घोषणा कर दी।
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1979 के मूल तत्व
इस शिक्षा नीति की पहली मूल बात यह है कि इसमें प्राथमिक शिक्षा को प्रथम वरीयता, प्रौढ़ शिक्षा को द्वितीय वरीयता और माध्यमिक शिक्षा की तृतीय वरीयता दी गई है। इसकी दूसरी मूल बात यह है कि इसमें कमजोर वर्ग के बच्चों की शिक्षा व्यवस्था पर बहुत अधिक बल दिया गया है। और इसकी तीसरी मूल बात यह है कि इसमें शहरी और ग्रामीण तथा सामान्य विद्यालयी और विशिष्ट विद्यालयी शिक्षा के अन्तर को समाप्त करने पर बल दिया गया है। इस शिक्षा नीति के मूल तत्वों को अग्रलिखित रूप में क्रमबद्ध किया जा सकता है-
1. शिक्षा की व्यवस्था करना केन्द्र और राज्य सरकारों का संयुक्त उत्तरदायित्व होगा
शिक्षा की राष्ट्रीय नौति का निर्माण केन्द्र सरकार द्वारा होगा, इस नीति के अनुसार शिक्षा की व्यवस्था करना केन्द्र और राज्य सरकारों का संयुक्त उत्तरदायित्त्व होगा। केन्द्र राज्य सरकारों को इसके लिए आर्थिक सहायता देगा।
2. शिक्षा की व्यवस्था में व्यक्तिगत प्रयासों को प्रोत्साहन दिया जाएगा
किसी भी स्तर की शिक्षा व्यवस्था में व्यक्तिगत प्रयासों को प्रोत्साहन दिया जाएगा, पर सरकारी एवं गैर सरकारी सभी शिक्षा संस्थाओं पर सरकार का नियन्त्रण होगा।
3. सम्पूर्ण देश में 8+4+3 शिक्षा संरचना लागू की जाएगी
प्राथमिक शिक्षा की अवधि 8 वर्ष, माध्यमिक शिक्षा की 4 वर्ष और स्नातक पाठ्यक्रम की अवधि 3 वर्ष होगी। यदि विश्वविद्यालय चाहें तो वे 2 वर्ष का सामान्य स्नातक और 3 वर्ष का स्नातक आनर्स पाठ्यक्रम चला सकते हैं।
4. अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति की जाएगी
प्रथम 8 वर्षीय अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था को प्रथम प्राथमिकता दी जाएगी, इस लक्ष्य को शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त किया जाएगा। इस स्तर की पाठ्यचर्या में भाषा, गणित, विज्ञान, इतिहास, सामाजिक पर्यावरण, सांस्कृतिक मूल्यों, शारीरिक शिक्षा और बागवानी को स्थान दिया जाएगा। पड़ौस विद्यालय (Neighbourhood Schools) योजना लागू की जाएगी। ये ऐसे विद्यालय होंगे जिनमें पड़ौस (स्थान विशेष) के सभी वर्गों के बच्चे एक साथ शिक्षा प्राप्त करेंगे।
5. माध्यमिक शिक्षा को व्यावहारिक रूप दिया जाएगा
माध्यमिक शिक्षा के विस्तार को सीमित किया जाएगा और इसमें गुणात्मक सुधार किया जाएगा। यह शिक्षा दो प्रकार की होगी सामान्य और व्यावसायिक । सामान्य माध्यमिक शिक्षा द्वारा छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए तैयार किा जाएगा और व्यावसायिक शिक्षा द्वारा उन्हें अपनी जीविका कमाने योग्य बनाया जाएगा। दोनों प्रकार के पाठ्यक्रमों को जीवनोपयोगी बनाया जाएगा, सैद्धान्तिक ज्ञान की अपेक्षा व्यावहारिक पक्ष पर अधिक बल दिया जाएगा। इस स्तर पर संस्कृति के संरक्षण के लिए सहपाठ्यचारी क्रियाओं को स्थान दिया जाएगा और राष्ट्रीय एकता के विकास के लिए त्रिभाषा सूत्र लागू किया जाएगा।
6. पब्लिक स्कूलों पर अंकुश लगाया जाएगा
पब्लिक स्कूल समाजवादी व्यवस्था के प्रतिकूल हैं, अतः सामान्य विद्यालयों और पब्लिक स्कूलों की भारी असमानता को दूर किया जाएगा। पब्लिक स्कूलों में ली जाने वाली भारी फीस पर नियन्त्रण किया जाएगा। इनमें प्रतिभाशाली निर्धन छात्रों के लिए स्थान सुरक्षित किए जाएंगे।
7. उच्च शिक्षा का प्रसार एवं उन्नयन किया जाएगा
उच्च शिक्षा का लाभ मुख्य रूप से उच्च वर्ग के युवक उठा रहे हैं, यह कमजोर वर्ग के युवकों को भी सुलभ कराई जाएगी। सभी को उच्च शिक्षा के समान अवसर प्राप्त कराए जाएँगे। साथ ही इस स्तर की शिक्षा में गुणात्मक सुधार किया जाएगा, पाठ्यक्रमों को उपयोगो बनाया जाएगा और विज्ञान शिक्षा एवं अनुसन्धान कार्य को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
8. व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा में गुणात्मक सुधार किया जाएगा
सभी प्रकार की व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रमों को अद्यतन बनाया जाएगा। इस प्रकार की शिक्षा संस्थाओं का सुधार किया जाएगा, उनकी प्रयोगशाला और कार्यशालाओं को समुन्नत किया जाएगा, उन्हें पर्याप्त आर्थिक सहायता दी जाएगी।
9. शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषाएँ होंगी
प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषाएँ होंगी और माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषाएँ। उच्च स्तर की विज्ञान, तकनीकी एवं इंजीनियरिंग आदि की शिक्षा प्राप्त करने के लिए अभी अंग्रेजी भाषा का ज्ञान आवश्यक है अतः उसकी व्यवस्था की जाएगी।
10. मूल्यांकन प्रणाली में सुधार किया जाएगा
कक्षा 8 तक केवल आन्तरिक मूल्यांकन होगा, परन्तु किसी भी छात्र को फेल नहीं किया जाएगा। प्रथम सार्वजनिक परीक्षा कक्षा 10 के बाद, द्वितीय सार्वजनिक परीक्षा कक्षा 12 के बाद और तृतीय विश्वविद्यालयी परीक्षा स्नातक स्तर के अन्त में होगी। इन परीक्षाओं को वस्तुनिष्ठ बनाने के लिए क्रेडिट प्रणाली लागू की जाएगी। साथ ही आन्तरिक एवं सतत् मूल्यांकन को महत्त्व दिया जाएगा।
11. शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार किया जाएगा
शिक्षकों के सेवा पूर्व शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम को व्यावहारिक बनाया जाएगा। सेवारत शिक्षकों को शिक्षण सम्बन्धी अद्यतन जानकारी देने हेतु सेवाकालीन कार्यक्रम (Inserice Programme) की व्यवस्था की जाएगी।
12. योग्यता छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाएगी
किसी भी स्तर की शिक्षा के छात्रों को योग्यता और आर्थिक स्थिति के आधार पर छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाएगी।
13. प्रौढ़ शिक्षा पर विशेष बल दिया जाएगा
निरक्षरता उन्मूलन और उत्पादन में वृद्धि करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। 15 से 35 आयुवर्ग के प्रौढ़ों को साक्षर बनाने के लिए अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम चलाए जाएंगे। इन कार्यों के संचालन में शिक्षित ग्रामीण युवक, अवकाश प्राप्त व्यक्ति, शिक्षक-शिक्षार्थी, विश्वविद्यालयों और समाजसेवी संस्थाओं आदि का सहयोग लिया जाएगा। इसके लिए केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारें आवश्यक आर्थिक व्यवस्था करेंगी और समुदाय का आर्थिक सहयोग लिया जाएगा।
14. कमजोर वर्ग के लिए विशेष शैक्षिक सुविधाएँ
भूमिहीन, कृषि श्रमिक, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। शिक्षा से वंचित इन वर्गों के बच्चों के लिए अतिरिक्त विद्यालय स्थापित किए जाएँगे और उन्हें आर्थिक सहायता दी जाएगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1979 का मूल्याकंन एवं गुण-दोष
किसी भी वस्तु, क्रिया अथवा विचार का मूल्यांकन कुछ आधारभूत मानदण्डों के आधार पर किया जाता है। शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है, अतः शिक्षा सम्बन्धी किसी भी शिक्षा नीति का मूल्यांकन समाज विशेष के लिए उसकी उपयोगिता के आधार पर किया जाना चाहिए। भारत एक लोकतन्त्रीय राष्ट्र है, इसकी अपनी कुछ मूलभूत आवश्यकताएँ हैं। साथ ही यह एक विकासशील राष्ट्र है, इसके अपने कुछ निश्चित लक्ष्य हैं। यदि हम इन सब आधारों पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1979 का मूल्यांकन करें तो उसमें निम्नलिखित गुण-दोष स्पष्ट होंगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1979 के गुण
(1) इस शिक्षा नीति में अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था को प्रथम वरीयता दी गई है और 10 वर्ष के अन्दर इस लक्ष्य की प्राप्ति पर बल दिया गया है। किसी भी लोकतन्त्रीय समाज को पहली शैक्षिक आवश्यकता एक निश्चित स्तर तक की शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क करना होता है।
(2) इस शिक्षा नीति में माध्यमिक शिक्षा को सामान्य एवं व्यावसायिक दो वर्गों में विभाजित किया गया है और दोनों ही वर्गों की पाठ्यचर्या को व्यावहारिक एवं जीवनोपयोगी बनाने पर बल दिया गया है और उसे सांस्कृतिक आधार पर विकसित करने पर बल दिया गया है। हमारे देश की अपनी परिस्थितियों की दृष्टि से यह अति आवश्यक है।
(3) व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा में गुणात्मक सुधार उस समय की माँग थी, इस शिक्षा नीति में उसके लिए वायदा किया गया है।
(4) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं को बनाना, किसी भी राष्ट्र के लिए हितकर होता है। इस, शिक्षा नीति में इस पर बल दिया गया है।
(5) प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था के लिए विशेष कार्यक्रम बनाना और अतिरिक्त धन जुटाना इस शिक्षा नीति की एक बड़ी विशेषता है। इससे निरक्षरता उन्मूलन तो होगा ही, उत्पादन में भी वृद्धि होगी और तनुकूल व्यक्तियों का जीवन स्तर उठेगा।
(6) ग्रामीण क्षेत्रों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने का अर्थ है, देश की 70% (वर्तमान में 50%) उपेक्षित जनता की शिक्षा पर ध्यान देना।
(7) इस शिक्षा नीति में कमजोर वर्ग के बच्चों, युवकों और प्रौढ़ों को विशेष शैक्षिक सुविधाएँ प्रदान करने का वायदा किया गया है। लोकतन्त्रीय राज्य में सामाजिक समानता लाने के लिए यह अति उत्तम कदम है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1979 के दोष
(1) इस शिक्षा नीति में 10+2+3 शिक्षा संरचना को 8+4+3 में परिवर्तित किया गया है, इसका कोई औचित्य नजर नहीं आता। हमारा लक्ष्य प्रथम 10 वर्षीय शिक्षा को समान, अनिवार्य और निःशुल्क करने का होना चाहिए।
(2) माध्यमिक स्तर पर त्रिभाषा सूत्र लागू करना न सम्भव है और न इसके कोई लाभ हैं।
(3) पब्लिक स्कूलों पर जिस अंकुश की बात कही गई है, वह अव्यावहारिक है, एक तानाशाही रवैया है। एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में जन सहयोग की बात और दूसरी तरफ अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करने वालों पर अंकुश। हाँ, इन्हें उद्योग के रूप में नहीं पनपने देना चाहिए।
(4) उच्च शिक्षा के द्वार सबके लिए खोलना, उच्च शिक्षा के लिए अनौपचारिक शिक्षा की व्यवस्था करना और इस स्तर पर छात्रों की व्यक्तिगत परीक्षा की व्यवस्था करना हानिकारक ही सिद्ध हुए हैं। छात्र अनुशासनहीनता बढ़ी है, छात्र आक्रोश बढ़ा है, शिक्षित बेरोजगारी बढ़ी है। और सबसे बड़ी हानि यह हुई कि कार्य कुशलता कम हुई है।
(5) परीक्षा प्रणाली में सुधार की बात अच्छी बात है परन्तु सुधार के नाम पर कक्षा 8 तक किसी को फेल नहीं किया जाएगा, शिक्षा के महत्व को कम करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1979 का प्रभाव
इससे पहले कि इस शिक्षा का अनुपालन होता 1980 में केन्द्र में पुनः कांग्रेस सत्ता में आ गई और उसने पुनः राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 पर अमल करना शुरू कर दिया।
**** उपसंहार ***
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1979 में कुछ भी नया नहीं था, पुराने निर्णयों को ही भाषायी हेर-फेर के साथ प्रस्तुत किया गया था। 10 वर्ष के अन्दर अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करना और 5 वर्ष के अन्दर 10 करोड़ निरक्षर प्रौढ़ों को साक्षर बनाने की बात हवाई किला नहीं तो और क्या था ! क्या जनता सरकार को कोई अलाउद्दीन का चिराग हाथ लग गया था। सामान्य पड़ौस स्कूलों की स्थापना, पब्लिक स्कूलों पर अंकुश, ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की व्यवस्था और कमजोर वर्ग के लिए विशेष शैक्षिक सुविधाएँ सुलभ कराने की बात राजनीतिक झूठे वायदों के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। यह बात अवश्य है कि इस शिक्षा नीति की घोषणा के बाद सरकार ने अपने बजट में प्राथमिक और प्रौढ़ शिक्षा के लिए एक बड़ी धनराशि आवंटित की थी और बड़े जोर-शोर के साथ कुछ कार्य भी शुरु किए थे, परन्तु परिणाम ऊँट के मुँह में जीरा ही साबित हुआ। सच बात यह है कि यह शिक्षा नीति वोट की राजनीति पर आधारित थी, इसमें हवाई किले अधिक और वास्तविकता कम थी।