मुगलकालीन शासन में स्त्रियों की क्या दशा थी।

मुगलकाल में, स्त्रियों की स्थिति और दशा अधिकांश विशेष परंपरागत और सामाजिक परिणामों पर आधारित थीं। मुगल साम्राज्य के अधिकांश शासकों के समय में, समाज में स्त्रियों को समाज में काफी प्रतिबद्धता और निर्देश मिलता था।

परंपरागत भूमिका 

समाज में स्त्रियों की परंपरागत भूमिका घरेलू काम, परिवार की देखभाल, और समाज के धर्मिक कार्यों में थी। वे अधिकतर अपने पति और परिवार के प्रति वफादार और समर्पित रहती थीं।

सामाजिक प्रतिबंध 

स्त्रियों के लिए सामाजिक प्रतिबंध थे जो उन्हें स्वतंत्रता और स्वाधीनता से वंचित करते थे। उन्हें शैली, पहनावा, और सामाजिक संवादों में सीमितता थी।

शिक्षा

अधिकांश स्त्रियों को उच्च शिक्षा की पहुँच नहीं थी, हालांकि कुछ विशेष घरों में शिक्षिका की भूमिका महत्वपूर्ण थी। उन्हें अधिकतर घरेलू शिक्षा मिलती थी जो उन्हें घरेलू काम करने के लिए तैयार करती थी।

निर्धनता

निर्धनता और समाज में आर्थिक असमानता के कारण, अधिकांश स्त्रियाँ गरीबी और असहायता के शिकार थीं।

सांस्कृतिक प्रतिबंध 

कुछ सांस्कृतिक प्रतिबंध भी थे जो स्त्रियों के समृद्ध सांस्कृतिक भूमिकाओं को वंचित करते थे। उन्हें कला, संगीत, और साहित्य की उच्च शैलियों में सामना नहीं करने दिया गया।

राजनीतिक बाधाएँ

राजनीतिक और सामाजिक बाधाएँ भी स्त्रियों की प्रगति में रोकटोक का कारण बनी। उन्हें सार्वजनिक जीवन और नौकरियों में पहल की अनुमति नहीं थी।

पुत्रियों का जन्म 

मुसलमानों में स्त्रियों की दशा अत्यन्त दयनीय थी। समाज में उनका स्थान पुरुषों से निम्न था। हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों में पुत्र जन्म पर जश्न मनाया जाता था। शाहजादे के जन्म पर शाही हरम में उत्सव मनाया जाता था। पुत्र प्राप्त करने की इच्छा से बादशाह अकबर ने चिश्ती की दरगाह तक पैदल यात्रा की थी। राजपूतों में कन्या की घृणित प्रथा प्रचलित थी।

पर्दा-प्रथा

सल्तनत काल के समान इस काल में भी पर्दा प्रथा प्रचलित थी। दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत में पर्दा प्रथा का अधिक प्रचलन था। दक्षिण भारत में उच्च घरानों की मुसलमान स्त्रियाँ ही पर्दा धारण करती थीं। मुगल बादशाहों ने पर्दा प्रथा को प्रोत्साहित किया। अकबर ने आदेश जारी किया, "यदि कोई युवती गलियों और बाजारों में विना पर्दे या घूँघट के दिखायी दे अथवा जिसने अपनी इच्छा से पर्दे को तोड़ा हो तो उसे वेश्यालय में ले जाया जाये और उसे ऐसे पेशे को अपनाने दिया जाये।" 

हिन्दू और मुसलमानों के उच्च घरानों में पर्दा-प्रथा का कठोरता से पालन किया जाता था। हरम तथा जनानखाना में कोई पुरुष प्रवेश नहीं कर सकता था। हिजड़े सन्देशवाहक का कार्य किया करते थे। किसी भी पुरुष चिकित्सक को शाही अथवा अमीरों की बीमार बेगमों अथवा शाहजादियों के परीक्षण की अनुमति नहीं थी। शाही परिवार तथा अन्य घरानों की स्त्रियाँ जब बाहर निकलती थीं, उनके लिए विशेष प्रकार के पर्दे की व्यवस्था की जाती थी। बर्नियर लिखता है कि जिस मार्ग से शाही परिवार की स्त्रियाँ निकलती थीं, उस मार्ग से कोई भी व्यक्ति नहीं जा सकता था। काबुल के गवर्नर अमीर खाँ ने अपनी बेगम को इसलिए तलाक दे दिया था क्योंकि हाथी के पागल हो जाने के कारण उसका पर्दा टूट गया था। परन्तु नूरजहाँ एक अपवाद थी। वह बुरका धारण नहीं करती थी और शाही दरबार में जनता के समक्ष उपस्थित होती थी। पर्दा प्रथा, बाल-विवाह और बहु-विवाह के कारण मुगलकाल में स्त्रियों की दशा अत्यन्त दयनीय थी।

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हिन्दू स्त्रियाँ धोती या साड़ी के पल्लू से अपना मुँह ढक लेती थीं अथवा घूँघट कर लेती थीं। राजपूत परिवारों में पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था। राजपूत नारियाँ खेलने जाया करती थीं। वे युद्ध कला शिक्षा ग्रहण करती थीं और युद्ध में भाग लेती थीं। मध्यमवर्गीय हिन्दू परिवार में भी पर्दा प्रथा का कठोरता से पालन नहीं होता था। वे घर के बाहर जा सकती थीं। किसान, मजदूर और निम्न वर्ग की स्त्रियों में पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था। मालाबार की स्त्रियाँ पुरुष अतिथि का स्वतन्त्रतापूर्वक सत्कार करती थीं।

और इस प्रकार मुगलकालीन भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति विवादास्पद और संविवेदनशील थी। मुगल साम्राज्य के अधीन, स्त्रियों को निर्देश दिया गया था कि वे घर के अंदर ही रहें और घर के कार्यों में ही लगे रहें। उन्हें समाज में पुरुषों के साथ बाहर काम करने की अनुमति नहीं थी। समाज में स्त्रियों की स्थिति अधिकतर परंपरागत रूप से परिवार और समाज की संरचना पर निर्भर करती थी, जहां पति या पुरुष सदैव निर्णायक थे।

हालांकि, इसके बावजूद, कुछ मुगल शासकों की रानियाँ और महिलाएं अपने समय के मानक से स्वतंत्रता और सत्ता का उपयोग करती थीं। उदाहरण के रूप में, अकबर की रानी जोधा बाई, जो पूरे समाज में प्रसिद्ध थीं और अकबर के शासन के दौरान कई सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों का समर्थन करती थीं।

सम्पूर्ण रूप से, मुगलकाल की स्त्रियों की स्थिति अत्यंत संवेदनशील और विवादास्पद थी, जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों और क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न अनुभव थे।

अतः सम्पूर्ण रूप से कहा जा सकता है कि मुगलकाल में स्त्रियों की दशा अधिकांश रूप से परंपरागत और सामाजिक परिणामों पर निर्भर करती थीजो उन्हें सामाजिक और आर्थिक स्थितियों में प्रतिबद्ध करते थे और स्त्रीयों की दशा बहुत ही दयनीय थी।

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