जवाहर नवोदय विद्यालय : [Jawahar Navodaya Vidyalaya]

जवाहर नवोदय विद्यालय का सामान्य परिचय

किसी भी राष्ट्र का विकास दो तत्वों पर निर्भर करता है- प्राकृतिक संसाधन और मानव संसाधन । और अगर अधिक बारीकी से देखें समझे तो प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग भी मानव संसाधन पर निर्भर करता है। जहाँ तक प्राकृतिक संसाधनों की बात है ये तो प्रकृति की देन हैं, परन्तु मानव संसाधन के विकास के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। यही करण है कि आज किसी भी राष्ट्र में शिक्षा की व्यवस्था करना राज्य का उत्तरदायित्व माना जाता है।

जवाहर नवोदय विद्यालय : [Jawahar Navodaya Vidyalaya]

यूँ तो शिक्षा अपने में उत्तम निवेश है, परन्तु प्रतिभावान बच्चों की शिक्षा पर किया गया व्यय अधिक उपयोगी होता है क्योंकि ये ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उत्तम कार्य करते हैं और नेतृत्व प्रदान करते हैं। और इन प्रतिभावान बच्चों के लिए जितने उत्तम प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था की जाती है उससे उतना हो अधिक लाभ होता है। अतः किसी भी राष्ट्र में प्रतिभावान बच्चों के लिए उत्तम शिक्षा की व्यवस्था होना आवश्यक होता है।

हमारे देश में धनी वर्ग के व्यक्ति तो अपने बच्चों को व्यय साध्य पब्लिक स्कूलों और कैपीटेशन फीस वाले कॉलिजों में प्रवेश दिलाकर उत्तम प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था कर लेते हैं, या यूं कहें कि वे अपने बच्चों के लिए उत्तम प्रकार की शिक्षा खरीद लेते हैं, परन्तु पिछड़े और निर्धन वर्ग के व्यक्ति ऐसा नहीं कर पाते। परिणामतः इस वर्ग के प्रतिभावान बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते और राष्ट्र इनकी प्रतिभा के लाभ से वंचित रह जाता है। इस तथ्य की ओर सबसे पहले ध्यान गया हमारे तत्कालीन युवा प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी का। उन्होंने शिक्षाविदों के सम्मुख इस तथ्य को रखा और इस समस्या के समाधान के लिए सुझाव मांगे। इस समस्या के समाधान हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में गति निर्धारक विद्यालयों (Pace Setting Schools) की स्थापना करने की घोषणा की गई और इन्हें नवोदय विद्यालय का नाम दिया गया। नवोदय विद्यालयों की स्थापना के सम्बन्ध में केन्द्रीय सरकार ने निम्नलिखित निर्णय लिए-

(1) देश के सभी प्रान्तों के सभी जिलों में एक-एक नवोदय विद्यालय की स्थापना की जाएगी। इनमें कक्षा 6 से कक्षा 12 तक की शिक्षा की व्यवस्था होगी।

(2) नवोदय विद्यालय सामान्यतः ग्रामीण अंचलों में स्थापित किए जाएँगे।

(3) ये विद्यालय आवासीय, सहशिक्षा और निःशुल्क होंगे। इनमें आवास एवं भोजन की व्यवस्था भी निःशुल्क होगी। 

(4) इन विद्यालयों की स्थापना के लिए प्रान्तीय सरकारों को 35 एकड़ भूमि प्रति विद्यालय उपलब्ध करानी होगी, इनका शेष व्यय केन्द्रीय सरकार (मानव संसाधन विकास मन्त्रालय) वहन करेगी।

(5) ये विद्यालय केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) से सम्बद्ध होंगे, इनमें केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का पाठ्यक्रम लागू होगा और केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ही इनके छात्रों को अन्तिम परीक्षा लेगा और उत्तीर्ण छात्रों को प्रमाणपत्र देगा। इनमें कक्षा 6 से 8 तक की शिक्षा क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से दी जाएगी और कक्षा 9 से 12 तक राष्ट्र भाषा हिन्दी और अंग्रेजी भाषा के माध्यम से दी जाएगी।

(6) इन विद्यालयों में 75% स्थान ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए, 15% स्थान अनुसूचित जातियों के बच्चों के लिए और 7.5% स्थान अनुसूचित जनजातियों के बच्चों के लिए आरक्षित होंगे।

(7) इन विद्यालयों में प्रवेश हेतु प्रवेश परीक्षा होगी, योग्यता के क्रम में छात्रों का चयन किया जाएगा।

और इन निर्णयों के अनुसार एक क्रमबद्ध योजना के तहत 2009 तक देश के 34 प्रान्तों और केन्द्रशासित प्रदेशों में 576 नवोदय विद्यालयों की स्थापना की जा चुकी थी जिनमें लगभग 2 लाख छात्र-छात्राएँ अध्ययनरत हैं। इन विद्यालयों में प्रतिवर्ष 30,000 से अधिक छात्र-छात्राओं को प्रवेश दिया जाता है। भविष्य में देश के सभी प्रान्तों के सभी जिलों में एक-एक नवोदय विद्यालय होगा और इनमें 2 लाख 24 हजार छात्र-छात्राएँ पढ़ रहे होंगे।

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जवाहर नवोदय विद्यालय के उद्देश्य

(1) सबसे अच्छे बच्चों को सबसे अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराना।

(2) देश के उपेक्षित क्षेत्र (ग्रामीण) और उपेक्षित वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) के प्रतिभावान बच्चों को आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करना।

(3) राष्ट्रीय लक्ष्य-समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता की प्राप्ति करना और राष्ट्रीय एकता का विकास करना।

(4) देश की प्रतिभाओं का विकास करना और उनके द्वारा राष्ट्र का विकास करना।

(5) अन्य विद्यालयों के लिए आदर्श उपस्थित करना।

नवोदय विद्यालय का मूल्यांकन एवं गुण-दोष

इस समय लगभग सभी जिलों में नवोदय विद्यालय खुल चुके हैं। इनके मूल्यांकन का अर्थ है यह देखना कि जिन उद्देश्यों को सामने रखकर इनकी स्थापना की गई थी उनकी प्राप्ति में ये कहाँ तक सफल हुए हैं; उस दृष्टि से इनमें क्या गुण हैं और क्या दोष हैं और इन्हें किस प्रकार अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है।

नवोदय विद्यालयों के गुण

नवोदय विद्यालयों को यूँ तो बहुत आलोचना हो रही है फिर भी कुछ हद तक वे अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल हो रहे हैं और उस दृष्टि से इनमें निम्नलिखित गुण हैं-

1. उपेक्षित वर्ग की प्रतिभाओं के लिए उत्तम शिक्षा की व्यवस्था- नवोदय विद्यालयों की स्थापना का सर्वप्रथम उद्देश्य देश के उपेक्षित क्षेत्रों और वर्गों के प्रतिभावान बच्चों के लिए उत्तम शिक्षा की व्यवस्था करना था। इनमें प्रवेश परीक्षा द्वारा उपेक्षित क्षेत्रों और वर्गों के प्रतिभावान बच्चों का चयन कर उन्हें प्रवेश दिया जाता है और उन्हें निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जानी है।

2. शैक्षिक अवसरों की समानता- इनका दूसरा मुख्य उद्देश्य उपेक्षित क्षेत्रों और वर्गों के बच्चों को समान शैक्षिक अवसर प्रदान करना था। धनी वर्ग के व्यक्ति अपने बच्चों को पब्लिक स्कूलों में भर्ती कराकर अच्छी शिक्षा खरीद लेते हैं, पिछड़े और निर्धन वर्ग के मेधावी एवं प्रतिभावान बच्चों के लिए उत्तम स्तर की शिक्षा सुलभ कराने का काम ये विद्यालय कर रहे हैं। इन विद्यालयों में शिक्षा पूर्ण रूप से निःशुल्क है। आवस एवं भोजन को व्यवस्था भी निःशुल्क है। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए 75% प्रतिशत स्थान सुरक्षित है। साथ ही अनुसूचित जाति के बच्चों के लिए 15% स्थान सुरक्षित हैं और जनजाति के बच्चों के लिए 7-5% स्थान सुरक्षित हैं। ये प्रतिभाशाली छात्रों को अपनी प्रतिभाओं के विकास के लिए समान शैक्षिक अवसर सुलभ करा रहे हैं।

3. वर्ग भेद की समाप्ति की ओर- इन विद्यालयों में गाँव और नगर, धनी और निर्धन, उच्च वर्ण और निम्न वर्ण आदि सभी वर्गों के बच्चों को प्रवेश दिया जाता है, सभी बच्चे एक साथ छात्रावासों में रहते हैं, एक साथ उठते-बैठते हैं और एक साथ भोजन करते हैं। इन सब बच्चों की विद्यालय प्रांगण की एक छोटी सी दुनिया होती है, ये एक-दूसरे के सहयोग से एक सामूहिक जीवन जीते हैं तथा इससे वर्ग भेद की समाप्ति होगी।

4. धर्मनिरपेक्षता की प्राप्ति की ओर- इन विद्यालयों में विभिन्न धर्मों को मानने वाले छात्रों को प्रवेश दिया जाता है। अध्यापक एवं अन्य कर्मचारी भी भिन्न-भिन्न धर्मों के मानने वाले होते हैं, सभी को अपने-अपने धर्मों के पालन की स्वतन्त्रता होती है, धर्म के नाम पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता। ये धर्मनिरपेक्षता के लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर हैं।

5. राष्ट्रीय एकता के विकास में सहायक- प्रथम बात तो यह है कि इनमें केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का पाठ्यक्रम लागू है जो देश के सभी प्रान्तों के लिए समान है। दूसरी बात यह है कि इस पाठ्यक्रम में राष्ट्रभाषा हिन्दी की शिक्षा अनिवार्य है। तीसरी बात यह है कि इनमें कश्क्षा 6 से 8 तक की शिक्षा का माध्यम तो क्षेत्रीय भाषाएँ हैं परन्तु कक्षा 9 से 12 तक की शिक्षा का माध्यम राष्ट्रभाषा हिन्दी और अन्तर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी है।

अतः चौथी बात यह है कि इन विद्यालयों में विभिन्न प्रान्तों के छात्र एक साथ पढ़ते हैं। पाँचवीं बात इस सन्दर्भ में यह है कि इनमें विभिन्न क्षेत्रों के अध्यापक अध्यापन कार्य करते हैं। छठी बात यह है कि कक्षा IX के 30% छात्रों को एक भाषायी प्रान्त से दूसरे भाषायी प्रान्त में स्थान्तरित किया जाता है। और सातवीं एवं अन्तिम बात यह है कि ये सब छात्र और शिक्षक एक स्थान पर एक साथ रहते हुए सामूहिक जीवन जीते हैं। इससे राष्ट्रीय एकता का भाव स्वाभवतः उत्पन्न होता है।

6. उत्तम शैक्षिक पर्यावरण- ये विद्यालय नगरों के कोलाहल और दूषित पर्यावरण से दूर ग्रामों के शान्त एवं स्वच्छ पर्यावरण में स्थित हैं, इनमें छात्र अनुशासनहीनता का प्रश्न ही नहीं उठता। पढ़ने के लिए अच्छे कक्ष, अच्छे पुस्तकालय, अच्छी कार्यशालाएँ और अच्छी प्रयोगशालाएँ हैं, साथ ही खेल-कूद और सहपाठ्यचारी क्रियाओं के लिए उत्तम  व्यवस्था है और रहने के लिए अच्छे छात्रावास हैं, खाने की व्यवस्था भी ठीक है। तथा बच्चों को पढ़ने और खेलने-कूदने के पूरे-पूरे अवसर मिलते हैं। शिक्षक-शिक्षार्थियों के बीच निकट के सम्बन्ध है।  

7. उनम शिक्षण विधियों का प्रयोग- इन विद्यालयों में क्षेत्रीय भाषाओं और अंग्रेजी दोनों के माध्यम से शिक्षा की व्यवस्था है। इनमें राष्ट्रीय स्तर पर चयन किए गए योग्य एवं प्रशिक्षित आध्यापकों की नियुक्ति को जाती है। इनमें हार्डवेयर साधन-रेडियो, टेलीविजन, वीडियो, कम्प्यूटर आदि सभी उपलब्ध हैं। शिक्षा की उत्तम विधियों एवं शिक्षण तकनीकी के प्रयोग के पूरे अवसर सुलभ हैं। छात्रों को कक्षा शिक्षण के साथ-साथ दूर संचार के माध्यमों से शैक्षिक प्रसारण का लाभ भी मिलता है।

8. राष्ट्र की उच्चतम प्रतिभाओं का उच्चत्तम विकास- किसी राष्ट्र का विकास मानव संसाधन पर निर्भर करता है और मानव संसाधन में भी प्रतिभावान व्यक्तियों का विशेष महत्त्व होता है। नवोदय विद्यालय उपेक्षित वर्ग के उच्चतम प्रतिभा के बच्चों की तलाश कर रहे हैं, उनका चयन कर रहे हैं और उनकी शिक्षा की उत्तम व्यवस्था कर रहे हैं। भविष्य में देश को और अधिक प्रतिभावान व्यक्तियों का नेतृत्व प्राप्त होगा।

9. अन्य विद्यालयों के लिए आदर्श- इन विद्यालयों की स्थापना के पीछे एक उद्देश्य यह भी है कि ये अन्य विद्यालयों के लिए आदर्श होंगे। कुछ अर्थों में ये आदर्श सिद्ध हो भी रहे हैं, परन्तु उत्तने उच्च स्तर के नहीं जितने अधिक ये साधन सम्पन्न हैं।

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नवोदय विद्यालयों के दोष

जैसा कि हमने पहले ही कहा है इस बीच नवोदय विद्यालयों की प्रशंसा कम और आलोचना अधिक हुई है और उसका मूल कारण यह है कि इनसे उतनी उपलब्धि प्राप्त नहीं हुई जितनी प्राप्त करने की आशा से इनकी स्थापना की गई थी। अतः इनकी आलोचना के मुख्य बिन्दु हैं-

1. सामान्य स्कूल की धारणा के प्रतिकूल- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में शैक्षिक अवसरों की समानता के सन्दर्भ में सामान्य स्कूलों की स्थापना का विचार उभरकर आया था। कुछ शिक्षाविदों का तर्क है कि नवोदय विद्यालय सामान्य स्कूल की धारणा के एकदम विपरीत हैं। तथा दो प्रकार की नीतियाँ एक साथ क्यों।

2. अति व्यय साध्य- नवोदय विद्यालय आवासीय और निःशुल्क हैं। एक नवोदय विद्यालय की भूमि, भवन, पुस्तकालय, कार्यशालाओं और प्रयोगशालाओं, खेल के मैदानों और अन्य साज-सज्जा तथा अध्यापक एवं अन्य कर्मचारियों पर जितना व्यय किया जा रहा है उतने व्यय से सामान्य स्तर के 10 नए विद्यालय चलाए जा सकते हैं। दस गुना व्यय करने के बाद यदि दो गुना लाभ हो भी रहा है तो इसे व्यय साध्य ही कहा जाएगा।

3. प्रवेश परीक्षा द्वारा उपेक्षित वर्गों के बच्चों का चयन नहीं- सामान्य सर्वेक्षण से पता चला है कि इनमें प्रवेश के लिए एन० सी० ई० आर० टी० द्वारा सम्पादित प्रवेश परीक्षा में उपेक्षित वर्ग के बच्चे नहीं आ पाते अधिकतर वे ही बच्चे आ रहे हैं जिनके माता-पिता शहरों में अच्छे पदों पर कार्यरत हैं और अपने को ग्रामीण क्षेत्रों का निवासी प्रमाणित करा लेते हैं। और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के जो बच्चे आरक्षण के अधीन आ रहे हैं, वे मेधावी एवं प्रतिभावान नहीं हैं।

4. शिक्षकों में उत्साह की कमी- नवोदय विद्यालय के शिक्षक उच्च वेतनभोगी हैं और रहना इन्हें पड़ रहा है ग्रामीण अंचलों में। वहाँ इनका मन नहीं लग रहा है कुछ मानसिक बेचैनी सी अनुभव करते हैं। परिणाम यह है कि इनमें उत्साह का अभाव है। , 

5. अध्यापकों में निष्ठा की कमी निष्ठा की कमी- तो इस देश का सर्वव्यापी रोग है। परन्तु इन विद्यालयों के सन्दर्भ में यह अधिक अर्थ रखता है। एक नवोदय विद्यालय पर इतना अधिक व्यय, शिक्षकों को इतने ऊँचे वेतनमान एवं इतनी अधिक सुविधाएँ और उसके उत्तर में इतनी अधिक लापरवाही! सचमुच भारी आलोचना का विषय है।

6. छात्रों को आने-जाने में असुविधा- ये विद्यालय ग्रामीण अंचलों में स्थापित किए गए हैं, छात्रों को अपने निवास स्थानों से इनके प्रांगण तक पहुँचने में ट्रेन और बसों के अतिरिक्त टैम्पो, घोड़ा गाड़ी, और कहीं कहीं ऊँटगाड़ी अथवा बैलगाड़ी से भी चलना पड़ता है।

7. छात्र वास्तविक वातावरण से दूर- ये विद्यालय ग्रामीण अंचलों में स्थापित हैं, नगरीय वातावरण से एकदम कटे हुए हैं, परिणाम यह कि छात्र देश के वास्तविक सामाजिक परिप्रेक्ष्य से दूर हैं, उनमें वह जागरुकता और वह तेजी नहीं आ पा रही जो शहरी वातावरण के विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों में आ रही है।

उपसंहार

देश के अधिकतर जिलों में नवोदय विद्यालय स्थापित किए जा चुके हैं। अब ये बन्द तो किए नहीं जा सकते और न ही बन्द किए जाने चाहिए। हमारा पहला सुझाव तो यही है कि जिन जिलों में ये अभी तक नहीं खोले जा सके हैं, उनमें खोले जाएँ। आप प्रश्न करेंगे कि जब ये राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के सामान्य स्कूल की धारणा के विपरीत हैं तो नए नवोदय विद्यालय क्यों खोले जाएँ। इस सन्दर्भ में हमारा निवेदन है कि ये सामान्य स्कूल की धारणा के विपरीत नहीं हैं-सामान्य स्कूल सामान्य बच्चों के लिए और नवोदय विद्यालय प्रतिभाशाली बच्चों के लिए हैं। लोकतन्त्र में हम पब्लिक स्कूल तो बन्द करा नहीं सकते और न ही बन्द कराने चाहिए। परन्तु इनमें अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के अवसर केवल धनी वर्ग के बच्चों को ही मिल पाते हैं, तब नवोदय विद्यालयों द्वारा उपेक्षित और निर्धन वर्ग के प्रतिभाशाली बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करना एक उचित कदम है।

नवोदय विद्यालयों का दूसरा दोष इनका व्यय साध्य होना है। हम मानते हैं कि जितने व्यय से एक नवोदय विद्यालय खोला और चलाया जाता है उतने व्यय से दस सामान्य विद्यालय खोले और चलाए जा सकते है, परन्तु तब उपेक्षित वर्ग के प्रतिभाशाली बच्चों को अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के अवसर कैसे दिए जा सकेंगे।

बस आवश्यकता है इनके लिए छात्रों की चयन प्रक्रिया में सुधार करने को और शिक्षकों को सक्रिय करने की। इन विद्यालयों में स्थान, जाति, लिंग आदि किसी भी आधार पर प्रवेश देने के स्थान पर केवल उन्हीं वर्गों के मेधावी बच्चों को प्रवेश दिया जाए जो सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं, लोकतन्त्र और सामाजिक न्याय का यहीं तकाजा है। 

इस सिद्धान्त को लागू करने पर अधिक लाभ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के बच्चों को ही होगा। बिना आरक्षण के अधिक आरक्षण हो जाएगा और जाति के आधार पर वर्ग भेद की समाप्ति होगी। साथ ही इनमें कार्यरत शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की जवाबदेही निश्चित की जाए। इन विद्यालयों का निरीक्षण ईमानदार शिक्षाविदों से कराया जाए और अपने कर्तव्य का पालन ईमानदारी से न करने वालों को तुरन्त सेवामुक्त किया जाए। 

अतः अब समय आ गया है जब देश में काम के बदले दाम का सिद्धान सख्ती से लागू किया जाए। अपने स्वयं के, समाज के और राष्ट्र के विकास के लिए यह अतिआवश्यक है। हमारा पहला निवेदन सत्ता में बैठे लोगों से छोड़ो भाई-भतीजावाद, छोड़ो देश की लूट-पाट, छोड़ो तिजोरी भरने की बात और छोड़ो वोट की राजनीति। और दूसरा निवेदन शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों से अपनाओ आदर्श आचार-विचार और करो समाज और राष्ट्र का निर्माण। ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे ।

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