ब्रांड का अर्थ
वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति में प्रत्येक उत्पादक के सामने यह प्रश्न आता है कि वह अपनी वस्तु को अन्य उत्पादकों की बनाई गई वस्तुओं से किस प्रकार भिन्नता प्रदान करे जिससे ग्राहकों को अपनी ही वस्तुओं की ओर आकर्षित किया जा सके। इस समस्या के हल के लिए उत्पादक अपने द्वारा बनाई गई वस्तुओं के लिए एक ब्रांड का प्रयोग करता है अर्थात् एक चिन्ह या मार्का निश्चित करके उसका पंजीयन करा लेता है तथा अपनी वस्तुओं के लिए उस मार्का का अधिकृत रूप से प्रयोग करता है। वस्तु का ब्राण्ड उत्पादक की ओर से प्रयोग किया जाने वाला एक ऐसा चिन्ह होता है जिसके द्वारा वह अपनी वस्तुओं में अन्य उत्पादकों की वस्तुओं से भिन्नता प्रदान करता है।
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ब्रांड की परिभाषा
ब्रांड की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्न हैं-
विलियम जे. स्टाण्टन के अनुसार-"ब्रांड में वे शब्द, लेख या अंक शामिल है, जिनका उच्चारण हो सकता है। इसमें तस्वीर की डिजाइन भी शामिल है।"
अमेरिकन मार्केटिंग एसोसियेशन के अनुसार-"ब्रांड एक नाम, पद, प्रतीक या डिजाइन अथवा इसका एक सम्मिश्रण है, जिसके द्वारा एक विक्रेता अथवा विक्रेताओं के समूह के उत्पादों या सेवाओं की पहचान की जाती है तथा उन्हें प्रतिस्पर्धा से भिन्न किया जाता है।"
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ब्रांड के लाभ
ब्रांड का लाभ समाज के किसी विशेष पक्ष को न होकर सभी को पहुँचता है। ब्रांड से होने वाले लाभों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-
(I) उत्पादकों को लाभ
ब्रांड के प्रयोग से उत्पादकों को मुख्य रूप से निम्न लाभ प्राप्त होते हैं-
(1) विज्ञापन में सुविधा- कम्पनी प्रत्येक वस्तु पर ब्रांड का चिन्ह डाल देती है तथा विज्ञापन किसी एक उत्पाद का न करके पूरे ब्रांड का करती है। ग्राहक भी ब्रांड से प्रभावित होते हैं तथा एक निश्चित ब्रांड की वस्तुओं का प्रयोग पसन्द करने लगते हैं। उदाहरण के लिये, टाटा कम्पनी बसों तथा ट्रकों से लेकर दैनिक प्रयोग में आने वाला साबुन तक बनाती है तथा एक विशेष चिन्ह का प्रयोग करती है। विज्ञापन में भी उसी चिन्ह की वस्तुओं को खरीदने के लिए प्रेरित किया जाता है।
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(2) अधिक कीमत की प्राप्ति- जब ग्राहक किसी विशेष ब्रांड की वस्तु का प्रयोग करने के अभ्यस्त हो जाते हैं तो फिर वह उसी प्रकार की अन्य ब्रांड की कीमत से उसकी तुलना नहीं करते बल्कि अपने ब्राण्ड की महँगी वस्तु को भी क्रय के दृष्टिकोण से प्राथमिकता देते हैं। सिगरेट, डबलरोटी, दवाई आदि के प्रयोग में यही बात लागू होती है।
(3) पृथक् बाजार का निर्माण- उत्पादक अपने ब्रांड का प्रयोग करके विज्ञापन द्वारा अपनी वस्तुओं के लिये पृथक् बाजार का निर्माण कर सकता है तथा विक्रय को सुरक्षा प्रदान कर सकता है। ब्रांड का प्रयोग पुनः विक्रय को भी प्रोत्साहन देता है।
(4) वस्तु परिचय- ब्रांड के प्रयोग द्वारा ग्राहकों को वस्तु के सम्बन्ध में आसानी से जानकारी दी जा सकती है तथा उन्हें स्थायी रूप से अपने ब्रांड का ग्राहक बनाया जा सकता है।
(5) उत्पादक मिश्रण के विस्तार में सुविधा- यदि किसी कम्पनी का ब्राण्ड बाजार में प्रचलित है अर्थात् ग्राहकों के द्वारा पसन्द किया जाता है तो उत्पाद मिश्रण में अन्य उत्पादों का भी प्रवेश कराया जा सकता है तथा बाजार में उन्हें स्थान ग्रहण कराने में विशेष प्रयत्नों की आवश्यकता नहीं होती।
(6) ग्राहकों से व्यक्तिगत सम्पर्क- ब्राण्ड के बाजार में लोकप्रिय हो जाने पर मध्यस्थों की संख्या में भी कमी की जा सकती है तथा ग्राहकों से सीधा सम्पर्क स्थापित करके विपणन लागत को घटाया जा सकता है।
(II) उपभोक्ताओं को लाभ
ब्रांड के प्रयोग से उपभोक्ताओं को निम्नलिखित लाभ होते हैं-
(1) पहचान में सुविधा- ब्राण्ड के प्रयोग से ग्राहक वस्तु को शीघ्र ही पहिचान लेता है क्योंकि एक ब्राण्ड की लगभग सभी वस्तुओं पर एक सा ही रंग तथा डिजाइन का प्रयोग किया जाता है। अत: ग्राहकों को इच्छित वस्तु प्राप्त करने में विशेष प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं होती।
(2) वस्तु की किस्म में सुधार- अपने ब्राण्ड की साख को बनाये रखने के लिये उत्पादक हमेशा वस्तु की किस्म में सुधार के लिये प्रयत्नशील रहता है। वह यह प्रयत्न करता है कि अन्य प्रतिस्पर्धी अपेक्षाकृत उससे अधिक वस्तु बाजार में न ला सकें।
(3) कीमत की निश्चितता- एक निश्चित ब्राण्ड की वस्तु की कीमत सभी स्थानों तक एक सी रहती है तथा उसमें किसी प्रकार से भी ठगे जाने की सम्भावना नहीं होती।
(4) बढ़िया पैकेज- ब्रांड का नाम तथा चिन्ह अक्सर पैकिंग के ऊपर ही अंकित होता है। अतः पैकिंग को आकर्षक तथा मजबूत बनाने का प्रयास किया जाता है। इससे वस्तु की सुरक्षा में वृद्धि होती है।
(5) किस्म की गारण्टी- साधारणतया ब्रांड वाली वस्तुओं की किस्म अच्छी होती है। इसके ग्राहकों को उत्तम प्रकार की वस्तु प्रयोग करने के लिये उपलब्ध होती है।
(6) मानसिक सन्तुष्टि- ब्रांड की वस्तु के प्रयोग से ग्राहक को मानसिक सन्तुष्टि रहती है कि वह उचित कीमत पर अच्छी किस्म का प्रयोग कर रहा है।
(III) मध्यस्थों को लाभ
मध्यस्थों को ब्रांड से निम्नलिखित लाभ हैं-
(1) संवर्द्धन की आवश्यकता न होना- ब्रांड वाले उत्पादों के लिए मध्यस्थों द्वारा संवर्द्धन व्यय करने की आवश्यकता नहीं रहती है क्योंकि ब्राण्ड वाले उत्पादों का विज्ञापन एवं संवर्द्धन कार्य तो स्वयं निर्माता द्वारा ही किया जाता है और ऐसे विज्ञापनों में उस मध्यस्थ का नाम भी दिया रहता है। कभी-कभी मध्यस्थ भी संवर्द्धन व्यय कर देता है लेकिन उसके व्ययों की क्षतिपूर्ति उस उत्पाद के निर्माता द्वारा कर दी जाती है।
(2) विक्रय में सुविधा- मध्यस्थों के लिए ब्राण्ड वाले उत्पादों को बेचने में ब्राण्ड-रहित उत्पादों की तुलना में सुविधा रहती है। प्रायः ग्राहक विशिष्ट ब्राण्ड के उत्पाद को माँगता हुआ स्वयं दुकान पर आता है, जैसे- एलजी का टी. वी., डालडा घी, 50-50 बिस्कुट, पार्कर पैन आदि।
(3) कम जोखिम- ब्राण्ड वाले उत्पादों के मूल्य में घटा-बढ़ी बहुत ही कम होती है अत: मध्यस्थों की मूल्य में घटा-बढ़ी सम्बन्धी जोखिम भी कम रहती है।
(4) साख में वृद्धि- जो मध्यस्थ अच्छे ख्यातिप्राप्त निर्माताओं की ब्रांड वाली वस्तुओं को बेचते हैं, उनकी साख बाजार में काफी बढ़ जाती है।
क्या ब्रांड का प्रयोग सामाजिक दृष्टिकोण से वांछनीय
ब्रांड का प्रयोग सामाजिक दृष्टिकोण से उचित है या नहीं यह एक विवादास्पद प्रश्न है। कुछ व्यक्ति ब्रांड के प्रयोग को उचित मानते हैं तो कुछ अन्यों की दृष्टि में यह सर्वथा अनुचित तथा अनावश्यक है। ब्राण्ड के प्रयोग को उचित मानने वालों का मत है कि ब्राण्ड के कारण निश्चित कीमत पर अच्छे किस्म की वस्तु बिना किसी धोखे की सम्भावना के चुनाव के लिये कम प्रयत्नों के साथ प्राप्त करके समय तथा धन की बचत के साथ ही मानसिक सन्तुष्टि भी प्राप्त की जाती है। जबकि इस विचारधारा के विपरीत दृष्टिकोण रखने वालों के विचार में ब्राण्ड का प्रयोग एक ओर तो उत्पादकों की एकाधिकारी प्रवृत्ति को विकसित करता है तथा अपने ग्राहकों को मूर्ख बनाकर उनका शोषण करने का अवसर प्रदान करता है। ब्राण्ड के प्रयोग से समाज को अनेक प्रकार की सुविधाएँ मिलती हैं इसलिये ब्राण्ड का प्रयोग उचित कहा जाता है। ब्राण्ड के प्रयोग को समाज के लिए उचित माने जाने के पक्ष में निम्न तथ्य हैं-
- ब्राण्ड वाली वस्तुओं से उपभोक्ताओं को वस्तुओं के सम्बन्ध में गारण्टी मिल जाती है। यदि वस्तु में किसी प्रकार का दोष निकलता है तो उसके लिये ब्राण्ड का स्वामी उत्तरदायी होता है।
- ब्राण्ड के उपयोग करने से वस्तुओं के मूल्यों में स्थिरता रहती है।
- नकली वस्तुओं से समाज को बचाया जा सकता है।
- ग्राहकों को वस्तुओं के चुनाव में सुविधा रहती है क्योंकि वे वस्तुओं को ब्राण्ड के नाम से पुकार कर क्रय कर सकते हैं; जैसे- रैड लेबल चाय, ताजमहल चाय आदि।
ब्राण्ड का उपयोग सामाजिक दृष्टिकोण से कुछ लोग अवांछनीय मानते हैं। इस सम्बन्ध में उन लोगों के निम्न विचार हैं-
- ब्राण्ड का उपभोग उपभोक्ता को विवेकहीन बना देता है। इससे एक हानि यह होती है कि समाज उस वस्तु के दायरे में इतना फँस जाता है कि अन्य किसी वस्तु के बारे में नहीं सोच पाता।
- जब वस्तु ब्राण्ड के कारण बहुत अधिक लोकप्रिय हो जाती है तो वस्तु के निर्माता अस्तु के मूल्यों को बढ़ाकर उपभोक्ताओं को शोषण करने लगते हैं।
- ब्राण्ड की वजह से नये उत्पादों का निर्माण करने से निर्माता लोग कतराते हैं जिससे नयी-नयी वस्तुओं का विकास नहीं हो पाता।
- वास्तव में देखा जाये तो ब्राण्ड के उपयोग का समाज द्वारा विरोध केवल सैद्धान्तिक है क्योंकि अधिकतर लोग ब्राण्ड के प्रयोग को पसन्द करते हैं। अतः ब्राण्ड का प्रयोग तो किया जाना चाहिये लेकिन सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि निर्माता लोग ब्राण्ड का दुरुपयोग न करें।
इस प्रकार हम देखते हैं कि दोनों ही प्रकार की विचारधाराएँ सारपूर्ण हैं अर्थात् किसी को भी गलत नहीं कहा जा सकता लेकिन यदि ब्राण्ड के प्रयोग की बिल्कुल समाप्त करने वाली बात कही जाए तो आज के समय में यह कुछ विचित्र-सा लगता है क्योंकि आज के व्यावसायिक जगत में न तो विक्रेता ही इतना खाली है कि क्रेता की सन्तुष्टि के लिए अत्यधिक समय तथा मेहनत लगाए और न ही उपभोक्ता के पास इतना समय है कि वह उचित वस्तु की खोज में बाजार में निश्चिन्तता के साथ घूमता रहे। अतः वर्तमान समय में ब्राण्ड का प्रयोग बिल्कुल वांछनीय है।