भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकार : Bharateey Naagarikon Ke Maulik Adhikaar

भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकार :

हमारी जानकारी के अनुसार वे अधिकार, जो मनुष्य के जीवन के लिए मौलिक तथा अपरिहार्य हैं, मौलिक अधिकार कहलाते हैं। उदाहरण के लिए स्वतन्त्रता का अधिकार, अभिव्यक्ति का अधिकार तथा समानता का अधिकार इत्यादि। यदि यह अधिकार व्यक्ति को उपलब्ध नहीं हो पाते तो उसके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता और व्यक्ति वह नहीं बन पाता जिसके योग्य वह है। यह अधिकार इसलिए भी मौलिक कहलाते हैं, क्योंकि इनको देश के संविधान में स्थान दिया गया है। यदि देश में सामान्य स्थितियाँ हैं तो इन अधिकारों को नियन्त्रित नहीं किया जा सकता तथा इनके ऊपर प्रतिबन्ध नहीं लगाए जा सकते। व्यवस्थापिका कार्यपालिका इनका अतिक्रमण नहीं कर सकते। देश को न्यायपालिका के द्वारा इनका संरक्षण व इनका क्रियान्वयन होता है।

राष्ट्रीय आन्दोलन के समय से ही भारतवासी स्वतन्त्र भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों का उल्लेख चाहते थे। मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में संविधान के निर्माताओं के सामने खास समस्या अधिकारों के चयन की थी। अन्ततोगत्वा उन्होंने अधिकारों को मौलिक अधिकार घोषित किया।

1. समानता का अधिकार (Rights of Equality)- कानून की दृष्टि में सब नागरिक समान हैं। धर्म, जाति, लिंग, रक्त आदि के आधार पर भेदभाव नहीं होगा। सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए समान अधिकार दिये गये हैं। छुआ-छूत को कलंक मानकर इसे संविधान द्वारा अपराध की संज्ञा दी गई। सभी नागरिकों को सार्वजनिक स्थानों के उपयोग करने का पूरा और समान अधिकार है। सरकार की ओर से किसी प्रकार की उपाधि सर रायबहादुर, नाइट की नहीं दी जायेगी तथा पुरानी अंग्रेजों द्वारा दी गई उपाधियों का अन्त कर दिया गया है। शिक्षा और सेना सम्बन्धी उपाधियाँ वितरित की जाती हैं।

इसे भी पढ़ें- मौलिक अधिकार
 
2. स्वतन्त्रता का अधिकार (Rights of Freedom)- प्रजातन्त्र शासन की आधारशिला स्वतन्त्रता का अधिकार है। भारतीय जनता को स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है। संविधान के अनुसार नागरिकों को भाव व्यक्त करने की आजादी है। वे संस्था या सभा का संगठन करके विचारों का विनिमय कर सकते हैं। इस सम्बन्ध में राज्य यह नियन्त्रण रखेगा कि वे सरकार विरोधी अर्थात् देशद्रोही के रूप में विचार प्रकट न करें। नागरिकों को पूरे देश में भ्रमण करने को आजादी है। संकटकाल में भ्रमण पर नियन्त्रण लगाया जा सकता है। नागरिकों को इच्छानुसार व्यापार व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता है। लेकिन काला बाजारी पर नियन्त्रण राज्य रखता है। संविधान के 44वें संशोधन के अनुसार धन संग्रह करने पर नियन्त्रण लगा दिया गया है।

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (Rights against Exploitation)- किसी भी व्यक्ति से बलात् श्रम या बेगार नहीं ली जा सकती। 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खदानों, कारखानों में कार्य करने की आज्ञा नहीं है। यह श्रम का शोषण होता है। स्त्रियों का क्रय-विक्रय करना घोर सामाजिक अपराध है। इन शोषणों से राज्य नागरिकों की रक्षा करेगा।

इसे भी पढ़ें- राजकोषीय नीति का अर्थ, परिभाषा, विशेषतायें, एवं उद्देश्य  

4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (Rights of Freedom of Religion)- संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को धर्म के विषय में छूट दी गई है। प्रत्येक नागरिक स्वयं की इच्छानुसार धर्म मान सकता है, प्रचार-प्रसार कर सकता है, लेकिन किसी पर दबाव नहीं डाल सकता है। राज्य की ओर से कोई धर्म नहीं है। सरकार किसी भी धर्म के विषय में पक्षपात नहीं करेगी।

5. संस्कृति तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (Rights Regarding Culture and Education)- संविधान की धारा 29, 30 में संस्कृति और शिक्षा के अधिकारों का वर्णन है। भारत एक विशाल देश है, इसमें विभिन्न भाषा-भाषी लोग निवास करते हैं। इस देश में विभिन्न संस्कृति के लोग निवास करते हैं। इसके अन्तर्गत भाषा संस्कृति तथा लिपि संरक्षण का अधिकार प्राप्त हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति को सरकारी या सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त संख्या में प्रवेश का अधिकार है। अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को राज्य की ओर से विद्यालय स्थापित करने में सहायता दी जायेगी। अब पिछड़ी जाति के लोगों को भी अपनी संस्कृति और शिक्षा में सरकार की ओर से प्रोत्साहन दिया जाता है।

इसे भी पढ़ें- मौलिक कर्त्तव्य एवं मौलिक कर्तव्यों का महत्व 

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Rights of Constitutional Remedies)- यदि इन अधिकारों पर कुठाराघात होता है तो प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि अपने मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की समुचित माँग सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कर सकता है। संसद विधि द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को अधिकार दे सकती है कि उससे क्षेत्र में आदेश जारी करने का अधिकार है। सेना में अनुशासन बनाये रखने के लिए संसद इन अधिकारों पर बंदिश लगा सकती है।

7. संविधान का पालन, राष्ट्रीय ध्वज तथा राष्ट्रगान का सम्मान करना- राज्य वह सर्वोच्च कानून होता है जिसके अनुसार राज्य का प्रबन्ध चलाया जाता है। भारत के संविधान में व्यक्ति और राज्य के सम्बन्ध में निश्चित किये गये हैं। प्रत्येक नागरिक का यह पुनीत कर्त्तव्य है कि वह संविधान का आदर करे। इसी प्रकार हमारा राष्ट्रीय ध्वज तथा राष्ट्रगान है। ये हमारे राष्ट्र की अमूल्य निधि है। प्रत्येक भारतीय का यह कर्त्तव्य है कि वह इनका सम्मान करे, परन्तु प्रायः यह देखा गया है कि भारत के अनेक लोग इसका सम्मान नहीं करते हैं। वे यह नहीं जानते हैं कि इन चिह्नों को प्राप्त करने के लिए कितने भारतीयों ने अपने तन-मन-धन का बलिदान दिया है। ये हमारी आजादी के चिह्न हैं तथा इनका आदर करना प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्त्तव्य है।

यह भी पढ़ें- मौलिक अधिकार का अर्थ और परिभाषा लिखिए

मौलिक अधिकारों का मूल्यांकन या सीमाएँ

भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की जाती है-

1. अधिकारों पर पर्याप्त प्रतिबन्ध- मौलिक अधिकारों को लेकर एक महत्वपूर्ण बात यह है कि ये असीमित नहीं हैं, सब पर कुछ प्रतिबन्ध लगे हुए हैं। कई बार तो ऐसा लगता है कि संविधान ने ये अधिकार देकर भी छीन लिए हैं। जैसे- विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता। इस पर यह सीमा लागू है कि सार्वजनिक शान्ति की रक्षा या मित्र देश की मित्रता की रक्षा के लिए इस पर रोक लगायी जा सकती है।

इस प्रकार बोलने की स्वतन्त्रता पर भी यह सीमा है कि उसके द्वारा किसी न्यायालय की मानहानि करने की स्वतन्त्रता नहीं है। धार्मिक स्वतन्त्रता के बारे में सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि किसी सामाजिक या कल्याणकारी सुधार के लिए हिन्दू धर्म की कोई भी धार्मिक मान्यता रास्ते में आने पर उस पर कानून बनाया जा सकता है।

2. आपातकाल में मौलिक अधिकारों का स्थगन- आपातकाल में नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रतिबन्धित किये जाने की व्यवस्था है। कामथ ने इस सम्बन्ध में कहा था, "इस व्यवस्था द्वारा हम तानाशाही राज्य की ओर पुलिस राज्य की स्थापना कर रहे हैं।" इस आलोचना के उत्तर में हम प्रो. एम. जी. गुप्ता के विचारों को व्यक्त कर सकते हैं- "यदि राज्य ही नहीं रहेगा तो व्यक्ति को अधिकार कौन प्रदान करेगा।"

3. मौलिक अधिकारों की सूची पूर्ण नहीं है- मौलिक अधिकारों की आलोचना इस आधार पर की जाती है, क्योंकि इसमें काम का अधिकार कुछ विशेष परिस्थितियों में राज्य की सहायता प्राप्त करने के अधिकार ऐसे हैं जिन्हें मौलिक अधिकारों में सम्मिलित नहीं किया गया है। इनके बिना मौलिक अधिकारों की सूची अधूरी है।

इस आलोचना के सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है कि देश में साधनों के अभाव के कारण उन्हें नीति निदेशक तत्वों में सम्मिलित किया गया है।

Post a Comment

Previous Post Next Post