टोटमवाद (Totemism)
प्राय: प्रत्येक जनजाति में वंश-समूह गोत्र तथा बिरादरी इत्यादि महत्वपूर्ण संगठन विद्यमान होते हैं। गोत्र रक्त सम्बन्धों अर्थात् समान वंशी लोगों का संगठन है। एक ही पूर्वज से उत्पन्न पीड़ियाँ परस्पर सम्बन्धित मानी जाती हैं। अपने गोत्र से सम्बन्धित व्यक्तियों की पहचान करने के लिए गोत्र-चिह्न का उपयोग किया जाता है। मूल पूर्वज के रूप में या मूल पूर्वज से सम्बन्धित किसी व्यक्ति, वस्तु इत्यादि को गोत्र चिह्न मान लिया जाता है। इस प्रकार एक गोत्र चिह्न को मान्यता देने वाले सब लोग एक गोत्र के माने जाते हैं। यह गोत्र-चिह्न ही वास्तव में टोटम कहलाता है और टोटम में विश्वास करना ही टोटमवाद है।
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टोटम का अर्थ (Meaning of Totem)
टोटमवाद का मूल टोटम है। टोटम को परिभाषा करते हुए होबेल ने कहा है, "टोटम एक वस्तु, बहुधा एक पशु अथवा पौधा है जिसका सामाजिक समूह के सदस्यों के द्वारा विशेष आदर किया जाता है। वे यह महसूस करते हैं कि उनके तथा टोटम के बीच भावात्मक परिचय का एक अनूठा बन्धन है।"
गोल्डन वाइजर ने टोटम को गोत्र से सम्बन्धित सम्मानित चिह्न के रूप में मान्यता दी है उसने लिखा है। गोत्रों में विभाजित बहुत-सी आदिम जनजातियों में गोत्र का नाम किसी पशु, पौधे या प्राकृतिक पदार्थ से उत्पन्न होता है। गोत्र के सदस्य इन जीवों या वस्तुओं के प्रति एक विशेष दृष्टिकोण का प्रदर्शन करते हैं जिन्हें मानवशास्त्रियों ने टोटम कहा है।
उपर्युक्त परिभाषाओं से टोटम की धारणा स्पष्ट हो जाती है कि टोटम वह वस्तु, पदार्थ अथवा पशु या पौधा है जिसे किसी जनजाति के लोग अपने मूल पूर्वज के रूप में मान्यता देते हैं और उसके प्रति अगाध सम्मान की भावना रखते हैं।
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टोटमवाद का अर्थ (Meaning of Totemism)
टोटम को मूल पूर्वज या गोत्र चिह्न के रूप में मान्यता देना तथा उसके अनुसार आचरण करना टोटमवाद है। 'हर्सकोविट्स' ने टोटमवाद की परिभाषा इस प्रकार की है, "टोटमवाद यह विश्वास करता है कि रक्त सम्बनधों से निर्मित मानव समूह तथा किसी पौधे या पशु या कभी-कभी किसी प्राकृतिक पदार्थ के बीच एक रहस्यपूर्ण सम्बन्ध विद्यमान है।"
संक्षेप में, टोटमवाद वह संस्था है जो गोत्रों के निर्माण से सम्बन्धित प्रथाओं, परम्पराओं और संस्कारों से मिलकर बनती है और उसके आधार पर मनुष्यों तथा प्राकृतिक वस्तुओं के बीच एक विशिष्ट सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। टोटमवाद अनेकों सामाजिक तथा धार्मिक तत्वों के योग से निर्मित संस्था है।
इस प्रकार से यह प्राकृतिक पदार्थ पशु-पक्षी, वृक्ष अथवा अन्य जड़ या चेतन वस्तु जिससे कोई गोत्र समूह अपना वंशानुगत सम्बन्ध जोड़कर उसे श्रद्धा के भाव से देखने लगता है, टोटम कहलाती है और टोटम से सम्बन्धित धारणाओं, विश्वासों, संस्कारों तथा आकार व्यवहारों से मिलकर जो एक सम्पूर्ण ढाँचा बनता है, उसी को टोटमवाद कहते हैं।
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टोटमवाद की विशेषताएँ (Characteristics of Totemism)
टोटमवाद की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) टोटम से सम्बन्धित गोत्र के लोग टोटम को अपनी जाति या वंश क मूल पूर्वज मानते हैं।
(2) एक गोत्र के लोग टोटम को एक अलौकिक शक्ति के रूप में मान्यता देते हैं और उसके साथ गुप्त तथा रहस्यपूर्ण सम्बन्धों की कल्पना करते हैं।
(3) इन अलौकिक सम्बन्धों के आधार पर जनजाति के लोग यह विश्वास करते हैं कि टोटम उनका रक्षक है, वह प्रत्येक संकट में उनकी सहायता करता है और भावी संकटों के विषय में उन्हें चेतावनी देता है।
(4) यदि टोटम कोई पशु है तो उसकी मृत्यु पर अत्यन्त सम्मान के साथ विधिवत शोक मनाया जाता है और विशिष्ट पुरुष के समान उसकी अन्तिम क्रिया की जाती है।
(5) पौधे या पशु के रूप में यदि टोटम है, तो जनजाति के सदस्य उस पशु या पौधे को मारते या खाते नहीं। उसे चोट पहुँचाना भी अनुचित होता है। यदि सम्पूर्ण पशु को टोटम का प्रतीक न मानकर उसके किसी अंग में टोटम की स्थिति मानी जाती है तो लोग उस अंग को नहीं खाते, शेष पशु को खा सकते हैं। कभी-कभी खाद्य संकट के समय टोटम को खाने की आज्ञा तो होती है, किन्तु ऐसा करने पर लोगों को विशेष प्रार्थनाएँ और धार्मिक कृत्य करने पड़ते हैं।
(6) प्रायः जनजातियों और उनके गोत्रों के नाम टोटम से निश्चित होते हैं।
(7) टोटम के चित्र को दीवारों और घरों पर भली प्रकार सजाया जाता है। युवागृह पर विशेष रूप से टोटम का चित्र होता है।
(8) यदि कोई हिंसक या भयानक पशु जैसे- शेर, भेड़िया, चीता, सर्प आदि टोटम होता है तो गोत्र के लोग यह विश्वास करते हैं कि वह उन्हें हानि पहुँचायेगा चूँकि वह उनका पूर्वज है।
(9) टोटम चूंकि गोत्र से सम्बन्धित है, अतः एक टोटम को मानने वाले सब लोग रक्त-सम्बन्धी समझ जाते हैं और परस्पर विवाह नहीं कर सकते। गोत्र एक बहिर्विवाही समूह है अत: टोटम समूह के सदस्य भी अन्तर्विवाही नहीं कर सकते।
(10) टोटम की प्रसननता जहाँ आनन्द और सुख का कारण समझी जाती है वहाँ टोटम की अप्रसन्नता दुख और हानि का कारण समझी जाती है। यही कारण है कि टोटम की पूजा की जाती है और उसे धार्मिक स्थान पर अत्यन्त सावधानी के साथ रखा जाता है।
(11) टोटम कई प्रकार का होता है। गोत्र या जनजाति का टोटम बहुत विस्तृत होता है। लिंग टोटम स्त्री पुरुष के आधार पर गोत्र के सदस्यों के लिए अलग-अलग होता है। व्यक्तिगत टोटम किसी जनजाति के व्यक्तियों से अलग-अलग सम्बन्धित होता है।
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टोटमवाद की उत्पत्ति (Origin of Totemism)
टोटमवाद की उत्पत्ति के विषय में विद्वान एक मत नहीं है। फ्रेजर ने टोटमवाद की उत्पत्ति के विषय में बताया है कि टोटमवाद की उत्पत्ति दो कारणों से हुई। प्रथम तो यह है कि कौन गोत्र किन पशुओं तथा फलों का प्रयोग करे, वह निश्चित विभाजन जनजातियों में हुआ। जो पशु या वृक्ष किसी गोत्र के हिस्से में आया वही उसक टोटम हो गया है। दूसरे रूप में फ्रेजर की मान्यता है कि पहले जनजातियों की स्त्रियों के पास जो पशु-पक्षी होते थे वही उनके गर्भ धारण के कारण माने जाते थे। अतः वे उन्हीं की पूजा करने लगे और अपने गोत्र का पूर्वज मानने लगे।
होप्पिकंस के अनुसार जो पशु या वनस्पति जिस जनजाति के भोजन में सहायक होती है वह उसका टोटम हो जाता है। टोडा जनजाति इसका उदाहरण है।
दुर्खीम ने टोटम को सामुदायिक श्रद्धा केन्द्र के रूप में प्रचलित वस्तु माना है। टायलर के विचार से आत्मवाद टोटमवाद का कारण है। आदिवासियों का विश्वास है कि मृत्यु के बाद आत्मा किसी पशु-पक्षी या वृक्ष में निवास करके उस परिवार की रक्षा करती है। यही पशु-पक्षी या वृक्ष टोटम बन जाता है। टोटमवाद एक प्रकार से पूर्वज-पूजा का ही रूप है।
हेडन ने प्रत्येक जनजाति या गोत्र की किसी विशेष पशु या पौधे पर आधारित बताया है। यह पौधों या पशु इस जनजाति का टोटम बन गया।
एल्विन राय तथा मजूमदार आदि विद्वानों ने टोटमवाद को आकस्मिक घटनाओं का परिणाम बताया है। कभी-कभी किसी पक्षी या पशु को मारने पर व्यक्ति को चोट लगी या उसे कोई हानि पहुँची तो यह समझ लिया जाता है कि उस पशु या पक्षी के शाप का फल है, व्यक्ति को हानि और चोट है। धीरे-धीरे समूह के लोग उसी पशु या पक्षी को टोटम मानने लगते हैं।
वास्तविकता यह है कि जनजातियों में टोटम की उत्पत्ति किसी एक ही कारण से नहीं मानी जा सकती। विभिन्न समूहों में टोटम को उत्पत्ति विशिष्ट कारणों से मानी जाती है। नामकरण की पद्धति, श्रम-विभाजन, गर्भ निर्धारण के प्रति धारणा, भोजन का आधार, पेड़-पौधों में आत्मा का विश्वास आदि कारणों से टोटमवाद का विकास हुआ है।
टोटमवाद का महत्व (Importance of Totemism)
सामाजिक जीवन में कुछ महत्व और उपयोगिता के कारण टोटमवाद जन-जातीय जीवन का प्रमुखं अंग बन गया है। टोटमवाद जनजातीय धर्म और आचार का प्रारम्भिक रूप है। दुखीम के अनुसार तो धर्म की उत्पत्ति ही टोटमवाद से हुई है। टोटमवाद सम्बन्धित समूह को एक सूत्र में बाँधकर उनमें बन्धुत्व की भावना पैदा करता है, यह सामाजिक संगठन और सामाजिक एकता में बहुत सहायक होता है।
टोटमवाद सामाजिक नियन्त्रण का प्रमुख साधन है। इसके द्वारा समूह के सदस्यों में पारस्परिक सौहार्द, श्रद्धा, भक्ति और अनुशासन का विकास होता है। टोटम का भय व्यक्ति से व्यवहार को नियमित करने का कारण है। टोटमवाद बहिर्विवाह का निर्देश देता है और रक्त सम्बन्धों को शुद्ध रखता है। टोटमवाद के कारण कुछ विशिष्ट पशु पक्षियों की रक्षा हो जाती है। धर्म की रक्षा, जनजातीय एकता और सामाजिक संगठन के लिए टोटमवाद महत्वपूर्ण धारणा है।
भारतीय जनजातियों में सार्वभौमिक तौर पर टोटमवाद के दर्शन होते हैं। कमार जनजाति में नैतम, मरकम, सीरी, बागसीरी, नागसीरी, कंजम, मरे तथा छदैहा गोत्र समूहों के कछुआ, मरगमच्छ, चीता, सर्प, बकरा इत्यादि पृथक-पृथक टोटम है। बेलकी खरिया जनजाति में 8 टोटम समूह है। संकाल में 100, हो में 50, मुण्डा में 64 तथा भील जनजाति में 24 टोटम समूह पाए जाते हैं।? आरांव जनजाति में इसका गोत्र का समूह टोटम कछुआ, लड़का का लकड़बग्घा, टिस्को का चूहे का बच्चा तथा चिरी का टोटम गिलहरी है। गोंड तथा कलकारी में भी इसी प्रकार अनेकों टोटम हैं। टोटमवाद विश्व के सभी जनजातीय समाजों की विशेषता है।