शारीरिक शिक्षा का अर्थ
व्यापक अर्थ में शारीरिक शिक्षा व्यायाम, माँसपेंशी सृजनात्मक, परिसंचरण की तीव्र गतियों, स्वास्थ्य ज्ञान, समूह अनुभव, आनन्द प्राप्ति से भी कहीं अधिक है। खेलों में स्थायी मनोरंजनात्मक रुचि एवं खेलों में प्रशंसात्मक विकास के लिए बुद्धि की शिक्षा भी इसका उत्तरदायित्व है। गामक योग्यताओं के साथ, लयात्मक क्रियाकलाप, केम्पिंग एवं उपचारात्मक व्यायाम भी इसमें शामिल हैं। अतः यह एक व्यापक शब्द है जिसके विकास का कोई अन्त नहीं है।
शारीरिक शिक्षा के तीन निम्नांकित मुख्य रूप है-
1. शारीरिक क्रियाओं को संयमित और नियमित करना।
2. शरीर के सभी अंगों और क्रियाओं का सर्वांगपूर्ण, वैज्ञानिक, प्रणालीबद्ध और सुसामंजस्य विकास करना।
3. यदि शरीर में कोई दोष या विकृति हो तो उसे सुधारना।
यदि ज्ञान के सन्दर्भ में बात करें तो शारीरिक विषय की शिक्षा इसलिए प्रदान करते हैं क्योंकि हमें लगता है कि शिक्षार्थियों के लिए एक अत्यन्त ही ज्ञानोपयोगी विषय है, और इस विषय की शिक्षा से हम देश के बेहतर नागरिक बन सकते हैं और अपनी जीवन शैली को गुणवत्तापरक बना सकते हैं। अतः हम तीन स्तरों पर इसकी उपयोगिता का आंकलन कर सकते हैं-
1. शारीरिक गतिविधियों की जानकारी के बाद हमें उन्हें समझने और उनके बारे में चर्चा करने में सक्षम होते हैं।
2. शारीरिक गतिविधियों के प्रदर्शन के बारें में जानकारी से हम शारीरिक कौशल और प्रतिस्पर्धी प्रदर्शन के माध्यम से स्वयं को अभिव्यक्त कर सकते हैं।
3. शारीरिक गतिविधियों के प्रदर्शन से कैसे अनुभव प्राप्त होते हैं, इस जानकारी से हमें समृद्ध अनुभव प्राप्त होते हैं जो कि शारीरिक गतिविधियों या खेल प्रदर्शन को स्थिति में सम्भव हैं।
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शारीरिक शिक्षा की परिभाषाएँ
शारीरिक शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करने वाली कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नांकित हैं जो इसके अर्थ को भिन्न-भिन्न प्रकार से व्यक्त करती हैं-
जे. आर. शैरमेन के अनुसार- "शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के अनुभव को उस सीमा तक प्रभावित करता है जहाँ तक व्यक्ति की परिमिति हो जो उसे समाज में सफलतापूर्वक समायोजन में मदद दे ताकि वह अपनी इच्छाओं में वृद्धि और सुधार लाकर इन इच्छाओं की पूर्ति करने की योग्यता विकसित कर सके।"
जे. एफ. विलियम्स के अनुसार- "शारीरिक शिक्षा मनुष्य द्वारा चयनित शारीरिक गतिविधियाँ, उनके प्रकार एवं उससे प्राप्त परिणामों का योग है।"
जे. बी. नैश के अनुसार- "शारीरिक शिक्षा, सामान्य शिक्षा का वह क्षेत्र है जिसका सम्बन्ध शक्तिशाली पेशीय क्रियाओं और उनसे सम्बन्धित प्रतिक्रियाओं से है।"
डी. ओबरंट्यूफर के अनुसार- "शारीरिक शिक्षा उन अनुभवों का संकलन है जो व्यक्ति को शारीरिक गतियों द्वारा प्राप्त होते हैं।"
चार्ल्स ए. बुचर के अनुसार- "शारीरिक शिक्षा सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है जो अपने उद्देश्य के रूप में शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं सामाजिक विकास के परिणामों को प्राप्त करने के लिए एक दृष्टिकोण के साथ चयनित शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से योग्य नागरिकों का विकास करती है।"
एच. सी. बक के अनुसार- "शारीरिक शिक्षा, सामान्य शिक्षा कार्यक्रम का वह भाग है जो सशक्त पेशीय गतिविधियों के माध्यम से बच्चों की वृद्धि, विकास एवं शिक्षा से सम्बन्धित है। वस्तुतः यह शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से सम्पूर्ण बालक की शिक्षा है। शारीरिक गतिविधियाँ साधन हैं। इन शारीरिक गतिविधियों को इस प्रकार चयनित एवं संचालित किया जाता है वे बालक के जीवन के सभी पक्षों-शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं नैतिक को प्रभावित करते हैं।"
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शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य एवं प्राप्य उद्देश्य
कतिपय विद्वानों द्वारा बताए गए शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य
1. बुक वाल्टर (Book Walter) ने शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य के सन्दर्भ में संक्षिप्त एवं समावेशित विवरण प्रस्तुत किया है- ''शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य निर्देशित अनुदेशों के माध्यम से, चयनित खेलों में प्रतियोगिता से तथा लयबद्ध एवं जिम्नास्टिक क्रियाओं को सामजिक एवं स्वास्थ्य मानकों के अनुसार संचालित करके एकीकृत एवं समायोजित रूप से व्यक्ति का अधिकतम शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक विकास करना है।"
वाल्टर ने शारीरिक शिक्षा के प्रयोजनों को उनके उद्देश्यों के साथ चार स्तरों पर निम्न रूप में प्रस्तुत किया है-
(1) दार्शनिक स्तर |
अन्तिम उद्देश्य |
(2) सामाजिक स्तर |
दूरस्थ समायोजित उद्देश्य-स्वास्थ्य, अवकाश
के समय का सही सदुपयोग, नैतिक चरित्र। |
(3) जैविक स्तर |
मध्यवर्ती विकास उद्देश्य- जैविक विकास, तन्त्रिका-पेशीय
विकास, व्याख्यात्मक कॉर्टिकल विकास, भावनात्मक आवेगी विकास । |
(4) शैक्षणिक स्तर |
तात्कालिक नियन्त्रित उद्देश्य । |
2. जे. एफ, विलियम्स के अनुसार- "शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य कुशल नेतृत्व एवं पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध कराने से सम्बन्धित होना चाहिए जिससे शारीरिक शिक्षा व्यक्ति या समूह को उन स्थितियों का सामना करने का अवसर प्रदान कर सके जो शारीरिक रूप से स्वास्थ्यकर, मानसिक रूप से स्फूर्तिदायक एवं सन्तोषजनक तथा सामाजिक रूप से हितकारी हो।"
3. शारीरिक शिक्षा एवं मनोरंजन की राष्ट्रीय नीति, 1956 भारत सरकार के शिक्षा मन्त्रालय की रिपोर्ट के अनुसार- "शारीरिक शिक्षा, शिक्षा है। यह शिक्षा शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास कर शरीर, मन और आत्मा में पूर्णता लाती है। तात्कालिक रूप से, यह शारीरिक योग्यता (फिटनेस) के विकास से सम्बन्धित है। इस शारीरिक योग्यता (फिटनेस) की प्राप्ति के लिए शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य है कि वह बालक के मानसिक, नैतिक एवं सामाजिक गुणों को प्रशिक्षित करके उसमें वातावरण के प्रति जागरूकता, मानसिक चेतना, साधन-सम्पन्नता, अनुशासन, सहयोग, दूसरों के प्रति सहानुभूति, सम्मान एवं उदारता की भावना का विकास करे। ये सभी गुण एक स्वतन्त्र एवं लोकतन्त्रात्मक जगत् में सुखी एवं अच्छे जीवनयापन के लिए परम आवश्यक हैं।"
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शारीरिक शिक्षा के विविध विद्वानों द्वारा बताए गए प्राप्य उद्देश्य
(a) जे. बी. नैश (J. B. Nash) ने शारीरिक शिक्षा के विकासात्मक उद्देश्यों को सूचीबद्ध किया है-
(1) जैविक विकास,
(2) तन्त्रिका पेशीय विकास,
(3) व्याख्यात्मक या प्रतिपादनात्मक विकास,
(4) भावनात्मक विकास।
(b) ओबर्टयुफर एवं उल्कि (Oberteuffer and Ulrich) ने उद्देश्यों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया है-
(1) तात्कालिक उद्देश्य (क्रियाओं में दक्षता एवं कौशल, जैविक मूल्य एवं आधारभूत क्रीड़ा या मनोरंजन)।
(2) दीर्घकालिक उद्देश्य (मनोवैज्ञानिक विशिष्टताएँ एवं सामाजिक नियन्त्रण)।
(c) वुड एवं कैसिडी (Wood and Cassidy) ने शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों को सामान्य एवं विशिष्ट में वर्गीकृत किया है-
1. सामान्य उद्देश्य
(a) बाल्यावस्था के दौरान सुसंगत विकास जिसमें शामिल है, रुचि, क्षमताएँ एवं योग्यताएँ।
(b) वयस्क जीवन के लिए सुसंगत विकास जिसमें शामिल हैं रुचि, आदर्श एवं आदतें।
2. विशिष्ट उद्देश्य
(a) पेशीय विकास,
(b) जैविक ऊर्जा,
(c) तन्त्रिकीय स्फूर्ति,
(d) अच्छी स्वास्थ्य आदतें,
(e) दोषों में सुधार,
(f) अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ,
(g) मानसिक स्वास्थ्य का निरीक्षण।
समकालीन लक्ष्य एवं प्राप्य उद्देश्य
2004 में खेल और शारीरिक शिक्षा के राष्ट्रीय संघ (NASPE: National Association for Sports and Physical Education) ने अपने प्रपत्र के दूसरे संस्करण में शारीरिक शिक्षा के लिए संशोधित मानकों को 'Moving into the' शीर्षकों से प्रकाशित किया।
शारीरिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय मानक 2004
इन मानकों के अनुसार शारीरिक रूप से शिक्षित व्यक्ति है-
मानक 1- विविध प्रकार की शारीरिक गतिविधियों को करने के लिए गामक कौशलों एवं गतियों के रूपों में दक्षता को प्रदर्शित करना।
मानक 2- शारीरिक गतिविधियों को सीखने एवं उनका सम्पादन करने के लिए शारीरिक गतियों की संकल्पनाओं, सिद्धान्तों, योजनाओं एवं रणनीतियों को समझ को प्रदर्शित करना।
मानक 3- शारीरिक गतिविधियों में नियमित रूप से भाग लेना।
मानक 4- शारीरिक योग्यता या फिटनेस के स्वास्थ्यवर्धन स्तर को प्राप्त करना और उसे बनाए रखना।
मानक 5- शारीरिक गतिविधि विन्यास में उत्तरदायी व्यक्तिगत एवं सामाजिक व्यवहार को प्रदर्शित करना।
मानक 6- इस बात के महत्व को समझना कि शारीरिक गतिविधि आनन्द, चुनौती, आत्म-अभिव्यक्ति एवं सामाजिक सम्पर्क के अवसर उपलब्ध कराती है।
शारीरिक शिक्षा का कार्यक्षेत्र
शारीरिक शिक्षा के कार्यक्षेत्र निम्नलिखित हैं-
1. शारीरिक शिक्षा एक शैक्षणिक अनुशासन के रूप में
पूर्ण अकादमिक अनुशासन की कसौटी पर खरा उतरने के लिए शारीरिक शिक्षा विषय शैक्षणिक अनुशासन की निम्न विशेषताओं को सम्मिलित करता है-
(i) एकीकृत विषय क्षेत्र एवं पाठ्यक्रम- शारीरिक शिक्षा में अवधारणाओं का एकीकृत सोपानक्रम है जो ज्ञान के लिए एक समग्र एवं सतत् संरचना प्रदान करता है और अधिगम को निचले स्तर से उच्च स्तर पर परिवर्तन करने में सहायक होता है।.
(ii) सुदृढ़ सैद्धान्तिक आधार- शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र सुदृढ़ एवं परिशुद्ध सैद्धान्तिक आधार पर आधारित है जो सही एवं प्रासंगिक गतिविधियों में इस शैक्षणिक क्षेत्र को निर्देशित करने में यता करता है। इसके अतिरिक्त शारीरिक शिक्षा में अनुसंधान प्रयोजन के लिए और शिक्षण एवं उद्देश्यों के लिए सुदृढ़ प्रतिरूपों का भी अनुपालन किया जाता है।
(iii) विशिष्ट सीमाएँ- शारीरिक शिक्षा में अन्य विषय क्षेत्रों की भाँति गठन के दो रूप, सामान्यीकरण एवं विभेदीकरण होते हैं। सामान्यीकरण के अन्तर्गत अन्य विषय क्षेत्रों से जानकारियों को ग्रहण किया जाता है। विभेदीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत अन्य विषय क्षेत्रों से प्राप्त असम्बन्धित जानकारियों का विभेद करके केवल सम्बन्धित जानकारियों एवं अवधारणाओं को अध्ययन क्षेत्र में शामिल किया जाता है।
(iv) वैज्ञानिक आधार- शारीरिक शिक्षा के अन्तर्गत घटनाओं एवं तथ्यों के बारे में ज्ञान वैज्ञानिक विधि से प्राप्त होते हैं। शारीरिक शिक्षा में वैज्ञानिक अध्ययन के लिए अपनाई गई प्रमुख विधियों के सम्भावित क्रम का अनुपालन किया जाता है।
(v) मापन का सुग्राही उपकरण- शारीरिक शिक्षा में प्रायोगिक अध्ययनों में अत्यन्त संवेदनशील उपकरणों (यथा इर्गोमीटर, जैवयान्त्रिक सॉफ्टवेयर) द्वारा गौण अन्तरों का पता लगाया जाता है तथा वर्णनात्मक एवं अन्य अध्ययनों में वैधता एवं विश्वसनीयता के परिशुद्ध माप के लिए विभिन्न सांख्यिकीय तरीकों का उपयोग किया जाता है।
2. शारीरिक शिक्षा का विषय-वस्तु के रूप में
शारीरिक शिक्षा के सिद्धान्त एवं विचारधाराएँ विभिन्न विज्ञान एवं मानविकी विपयों पर आधारित हैं जिसके फलस्वरूप शारीरिक शिक्षा, शिक्षण प्रक्रिया में एक सार्थक विषय-वस्तु प्रदान करती है। शारीरिक शिक्षा एवं खेल विषय के अन्तर्गत 12 उपविषय आते हैं।
शारीरिक शिक्षा की शैक्षणिक प्रकृति इन उप-विषयों के नाम से ही स्पष्ट होती है। जीव विज्ञान, रसायनशास्त्र, भौतिकी, शरीर रचना विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान एवं गणित जैसे विशुद्ध वैज्ञानिक विषयों से ली गई अनुसंधान विधियों एवं ज्ञान ने शारीरिक शिक्षा के उप-विषय व्यायाम कार्यिकी एवं खेल जैवयान्त्रिकी के विकास को प्रभावित किया है।
सामाजिक विज्ञान विषयों- मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, इतिहास एवं दर्शनशास्त्र ने खेल एवं व्यायाम मनोविज्ञान, गामक अधिगम, खेल समाजशास्त्र, खेल इतिहास एवं खेल दर्शन के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पुनर्वास विज्ञान में विशेष रूप से भौतिक चिकित्सा ने खेल औषधशास्त्र एवं शारीरिक गतिविधि रूपान्तरण के विकास पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। शैक्षिक अनुसंधान ने खेल अध्यापन विकास को उल्लेखनीय ढंग से प्रभावित किया। खेल प्रबन्धन उप-विषय में प्रबन्धन, विधि, संचालन एवं विपणन के प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलते हैं।
3. शारीरिक शिक्षा एक गतिविधि के क्षेत्र के रूप में
ये निम्न प्रकार हैं-
(i) मनोरंजनात्मक गतिविधि- मनोरंजन 'किसी व्यक्ति द्वारा अपने कार्य के समय के अतिरिक्त गतिविधियों का निष्पादन है। यह सामाजिक रूप से स्वीकार्य एवं लाभप्रद गतिविधियाँ जिनमें व्यक्ति स्वेच्छा से अवकाश के समय में भाग लेता है और जिसके माध्यम से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं सामाजिक विकास के अवसर प्राप्त होते हैं। मनोरंजन शिक्षा आत्म सन्तुष्टि के लिए सावधानीपूर्वक चयनित गतिविधियों के माध्यम से, व्यक्तियों को रचनात्मक तरीके से अवकाश के समय का उपयोग करने में सहायता प्रदान करती है।
(ii) शैक्षिक गतिविधि- शैक्षिक गतिविधियाँ वह साधन हैं जिसके माध्यम से व्यक्ति शारीरिक शिक्षा के बारे में औपचारिक ज्ञान प्राप्त करता है इस विधि के माध्यम से एकत्र शारीरिक शिक्षा के सन्दर्भ में ज्ञान, कौशल एवं व्यवहार का अर्जन करने में सक्षम होते हैं जिसके फलस्वरूप वे अपनी रुचियों एवं मूल्यों को शारीरिक शिक्षा के सिद्धान्त एवं कार्यप्रणालियों के प्रोत्साहन के लिए प्रयोग करते हैं।
(iii) बहिर्संस्थानिक गतिविधि- शारीरिक शिक्षा के ये कार्यक्रम अन्य संस्थाओं के अन्य अत्रों के साथ खेलों में ख्याति या उत्कृष्टता हेतु प्रतियोगिता करने के लिए विभिन्न खेलों में छात्रों को अपने कौशलों का प्रदर्शन करने का अवसर उपलब्ध कराते हैं। इस प्रकार के कार्यक्रम विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के मध्य विभिन्न व्यक्तिगत एवं टीम खेलों में प्रशिक्षण प्राप्त एवं खेल कौशलों में दक्ष छात्रों/खिलाड़ियों के लिए खेल प्रतियोगिताओं को प्रोत्साहित करते हैं। एक सुनियोजित बहिर्संस्थानिक खेल कार्यक्रम के माध्यम से छात्रों/एथलीटों को राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा, खेल कौशल एवं उत्कृष्टता दिखाने का अवसर मिलता है।
(iv) अन्तर्संस्थानिक गतिविधि- शारीरिक शिक्षा के इस कार्यक्रम के अन्तर्गत शारीरिक गतिविधियाँ कक्षा के बाहर किन्तु संस्थान की चारदीवारी के अन्दर आयोजित की जाती हैं। इस तरह यह कार्यक्रम छात्रों को एथलेटिक्स, जिम्नास्टिक एवं अन्य खेलों में अन्तर-कक्षा एवं अन्तर-सदन व्यवस्था के अन्तर्गत प्रतिभागिता करने का अवसर उपलब्ध कराते हैं। यह कार्यक्रम छात्रों के मध्य दृढ़ एवं सकारात्मक सामाजिक अन्तक्रिया के अतिरिक्त मित्रता एवं आत्मसम्मान को भी बढ़ावा देता है।
(v) रूपान्तरित या अनुकूलित गतिविधि- शारीरिक रूप से अक्षम/विकलांग व्यक्तियों/छात्रों के समुच्चय के लिए निर्धारित गतिविधियों को अनुकूलित गतिविधियाँ कहते हैं। शारीरिक रूप से अक्षम छात्रों में एक या दो या इससे अधिक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या होती हैं जो इन छात्रों को सामान्य या अनियमित शारीरिक शिक्षा की कक्षाओं में भाग लेने में बाधा उत्पन्न करती हैं। इस प्रकार के शारीरिक अक्षमता वाले छात्रों के लिए शारीरिक गतिविधियाँ सुनियोजित कार्यक्रम के तहत उनकी विकलांगता की श्रेणी के अनुरूप आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार की जाती हैं।