फ्रांस की क्रान्ति के कारण
(1) निरंकुश शासन
फ्रांस में लगभग 300 वर्षों से निरंकुश शासन चला रहा था। उस समय लुई 16 वाँ फ्रांस का राजा था। उसकी शक्ति पर कोई अंकुश नहीं था। वह राजा के दैवी अधिकारों के सिद्धान्त को मानता था। वह जो चाहता कानून बनाता, जिसको चाहता उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त करता और जिसको चाहता दण्ड देता।
(2) सामन्तों के अत्याचार
फ्रांस में सामन्ती व्यवस्था उस समय तक चलती रही थी। सामन्त राजदरबार में या अपनी जागीर में शान-शौकत से रहते थे। इनका अधिकांश समय दरबारी कुचक्रों में बीतता था। उस काल में धन देकर सरकारी पद खरीदने की प्रथा भी थी। सामन्त लोग पदों को खरीद लिया करते थे। किसानों को तरह-तरह से लूटते थे और उन पर अत्याचार करते थे। सामन्त लोग जिसे चाहते थे जेल में डलवा देते थे।
(3) पादरियों के अत्याचार
फ्रांस में कैथोलिक ईसाइयों का संगठन था जो चर्च कहलाता था। चर्च की शक्ति पादरियों के हाथ में थी। देश की भूमि का लगभग 20 प्रतिशत जागीरों के रूप में खर्च के लिए लगा हुआ था। इसके अतिरिक्त किसानों को जमीन की उपज का दसवाँ भाग चर्च को कर के रूप में देना पड़ता था। चर्च की जमीन और सम्पत्ति से राज्य किसी प्रकार कर वसूली नहीं करता था। कहने को चर्च धार्मिक संस्था थी, किन्तु चर्च वास्तव में भ्रष्टाचार और कुचक्रों का अखाड़ा बन गया था। पादरी लोग राजा तथा सामन्तों के अत्याचारों का भी समर्थन करते थे। उनके विचार पुराने सड़े-गले थे और वे नवीन अच्छे विचारों का विरोध करते थे।
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(4) मध्य वर्ग के साथ अन्याय
उस युग में फ्रांस में एक बड़ा मध्य वर्ग उत्पन्न हो गया था। उसमें वकील, डॉक्टर, लेखक, कवि, व्यापारी, साहूकार, कलाकार, छोटे सरकारी नौकर, छोटे कारखानों के मालिक आदि सम्मिलित थे। फ्रांस की सम्पत्ति और व्यवसाय इन्हीं के हाथों में था। सामन्तों और पादरियों के मुकाबले में वे बुद्धिमान और अनुभवी भी थे, किन्तु ये लोग राजनीति और सामाजिक अधिकारों से वंचित थे। उन्हें सरकारी नौकरियाँ भी नहीं मिलती थीं। अयोग्य और निकम्मे सामन्त तथा पादरी उनसे घृणा करते और उन्हें अपने से नीचा समझते थे। इसलिए मध्य वर्ग के सब लोग उस समय की राजनीतिक व्यवस्था से बहुत असन्तुष्ट थे।
(5) मजदूरों तथा किसानों के साथ अत्याचार तथा अन्याय
देश में करीब दो करोड़ किसान थे। उनकी स्थिति लगभग दासों जैसी थी। सामन्त लाग उनके साथ अनेक प्रकार के अत्याचार करते थे। किसान करों के बोझ में दबे हुए थे। उन्हें राजा, सामन्तों तथा चर्च को अनेक कर देने पड़ते थे। शहरों में मजदूर वर्ग भी था। उनकी संख्या लगभग 25 लाख थी। उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। उन्हें काम अधिक करना पड़ता था और वेतन कम मिलता था। इसलिए उन्हें पुरानी व्यवस्था से घृणा थी। जब क्रान्ति हुई तो उन्होंने बड़े उत्साह से भाग लिया।
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(6) कानूनी अराजकता तथा असमानता
उस समय फ्रांस में कानूनों के मामले में बड़ी गड़बड़ी थी। सारे देश के लिए एक कानून नहीं थे। न्याय प्रणाली भी एक-सी नहीं थी। राजा, उसके परिवार के लोग, सामन्त तथा राजा के अन्य कृपापात्र जिसे चाहते जेल में डलवा सकते थे। लोग वर्षों जेल में सड़ते रहते थे। इन सब कारणों से मध्यम वर्ग, किसानों तथा मजदूरों में पुरानी व्यवस्था के प्रति भारी घृणा थी।
(7) दार्शनिकों के विचार
उस युग में अनेक दार्शनिक और विद्वान हुए। उन्होंने लोगों में स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुत्व (भाईचारा) के विचार फैलाये। उन्होंने निरंकुश शासन, सामन्त तथा पदारियों के विशेष अधिकारों पर प्रहार किया। इन दार्शनिकों में माण्टेस्क्यू, वाल्टेयर और रूसो अधिक प्रसिद्ध थे। रूसो ने सामाजिक संविदा नाम की पुस्तक लिखी। रूसो के विचार बहुत क्रान्तिकारी थे।
(8) अमरीकी स्वतन्त्रता संग्राम का प्रभाव
सन् 1776-83 के काल में अमरीका में स्वतन्त्रता संग्राम हुआ था। अमरीकियों ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा था। फ्रांस की सरकार ने युद्ध में इंग्लैण्ड के खिलाफ अमरीका का साथ दिया था। हजारों फ्रांसीसी नवयुवक स्वयं सेवक बनकर अमरीका के पक्ष में लड़ने गये थे। उस पर उन आदर्शों और विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा जिनके लिए अमरीकावासी संघर्ष कर रहे थे। युद्ध के बाद जब फ्रांसीसी युवक स्वदेश लौटे तो अपने साथ क्रान्तिकारी विचार लेकर आये। उन्होंने अपने देशवासियों में स्वतन्त्रता और समानता के आदर्शों का प्रचार किया। इससे क्रान्तिकारी विचार लोगों में फैले।
(9) तात्कालिक कारण
अमरीका के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने से फ्रांस की आर्थिक दशा बहुत खराब हो गयी थी। सन् 1788 में भारी अकाल पड़ा। सरकार पर ऋण का भारी बोझ चढ़ गया। कोष खाली हो गया। राजा ने समस्या को सुलझाने के लिए संसद का सत्र बुलाया। फ्रांस में संसद तो थी, किन्तु उसका सत्र कभी नहीं बुलाया जाता था। किन्तु अब राजा को विवश होकर उसका सत्र बुलाना पड़ा। फ्रांस की संसद स्टेट्स जनरल कहलाती थी।
मई, सन् 1789 में संसद का सत्र आरम्भ हुआ। प्रारम्भ में ही राजा तथा संसद के बीच झगड़ा हो गया। इन्हीं परिस्थितियों में पेरिस (फ्रांस की राजधानी) की जनता ने बास्तील (वेस्टाइल) नाम के पुराने जेलखाने पर धावा बोल दिया। रक्षा करने वाले सैनिकों की हत्या कर दी और कैदियों को मुक्त कर दिया। इस प्रकार क्रान्ति आरम्भ हो गयी।
फ्रांस की क्रान्ति के परिणाम (प्रभाव, लाभ)
फ्रांस की क्रान्ति के परिणाम (प्रभाव, लाभ) निम्नलिखित हैं-
(1) निरंकुश राजतन्त्र का अन्त
इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप निरंकुश तथा अत्याचारी राजतन्त्र का अन्त हो गया। इस राजतन्त्र के अन्तर्गत फ्रांस की राजनीतिक तथा आर्थिक दशा बहुत बिगड़ चुकी थी। वर्ग-भेद, शोषण, गरीबी तथा भुखमरी का साम्राज्य था। राजघराने तथा उच्च वर्ग के लोग सभी सुख-सुविधाओं का उपभोग करते थे। इस क्रान्ति के द्वारा इन सभी बुराइयों का अन्त हो गया।
(2) लोकतन्त्र की स्थापना
क्रान्ति के तुरन्त पश्चात् फ्रांस में सीमित राजतन्त्र की स्थापना की गयी लेकिन कुछ समय पश्चात् गणतन्त्रात्मक लोकतन्त्र की स्थापना हो गयी तथा देश में स्वतन्त्रता, समानता तथा लोकतन्त्र के आदर्शों का प्रचार हुआ।
(3) विभिन्न वर्गों के विशेषाधिकार का अन्त
लुई 16वें के शासनकाल में फ्रांस के सामन्ती वर्ग तथा चर्च के अधिकारियों को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त थे। इन अधिकारों के माध्यम से वे जनता का शोषण करते थे। उच्च सरकारी नौकरियों पर सामन्ती वर्ग का अधिकार था। चर्च के अधिकारी शासन में हस्तक्षेप करते थे। इनके पास बड़ी-बड़ी जागीरें हुआ करती थीं जिनका प्रयोग वे अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए करते थे। इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप सभी विशेषाधिकार समाप्त हो गये। इससे साधारण जनता को बड़ा लाभ हुआ।
(4) किसान तथा मजदूरों की दशा में सुधार
इस क्रान्ति से किसानों तथा मजदूरों का शोषण समाप्त हो गया। मजदूर को उचित मजदूरी मिलने लगी। किसान करों के बोझ से मुक्त हो गये। वे अपनी भूमि के स्वामी बन गये। इसका परिणाम यह भी हुआ कि किसानों ने खेती की ओर ध्यान दिया। इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।
(5) मध्यम वर्ग की उन्नति
इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप वकील, डॉक्टर, शिक्षक, लेखक, व्यापारी तथा दुकानदारों की सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में प्रतिष्ठा बढ़ी तथा उनके विकास के लिए वातावरण का निर्माण हुआ। राज्य के महत्वपूर्ण पदों तथा राजनीति पर वर्ग का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
(6) जन-कल्याण के कार्य
साधारण जनता को शोषण से छुटकारा मिल गया। उसे स्वतन्त्रता के वातावरण में अपने विकास का अवसर मिला। सरकार ने भी जनता के कल्याण के लिए अनेक कानूनों का निर्माण किया। अमानवीय दण्ड व्यवस्था जेलों की नारकीय व्यवस्था को समाप्त करके जन-कल्याण की दृष्टि से इनमें सुधार किया गया। दास प्रथा का अन्त कर दिया गया।
(7) राष्ट्रीय भावना का प्रसार
फ्रांस की क्रान्ति ने जनता में राष्ट्र के लिए त्याग, बलिदान तथा भक्ति की भावना का संचार किया। इस भावना के परिणामस्वरूप ही फ्रांस के लोगों ने ऑस्ट्रिया तथा प्रशा की सेनाओं की शक्ति को चकनाचूर कर दिया।
(8) राष्ट्रीय एकता की स्थापना
क्रान्ति से पूर्व फ्रांस में न तो एक-सी शासन प्रणाली थी और न एक से कानून थे। सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्र में व्याप्त विषमता ने राष्ट्र को एक विघटन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था। क्रान्ति ने इस विषमता को समाप्त करके एकता की स्थापना की। लोगों में एकजुट होकर राष्ट्र के लिए काम करने की भावना का जन्म हुआ।
(9) मानवाधिकारों की घोषणा
इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप फ्रांस में मानवाधिकारों की घोषणा की गयी। इनका विश्व के अन्य देशों पर गम्भीर प्रभाव पड़ा।
(10) अन्य देशों के क्रान्तिकारियों की प्रेरणा
फ्रांस की क्रान्ति से विश्व के अन्य देशों ने भी प्रेरणा ग्रहण की और अनेक देशों में निरंकुश राजतन्त्र के विरुद्ध विद्रोह होने लगे।