जादू का अर्थ (Meaning of Magic)
धर्म के माध्यम से मनुष्य दैवी शक्तियों के साथ सम्बन्ध जोड़ता है। इस प्रक्रिया में वह उन दैवी शक्ति के प्रभावों की अनुभूति करता है और उनके प्रति कुछ मान्यताओं, प्रथाओं और विश्वासों को जन्म देता है। दैवी शक्तियों की अनुभूति इन मान्यताओं और व्यवहारों को दो विशिष्ट दिशाओं की ओर ले जा सकती है। एक ओर तो मनुष्य इन शक्तियों को अविजित मानकर उनके सामने आत्मसमर्पण कर देता है और अपने हित के लिए उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करता है।
जादू की विशेषताएँ (Characteristics of Magic)
जादू उस विशिष्ट शक्ति का नाम है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति दैवी शक्तियों पर नियन्त्रण करके उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार शुभ या अशुभ कार्यों के लिए उपयोग करता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि आदिम मनुष्य ने पहले इन शक्तियों को जबरदस्ती अपने वश में करने का प्रयत्न किया होगा और अपनी कोशिश में असफल होने के बाद ही उसने उनके समक्ष आत्मसमर्पण किया होगा।
अतः इस दृष्टिकोण से जादू धर्म से पहले अस्तित्व में आ गया होगा। जादू के तीन तत्वों की ओर से मानवशास्त्रियों ने संकेत किया है जो इस प्रकार से है-
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1. विशिष्ट शब्द
जादू में कुछ ऐसे शब्दों का उच्चारण किया जाता है जिन्हें गुप्त और रहस्यात्मक समझा जाता है। इनमें मन्त्र इत्यादि भी शामिल होते हैं। इनकी रहस्यात्मकता के कारण केवल विशेष लग्यता वाले व्यक्ति ही इन शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं या वे इन्हें अपने खास शिष्यों को ही सिखाते हैं।
2. विशिष्ट क्रियाएँ
विशिष्ट शब्दों के साथ-साथ कुछ विशेष क्रियाओं का सम्पादन भी जादू में किया जाता है। ये मन्त्र और विशिष्ट शब्द तभी काम करते हैं जब इनका उच्चारण करते समय कुछ निश्चित क्रियायें की जायें। मन्त्रों और क्रियाओं का सम्मिलित प्रभाव ही दैवी शक्तियों पर नियन्त्रण करने की सामर्थ्य प्रदान करता है।
3. जादूगर का व्यक्तित्व
जादू में जादुई क्रियायें करने वाले व्यक्ति की स्थिति भी महत्वपूर्ण होती है जादू सम्पन्न करने के लिए उसे अनेक नियमों का पालन करना पड़ता है। इनमें आहार की तथा व्यवहार की विशिष्टताएँ और निषेध भी शामिल होते हैं।
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जादू के स्वरूप या प्रकार (Forms or Kinds of Magic)
फ्रेजर ने जादुई क्रियाओं को दो भागों में विभाजित किया है- प्रथम अनुकरणात्मक जादू और दूसरा सहानुभूतिक जादू।
अतः फ्रेजर ने इनकी व्याख्या निम्न प्रकार से की है
1. अनुकरणात्मक जादू
अनुकरणात्मक जादू समानता के नियम पर आधारित है। कार्य-कारण की समानता पर विश्वास करते हुए यह माना जाता है कि समान क्रिया समान परिणाम को जन्म देती है। आस्ट्रिया में यह विश्वास किया जाता है कि यदि प्रसूती (जच्चा) को किसी नये वृक्ष का पहला फल खिलाया जाये तो उस वृक्ष पर बहुत फल लगेंगे। इसी प्रकार गेलेलारी समाज में जब कोई प्रेमी रात्रि में चुपचाप अपनी प्रेमिका के घर उससे मिलने जाता है तो वह थोड़ी सी शमशान की मिट्टी उसके घर की छत पर डाल देता है ताकि उसके घर के लोग उसी तरह गहरी नींद में सोते रहें जैसे शमशान में मृतक चिर निद्रा में सो जाते हैं। शत्रु को कष्ट पहुँचाने के लिए उसका पुतला जलाना भी अनुकरणात्मक जादू है।
2. सम्पर्कित जादू
सम्पर्कित जादू में अनुकरण के स्थान पर सम्पर्क को महत्व दिया जाता है। यह विश्वास किया जाता है कि जिन दो वस्तुओं का एक बार सम्पर्क स्थापित हो गया है, वह हमेशा किसी न किसी रूप में बना रहता है। यदि इनमें से एक पर कोई प्रभाव डाला जाये तो दूसरी अर्थात् उससे सम्पर्कित वस्तु पर भी वह प्रभाव पड़ेगा। सम्पर्क के प्रभाव से बचने के लिए ही आदिम लोग एक-दूसरे के कपड़े पहनते थे। कटे हुए बालों और नाखूनों पर भी यह बात लागू होती है।
सभ्य समूहों में भी प्रायः बच्चों के कटे बाल और कपड़ों को सुरक्षित रखा जाता है ताकि बच्चे को नुकसान पहुँचाने के लिए कोई इन पर जादुई क्रिया न करे। सम्पर्कित जादू का उद्देश्य सदा हानि पहुँचाना ही नहीं होता। चेरोकी जनजाति में नवजन्मा की नाल काटकर अनाज की कोठी के नीचे दबाई जाती है ताकि वह बड़ी होकर उत्तम भोजन बना सके। इसी प्रकार बालक शिशु की नाल को इस विश्वास से पेड़ पर टाँग दिया जाता है ताकि वह एक कुशल शिकारी बन जायेगा।
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जादू को सहानुभूति के आधार पर समझा जाता है। समानता या सम्पर्क, दोनों सम्बन्धित वस्तुओं के समान अनुभूति (सह अनुभूति) उत्पन्न करते हैं। हम जिस पर जादू का प्रभाव डालना चाहते हैं, उससे समानता या सम्पर्क रखने वाली वस्तुओं पर जादुई क्रियायें करते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इन क्रियाओं का जो प्रभाव इन वस्तुओं पर पडता है, वही सम्बन्धित व्यक्ति पर भी पड़ता है। जादू में कुछ कार्यों को निषिद्ध भी समझा जाता है उन्हें निषेद्ध या टैबू माना जाता है।
उद्देश्यों के आधार पर भी जादू को विभक्त किया जा सकता है। डॉ. दुबे ने उद्देश्य के आधार पर जादू के तीन प्रकारों का उल्लेख किया है -
1. संवर्धक जादू- इस जादू का उद्देश्य शिकार, फसल, वर्षा, व्यापार आदि की वृद्धि करना होता है। मछली पकड़ने, नाव चलाने तथा प्रेम करने में सफलता प्राप्त करने के लिए भी संवर्धक जादू का प्रयोग किया जाता है। यह जादू व्यक्तिगत लाभ के लिए भी किया जाता है और सम्पूर्ण समूह भी इसे सम्पन्न कर सकता है। यह समाज द्वारा स्वीकृत होता है क्योंकि इसे उन्नति का प्रेरक तत्व समझा जाता है।
2. संरक्षक जादू- इस जादू का उद्देश्य सम्पत्ति, स्वास्थ्य की रक्षा करना, दुर्घटना और दुर्भाग्य से बचाव, दिये हुए कर्ज की प्राप्ति, रोग से मुक्ति, यात्रा की सुरक्षा और किसी के द्वारा किये गये विनाशक जादू के प्रभाव को समाप्त करना होता है। इसमें निषेध और जादू-टोना भी शामिल होते हैं। यह समाज द्वारा स्वीकृत भी हो सकता है और नहीं भी।
3. विनाशक जादू- यह जादू हानि के उद्देश्य से किया जाता है। इसे नैतिक दृष्टि से अशुभ कहा जा सकता है। आँधी-तूफान आने के लिए, किसी की सम्पत्ति नष्ट करने के लिए किसी के घर में रोग फैलाने या किसी को रोगी बनाने के लिए और किसी को मारने के लिए विनाशक जादू सम्पन्न किया जाता है।
जादू सकारात्मक भी होता है और नकारात्मक भी। सकारात्मक जादू में मन्त्र-तन्त्र और जादू-टोना भी शामिल होते हैं। नकारात्मक जादू में निषेध या टेबू का महत्व होता है।
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जादू और धर्म (Magic and Religion)
I. जादू और धर्म में समानता
1. रहस्यात्मकता- जादू और धर्म दोनों में रहस्यात्मकता तत्व की प्रधानता होती है। धर्म दैवी शक्तियों, पूर्वात्माओं और प्रेतात्माओं की रहस्यात्मकता में विश्वास करता है और जादू रहस्यात्मक शक्ति में विश्वास करता है जिसके द्वारा देवी-देवताओं को वश में किया जा सकता है। कहीं-कहीं पुजारी जादुई कार्य भी करता है।
2. सम्मोहन- जादुई क्रियाओं और धार्मिक क्रियाओं से सम्मोहन की शक्ति होती है। मन्दिर का वातावरण धूप-दीप की सुगन्ध और पुजारी की विशिष्ट वेशभूषा और कर्मकाण्ड धार्मिक व्यक्तियों को सम्मोहित करते हैं। जादू करने वाले का व्यक्तित्व उसकी रहस्यात्मक गतिविधियाँ, गोपनीय और अस्पष्ट शब्दों का विशेष ढंग से उच्चारण भी सम्मोहन उत्पन्न करते हैं।
3. प्रणाली- धर्म और जादू की क्रिया-पद्धतियाँ भी समान होती हैं। सारी क्रियाओं को परम्परा के अनुसार निश्चित पद्धति से पूर्ण किया जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों में भी विधिवत् कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। जादू का संयोजन पूर्व निर्धारित कर्मकाण्ड के अनुसार होता है। जरा-सा हेर-फेर भी सम्पूर्ण प्रयत्न को व्यर्थ कर सकता है।
4. प्रतीक- जादू और धर्म दोनों में कुछ प्रतीकों को महत्व दिया जाता है। मूर्तियाँ, चन्दन का टीका, माला इत्यादि धर्म में महत्व रखते हैं। इसी प्रकार तावीज, पंख, खोपड़ी आदि का जादू में महत्व होता है।
5. टेबू या निषेध- धर्म और जादू दोनों में ही निषेधों का पालन करना अनिवार्य होता है। निषेधात्मक जादू का भी उतना ही महत्व है जितना की धर्म में निषेध का।
6. मध्यस्थता- जादू करने वाला पुजारी दोनों ही दैवी शक्तियों और मनुष्य के मध्यस्थ होते हैं।
II. जादू और धर्म में अन्तर
1. जादू और धर्म के तत्वों में भिन्नता है। पिडिस्टन के अनुसार धर्म के निर्माण में देवताओं में आस्था, सामूहिक क्रिया- केवल पूजा-पाठ के लिए एकत्रीकरण और समाज स्वीकृत उद्देश्य- ये चार तत्व सहायक माने जाते हैं। जादू में देवताओं के व्यक्तिकरण का अभाव, गोपनीयता और वैयक्तिकता, निश्चित उद्देश्य और समाज स्वीकृति के अभाव का महत्व होता है।
2. धर्म पारलौकिक शक्तियों के समक्ष आत्मसमर्पण है और जादू उनको वश में करने के लिए बल प्रयोग की पद्धति है। धर्म का उद्देश्य प्रसन्नता और जादू का उद्देश्य दबाव है।
3. जादू की क्रियायें गोपनीय ढंग से की जाती हैं और धर्म की क्रियायें सार्वजनिक रूप में की जाती हैं। जादू वैयक्तिक है और धर्म सामूहिक।
4. जादू भय की उत्पत्ति करता है और धर्म आनन्द को जन्म देता है। जादूगर से लोग डरते हैं, किन्तु वे धार्मिक पुरुष का सम्मान करते हैं। उसकी घनिष्ठता उन्हें आनन्दित करती है।
5. जादू को प्रायः दुःखदायी और अहितकर माना जाता है। इसके विपरीत धर्म को हितकारी और सुखदायी माना जाता है।
जादू और विज्ञान (Magic and Science)
विज्ञान अवलोकन और परीक्षण के आधार पर घटनाओं के बीच धार्मिक सम्बन्ध की स्थापना करता है। जादू भी दैवी शक्तियों और मानवीय जीवन का सम्बन्ध जोड़ता है।
I. जादू और विज्ञान में समानता
1. जादू करने वाला और वैज्ञानिक दोनों एक ही प्रक्रिया का अनुकरण करते हैं। दोनों प्राकृतिक नियमों के आधार पर क्रिया का सम्पादन करते हैं।
2. जादू और विज्ञान दोनों ही कार्य-कारण सम्बन्धों की विश्वसनीयता पर आधारित हैं। अनुकरणात्मक जादू भी विज्ञान की तरह क्रिया की प्रतिक्रिया और घटनाओं के कार्य-कारण सम्बन्ध को स्वीकार करता है।
3. जादू और विज्ञान की कार्य-पद्धति भी एक ही है। फ्रेजर ने जादू को 'प्राकृतिक नियमों की अवैध प्रणाली' कहा है।
II. जादू और विज्ञान में अन्तर
1. जादू का सम्बन्ध परलोक से होता है और यह दैवी शक्तियों पर नियंत्रण करने का प्रयत्न करता है। विज्ञान का सम्बन्ध इस लोक से है और वह प्राकृतिक शक्तियों पर नियन्त्रण करता है।
2. जादू केवल विश्वास और मान्यता पर आधारित होता है। फ्रेजर ने जादू को गलत धारणाओं पर आधारित कहा है। उसने इसे 'विज्ञान की अवैध बहन' कहा है। विज्ञान तर्क और परीक्षण पर आधारित है।
3. जादू में विस्मय और अनिश्चितता होती है, जबकि विज्ञान तथ्यात्मक और विश्वसनीय होता है। किन्तु विज्ञान के निष्कर्ष अवलोकन, परीक्षण और सत्यापन होते हैं। अतः उनमें रहस्यात्मकता नहीं होती।