मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों का वर्णन करें

मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण :

चन्द्रगुप्त मौर्य ने जिस साम्राज्य की स्थापना की उसको अशोक ने उन्नति के शिखर पर पहुँचाया परन्तु शीघ्र ही यह साम्राज्य अवनति की ओर अग्रसर होने लगा इस मौर्य वंश के पतन के निम्नलिखित प्रमुख कारण थे-

(1) अयोग्य उत्तराधिकारी

विशाल साम्राज्य को केवल योग्य उत्तराधिकारी ही संभालने की क्षमता रखते हैं। योग्यता उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं होती, यह व्यक्तिगत गुण होता है। अशोक के पश्चात् गद्दी पर बैठने वाले निर्बल तथा अयोग्य शासक थे। इसलिए मौर्य साम्राज्य का पतन होना स्वाभाविक था।

(2) अशोक का उत्तरदायित्व

अशोक मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए कहाँ तक उत्तरदायी है इस सम्बन्ध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। डॉ. हरिप्रसाद शास्त्री का कहना है कि अशोक ने पशुबलि निषेध करके, जातीय व्यवस्था को सामान्य कर, 'दंड समता' तथा 'व्यवहार समता' के सिद्धान्तों द्वारा ब्राह्मणों के विशेषाधिकारों पर कुठाराघात करके ब्राह्मणों को अपना विरोधी बना लिया जिसके कारण गम्भीर प्रतिक्रिया हुई। अशोक के पश्चात् उन्होंने खुला विद्रोह किया, परिणामस्वरूप मौर्य साम्राज्य के अन्तिम सम्राट् बृहद्रथ की ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र ने हत्या करके ब्राह्मण वंशी शुंगों का राज्य स्थापित किया।

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(3) साम्राज्य का विभाजन 

साम्राज्य विभाजन की सम्भावनाएँ अशोक के राज्याभिषेक के समय ही उत्पन्न हो गई थीं परन्तु अशोक ने अपनी योग्यता से ऐसा नहीं होने दिया। अशोक की मृत्यु के पश्चात् साम्राज्य दो भागों मैं विभाजित हो गया। पश्चिमी भाग का शासक कुणाल और पूर्वी भाग का दशरथ शासक बना। इस प्रकार शासक की शक्ति निर्बल हो गई और इसका लाभ उठाकर प्रान्तों ने विद्रोह करके अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। गांधार, कश्मीर तथा सीमा प्रान्त सभी स्वतन्त्र हो गए।

(4) राष्ट्रीय भावना का अभाव

रोमिला थापर ने मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए राष्ट्रीय भावना के अभाव को बताया है। मौर्य काल में राजनैतिक दृष्टि से एकता के विचार का अभाव था इसी कारण यूनानियों का प्रतिरोध संगठित रूप से नहीं कर सके। 

(5) अत्यधिक केन्द्रित शासन

अशोक का शासन अत्यधिक केन्द्रीकृत था। केन्द्र के द्वारा सम्पूर्ण साम्राज्य पर शासन होता था। ऐसे केन्द्रीयकृत शासन को केवल शक्तिशाली सम्राट् ही चला सकता था। कमजोर शासक शासन पर पूरा नियन्त्रण रखने में असमर्थ होता है। अशोक के उत्तराधिकारियों में कोई भी शासक इतना अधिक शक्तिशाली नहीं था जो सम्पूर्ण शासन पर अपना पूर्ण नियन्त्रण रख सके इसलिए मौर्य वंश के साथ ही मौर्य साम्राज्य का पतन होना स्वाभाविक था।

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(6) प्रजा का विद्रोह

प्रान्तीय गवर्नरों के कारण जनता मौर्यों के विरुद्ध हो गई थी। निहार रंजलन रे का विचार है कि पुष्यमित्र शुंग का विद्रोह वास्तव में प्रजा का विद्रोह था क्योंकि पुष्यमित्र ने वृहद्रथ की हत्या सेना के सम्मुख की परन्तु वह शान्त रही। यह इस बात का प्रमाण है कि जनता वृहद्रथ के शासन से सन्तुष्ट न थी।

(7) अत्याचारी शासक

अशोक के अनेक उत्तराधिकारी अत्याचारी शासक थे। गार्गी संहिता से ज्ञात होता है कि वह निरंकुश तथा अत्याचारी ही नहीं वरन् व्यवहार से पूर्णतया दुराचारी थे। अत: जनता द्वारा ऐसे शासकों का विरोध होना स्वाभाविक था।

(8) विदेशी आक्रमण

अशोक ने जिन मध्य एवं पश्चिमी के यूनानियों को अपनी शान्तिवादी नीति से मित्र बना लिया था। उन्होंने ही भारत की राजनैतिक दुर्बलता का लाभ उठाकर भारत पर आक्रमण किया। शालिशुक के काल में ही यवनों ने भारत पर आक्रमण की तैयारी कर ली थी।

(9) ब्राह्मण धर्म की प्रतिक्रिया

सम्राट अशोक ने हिन्दू धर्म का परित्याग करके बौद्ध धर्म को राजकीय संरक्षण प्रदान किया था। इससे ब्राह्मण जाति अत्यधिक रुष्ट हो गई थी।

अशोक ने बलि-प्रथा का निषेध कर दिया था तथा उसने अपने उत्तराधिकारियों को भी अहिंसा की नीति का अनुसरण करने का आदेश दिया था। उसकी इस नीति से ब्राह्मण चिढ़ गये थे। अभी तक धार्मिक क्षेत्र में ब्राह्मण सर्वेसर्वा माने जाते हैं, परन्तु अशोक ने नये पदाधिकारी 'धर्म महामात्र' नियुक्त कर दिये थे। अतः अशोक की मृत्यु के बाद ब्राह्मणों ने विद्रोह करके मौयों के हाथ से सत्ता छीन ली।

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(10) कमजोर आर्थिक स्थिति तथा करों का भार

राज्य की आर्थिक दशा खराब होने के कारण कौशाम्बी के अनुसार मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ। दिव्यावदान की एक अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने बौद्धों को सौ करोड़ रुपया दान में दे दिया था जिसमें से 96 करोड़ तो उसने चुका दिए थे और चार करोड़ के बदले में अपना राज्य गिरवी रख दिया था। मंत्रियों ने इसका विरोध कर अशोक को गद्दी से हटा कर सम्प्रति को गद्दी पर बैठा दिया और चार करोड़ देकर राज्य छुड़ा लिया। इसका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है इसलिए इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। लेकिन इससे यह अवश्य ज्ञात होता है कि राज्य की आर्थिक स्थिति डावाँडोल हो गई थी और राजा ने आय की वृद्धि के लिए नाटक खेलने वालों तथा वेश्याओं पर भी कर लगा दिया था।

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मौर्य साम्राज्य के पतन में अशोक का उत्तरदायित्व

कुछ इतिहासकारों द्वारा साम्राज्य के पतन के लिए अशोक एवं उसकी नीतियों को उत्तरदायी माना गया है। डॉ. राय चौधरी ने लिखा है कि "अशोक ने अपने दादा चन्द्रगुप्त मौर्य को दिग्विजय (सैनिक विजय) के स्थान पर धर्म विजय की नीति अपना ली। उसने शिकार खेलना बन्द कर दिया। उसने अपने पुत्रों और पौत्रों को भी नये देशों की विजय न करने की आज्ञा दी थी। इसका बहुत ही खराब प्रभाव पड़ा। उसके उत्तराधिकारियों की युद्ध विद्या में कोई रुचि नहीं रही और न ही युद्ध विद्या में उन्हें कुशलता रही।"

डॉ. भण्डारकर ने लिखा है कि "विजय (सैनिक) के स्थान पर धम्म विजय की नीति अपनाने का परिणाम आध्यात्मिक दृष्टि से शानदार होते हुए भी राजनीतिक दृष्टि से विनाशकारी प्रमाणित हुआ।" 

डॉ. आर. सी. मजूमदार ने लिखा है कि "जो साम्राज्य रक्त एवं लौह' नीति द्वारा स्थापित किया गया था, उसी नीति के द्वारा वह सुरक्षित रखा जा सकता था, परन्तु अशोक की नीति के कारण भारतीय सैनिकों की रुचि युद्ध में न रही। यही कारण था कि वे यूनानी आक्रमणकारियों का सामना न कर सके।" 

परन्तु दूसरी ओर डॉ. आर. सी. मजूमदार ने स्वयं ही इस तथ्य को स्वीकार किया है कि अशोक की नीतियों की अनुपस्थिति में भी शीघ्र अथवा देर से मौर्य साम्राज्य का पतन निश्चित ही था। यद्यपि अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात 'भेरी घोष' के स्थान पर 'धम्म घोष' का संकल्प लिया था तथा उसने और सैनिक युद्ध नहीं किए, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि उसने पूर्णतया शान्ति की नीति को अपना लिया था तथा सेना को भंग कर दिया था।

अशोक ने शान्तिप्रिय नीति अपनाने के बाद भी अपनी शक्ति को कम नहीं होने दिया था। अपने तेरहवें शिलालेख में वह आटविका जातियों को चेतावनी देते हुए कहता है कि वे (अशोक) उनके प्रति दया दृष्टि रखते हैं, उन्हें धर्म में लाने का प्रयास करते हैं। यदि वे अपराध करना बन्द नहीं करेंगे, तो कलिंग को जीतने वाली सेना, उनका भी नाश कर देगी। 

मौर्य सामाज्य के पतन के लिए केवल अशोक का धार्मिक नीति ही उत्तरदायी नहीं थी, उसके पतन के अन्य कारण भी था डॉ. आर. के. मुकजा के अनुसार कुछ विद्वानों के मतानसार साम्राज्य के पतन का कारण अशोक की शान्तिप्रिय नीति थी, जिसके परिणामस्वरूप उसने युद्ध भेरी घोष को धम्म घोष में परिवर्तित कर दिया, किन्तु अशोक के आदर्श महान् थे। वह युद्ध बन्द कर तथा शक्ति के स्थान पर न्याय व कानून के राज्य की स्थापना करके मानवता को हिंसा के अभिशाप से बचाना चाहता था। इसलिए इन महान् आदर्शों के लिए हम अशोक को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं।

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