मगध साम्राज्य के उत्कर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष 

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष प्राचीन भारत के इतिहास की अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व के उत्तरार्द्ध में उत्तरी भारत में चार राज्य अपनी पूर्ण शक्ति के साथ अस्तित्व में थे। ये राज्य थे अवन्ति, वत्स, मगध और कोशल और इन राज्यों के बीच साम्राज्यवादी संघर्ष निरन्तर चलता रहा परन्तु इस संघर्ष में अन्तत: मगध को निर्णायक सफलता प्राप्त हुई और मौर्य वंश की स्थापना के साथ ही भारत को राजनीतिक एकता प्राप्त हुई।

अतः इस प्रकार से हम मगध साम्राज्य के उत्कर्ष के कारणों को हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन कर सकते हैं-

(1) भौगोलिक दृष्टि 

उत्तर भारत के विशाल तटवर्ती मैदानों के ऊपरी और निचले भागों से घिरा होने के कारण मगध भौगोलिक दृष्टि से पूर्ण सुरक्षित था। पाँच पहाड़ियों से घिरे होने के साथ उत्तम जल स्रोत और चारागाह थे। सम्भवतः यही कारण था कि मगध दीर्घकाल तक किसी भी आक्रमण का सामना करने में सक्षम था।

(2) लोहे की उपलब्धि  

मगध के उत्थान का सबसे महत्वपूर्ण कारण उसकी लोहे की खानों का होना था। मगध के निकटवर्ती क्षेत्रों में लोहे की खानें उपलब्ध थीं। इन खानों से उपलब्ध लोहे से मगध अपनी सेनाओं को लोहे के अस्त्र-शास्त्रों से मजबूत कर सका। अन्य राज्यों के पास पर्याप्त लोहा उपलब्ध नहीं था। कारणतः उनकी सेनाएँ दुर्बल थीं।

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(3) उपजाऊ भूमि

मगध की भूमि अत्यधिक उर्वर थी और उसे गंगा तथा सहायक नदियों का पानी सिंचाई के लिए उपलब्ध था। लोहे की उपलब्धता से भी कृषि को सहयोग प्राप्त हुआ। लोहा निर्मित कुल्हाड़ियों से जंगलों को साफ करने में सफलता मिली जिसके फलस्वरूप कृषि का विस्तार हो सका। कृषि उत्पादन अधिक होने से मगध समृद्धशाली बन गया और वह विशाल सेना रखने में भी सफल हुआ।

(4) उद्योग व्यापार में वृद्धि

मगध में समृद्धि के कारण नगरों का उत्थान हुआ। जंगलों को सफाई होने के साथ व्यापार तथा उद्योग में अपार वृद्धि हुई। मगध व्यापार का मुख्य केन्द्र बन गया। अनेक नदियाँ होने के कारण आवागमन की सुविधा थी। उद्योग तथा व्यापार में वृद्धि होने के कारण मगध भी आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हो गया।

(5) सैनिक संगठन

मगध का सैनिक संगठन अत्यन्त ही श्रेष्ठ था। घोड़े और रथों के अतिरिक्त उसकी सेना में हाथी थे जो पूर्वी क्षेत्र से प्राप्त होते थे। हाथियों की अत्यधिक संख्या होने से यहाँ की सैन्य शक्ति को अतिरिक्त बल प्राप्त हुआ।

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(6) गतिशील और उदार समाज

मगध में अनार्य लोगों की संख्या बहुत बड़ी थी। इस क्षेत्र में पतनशील वैदिक रूढ़िवादिता का प्रभाव नहीं हो पाया था। अतः समाज अधिक उदार तथा गतिशील था। इससे राजनीतिक एकता तथा शक्ति को मजबूती मिली। डॉ. राय चौधरी के अनुसार, मगध की एक मुख्य विशेषता थी कि स्थानीय लोगों के व्यवहार में एक प्रकार का लचीलापन था। यह गुण अन्य प्रदेशों में रहने वाले लोगों में नहीं था। 

यहाँ ब्राह्मण लोग व्रात्य वर्ग के लोगों का सम्पर्क स्वीकार कर लेते थे तथा राजा लोग अपने महलों में शूद्र कन्याओं को भी स्थान दे देते थे। वैश्यों तथा यवनों को भी शासकीय पदों पर नियुक्त किये जाने का प्रचलन था। राजा का सिंहासन एक साधारण नाई की पहुँच से भी बाहर नहीं होता था। इसलिए प्रजा भी शासकों को सर्वस्व देने को तैयार रहती थी। मगध के शासक एवं दरबारी गण भी अनैतिक और मिथ्यावादी नहीं थे। व्यावहारिकता के कारण शासक और प्रजा में अच्छा सामंजस्य था।

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(7) शक्तिशाली सम्राट

मगध साम्राज्य के अभ्युदय तथा उत्थान में अनेक साहसी तथा महत्वाकांक्षी राजाओं; जैसे- बिम्बसार, अजातशत्रु और महापद्मनन्द का योगदान था। इन राजाओं की सूझ-बूझ, दूरदर्शिता, कर्तव्यनिष्ठा, दानशीलता तथा जनहित के कार्यों का विवरण तत्कालीन विवरणों प्राप्त होता है। भारत में आए विदेशी राजूदतों व यात्रियों ने यहाँ के शासकों की न्याय-बुद्धि, आतिथ्यभाव और जनहित कार्यों पर विशेष ध्यान देने का उल्लेख अपने यात्रा-विवरणों में किया है। 

इसलिए मगध के नन्द सम्राट की शक्ति के भय के कारण ही सिकन्दर की सेना भारत में आगे बढ़ने को तैयार नहीं हुई थी। उपर्युक्त कारणों ने मगध के उत्कर्ष में अपने विशेष योगदान दिया और मगध शासक जो एक बृहत्तर भारत की कल्पना को साकार करना चाहते थे उसमें सफल भी रहे।

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