चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियां / मूल्यांकन
प्राकृतिक संसाधनों से युक्त मगध की संपन्नता के कारण साम्राज्य विस्तार के लिए वहाँ के शासकों की अनुकूल परिस्थितियाँ मिलीं। मगध साम्राज्य विस्तार की जो परम्परा छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बिम्बसार ने प्रारम्भ की थी। उसे चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य सुयोग्य निर्देशन में अधिक कार्यक्षम तथा संरचनात्मक स्वरूप प्रदान किया। चन्द्रगुप्त की उपलब्धियों के सम्यक् निदर्शन से पता चलता है कि वह एक महान विजेता, साम्राज्य निर्माता तथा अत्यन्त कुशल प्रशासक था। उसने अपने बाहुबल से मौर्य साम्राज्य की आधारशिला कर सार्वभौम सम्राट के आदर्श को चरितार्थ किया था। सम्पर्ण जंबूदीप पर शासन करने वाला वह प्रथम ऐतिहासिक शासक था।
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चन्द्रगुप्त एक सामान्य स्थिति से उठकर सम्राट के पद तक पहुँचा था जो उसकी नैसर्गिक योग्यता की सूचक थी। यूनानी स्रोतों के आधार पर कहा जा सकता है कि उसकी महान सफलता अधिकांशतः उसकी वीरता, अदम्य उत्साह एवं साहस का परिणाम थी। उसकी राजनैतिक, सैनिक तथा प्रशासनिक उपलब्धियाँ ऐतिहासिक दृष्टि से मील का पत्थर सिद्ध हुई। उसने अपनी योग्यता से यूनानियों को भारत की सीमा से बाहर खदेड़कर देश को उनकी दासता से मुक्त कराया।
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शक्तिशाली नंदों का विनाश कर मगध में मूर्धाभिषिक्त शासन की स्थापना की। सेल्यूकस को पराजित करके साम्राज्य विस्तार किया तथा दोल संबंध स्थापित करके स्पष्ट विदेश नीति की आधारशिला रखी। ये सभी उसकी सैनिक तथा प्रशासकीय योग्यता के सूचक हैं। चन्द्रगप्त ने अपनी सैन्य प्रतिभा के बल पर भारत की उस वैज्ञानिक सीमा को अधिकृत कर लिया जिसे प्राचीन, मध्य तथा आधुनिक काल में कोई शासक प्राप्त नहा कर सका। वस्तुतः साम्राज्य निर्माण की दृष्टि से मौर्यकाल को भारत का 'क्लासिकल आदर्श' काल कह सकते हैं और इसके मूल में थी चन्द्रगुप्त की प्रतिभा।
साम्राज्य निर्माण के साथ-साथ चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने शासन काल में प्रशासनिक व्यवस्था का वह ढाँचा प्रदान किया जो उत्तरवर्ती शासकों के लिए 'आधारभूत' सिद्ध हुआ अर्थात् उत्तरवती काल में मौर्यकालीन प्रशासनिक व्यवस्था ही प्राथमिक थी। साम्राज्य का विभाजन प्रान्त, अहार तथा ग्राम समूहों में किया गया था जो कमोवेश नाम परिवर्तन के साथ आज भी प्रचलित है। इस सबके मूल में था चाणक्य-चन्द्रगुप्त की प्रशासनिक व्यवस्था।
चन्द्रगुप्त ने शासन करने के लिए ही शासन नहीं किया अपितु उसमें लोक कल्याण के आदर्श को भी समाहित किया, निर्माण कार्य कराए गये, लोगों को रोजगार मिला, अर्थव्यवस्था को मौद्रिक स्वरूप प्रदान किया गया। इस प्रकार चन्द्रगुप्त एक निपुण तथा लोक कल्याणकारी शासन का निर्माता था। भारतीय इतिहास में राजस्व व्यवस्था, नौकरशाही तथा पुलिस व्यवस्था किंचित परिवर्तन के साथ मौर्य ढाँचे पर हो अवस्थित रही, यहाँ तक कि वर्तमान भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में भी उस ढाँचे को पलटा नहीं गया है।
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चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा अपनाई गयी आर्थिक प्रणाली आर्थिक गतिविधियों पर राज्य के नियन्त्रण से संबद्ध थी, जिसमें राज्य ने उत्पादन तथा वितरण को नियन्त्रित किया था। इसकी यदि हम आधुनिक लोक उद्यमों से तुलना करें तो यह कह सकते हैं, कि उसने आर्थिक क्षेत्र में राज्य के दायित्व को भली-भाँति समझा था और तद्नुरूप कार्य भी किया था। वस्तुतः चन्द्रगुप्त ने शासकीय आचरण से कौटिल्य के प्रजा हित के राज्यादर्श को कार्य रूप दिया था।
धार्मिक दृष्टिकोण से भी चन्द्रगुप्त एक उदार शासक था। धार्मिक कट्टरता जैसी कोई बात उसके व्यक्तित्व में नहीं थी अपने जीवन के प्रारम्भ में ब्राह्मणवादी व्यवस्था के पोषक आचार्य चाणक्य का वह शिष्य था तथा वैदिक क्रियाओं में उसका विश्वास था। जैन स्रोतों से पता चलता है कि अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में वह स्वयं जैन हो गया था। उसने विदेशी कन्या से विवाह किया था। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वह विश्वास के स्तर पर एक उदार शासक था।