अशोक का धम्म (Dhamma of Ashoka)
अशोक का 'धम्म' क्या है ? यह एक जटिल प्रश्न है। अपने द्वितीय स्तम्भ लेख में अशोक स्वयं ही पूछता है कि किंच चु धम्मे ? धम्म क्या है ? इसका उत्तर देते हुए वह कहता है, 'अपआसिनवे बहुकथाने दया दाने सचे साचये।' अपने स्तम्भ लेख में भी अशोक ने धम्म के इन उपादानों का उल्लेख किया है-
बहुकथाने- बहुकल्याण ।
दया- करुणा।
दाने- उदारता ।
सचे- सत्यता ।
साचये- पवित्रता।
(अ) व्यावहारिक रूप
अशोक इस विषय में अनेक कर्त्तव्यों का पालन करना बताता है, जिनका वर्णन इस प्रकार है, प्राणवान जन्तुओं की हत्या न करना, अस्तित्ववान जीवों को क्षति न पहुँचाना, माता-पिता की सेवा, वृक्षों की सेवा, गुरुओं का समादर, मित्रों, परिचितों, सम्बन्धिर्यो, ब्राह्मण व श्रमणों के प्रति उदारता व सम्यक् व्यवहार, अल्प व्यय व अल्प संचय।
धम्म उपर्युक्त कर्त्तव्यों के अतिरिक्त अशोक धम्म के अन्तर्गत कुछ अन्य बातों जैसे- धम्म-मंगल, विजय, सहिष्णुता व अहिंसा का अनुसरण करने के लिए भी कहता है।
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(ब) निषेधात्मक पहलू
अशोक के धम्म का एक निषेधात्मक पक्ष भी है।
अशोक के धम्म के दो पहलू हैं- आसिनव का अर्थ अशोक पाप मानता है तथा उन ऋनिकारक विकारों का वर्णन करता है जिससे आसिनव उत्पन्न होता है। ये विकार चण्डिय, नितुलिय, क्रोध, मान, ईर्ष्या है।
इस प्रकार अशोक का धम्म उपर्युक्त विकारों से दूर रहने तथा इस प्रकार आसिनव से बचने को कहता है। अशोक ने आसिनव से बचने व अपने द्वारा किये जा रहे आसिनव को जानने का मार्ग भी बताया है। यह मार्ग आत्मनिरीक्षण का है।
अशोक का धम्म केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं वरन् समस्त प्राणि जगत के लिए था। इसो कारण अशोक ने समस्त जीवों के लिए अनेक परोपकारी कार्य किये।
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अशोक द्वारा धम्म को अपनाने के कारण
नि:सन्देह यह एक विचारणीय प्रश्न है कि अशोक ने 'धम्म नीति' को क्यों अपनाया है? वे कौन-सी परिस्थितियाँ थीं जिन्होंने अशोक को धम्म का अनुसरण व प्रचार करने के लिए बाध्य किया। सर्वविदित है कि अपने राज्याभिषेक के समय अशोक बौद्ध नहीं था। शासक बनने के लिए भी अशोक को कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। सम्भव है कि उसे इस संघर्ष में रूढ़िवादी ब्राह्मण वर्ग से समर्थन न मिला हो, अत: सम्राट बनने के पश्चात् उसने बिना किसी धर्म का विरोध किये बौद्ध धर्म का समर्थन किया। इस तरीके से प्रजा की रूढ़िवादिता को भी समाप्त किया जा सकता था तथा अपने सिद्धान्तों को प्रजा के लिए अधिक ग्राह्य बनाया जा सकता था।
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मौर्यकाल में केन्द्र में शक्तिशाली सम्राट व साम्राज्य पर उसका नियन्त्रण होना आवश्यक था। ऐसा करने के लिए अशोक के समक्ष दो मार्ग थे- सैन्यशक्ति अथवा आत्म देवत्व। अशोक ने दूसरे मार्ग को ही चुना तथा धम्म को एक नवीन एकता के लिए प्रतीक के रूप में प्रयोग किया। प्रचार का यह अत्यन्त प्रभावशाली माध्यम था। इस प्रकार स्पष्ट है कि तत्कालीन राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों ने अशोक को धम्म का पालन व प्रचार करने को प्रेरित किया था।
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अशोक का मूल्यांकन एवं महानता के कारण
इस तथ्य में कोई सन्देह नहीं है कि अशोक विश्व का महानतम सम्राट था, तथा उसकी समानता किसी भी सम्राट से नहीं की जा सकती। अशोक को विश्वव्यापी सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्रदान करने के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी है-
(1) अशोक का व्यक्तित्व एवं आदर्शवादिता
अशोक बचपन से ही अत्यन्त योग्य एवं मेधावी था। उसकी क्षमताओं को पहचानकर ही बिन्दुसार ने उसे साम्राज्य के विभिन्न प्रदेशों में हुए विद्रोह को दबाने के लिए भेजा था, जिनमें उसने सफलता प्राप्त की थी। अशोक एक महान आदर्शवादी सम्राट था, तथा उसकी आदर्शवादिता संकीर्ण विचारों पर आधारित न थी। अशोक ने सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक प्रत्येक क्षेत्र में महान आदर्शों का पालन किया।
(2) महान विजेता
अशोक एक युद्ध-विजेता के रूप में उतना प्रसिद्ध नहीं है जितना कि धम्म-विजेता के रूप में। अन्य शासकों की भाँति अशोक ने तलवार से नहीं वरन् शान्ति व अहिंसा के सुदृढ़ अस्त्रों से साम्राज्य विस्तार किया। ऐसा कोई अन्य उदाहरण विश्व इतिहास में प्राप्त नहीं होता।
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(3) राष्ट्रीय एकता प्रदान करना
चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा भारत को एक राजनीतिक सूत्र में बाँधने के प्रयत्न को अशोक ने पूर्ण किया। अशोक ने सम्पूर्ण देश में एक ही भाषा का प्रयोग करने का आदेश दिया। इस प्रकार पाली भारत को राष्ट्रभाषा बन गयी। भाषा के अतिरिक्त अन्य सांस्कृतिक कार्यकलापों के द्वारा भी उसने राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ता प्रदान की।
(4) महान शासक
अशोक एक महान शासक था। उसका शासन भी उसकी आध्यात्मिकता से परिपूर्ण था। अशोक ने अपने उज्जवल चरित्र एवं उच्च आदशों को प्रस्तुत करके अपने राज्याधिकारियों के नैतिक स्तर को ऊँचा उठाया तथा जनता को सत्य एवं प्रकाश के मार्ग की ओर अग्रसर किया।
(5) उदारता एवं लोकहित कार्य
अशोक ने केवल मानव वरन् सम्पूर्ण प्राणी जगत के इति/प्रति उदार दृष्टिकोण रखता था। यही कारण है कि अशोक ने पशु-पक्षियों के वध पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
उदारता के अतिरिक्त अशोक ने अनेक लोकहित के कार्य किये। अशोक ने छायादार वृक्ष लाखाये, धर्मशालाएँ बनवाईं, कुएँ खुदवाये। इसके अतिरिक्त मनुष्यों व पशुओं के लिए उपयोगी औषधियों व औषधालयों का भी इन्तजाम कराया। यह सब कार्य अशोक ने मनुष्यों व पशुओं के सुख व हितों के लिए किया।
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(6) धार्मिक नीति एवं धर्म
सहिष्णुता अशोक की सर्वाधिक प्रसिद्धि उसकी धार्मिक नीति एवं धार्मिक सहिष्णुता के कारण ही प्राप्त हुई। उसने कभी भी अपने व्यक्तिगत विचारों को प्रजा पर लादने का प्रयास नहीं किया। उसने अन्य धमों का भी आदर करने के लिए कहा। उसका विचार था कि जो व्यक्ति किसी अन्य धर्म का अनादर करता है, वह एक प्रकार से स्वयं अपने धर्म का ही अनादर करता है।
अतः उपर्युक्त विचारों से अशोक की धर्म सहिष्णुता एवं महानता स्वत: स्पष्ट हो जाती है।
(7) कर्तव्यनिष्ठ शासक
अशोक में कर्त्तव्यनिष्ठा का प्रबल भाव था तथा कर्त्तव्यों को पूरा करने में वह असाधारण शक्ति का प्रमाण देता था। उसकी निश्चयात्मक घोषणा थी कि सम्पूर्ण प्रजा के कल्याण साधन से अधिक महत्व का कोई दूसरा कार्य नहीं है।
इस प्रकार उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि अशोक निःसन्देह एक महान शासक था। डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी ने लिखा है कि "राजाओं के इतिहास में मनुष्य और शासक के रूप में किसी के रिकार्ड की तुलना अशोक से नहीं की जा सकती।"
अशोक की मृत्यु 232 ई.पू. में हुई।
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अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार
अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 9वें वर्ष में बौद्ध धर्म को ग्रहण किया था। तत्पश्चात् उसने एक वर्ष तक बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु कोई कार्य नहीं किया एक वर्ष पश्चात् वह बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु अत्यन्त सक्रिय हो गया। अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित कार्य किए-
1. धर्म-यात्राएँ
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु विहार-यात्राओं के स्थान पर धम्म-यात्राओं को प्रारम्भ किया। इनका उद्देश्य ब्राह्मण व श्रमण साधुओं का दर्शन और उन्हें उपहारदान, वृद्धों का दर्शन और उन्हें स्वर्ण-वितरण तथा जनपद के लोगों से मिलना, उन्हें धर्म सम्बन्धी उपदेश देजा और उनसे धर्म सम्बन्धी प्रश्न करना व उनके उत्तर देना था।
(2) धम्म विजय
कलिंग के भीषण युद्ध के पश्चात् अशोक के हृदय में परिवर्तन हुआ था तथा उसे रक्तपात से घृणा हो गयी थी। अतः धम्म-विजय की नीति को अपनाकर उसने बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
(3) धार्मिक प्रदर्शन
अशोक के चौथे शिलालेख से ज्ञात होता है कि उसने विमानों, हस्तियों और अग्नि या ज्योतिः स्कन्धों के दृश्य दिखाकर प्रजा में धर्म का प्रचार किया। इन दृश्यों से एक तो जनता का मनोरंजन होता था दूसरी ओर उन्हें पवित्र व धार्मिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा मिलती थी।
(4) धर्म श्रवण
सातवें स्तम्भ लेख के अनुसार अशोक समय-समय पर जनता को धार्मिक सन्देश देता था। राजा द्वारा स्वयं उपदेश देने से प्रजा के मन पर निश्चित रूप से गम्भीर प्रभाव पड़ता होगा तथा इसमें धम्म को तीव्र उन्नति हुई होगी।
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(5) धर्म विभाग की स्थापना
उसने धर्म विभाग की स्थापना की तथा विभिन्न पदाधिकारियों की नियुक्ति की। तीसरे शिलालेख से ज्ञात होता है कि अशोक ने राजुकों, प्रादेशिकों व युक्तों को आदेश दिया था कि प्रत्येक पाँचवें वर्ष राज्य का दौरा कर अपने सामान्य कार्य के अतिरिक्त धर्मोपदेश भी दें। किन्तु इनके कार्यों से असन्तुष्ट होकर उसने धर्म-महामात्रों की नियुक्ति की।
(6) आत्मनिरीक्षण
अशोक ने (आत्मनिरीक्षण) के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इसके द्वारा उसने प्रजा को आत्म-परीक्षण तथा आत्म-परीक्षण के लिए प्रेरित किया।
(7) अहिंसा का प्रचार
बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त अहिंसा का अशोक ने प्रचार व पालन किया। उसने अनेक पशु-पक्षियों की हत्या करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
(8) परोपकारी कार्य
अशोक धम्म को व्यावहारिक रूप देना चाहता था। अतः इस उद्देश्य से उसने अपने परोपकारी कार्य कराये। अपने द्वितीय शिलालेख में अशोक कहता है, सर्वत्र देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी ने दो (प्रकार की) चिकित्सा-मनुष्यों व पशुओं के लिए औषधियाँ भी जहाँ-जहाँ नहीं थीं, गैंगवाकर सर्वत्र रोक दी गयी हैं। इसी प्रकार जहाँ-जहाँ मूल और फल नहीं थे, मँगवाये गये और सर्वत्र रोके गये। मार्गों पर पशुओं और मनुष्यों के उपयोग के लिए, वृक्ष लगवाये गये हैं और कुएँ खुदवाये गये हैं।" इस प्रकार अशोक ने परोपकारी कार्यों के द्वारा भी बौद्ध धर्म का प्रसार किया। पशुओं के लिए चिकित्सालय बनवाने वाला वह सम्भवतः विश्व का प्रथम सम्राट था।
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(9) धम्म मंगल
अशोक ने अपने धम्म की लोकप्रियता में वृद्धि करने के उद्देश्य से उसके वास्तविक स्वरूप को जनता के समक्ष प्रस्तुत किया तथा आडम्बरों का खण्डन किया।
(10) धम्म लिषि एवं अभिलेख
बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु अशोक ने इसके सिद्धान्तों एवं आदेशों को शिलाओं, गुफाओं व स्तम्भों पर उत्कीर्ण कराया।
(11) धम्म दान
अशोक ने साधारण दान के स्थान पर धम्म दान को व्यवस्था की।
(12) स्तूपों एवं विहारों का निर्माण
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु अनेक स्तूपों व वियरों का निर्माण कराया।
(13) तृतीय बौद्ध-संगीत
अशोक के राज्यकाल में तृतीय बौद्ध-संगीत का पाटलिपुत्र में आयोडीन किया गया।
(14) विदेशों में धर्म प्रचार
अशोक ने बौद्ध धर्म का अन्य देशों में भी प्रचार किया। इस बात की पुष्टि पुरातात्विक व साहित्यिक दोनों ही स्रोतों से होती है।