व्यापारिक कार्यालय का अर्थ, परिभाषा, कार्य एवं महत्व | व्यापारिक कार्यालय के मुख्य विभाग एवं कार्य

कार्यालय का अर्थ (Meaning of Office)

'कार्यालय' दो शब्दों 'कार्य' तथा 'आलय' के संयोग से बना है। 'कार्य' का आशय है 'आवश्यकता पूर्ति हेतु सुव्यवस्थित ढंग से आयोजन' तथा 'आलय' का अभिप्राय स्थान से है। इस प्रकार कार्यालय का शाब्दिक अर्थ "किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किसी क्रिया को आयोजित करने के स्थान" से है।

व्यापारिक कार्यालय की परिभाषा (Definitions of Business Office)

कार्यालय को विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है-

(1) एस० ए० सलेंकर के अनुसार, "कार्यालय से आशय उस स्थान से है, जहाँ संस्था की नीति बनाई जाती है तथा उसके क्रियान्वयन का मूल्यांकन किया जाता है।"

(2) हैरी एल० विली के अनुसार, "कार्यालय वह केन्द्र है जहाँ व्यापारिक संस्था के प्रत्येक भाग से सूचना प्राप्त होती है तथा क्रमबद्ध की जाती है। ग्राहकों के विषय में क्रय-विक्रय, आगमन व निगमन तथा व्यापारिक संस्था की रुचि बाले कार्यों से सम्बन्धित आवश्यक सूचना एकत्रित की जाती है और समयानुकूल उसका प्रयोग किया जाता है। इस सूचना के आधार पर व्यापार के संचालक व्यापार का संचालन सुचारु रूप से कर सकते हैं।" 

(3) गुप्ता एवं गुप्ता के शब्दों में, "कार्यालय वह स्थान है, जहाँ पर सूचनाएँ तैयार की जाती हैं तथा उन्हें प्रदान करने से सम्बन्धित कार्य किया जाता है।"

उचित परिभाषा -उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि "कार्यालय का अभिप्राय ऐसे स्थान से है जहाँ किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए सुव्यवस्थित ढंग से नियोजन किया जाता है। यहाँ पर लेन-देन व लिखा-पढ़ी होती है तथा व्यापार सम्बन्धी सभी पत्र सुरक्षित रखे जाते हैं।" 

व्यापारिक कार्यालय के कार्य (Functions of Business Office) 

एक व्यापारिक कार्यालय को दो प्रकार के कार्य करने होते हैं-

(अ) मुख्य या आवश्यक कार्य तथा

(ब) सहायक या अन्य कार्य।

(अ). मुख्य या आवश्यक कार्य

प्रत्येक व्यापारिक कार्यालय को निम्नलिखित कार्य मुख्य या आवश्यक रूप से करने होते हैं-

  1. पत्रों की प्राप्ति- व्यापारिक कार्यालय का सबसे पहला कार्य पत्रों को प्राप्त करना है। ये पत्र डाक द्वारा या चपरासी द्वारा प्राप्त किए जाते हैं।
  2. बाहर जाने वाले पत्रों की तैयारी- व्यापारिक कार्यालय का दूसरा प्रमुख कार्य बाहर जाने वाले पत्रों की तैयारी करना है। यह पत्र या तो किसी प्राप्त पत्र के उत्तर में भेजे जाते हैं या नए पत्र के रूप में बाहर भेजे जाते हैं। 
  3. पत्रों की प्रतिलिपि या बहुप्रतिलिपि तैयार करना- यह व्यापारिक कार्यालय का तीसरा प्रमुख कार्य है। व्यापारिक कार्यालय से जो भी पत्र बाहर भेजा जाता है, उसको एक प्रतिलिपि भावी सन्दर्भ के लिए कार्यालय में सुरक्षित रख लो जाती है। यह प्रतिलिपि हाथ से, टाइप मशीन से या किसी प्रतिलिपिकरण या बहुप्रतिलिपिकरण यन्त्र की सहायता से ली जा सकती है। यदि एक ही पत्र को अनेक ग्राहकों को भेजा जाता है, तो उस पत्र की अनेक प्रतियाँ तैयार कर ली जाती है। 
  4. नस्तीकरण बाहर से प्राप्त होने वाले पत्रों तथा बाहर भेजे जाने वाले पत्रों की प्रतिलिपि को भावी सन्दर्भ के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है। यह कार्य नस्तीकरण की क्रिया द्वारा सम्पन्न किया जाता है। 
  5. पत्रों का भेजना जब बाहर जाने वाला पत्र तैयार हो जाता है, तो उसे डाक द्वारा या चपरासी द्वारा पत्र प्राप्त करने वाले को भेज दिया जाता है। आमतौर पर यह कार्य एक लिपिक द्वारा किया जाता है। यह लिपिक इन पत्रों को 'प्रेषित पत्र रजिस्टर' में चढ़ाता है तथा मोड़कर लिफाफे में रखकर भेज देता है। यदि पत्र डाक द्वारा भेजा जाता है, तो उसे 'डाक व्यय रजिस्टर' में भी चढ़ाया जाता है। यदि पत्र चपरासी द्वारा भेजा जाता है, तो उसे 'पत्रवाहक पुस्तक' में चढ़ाकर चपरासी को दे दिया जाता है। 

(ब) सहायक या अन्य कार्य

प्रत्येक व्यापारिक कार्यालय को उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त कुछ अन्य कार्य भी सहायक कार्यों के रूप में सम्पन्न करने होते हैं; जैसे-

  1. व्यावसायिक लेखा- पुस्तकें रखना प्रत्येक व्यापारिक कार्यालय में व्यापारिक लेन-देनों का लेखा रखने के लिए कुछ लेखा-पुस्तकें रखी जाती हैं। इन पुस्तकों के अन्तर्गत रोकड़ बही, जर्नल व खाता आदि तैयार किए जाते हैं। इन पुस्तकों के आधार पर ही वर्ष के अन्त में अन्तिम खाते तैयार किए जाते हैं।
  2. रिकाड़ों को सुरक्षित रखना- प्रत्येक व्यापारिक कार्यालय में रिकार्ड को भावी सन्दर्भ के लिए सुरक्षित रखा जाता है। यह कार्य प्रायः रिकॉर्ड कीपर के द्वारा किया जाता है।
  3. योजना बनाना एवं उसे साकार रूप देना- प्रत्येक व्यापारिक कार्यालय द्वारा किसी भी कार्य को करने से पहले उसकी योजना तैयार करनी होती है और फिर उसे विभिन्न विभागों के सहयोग से साकार रूप प्रदान किया जाता है।
  4. निर्धारित नीतियों को कार्यरूप में परिणत करना- व्यापार को सफलता की ओर अग्रसर करने के लिए नीतियों को साकार रूप प्रदान किया जाता है। यह कार्य प्रायः कार्यालय के प्रबन्धक द्वारा ही किया जाता है।
  5. कर्मचारियों के वेतन आदि की गणना करना- कर्मचारियों के वेतन आदि की गणना करना व्यापारिक कार्यालय का ही कार्य है। समय पर वेतन आदि का भुगतान करने से कार्यालय की कुशलता में वृद्धि होती है।
  6. माल का बीजक आदि तैयार करना- व्यापार में जो माल बेचा जाता है, उसका बीजक बनाया जाता है। यह कार्य व्यापारिक कार्यालय द्वारा ही किया जाता है। इसके अतिरक्त गेट-पास बनाना, मासिक क्रय-विक्रय के आँकड़े बनाना एवं वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना भी व्यापारिक कार्यालय का ही कार्य है। 

व्यापारिक कार्यालय का महत्व  (Importance of Business Office)

एक व्यापारिक कार्यालय व्यापार का वह केन्द्र है, जहाँ से व्यवसाय का निर्देशन एवं नियन्त्रण किया जाता है। यहीं से समस्त पत्र-व्यवहार होता है, यहीं पर समस्त हिसाब-किताब तैयार किया जाता है, यहीं पर रुपये-पैसे का लेन-देन होता है, नीति-निर्धारण भी यहीं पर होता है तथा समस्त आवश्यक सूचनाएँ भी यहीं पर एकत्रित की जाती हैं। इस प्रकार एक व्यापारिक कार्यालय का व्यापार में उतना ही महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, जितना कि घड़ी में उसके मुख्य स्प्रिंग का होता है अथवा शरीर में मस्तिष्क का होता है। यह व्यापार की आत्मा होती है। यह व्यवसाय के नियन्त्रण एवं स्मरण शक्ति का केन्द्र होता है। इसे व्यापार रूपी यन्त्र की धुरी भी कहा जाता है। व्यापारिक सफलता बहुत कुछ व्यापारिक कार्यालय के संगठन पर निर्भर करती है। 

अतः एक व्यापारिक कार्यालय के महत्व को निम्नलिखित प्रकार से बताया जा सकता है-

  • नीति-निर्धारण का केन्द्र- कार्यालय ही वह स्थान है जहाँ पर संस्था से सम्बन्धित सभी नीतियों का निर्धारण किया जाता है, योजनाओं एवं कार्य की प्रगति का पुनर्मूल्यांकन किया जाता है तथा आवश्यक सुधारात्मक उपायों पर विचार किया जाता है।
  • समन्वय- संस्था के विभिन्न विभागों में समन्वय का कार्य भी कार्यालय के माध्यम से ही किया जाता है। 
  • सूचना केन्द्र- व्यापारिक कार्यालय को व्यवसाय सम्बन्धी सूचनाओं का केन्द्र भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर सभी सूचनाओं को संकलित करके रखा जाता है।
  • लिपिकीय कार्यों का सम्पादन- विभिन्न प्रकार के लिपिकीय कार्यों; जैसे- नस्तीकरण, प्रतिलिपिकरण, बहुप्रतिलिपिकरण, टाइपिंग आदि को भी यहीं पर सम्पन्न किया जाता है।
  • प्रबन्ध का मस्तिष्क- इस सम्बन्ध में मिल्स तथा स्टेडिंग फोर्ड ने कहा है कि "कार्यालय की तुलना प्रवन्ध के नेत्रों तथा कानों से की जा सकती है क्योंकि वह यहीं से सूचनाएँ ग्रहण करता है। कार्यालय की तुलना प्रबन्ध की वाणी या स्वर से भी की जा सकती है, क्योंकि इनकी ओर से यही अन्य विभागों तथा बाह्य जगत के साथ सम्प्रेषण करता है। सम्भवतः यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि कार्यालय प्रबन्ध के मस्तिष्क का एक अंग है, क्योंकि सूचनाओं को विवेकपूर्ण ढंग से व्यवस्थित करके यह तर्क तथा विवेक में सहयोग देता है।"
  • व्यवसाय की सफलता का आधार- किसी भी व्यवसाय की सफलता बहुत कुछ उसके कार्यालय की कुशलता पर ही निर्भर करती है।
  • प्रबन्धकीय कार्यों का कुशल सम्पादन- व्यवसाय का प्रबन्धक प्रबन्धकीय कार्यों का कुशल सम्पादन भी कार्यालय के द्वारा ही करता है।
  • व्यवसाय पर नियन्त्रण रखने का स्थान- किसी भी व्यवसाय पर नियन्त्रण रखे जाने का स्थान उसका कार्यालय ही होता है।

व्यापारिक कार्यालय के मुख्य विभाग एवं कार्य  

किसी भी व्यापारिक कार्यालय की स्थापना ऐसी विधि से होनी चाहिए कि उसे सुविधानुसार विभिन्न विभागों में विभक्त किया जा सके। एक व्यापारिक कार्यालय के विभागों की संख्या व्यापार के आकार पर निर्भर करती है।प्रत्येक विभाग एक विशेष प्रकार का कार्य करता है तथा उसी कार्य के लिए वह उत्तरदायी होता है। 

अतः सुविधा की दृष्टि से एक व्यापारिक कार्यालय के कार्यों का विभाजन विभिन्न विभागों के अन्तर्गत किया जा सकता है; जैसे-

(1) पूछताछ विभाग

समय ही धन है, अतः प्राहकों का समय बचाने के लिए व्यापार-गृह में एक पूछताछ विभाग होता है, जो ग्राहकों द्वारा की गई पूछताछ का उत्तर देता है। इसी के आधार पर ग्राहक माल का सौदा करता है तथा इसके साथ-साथ ग्राहकों को कठिनाइयों का समाधान भी यही विभाग करता है। 

(2) पत्र-व्यवहार विभाग

यह व्यापारिक कार्यालय का सबसे मुख्य विभाग है। इसके सम्बन्ध में किसी ने ठीक हो कहा है कि "पत्र-व्यवहार विभाग आधुनिक व्यापार की आत्मा है।" इस विभाग में सभी आने वाले और जाने वाले पत्रों की लिखा-पढ़ी की जाती है। इस विभाग के कार्य पत्र प्राप्त करना, उन्हें खोलना, उनके उत्तर देना, भेजे जाने वाले पत्रों की नकल तैयार करना तथा उन्हें फाइलों में भविष्य के लिए सुरक्षित रखना आदि हैं। इस विभाग की कुशलता पर ही व्यापार की सफलता निर्भर करती है।

(3) हिसाब-किताब या लेखा विभाग 

इस विभाग का कार्य व्यापार के समस्त लेन-देन, क्रय-विक्रय, सम्पत्ति व दायित्वों का हिसाब-किताब रखना है। इसी विभाग में वर्ष की समाप्ति पर लाभ-हानि खाता तथा आर्थिक चिट्ठा बनाया जाता है। इस विभाग का अधिकारी 'लेखा अधिकारी' कहलाता है।

(4) क्रय विभाग 

इस विभाग का मुख्य कार्य व्यापार की आवश्यकतानुसार अच्छी किस्म का माल सस्ते मूल्य पर खरीदना है। यह विभाग क्रय करने के सम्बन्ध में विदेशों से भी सम्पर्क स्थापित करता है।

(5) विक्रय विभाग 

आज के प्रतियोगिता के युग में माल का विक्रय करना एक कठिन कार्य है, जिसे केवल एक सुयोग्य विक्रेता ही कर सकता है, इसीलिए व्यापारिक कार्यालय का यह विभाग बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। इस विभाग का कार्य माल की बिक्री करना एवं माल को बिक्री में वृद्धि करने के लिए प्रयास करना है।

(6) केन्द्रीय विभाग

व्यापार के सभी विभागों के कार्यों में समन्वय लाने के उद्देश्य से केन्द्रीय विभाग की स्थापना की जाती है। व्यापार के दैनिक संचालन, कर्मचारियों की नियुक्ति एवं अन्य कठिन समस्याओं से सम्बन्धित सभी कार्य इस विभाग द्वारा सम्पन्न किए जाते हैं। आयकर, व्यापार कर तथा अन्य करों के सम्बन्ध में इसी विभाग द्वारा लिखा-पढ़ी की जाती है।

(7) रोकड़ विभाग 

इस विभाग का मुख्य कार्य धन की प्राप्ति तथा भुगतान का लेखा करना है। बैंक सम्बन्धों लेन-देन भी इसी विभाग द्वारा किए जाते हैं। इस विभाग का मुख्य अधिकारी एक अत्यधिक विश्वसनीय व्यक्ति होता है, जो 'कोषाध्यक्ष' या 'रोकड़िया' कहलाता है। इसकी सहायता के लिए एक 'फुटकर रोकड़िया' भी होता है, जो फुटकर रोकड़ का लेन-देन करता है और उस लेन-देन का हिसाब एक पुस्तक में रखता है, जिसे फुटकर या खुदरा रोकड़ बही कहते हैं।

(8) योजना विभाग 

इस विभाग का कार्य व्यापार सम्बन्धी योजनाएँ बनाना है। इसी विभाग द्वारा माल की किस्म, मात्रा, लागत मूल्य तथा विक्रय मूल्य निर्धारित किए जाते हैं। यह विभाग माँग का अनुमान लगाता है तथा उत्पादन को मात्रा निश्चित करता है। 

(9) प्रचार विभाग

आज का युग प्रतियोगिता का युग है। नवनिर्मित तथा उत्पादित माल की जानकारी जनता तक पहुंचाने के लिए विज्ञापन की आवश्यकता पड़ती है। विज्ञापन वर्तमान व्यापार की जीवन-संजीवनी है। इसी के द्वारा वस्तुओं को नई माँग उत्पन्न होती है। 

(10) पैकिंग (संवेष्टन) विभाग 

इस विभाग का कार्य माल की किस्म के अनुसार अच्छी तथा मजबूत पैकिंग करके उसे सम्बन्धित ग्राहक के पास भिजवाने का प्रबन्ध करना है। यह विभाग पैक हुए माल पर क्रेता का नाम व पता आदि लिखकर उसे सवारीगाड़ी, मालगाड़ी या मोटर ट्रक द्वारा भिजवाने का प्रबन्ध करता है।

(11) समंक विभाग 

इस विभाग द्वारा उत्पादन, बाजार, माँग, बिक्री, क्रय तथा मूल्य आदि के सम्बन्ध में आँकड़े एकत्र किए जाते हैं। इन समंकों से महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से सारणी तथा रेखाचित्र बनाए जाते हैं। इसी के आधार पर भावी योजनाएँ तथा विस्तार के सम्बन्ध में निर्णय लिए जाते हैं।

(12) अभिलेख विभाग 

इस विभाग का कार्य व्यापार सम्बन्धी कागज-पत्रों को सुरक्षित रखना है, जिससे उन्हें आवश्यकता पड़ने पर सरलता तथा शीघ्रता से निकाला जा सके।

(13) स्टोर विभाग 

जहाँ पर बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है, वहाँ पर दिन-रात सामान की आवश्यकता पड़ती रहती है; अतः पर्याप्त मात्रा में सामान खरीदकर गोदामों में रख लिया जाता है, जिससे सामान की आवश्यकता पड़ने पर उसका उपयोग किया जा सके।

अतः उपर्युक्त विभागों की संख्या व्यापार की आवश्यकतानुसार घटाई-बढ़ाई भी जा सकती है।

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