महिला अपराध क्या है | महिलाओं के प्रति अपराध | violence against women essay

महिलाओं के प्रति हिंसा / अपराध- (Violence Against Women)

महिलाओं के प्रति हिंसा से आशय पुरुष द्वारा महिला के साथ किये जाने वाले हिंसक व्यवहार से है, चाहे यह हिंसक व्यवहार उसके किसी निजी सम्बन्धी; जैसे-पिता, भाई, चाचा, पति, श्वसुर, देवर आदि द्वारा किया गया हो, चाहे वह अन्य किसी पुरुष ने किया हो।

    नन्दिता गाँधी तथा नन्दिता शाह ने लिखा है- कि "नारी के प्रति हिंसा के अन्तर्गत बलात्कार, दहेज, हत्याएँ, पत्नी को यातना देने, यौनिक हतोत्साहन तथा मीडिया में स्त्री के चित्रित करने के रूप में समाहित किया जा सकता है।" इसके अलावा अत्यधिक कार्यभार के रूप में भी स्त्री के प्रति हिंसा को देखा जा सकता है। 

    अतः भारत में महिलाओं के प्रति हिंसा का वर्गीकरण इस प्रकार हो सकता है-

    (i) घरेलू हिंसा- जैसे दहेज, हत्या, पत्नी को पीटना, लैंगिक दुर्व्यवहार, विधवाओं और वृद्ध महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार।

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    (ii) आपराधिक हिंसा- जैसे- बलात्कार, अपहरण, हत्या आदि।

    (iii) सामाजिक हिंसा- जैसे- पत्नी का पुत्र-वधू को मादा भ्रूण की हत्या के लिए विवश करना, महिलाओं से छेड़-छाड़, सम्पत्ति में महिलाओं को हिस्सा देने से मना करना, विधवा को सती होने के लिए विवश करना, पुत्र-वधू को और अधिक दहेज लाने के लिए सताना, काम-काजी महिलाओं की कड़ी दोहरी भूमिका निभाना आदि जैसे-

    (1) बलात्कार 

    बलात्कार पुरुष द्वारा स्त्री के प्रति हिंसा का प्रमुख रूप है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 365 के अनुसार बलात्कार का अर्थ है कि किसी महिला से संभोग-

    • उसकी इच्छा के विरुद्ध।
    • उसकी स्वीकृति मानकर।
    • महिला को धमका कर, मार डालने की धमकी देकर।
    • महिला की स्वीकृत से जब बलात्कारी जानता है कि वह महिला उसकी पत्नी न होकर किसी अन्य की पत्नी है।
    • जब महिला 16 वर्ष से कम उम्र की हो। यह भारत तथा अन्तर्राष्ट्रीय जगत से नारी आन्दोलनों द्वारा उठाया जाने वाला प्रमुख मुद्दा रहा है। भारत में 1980 में बलात्कार के विरुद्ध व्यापक अभियान चलाया गया। जव पुलिस कस्टडी में पुलिस कांस्टेबल द्वारा एक आदिवासी लड़की के साथ बलात्कार का मामला उजागर हुआ तो नारी आन्दोलनों ने इसे न्यायालय में चुनौती दी तथा जब सर्वोच्च न्यायालय में बलात्कारी इस आधार पर मुक्ति पा गया कि मथुरा गिरे हुए चरित्र की औरत थी और इस तरह बलात्कार नहीं हुआ। 

    अतः इस फैसले ने सभी को अचम्भित कर दिया। परिणामस्वरूप बलात्कार के विरुद्ध मुम्बई में एक संगठन 'Forum Against Rape' बना जो अब स्त्री के दमन के विरुद्ध संगठन (FAOW) के नाम से जाना जाता है। इस संगठन ने इस निर्णय के विरुद्ध व्यापक आन्दोलन पूरे देश में चलाया। इस आन्दोलन के फलस्वरूप भारत में 'बलात्कार' पर विद्वानों, राजनैतिक दलों का ध्यान केन्द्रित किया। इस सम्बन्ध में उन्होंने अलग-अलग दृष्टिकोण से अपने विचार व्यक्त किये।

    (iv) नशा करने वाले- ये बलात्कारी शराब पीने के बाद समझते हैं कि किसी महिला ने उनका जीवन बर्बाद किया है और फिर वे किसी महिला पर बलात्कार करते हैं।

    (v) विकृत मनोवृत्ति- कुछ पुरुष ऐसे होते हैं जिन्हें अत्याचार करना अच्छा लगता है या उनके साथ अत्याचार का कोई इतिहास जुड़ा रहता है। ये पहले किसी महिला का अपहरण करते हैं और बाद में उसे अपनी हवस का शिकार बनाते हैं, तभी इन पुरुषों को खुशी सकून मिलता है। छोटी बालिकाओं के साथ भी ऐसे ही व्यक्ति बलात्कार करते हैं।

    बलात्कार की शिकार महिलाओं की विशेषताएँ

    बलात्कार की शिकार महिलाओं की खास विशेषताओं को निम्न प्रकार बताया जा सकता है-

    (i) बलात्कार की शिकार महिलाओं में अधिकतर महिलाएँ 10 से 30 वर्ष की उम्र की होती हैं।

    (ii) बलात्कार की शिकार महिलाओं में प्रमुख हैं- गरीब लड़कियाँ, मध्यम वर्ग की कर्मचारी महिलाएँ, अपराध संदिग्ध महिलाएँ, महिला मरीज और रोजाना वेतनभोगी महिलाएँ। बहरी, गूँगी, पागल, और भिखारिन महिलाएँ भी बलात्कार की शिकार होती हैं। प्रायः जेल में कैद महिलाओं के साथ अधीक्षकों द्वारा अपराध, संदिग्ध महिलाओं के साथ पुलिस अधिकारियों द्वारा, महिला मरीजों के साथ अस्पताल के कर्मचारियों द्वारा हर रोज वेतनभोगी महिलाओं के साथ ठेकेदारों एवं बिचौलियों द्वारा बलात्कार किया जाता है।

    अपहरण या भगा ले जाना

    एक नाबालिग (18 वर्ष की कम आयु की लड़की और 16 वर्ष से कम आयु का लड़का) को उसके कानूनी अभिभावक (माँ-बाप) की सहमति के बगैर भगा ले जाने या फुसलाने को अपहरण कहते हैं। अपहरण में लड़के या लड़की की सहमति होने का कोई महत्त्व नहीं है। यदि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की स्वेच्छा से अपने मित्र के साथ चली जाती है, तो भी उसे अपहरण ही कहा जायेगा। किसी नाबालिग लड़की का बहलाना उस पर मानसिक दबाव डालना, उसे यौन सम्बन्ध स्थापित करने के लिए तैयार करना, उसे पैसे का लालच देना, उसके माँ-बाप से उसे अलग करना आदि अपहरण के ही उदाहरण है। अपहरण की गयी लड़की का किसी (अपहर्त्ता) से यौन सम्बन्ध स्थापित होना जरूरी नहीं है। अपहरण करने वालों को 7 साल का कारावास तथा जुर्माने की व्यवस्था है।

    हमारे देश में एक दिन में लगभग 33.4 लड़‌कियों/स्त्रियों का अपहरण किया जाता है अथवा भगाकर ले जाया जाता है। इस प्रकार वर्ष में लगभग 12000 महिलाओं का अपहरण किया जाता है और प्रतिवर्ष अपहरण करने वाले कुल व्यक्तियों की संख्या लगभग 21,000 होती है।

    भारत में अपहरण की प्रमुख विशेषताएँ

    डॉ. राम आहूजा ने 41 प्रकरणों के अध्ययन के आधार पर भारत में अपहरण की निम्न विशेषताएँ उद्घाटित की हैं-

    (i) अधिकांशत: भगा ले जाने में एक ही व्यक्ति पूरा जिम्मेदार होता है।

    (ii) 80 प्रतिशत से अधिक प्रकरणों में भगा ले जाने के बाद लैंगिक आक्रमण होता है। 

    (iii) भगा ले जाने वाले के दो सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य- मैथुन और विवाह होते हैं। 

    (iv) भगा ले जाने वाले तथा उनके शिकार का प्रायः प्रारम्भिक सम्पर्क सार्वजनिक स्थानों के अलावा उनके घरों अथवा पड़ोस में होता है।

    (v) माता-पिता का नियन्त्रण और परिवार में स्नेहपूर्ण सम्बन्धों का अभाव भगा ले जाने वाले और पीड़ित के सम्पर्कों तथा किसी परिचित व्यक्ति के साथ घर से भाग जाने के निर्णायक कारण होते हैं।

    (vi) भगा ले जाने वाले व उनके शिकार अधिकांश प्रकरणों में एक-दूसरे से परिचित होते हैं।

    (vii) अविवाहित लड़‌कियों को भगा ले जाने के शिकार बनने की सम्भावना विवाहित स्त्रियों की अपेक्षा अधिक होती है।

    इस तरह स्पष्ट होता है कि बालिका अपहरण आगे चलकर अधिकतर बलात्कार में परिणित हो जाता है। इसे रोकने के लिए लोगों में इसके विरुद्ध चेतना पैदा करने की आवश्यकता है।

    (1) विधवाओं के विरुद्ध हिंसा 

    विधवाओं के प्रति हिंसा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

    • युवा विधवाओं को अधेड़ विधवाओं की अपेक्षा अधिक अपमानित तथा तंग किया जाता है तथा उनका शोषण और उत्पीड़न भी अधिक होता है।
    • सामान्यतया विधवाओं को अपने पति के व्यापार, हिसाब-किताब, सार्टिफिकेटर्टी, बीमे की पॉलिसियों और प्रतिभूतियों के बारे में नगण्य जानकारी होती है और वे अपने परिवार के बेईमान सदस्यों की धोखेबाजी के षड्यन्त्रों की सरलता से शिकार हो जाती है और वे सदस्य इस तरह उनकी विरासत में मिली सम्पत्ति और जीवन बीमा के फायदों को हड़पने का प्रयास करते हैं। 
    • हिंसा के अपराधकर्ता अधिकांशतः पति के परिवार के सदस्य होते हैं। कमजोर वर्ग, जनजाति, अनु.जाति, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध।
    • महिला हिंसा के तीन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य - शक्ति, सम्पत्ति तथा कामवासना में सम्पत्ति मध्यवर्ग की विधवाओं के उत्पीड़न का निर्णायक कारक होती है, कामवासना निम्न वर्ग की विधवाओं के तथा शक्ति मध्य वर्ग एवं निम्न वर्ग दोनों प्रकार की विधवाओं के उत्पीड़न का निर्णायक कारक होती है।

    (2) पति द्वारा पत्नी को पीटना

    महिलाओं के प्रति हिंसा उस समय बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाती है जब पति उसे पीटता है। एक स्त्री के लिए उस आदमी द्वारा पीटा जाना जिस पर वह सर्वाधिक विश्वास करती थी, एक छिन्न-भिन्न करने वाला अनुभव होता है। यह हिंसा चांटे या लात मारने से लेकर यातना देने, मार डालने का प्रयास और हत्या तक परिवर्तित हो सकती है। कभी-कभी हिंसा नशे के कारण भी होती है। इस हिंसा को महिला (पत्नी) मौन रहकर सहती रहती है और उसे अपना भाग्य मानती है। माँ-बाप से भी इस सम्बन्ध में उसे सहयोग नहीं मिलता है। 

    डॉ. राम आहूजा ने पति द्वारा पत्नी को पीटने से सम्बन्धित हिंसा की निम्न विशेषताएँ बतायी हैं-

    • 25 वर्ष की आयु की पत्नियों का उत्पीड़न अपेक्षाकृत अधिक होता है। 
    • उन पत्नियों को जो अपने पति से पाँच वर्ष से अधिक छोटी होती हैं, अपने पति द्वारा पीटे जाने का खतरा बहुत रहता है।
    • कम आय वाले परिवारों की महिलाओं का उत्पीड़न बहुत होता है। 

    (3) पत्नी को पीटने के महत्त्वपूर्ण कारण 

    यौन सम्बन्धी, असमायोजन, भावात्मक गड़बड़, पति की हीन भावना, पति का पियक्कड़ होना, ईर्ष्या और पत्नी की निष्क्रिय कायरता।

    (4) दहेज की हत्याएँ व यातनाएँ  

    भारत में वर्तमान में आकांक्षाओं के अनुरूप दहेज न देने पर बहू जलाने के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। आज दहेज एक तरह का सौदा हो गया है। इसके अन्तर्गत सामान्यतः वर पक्ष के लोग अपनी माँगों को सूचीबद्ध करके कन्या पक्ष को प्रस्तुत करते हैं जो विवाह में जरूर दें। जैसे-स्कूटर, आभूषण, फर्नीचर, वस्त्र, नकद धन आदि। इसके अतिरिक्त कन्या पक्ष को बारात के भोजन, साज-सजावट एवं अतिथियों का स्वागत-सत्कार में व्यय वहन करना पड़ता है। कन्या पक्ष को त्यौहरों, विवाह और अन्य अवसरों पर विवाह के पश्चात् भी अपनी बेटी व ससुराल वालों को निरन्तर उपहार देने पड़ते है। इस प्रकार दहेज अब एक बहुत बड़ी बुराई बन गयी है, क्योंकि इसका आधार 'आर्थिक लाभ' है।

    भारत में वर्तमान में महिलाओं को 'दहेज न लाए जाने पर अपर्याप्त दहेज लाने' के कारण कई तरह की शारीरिक-मानसिक पीड़ायें झेलनी पड़ती है और कभी-कभी तो उनकी हत्या तक कर दी जाती है।

    दहेज हत्या व यातनाओं की प्रमुख विशेषताएँ

    डॉ. राम आहूजा ने 1989 में राजस्थान में दहेज के कारण हत्याओं के कुछ मामलों का अध्ययन कर निम्न तथ्यों को उजागर किया है-

    (i) दहेज के मामले में हत्या के अपराधी क्रूर एवं निरंकुश होते हैं तथा पीड़ित लड़की की हत्या हत्यारों के विघटित व्यक्तित्व व असामान्य होने का एक प्रमाण होती है।

    (ii) नव-वधू की हत्या करने से पहले उस पर कई तरह से अत्याचार किए जाते हैं, जो पीड़ित लड़की के जनक परिवार के सदस्यों के सामाजिक समायोजन का अस्त-व्यस्त प्रतिमान बताता है।

    (iii) दहेज के कारण जिन लड़कियों की हत्या की जाती है उनमें से लगभग सभी 20 से 26 वर्ष आयु-समूह की होती है, जिन्हें न केवल शारीरिक रूप से बल्कि सामाजिक एवं भावात्मक रूप से भी परिपक्व कहा जा सकता है।

    (iv) सत्ताधारी सास व असहयोगी पति वाले घरों में अत्याचार की दर बहुत होती है। 

    (v) निम्नवर्गीय और उच्चवर्गीय महिलाओं की अपेक्षा मध्यमवर्गीय महिलाओं पर दहेज सम्बन्धी अत्याचार बहुत बड़ी संख्या में होते हैं।

    महिलाओं का शोषण

    महिलाओं का शोषण तो परिवार में बाल्यावस्था से ही शुरू हो जाता है। भारतीय समाज में अनेक ऐसे परिवार हैं जहाँ लड़कियों को लड़की होने के कारण अच्छा कपड़ा, अच्छा खाना या शिक्षा प्राप्त नहीं होती है। उनसे घर का कामकाज कराया जाता है यहाँ तक कि शिक्षित परिवारों में भी लड़कियों को लड़कों से हीन दर्जे का समझा जाता है। जब ये लड़कियाँ समाज में कई क्षेत्रों में पहुँचती हैं तो ये शोषण का माध्यम बन जाती हैं। महिलाओं के शोषण के प्रमुख कारण हैं-पुरुष प्रधान संस्कृति, महिलाओं की आर्थिक निर्भरता (बेरोजगारी) तथा अशिक्षा। 

    शोषण के तरीके

    साधारणतया महिलाओं का शोषण निम्नलिखित पाँच तरीकों से किया जाता है-

    (1) शारीरिक शोषण- कामकाजी महिलाओं को भारत में अपने परिवार और कार्य के स्थान के मध्य अपने को समायोजित करना पड़ता है। इसके अन्तर्गत ऐसी महिलाओं को असंख्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन्हें उनके शारीरिक शोषण के रूप में देखा जा सकता है-

    • उसे अपने घर के जीवन का समायोजन दफ्तर की दिनचर्या से करना पड़ता है और घर के कामकाज को परम्परागत दिनचर्या से अलग बिन्दुओं पर व्यवस्थित करना होता है यद्यपि ये महिलाएँ अपनी आय अधिकतर परिवार का जीवन-स्तर ऊँचा उठाने में खर्च करती हैं, तथापि उन पर घमण्डी, लापरवाह और आत्म-केन्द्रित होने का इल्जाम लगाया जाता है इसका मुख्य कारण है- महिलाओं पर पुरुष का राज्य।
    • यद्यपि भारत में आज सामाजिक, आर्थिक और वैधानिक सुधारों के कारण जहाँ मध्यमवर्गीय स्त्री को कई प्रकार के सामाजिक पारिवारिक बंधनों से मुक्ति मिली हैं, वह अपने वर्जनाओं को लाँघने में सफल हुई है तथा उसने आर्थिक गतिविधियों में अपनी हिस्सेदारी प्रत्यक्ष तौर पर बढ़ायी हैं, वहीं साथ ही साथ उसे घर के भीतर तथा बाहर से मिल रही कई चुनौतियाँ का सामना करना पड़ रहा है।

    (2) यौन शोषण (उत्पीड़न)- मीना गुप्ता ने अपने लेख 'मध्य वर्गीय स्त्री के सामने चुनौतियाँ' में लिखा है कि पुरुष वर्ग के चरित्र का यह विरोधाभास है कि वह घर में अपने परिवार की स्त्रियों के प्रति जितना सहानुभूतिपूर्ण और संरक्षक की भूमिका में होता है, उतना अन्य स्त्रियों के प्रति नहीं रहता। परिवार के बाहर की स्त्रियों के प्रति उसकी भूमिका संरक्षक की नहीं रहती, बल्कि कभी-कभी तो भक्षक की भी हो जाती है। इस कारण बाहर निकलने वाली स्त्रियों को कई तरह के यौन दुर्व्यवहारों का सामना करना पड़ता है। महिलाओं के उत्पीड़न के यौन शोषण को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-

    (अ) कामकाजी महिलाओं के साथ यौन शोषण-'साक्षी' संस्था ने यौन शोषण सम्बन्धी समस्या की प्रकृति तथा उसकी व्यापकता की पहचान के लिए औद्योगिक तथा शैक्षणिक क्षेत्रों में एक सर्वेक्षण कराया है। यह सर्वेक्षण प्रमुखतः दिल्ली के विद्यालय तथा उद्योग संस्थानों पर केन्द्रित है, फिर भी इसके निष्कर्ष सभी स्थानों पर लागू किये जा सकते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार यौन उत्पीड़न में निम्न बातें समाहित हैं-

    • अयाचित अशाब्दिक यौन व्यवहार,
    • अपमानजनक भद्दी भाषा,
    • वस्त्रों और शारीरिक अंगों आदि को लेकर अयाचित गंदी टिप्पड़ियां, , 
    • कॉलेज या कार्यालय से बाहर मिलने के लिए आयोजित आमन्त्रण,
    • परिसर में महिलाओं के प्रति प्रतिकूल वातावरण। 

    यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाएँ अश्लील टिप्पणियाँ, छींटाकशी, गंदी इशारेबाजी जैसे अपमानजनक यौन-व्यवहार के बारे में भी कह नहीं पाती हैं, क्योंकि उनके मन में यह डर बना रहता है कि उनकी बातों पर भरोसा नहीं किया जायेगा क्योंकि यौन दुर्व्यवहार की पुष्टि केवल प्रत्यक्षतः स्पष्ट और शारीरिक लक्षणों के आधार पर हो सकती है। अनेक मामलों में शारीरिक यौन उत्पीड़न इस तरह के शाब्दिक अश्लील व्यवहार के पश्चात् ही किया गया। शाब्दिक अश्लीलता को सहन करते रहने का कारण यह है कि स्त्री या पुरुष दोनों ही यह मानते हैं कि शाब्दिक अश्लीलता या शाब्दिक यौन व्यवहार सामाजिक तौर पर मान्य हैं और इसे यथावत् स्वीकार किया जा सकता है।

    (ब) कॉल गर्ल- महिलाओं पर अत्याचार करना उनका अपहरण कर उनसे वेश्यावृत्ति कराना आधुनिक समाज में एक व्यापार बन गया है। ये लोग सार्वजनिक स्थानों, शिक्षा संस्थाओं, छात्रावासों, अस्पतालों तथा सार्वजनिक उत्सवों में हिस्सा लेते हैं तथा लड़कियों को आकर्षित कर उन्हें विवाह का वचन देते हैं, कुछ लोग उनसे विवाह भी करते हैं तथा बाद में बाजार में बिकने के लिए छोड़ देते हैं। उनसे वेश्यावृत्ति करवाते हैं, जिससे वे मानसिक और शारीरिक शोषण का शिकार बन जाती हैं। भारत सरकार ने जब से वेश्यावृत्ति पर नियन्त्रण लगाने के लिए अधिनियम पारित किया है, तब से कॉल गर्ल की संख्या बढ़ गयी है। कॉलगर्ल वेश्या व्यवसाय का ही एक हिस्सा है।

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