सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वर्णन कीजिये ?

सविनय अवज्ञा आन्दोलन की परिस्थितियाँ

भारत की तत्कालीन परिस्थितियों ने महात्मा गाँधी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने पर मजबूर किया था जिसका विवरण निम्न प्रकार है-

(1) ब्रिटेन में सामान्य निर्वाचन (General Election in England)

सन् 1929 ई. में ब्रिटेन में आम चुनाव हुए, जिसमें अनुदार दल की हार हुई। यद्यपि मजदूर दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। फिर भी मजदूर दल ने लिबरल पार्टी के सहयोग से रैम्जे मैक्डोनेल्ड के नेतृत्व में सरकार बनाई। इससे भारतीय लोगों को कुछ आशाएँ जागीं।

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(2) पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव (Complete Independence Resolution) 

महात्मा गाँधी को ब्रिटिश सरकार की चाल का पता चल गया। उधर पण्डित जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस पूर्ण स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने में लगे हुए थे। काँग्रेस का लाहौर में अधिवेशन, उसमें काँग्रेस ने पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पास किया।

(3) लार्ड इरविन की घोषणा (Declaration of Lord Irvin)

ब्रिटेन से लौटकर लार्ड इरविन ने घोषणा की कि "मुझे सम्राट की सरकार की ओर से यह घोषित करने का अधिकार मिला है कि मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि ब्रिटिश सरकार की राय में अगस्त, 1917 ई. की घोषणा में यही बात निहित है कि भारत को अन्त में डोमिनियन स्टेट्स प्राप्त होगा।"

(4) सरकार की दोहरी चाल (Dual Trick of the Government)

मजदूर दल पूर्ण बहुमत में न था। इसलिए उसने अपनी सरकार को बचाने में दोहरी चाल चली। एक तरफ सरकार ने संसद में यह घोषणा कि भारत के प्रति सामान्य की नीति में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है तथा दूसरी ओर यह घोषणा की कि भारत में अब नये युग का प्रारम्भ होगा।

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(5) गाँधी इरविन भेंट (Gandhi Irvin Meeting)

उपर्युक्त बात को स्पष्ट करने के लिए गाँधी ने 23 दिसम्बर, 1929 को लार्ड इरविन से भेंट की। महात्मा गाँधी ने स्पष्टीकरण करना चाहा कि, "गोलमेज सम्मेलन डोमिनियन की स्थिति स्पष्ट करने के लिए बुलाया जा रहा है अथवा इसका संविधान बनाने के लिए।" इस सम्बन्ध में वायसराय कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं दे पाये थे।

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(6) स्वतन्त्रता दिवस घोषित करना (Declaration of Independence Day)

लाहौर अधिवेशन में ही काँग्रेस ने यह भी निश्चित किया कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस मनाया जायेगा। स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए एक प्रतिज्ञा-पत्र तैयार किया गया जिसे 26 जनवरी को पढ़ा जाना निश्चित हुआ। इस प्रतिज्ञा-पत्र में स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए भारतीय जनता के 'जन्म सिद्ध अधिकार' की बात कही गयी थी।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शर्तें

उपर्युक्त परिस्थितियों के कारण काँग्रेस की कार्यकारिणी समिति की बैठक साबरमती में हुई जिसमें महात्मा गाँधी तथा अन्य व्यक्तियों को सविनय अवज्ञा आन्दोलन करने का अधिकार दे दिया। 

अतः सरकार के सामने महात्मा गांधी ने निम्न शर्तें रखी थीं-

1. सम्पूर्ण देश में मदिरा निषेध होनी चाहिए।

2. एक शिलिंग चार पेंस विनिमय दर पर दी जाये।

3. नमक कर समाप्त कर दिया जाये।

4. नौकरियों में आधा वेतन कर दिया जाये।

5. सेना के खर्च में प्रारम्भ से ही 50% की कमी होनी चाहिए।

6. हत्या के अभियोग में सजा पाये जाने वाले कैदियों को छोड़कर राजनैतिक कैदी रिहा कर दिये जायें।

7. जनता को आत्म रक्षार्थ हथियार रखने के परवाने दिये जायें।

8. विदेशी सामान के आयात पर निषेध कर लागू किया जाये।

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सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम

महात्मा गांधी ने इस आन्दोलन को शुरू करने के सम्बन्ध में लार्ड इरविन को अवगत करा दिया था किन्तु लार्ड इरविन ने इस तरफ कुछ ध्यान नहीं दिया। लार्ड इरविन की तरफ से जब कोई उत्तर नहीं मिला तो महात्मा गाँधी ने अपने 79 सदस्यों के साथ मार्च 1930 को दण्डी के लिए प्रस्थान किया और समुद्र तट पर नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा। 5 मई को इस अपराध के लिए महात्मा गाँधी को गिरफ्तार कर नर्वदा जेल भेज दिया था। 

\अतः गाँधी ने गिरफ्तारी से पहले अपने अनुयायियों के लिए निम्न कार्यक्रम तैयार किया था-

1. बहिनों को शराब, अफीम और विदेशी कपड़ों की दुकान पर धरना देना चाहिए।

2. सरकार को कोई भी कर नहीं देना चाहिए।

3. हिन्दुओं को छुआछूत से ऊपर उठाना चाहिए।

4. प्रत्येक परिवार के वृद्ध और नवयुवक तकली से सूत कातें।

5. प्रत्येक परिवार के लोग विदेशी कपड़ों को जला दें।

6. समस्त सरकारी कर्मचारियों को त्यागपत्र दे देना चाहिए।

7. सरकारी स्कूलों, कॉलेजों को विद्यार्थी त्याग दें।

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सविनय अवज्ञा आन्दोलन की प्रगति

महात्मा गाँधी के इस आन्दोलन का राष्ट्रवादी मुसलमानों को छोड़कर शेष मुसलमानों ने विरोध किया। गाँधीजी के इस आन्दोलन के समय मि. जिन्ना का विचार था कि "हम मि. गाँधी के साथ शामिल होने से इन्कार करते हैं, क्योंकि उनका आन्दोलन भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता के लिए नहीं बल्कि भारत के 70 करोड़ भारतीयों में से मुसलमानों को हिन्दू महासभा के आश्रित बना देने के लिए है।" 

इस आन्दोलन ने निम्न रूप से प्रगति की-

1. गाँधी की गिरफ्तारी से सम्पूर्ण देश में खलबली मच गई।

2. गाँधी की गिरफ्तारी पर विदेशों में भी रोष उत्पन्न हुआ।

3. शोलापुर में पुलिस को गोली चलानी पड़ी।

4. सत्याग्राहियों ने जेलें भर दीं।

5. विभिन्न स्थानों पर हिंसक घटनाएँ हुईं।

6. काँग्रेस को गैर-सरकारी संस्था घोषित किया गया।

7. काँग्रेस नेताओं को बन्दी बना लिया गया।

8. गोलमेज की व्यवस्था लन्दन में की गई, लेकिन इस कॉन्फ्रेन्स का कोई लाभ नहीं मिला।

9. ब्रिटिश प्रधानमन्त्री ने हिन्दुओं, मुसलमानों तथा सिखों को अलग-अलग अधिकार देने का निर्णय किया।

10. गाँधीजी के अनशन करने पर हरिजनों को भी हिन्दुओं के बराबर मान लिया गया।

11. नवम्बर, 1933 में तृतीय गोलमेज सम्मेलन हुआ, जिसने पूर्व की दो परिषदों के निर्णयों की पुष्टि कर दीं। 

सविनय अवज्ञा आन्दोलन की समाप्ति

मार्च 1934 ई. तक यह आन्दोलन असफल हो गया। इस आन्दोलन के शिथिल पड़ जाने का कारण सरकार का दमन चक्र था। 18 मार्च, 1933 को महात्मा गाँधी जेल से मुक्त कर दिये गये। महात्मा गाँधी की सलाह के अनुसार इस आन्दोलन को 6 सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया गया। काँग्रेस ने यह निर्णय लिया कि अब जन-आन्दोलन न होकर व्यक्तिगत आन्दोलन हो। जब यह पूर्ण समाप्त हो गया तब गाँधी भी काँग्रेस के कार्यक्रमों से अलग हो गये। गाँधीजी ने अछूतोद्धार का कार्य प्रारम्भ किया। केन्द्रीय व्यवस्थापिका के निर्वाचन में काँग्रेस ने भाग लिया, जिसमें काँग्रेस को भारी सफलता प्राप्त हुई।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का मूल्यांकन

भारत के प्रमुख आन्दोलनों में यह आन्दोलन महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस आन्दोलन का महत्व निम्नलिखित रूपों में व्यक्त किया जा सकता है-

1. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के द्वारा भारत में समाजवादी सुधारों की नींव पड़ी।

2. इस आन्दोलन के द्वारा भारतीयों में अधिकाधिक राष्ट्रीय भावना जाग्रत हुई।

3. सविनय अवज्ञा आन्दोलन द्वारा हरिजनों व हिन्दुओं में सामंजस्य उत्पन्न हो गया।

4. इस आन्दोलन के द्वारा ब्रिटिश सरकार की नींव भी हिल गई।

5. इस आन्दोलन के द्वारा ब्रिटिश सरकार को भारत में प्रान्तीय स्थायित्व शासन स्थापित करने का निर्णय लेना पड़ा।

6. इस आन्दोलन के आधार पर निर्मित 1935 के एक प्रस्ताव द्वारा भारतीय संविधान की रूपरेखा बनायी गई।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन के सम्बन्ध में गाँधीजी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि, "मैंने रोटी माँगी थी और मिला पत्थर। मेरे इस प्रोग्राम के फलस्वरूप न्याय विधान व शान्ति व्यवस्था का भंग होना स्वाभाविक है। कानून की अनेक पुस्तकें हैं, परन्तु भारतीयों ने अभी तक केवल एक ही कानून जाना है, वह है- अंग्रेजी शासकों की इच्छा। राष्ट्र केवल एक प्रकार की सार्वजनिक शान्ति व्यवस्था से परिचित है और वह है सार्वजनिक कारागृह की शान्ति। समस्त भारत एक बड़ा कारागृह बन गया है। मैं इस कानून को नहीं मानता और इस अनिवार्य शान्ति की दुखद स्थिति को जो देश को स्वतन्त्र अभिव्यक्ति का अवसर न देकर उसका गला घोंट रही है। भंग करना धार्मिक कर्तव्य समझता हूँ।"

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का भारत के ऐतिहासिक आन्दोलनों में विशेष महत्व है।

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