संघर्ष क्या है? (What is Conflict)
प्रतिस्पर्द्धा क्रमशः प्रतिद्वन्द्विता (Rivalry) बन जाती है औरा प्रतिद्वन्द्विता से अन्त में संघर्ष उत्पन्न होता है। इसलिए किंसले डेविस ने लिखा है, "यह (प्रतिस्पर्द्धा) कलह का एक परिवर्तित रूप है। " गिलन और गिलिन के अनुसार, "संघर्ष वह सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति का समूह अपने विरोधी को हिंसा के भय द्वारा प्रत्यक्ष आह्वान देकर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं।" इस तरह संघर्ष में हिंसा की भावना होती है। संघर्ष में बदले की भावना भी होती है। ग्रीन के शब्दों में, "संघर्ष दूसरों या दूसरों के संकल्पों के विरोध, प्रतिकार या बलपूर्वक रोकने के लिए जान-बूझकर किये गये प्रयत्न को कहते हैं।"
संघर्ष की प्रकृति (Nature of Conflict)
संघर्ष सहयोग की विरोधी प्रक्रिया है। इसमें व्यक्ति या समूह एक दूसरे के कार्यों में अड़चन डालने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी तो वे एक दूसरे को बिल्कुल ही नष्ट करने का निश्चय कर लेते हैं और हिंसात्मक उपायों से काम लेते हैं परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि संघर्ष में हिंसात्मक उपायों से ही काम लिया जाये।
कभी-कभी वैधानिक अभवा शान्तिपूर्ण उपायों से भी संघर्ष किया जाता है। जैसे- अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध गाँधी जी के नेतृत्व में भारत ने अहिंसात्मक लड़ाई लड़ी और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों से संघर्ष में हिंसात्मक उपायों को अपनाया। चुनाव में परस्पर विरोधी उम्मीदवार बहुधा वैधानिक उपायों से काम लेते हैं परन्तु कभी-कभी गुण्डागर्दी और तोड़फोड़ पर उतारू हो जाते हैं।
संघर्ष परस्पर विरोधी लक्ष्यों के कारण होते हैं। उदाहरण के लिए भारतीयों का लक्ष्य भारत को समृद्ध बनाना है जबकि अंग्रेज देश का शोषण कर रहे थे। अतः सघर्ष होना स्वाभाविक था। संघर्ष परस्पर विरोधी नीतियों के कारण भी होता है। भारतवर्ष में विभिन्न राजनीति दलों में आपस में संघर्ष है क्योंकि वे देश की उन्नति के लिए एक दूसरे के उपायों को गलत समझते हैं। विभिन्न दलों के स्वार्थ परस्पर प्रतिकूल हैं क्योंकि सभी राजनीतिक दल सत्ता हथियाना चाहते हैं।
संक्षेप में, संघर्ष की प्रकृति के बारे में निम्न विशेषताएँ महत्वपूर्ण हैं-
(1) संघर्ष की प्रक्रिया सार्वभौम है
मानव समाज में परिवार से लेकर सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संघर्ष दिखाई पड़ता है।
(2) संघर्ष की प्रक्रिया में निरन्तरता नहीं होती
संघर्ष अविराम नहीं होता बल्कि रुक-रुककर चलता है क्योंकि उसके लिए शक्ति इकट्ठी करनी पड़ती है।
(3) संघर्ष एक वैयक्तिक प्रक्रिया है
संघर्ष लक्ष्य के लिए नहीं बल्कि प्रतिद्वन्द्वी को पछाड़ने के लिए किया जाता है। उसमें प्रतिद्वन्द्वी को हानि या नाश ही असली उद्देश्य है।
(4) संघर्ष एक चेतन प्रक्रिया है
संघर्षरत प्रतिद्वन्द्वी समझ-बूझ कर एक दूसरे को हराने की कोशिश करते रहते हैं। पार्क और बर्गेस के अनुसार, "संघर्ष बहुत तेज उद्वेग और सबसे अधिक शक्तिशाली उत्तेजनाओं को उत्पन्न करता है और ध्यान तथा प्रयत्न का सबसे अधिक केन्द्रीकरण करता है।"
संघर्ष के प्रकार (Types of Conflict)
संघर्ष एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है। मोटे तौर पर उसके निम्न प्रकार हैं-
(1) जातीय संघर्ष
भारत में ऊँच-नीच या सम्प्रदायवादी भावना के कारण विभिन्न जातियों में बैर भाव उत्पन्न हो जाता है और जातिगत संघर्ष चलता है।
(2) व्यक्तिगत संघर्ष
इसमें परस्पर विरोधी लक्ष्यों वाले व्यक्तियों में संघर्ष होता है। जैसे- यदि दो प्रोफेसर एक कॉलेज में प्रिंसिपल का पद पाना चाहते हैं, तो उनमें संघर्ष अवश्यम्भावी है।
(3) वर्गगत संघर्ष
परस्पर प्रतिकूल स्वार्थों वाले वर्गों में संघर्ष होता है। उदाहरण के लिए जैसा कि मार्क्स ने ठीक ही कहा है पूँजीपति का सर्वहारा वर्ग से संघर्ष अनिवार्य है।
(4) अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष
कभी-कभी कुछ राष्ट्र अन्य राष्ट्रों के हितों का ख्याल न करके उन्हें हानि पहुंचाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं, ऐसी स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष होता है, जो कि कभी-कभी काफी भयंकर रूप धारण कर लेता है। पिछले दिनों विश्व महायुद्ध इस प्रकार के संघर्ष के उदाहरण हैं।
(5) प्रजातीय संघर्ष
कभी-कभी कुछ प्रजातियाँ दूसरों पर शासन करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझने लगती हैं। अतः उनका औरों से संघर्ष होता है। जैसे- नार्डिकवादी विचारधाराओं के कारण जर्मनी में जर्मन और यहूदियों से संघर्ष हुआ।
संघर्ष के उपर्युक्त प्रकारों के अलावा राजनीतिक क्षेत्र में स्वार्थ सिद्धि के लिए विभिन्न व्यक्तियों या दलों में राजनीतिक संघर्ष होता है।
आर्थिक क्षेत्र में मिल मालिकों और मजदूरों तथा मिल मालिकों और मिल मालिकों में संघर्ष होता है। इस प्रकार एक ही व्यवसाय करने वाले तथा भिन्न-भिन्न व्यवसाय करने वालों में भी संघर्ष होता है।