सामाजिक मानवशास्त्र का अर्थ
मानवशास्त्र का एक भाग मानव संस्कृति के विकास और विविधता का अध्ययन करता है। संस्कृति एक व्यापक अवधारणा है जिसमें ज्ञान, विज्ञान प्रौद्योगिकी, भाषा, कला, साहित्य, धर्म, विचार, प्रथा और परम्परा, आविष्कार, संस्थाएँ और सामाजिक संगठन इत्यादि सभी कुछ शामिल हैं। सांस्कृतिक मानवशास्त्र इन सबका अध्ययन करता है। अमरीका में मानवशास्त्र की इस शाखा को सांस्कृतिक नृतत्व की संज्ञा दी गई है और इसमें मानव के सामाजिक विकास का अध्ययन भी स्वाभाविक रूप से शामिल हो गया है। इंग्लैण्ड में रेडक्लिफ ब्राउन ने इस बात पर बल दिया कि मानव के सामाजिक विकास को समझने के लिए सामाजिक संरचना और सामाजिक संगठन का अध्ययन महत्वपूर्ण है। संस्कृति के अध्ययन में भी अन्तत: इन्हीं तत्वों का अध्ययन होता है।
सामाजिक मानवशास्त्र की परिभाषा
विभिन्न विद्वानों ने सामाजिक मानवशास्त्र को निम्न प्रकार परिभाषित किया है-
इवांस प्रिचर्ड के अनुसार-"सामाजिक मानवशास्त्र को समाजशास्त्रीय अध्ययनों की एक शाखा माना जा सकता है, वह शाखा जो मुख्य रूप से आदिम समाजों का अध्ययन करती है।"
रेडक्लिफ ब्राउन के अनुसार- "सामाजिक मानवशास्त्र समाजशास्त्र की वह शाखा है जो आदिम या निरक्षर समाजों का अध्ययन करती है।"
नैडल के अनुसार-"सामाजिक मानवशास्त्र इतिहास विहीन समाजों और अनजानी प्रकृति वाली संस्कृतियों का अध्ययन करता है।"
लेवी स्ट्रास के अनुसार-"सामाजिक मानवशास्त्र उन संस्थाओं, सामाजिक सम्बन्धों, व्यवहारों, मूल्यों, परम्पराओं आदि का अध्ययन व विश्लेषण करता है जो कि वास्तविक निरीक्षण परीक्षण द्वारा किया जाता है।"
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सामाजिक मानवशास्त्र का विषय-क्षेत्र
उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक मानवशास्त्र सम्पूर्ण सांस्कृतिक व्यवस्था का नहीं बल्कि संस्कृति के उस भाग का अध्ययन है जिसे हम संस्थागत व्यवस्था कहते है। इस दृष्टि से सामाजिक मानवशास्त्र मुख्य रूप से सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन करता है। सामाजिक संस्थाएँ आदिम और प्राचीन समाजों में भी हैं और आधुनिक समाजों में भी।
इस आधार पर कुछ विद्वानों के विचार से सामाजिक मानवशास्त्र सभी कालों और सभी क्षेत्रों के सामाजिक जीवन का अध्ययन करता है, परन्तु कुछ विद्वानों के विचार से सामाजिक मानवशास्त्र का विषय-क्षेत्र केवल उन समाजों के अध्ययन तक सीमित है जो सभ्यता से दूर और अशिक्षित हैं तथा समकालीन होते हुए भी अभी आदिम जीवन प्रणाली को अपनाये हुए हैं। यह विज्ञान इन छोटे समाजों के समग्र जीवन का अध्ययन करता है।
इवांस प्रिचर्ड ने सामाजिक मानवशास्त्र के विषय-क्षेत्र में निम्नलिखित बातों का अध्ययन शामिल किया है-
1. सामाजिक मानवशास्त्र का विषय-क्षेत्र मुख्य रूप से आदिम समाजों की संस्थाओं और सांस्कृतिक जीवन से सम्बन्धित है। यह विज्ञान समाजों की भाषा, कानून, धर्म, आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक संस्थाओं का अध्ययन करता है और सभ्य समाजों के साथ आदिम जीवन पद्धतियों की तुलना करता है।
2. सामाजिक मानवशास्त्र समाजों के संस्थागत व्यवहारों और सम्बन्धों का अध्ययन करता है।
3. सामाजिक मानवशास्त्र सम्पूर्ण भूमण्डल पर बसने वाले प्रत्येक समाज के सामाजिक जीवन के प्रत्येक पक्ष को अपने अध्ययन-क्षेत्र में शामिल करता है।
4. सामाजिक मानवशास्त्र का केन्द्रीय विषय 'समाज' है, 'संस्कृति' नहीं। यद्यपि समाज और संस्कृति एक-दूसरे से पृथक् नहीं किये जा सकते, किन्तु सामाजिक मानवशास्त्र प्रमुख रूप से सामाजिक सम्बन्धों और सामाजिक संरचना के विभिन्न तत्वों के अध्ययन से सम्बन्धित है। सामाजिक संरचना के अध्ययन में मानवीय सम्बन्धों के अतिरिक्त समूहों और संस्थाओं का अध्ययन विशेष महत्व रखता है।
5. सामाजिक मानवशास्त्र सामाजिक जीवन की समस्त घटनाओं का अध्ययन नहीं है। यह तो केवल उन्हीं घटनाओं का अध्ययन है जो कि सामाजिक जीवन को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण हैं।
संक्षेप में सामाजिक मानवशास्त्र का विषय-क्षेत्र निम्नलिखित है-
- प्रत्येक स्थान के प्रत्येक समाज के सामाजिक जीवन के प्रत्येक पक्ष का वर्णन तथा विश्लेषण और आधुनिक समाज़ों के जीवन से उनकी तुलना करना।
- मनुष्यों के संस्थागत सामाजिक व्यवहार और सम्बन्धों का अध्ययन करना।
- यह विज्ञान संस्कृति के उस भाग का अध्ययन करता है जो मनुष्यों के सामाजिक सम्बन्धों और व्यवहारों को जन्म देता है।
- सामाजिक अन्त: क्रिया के फलस्वरूप जो नैतिक आदर्श और सामाजिक मूल्य विकसित हो जाते हैं, वे भी सामाजिक मानवशास्त्र के अध्ययन के विषय हैं।
5. डॉ. दुबे के अनुसार सामाजिक मानवशास्त्र का एक मनोवैज्ञानिक पक्ष भी है। यह सामाजिक व्यवहारों के मूल स्रोतों और समाज में व्यक्ति की स्थिति निश्चित करने वाले सांस्कृतिक तत्वों का अध्ययन भी करता है।
6. सामाजिक मानवशास्त्र कुछ ऐसी सांस्कृतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन भी करता है जिनके द्वारा सामाजिक सम्बन्ध, सामाजिक संरचना और सामाजिक व्यवहार प्रभावित होते हैं। सांस्कृतिक आविष्कार, प्रसार, संस्कृतिग्रहण और समाजीकरण, अनुकूलन, संस्कृतिकरण- परसंस्कृतिग्रहण, हिन्दूकरण, ईसाईकरण, जनजातिकरण, आधुनिकीकरण इत्यादि की प्रक्रियाओं का अध्ययन भी सामाजिक मानवशास्त्र करता है।
7. सांस्कृतिक सम्पर्क के सामाजिक परिणामों का अध्ययन भी सामाजिक मानवशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। आधुनिक संस्कृतियों और सभ्य समाजों के साथ सम्पर्क होने से आदिम समाजों के सामाजिक जीवन में कौन-कौन से अच्छे-बुरे प्रभाव हो रहे हैं, इसकी व्याख्या करना भी सामाजिक मानवशास्त्र का काम है।
आदिम समाजों के अध्ययन के कारण
सामाजिक मानवशास्त्र में आदिम समाजों का अध्ययन निम्नलिखित कारणों से किया जाता है-
1. ऐतिहासिक संयोग
मजूमदार और मदान ने आदिम समाजों के अध्ययन का प्रारम्भिक कारण ऐतिहासिक संयोग बताया है। सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दियों में यूरोप के प्रगतिशील देशों ने खोज की, जिज्ञासा और व्यापारिक आवश्यकताओं के कारण संसार के विभिन्न भागों में पहुँचना प्रारम्भ किया।
2. विकासवाद का प्रभाव
डार्विन के द्वारा जीवन की विकासवादी व्याख्या का प्रभाव प्रारम्भिक समाज वैज्ञानिकों पर भी पड़ा। स्पेन्सर ने समाज के विकास की व्याख्या भी डार्विन के सिद्धान्त के अनुसार करते हुए बताया कि मानव समाज का विकास भी सरलता से जटिलता की ओर हुआ है।
3. अवधारणात्मक सामान्यीकरण में उपयोगी
आदिम समाजों के अध्ययन का एक कारण यह भी है कि यदि हम मानव समाज के विषय में कोई सामान्य निष्कर्ष निकालना चाहें और उसको स्पष्ट करने वाली किसी सामान्य अवधारणा का विकास करना चाहें तो यह आवश्यक है कि सभी प्रकार के समाजों का अध्ययन किया जाए।
4. आधुनिक समाजों के अध्ययन में उपयोगी
क्लखोन का कथन है कि, "आदिम समाजों का अध्ययन हमें स्वयं को समझने में सक्षम बनाता है।" वास्तव में सरल और संगठित आदिम समाजों का अध्ययन करने से जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसके आधार पर हम अधिक जटिल और आधुनिक सभ्य समाजों का अध्ययन अधिक आसानी से कर सकते हैं।
5. पद्धतिशास्त्रीय कारण
आदिम समाजों के अध्ययन का एक अन्य प्रमुख कारण पद्धतिशास्त्रीय सुविधा है। आदिम समाजों का निवास छोटे भौगोलिक क्षेत्र में होता है।
6. लघु के माध्यम से वृहत् का अध्ययन
डॉ. दुबे के विचार से, "प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञानों का यह एक अलिखित नियम है कि जहाँ तक सम्भव हो, अनुसन्धान सरल से प्रारम्भ किया जाकर क्रमश: अधिक जटिल संस्थाओं और समस्याओं की ओर उन्मुख किया जाये।" आदिम समाजों की संस्कृतियाँ सरल, सुगठित, स्थिर और निश्चित होती हैं।
7. आदिम समाजों का ऐतिहासिक महत्व
आदिम समाज अध्ययन की दृष्टि से स्वयं मैं महत्वपूर्ण हैं। वे मानव-समाज की प्रारम्भिक इकाइयाँ हैं जिनमें आज का सभ्य और आधुनिक मानव अपने मूल रूप को देख सकता है, अपने अतीत के दर्शन कर सकता है।