जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ
सामान्य अर्थों में जनजाति वह समूह है जो पूर्व सभ्यता काल के जीवन प्रतिमानों से सम्बन्धित है। जनजाति के सदस्य अशिक्षित और तथाकथित सभ्यता से दूर हैं और प्राचीन आर्थिक और सामाजिक जीवन के प्रतिनिधि कहे जा सकते हैं। विभिन्न जंगलों, पर्वतों, पठारों आदि निर्जन क्षेत्रों में निवास करने के कारण और विशिष्ट सामाजिक संगठन और सांस्कृतिक जीवन के विकास के कारण जनजाति में अन्य सभ्य समाजों की तुलना में अनेकों भिन्नताएँ पाई जाती है।
अतः विभिन्न विद्वानों ने जनजाति को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है-
बोअस के अनुसार- "जनजाति से हमारा तात्पर्य आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र, सामान्य भाषा बोलने वाले तथा बाहर वालों से अपनी रक्षा करने के लिए संगठित व्यक्तियों के समूह से है।"
इंडियन गजेटियर के अनुसार-"जनजाति कई परिवारों या परिवार-समूहों का संकलन है जिसका एक सामान्य नाम होता है, जो एक सामान्य बोली बोलता है, जो एक निश्चित भूभाग पर रहने का दावा करता है और जो सदैव अन्तर्विवाह नहीं करता चाहे प्रारम्भ में करता रहा हो।"
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जनजाति की विशेषताएँ
जनजाति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. प्रत्येक जनजाति एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करती है। उसका सम्पूर्ण सामाजिक और आर्थिक जीवन उस सीमित भूखण्ड में ही व्यतीत होता है।
2. प्रत्येक जनजाति एक प्रकार से रक्त सम्बन्धों के आधार पर एक विशिष्ट प्रजाति समूह का निर्माण करती है।
3. प्रत्येक जनजाति की एक पृथक सामान्य भाषा होती है।
4. प्रत्येक जनजाति की एक विशिष्ट संस्कृति होती है और वह अपने सांस्कृतिक प्रतिमान के प्रति विशेष रूप से जागरूक रहती है। सम्पूर्ण सामाजिक जीवन धर्म, रूढ़ि और परम्परा के द्वारा निर्देशित और संचालित होता है।
5. जनजाति प्रायः अन्तर्विवाह समूह होता है, यद्यपि यह उसकी अनिवार्य विशेषता नहीं है।
6. जनजाति अधिकतर एकान्त भौगोलिक क्षेत्र में रहती है, जैसे घने जंगल, पर्वतीय प्रदेश, पठार और समुद्रतट इत्यादि ।
7. निषेध (Taboo) जनजाति की विशिष्टता है। प्रत्येक जनजाति वैवाहिक सम्बन्धों, व्यावसायिक जीवन तथा अन्य कार्यों में निषेधों का अत्यन्त कठोरता से पालन करती है।
8. एकान्त जीवन, सामाजिक पृथकता और निषेध प्रधान संस्कृति जनजाति के दृष्टिकोण को अत्यन्त संकुचित कर देते हैं। इस सीमित जीवन दृष्टि के फलस्वरूप वह प्राय: प्रत्येक बाहरी तत्व से बचने का प्रयत्न करती है और अपनी प्रचलित समाज-रचना और अन्त: क्रिया सम्बन्धी व्यवस्था में परिवर्तन को अनुचित समझती है।
9. जनजाति में टोटम एक अत्यन्त पवित्र दैवी शक्ति के रूप में मान्य होता है। यह एक पौधा, पशु, मनुष्य या कोई अन्य वस्तु भी हो सकती है। टोटम के प्रति जनजाति के सदस्यों के मन में गहन आस्था और आदर के भाव होते हैं।
10. प्रत्येक जनजाति एक राजनैतिक इकाई भी होती है। जनजातीय पंचायत या परिषद् अपने सदस्यों के व्यवहार पर नियंत्रण रखती है। इस परिषद् में प्राय: बड़े-बूढ़ों का शासन होता है और यह परिषद् एक प्रशासनिक संस्था के रूप में दण्ड और न्याय की व्यवस्था करती है।
11. भौगोलिक पृथकता, रूढ़िवादी संस्कृति, सामान्य भाषा, संकुचित जीवन दृष्टि तथा राजनैतिक, एकात्मकता आदि के कारण प्रत्येक जनजाति में अत्यन्त सुदृढ़ सामाजिक एकता पाई जाती है।
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भारतीय सन्दर्भ में जनजाति
आधुनिक समय में भारतीय जनता को अनेक विभिन्नताओं के बावजूद मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है- पहली, उन्नत वर्ग की जनता जो सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक दृष्टि से सर्वसम्पन्न है और इनकी कोई विशेष समस्या नहीं हैं। दूसरी, निम्न वर्ग की जनता है और इस निम्न वर्ग की जनता को फिर दो भागों में बाँटा जा सकता है। इस निम्न वर्ग की जनता में एक ऐसा निम्न वर्ग है जो कार्य नहीं करता यदि कार्य करे तो उसके मार्ग में कोई बाधा नहीं है वरन् वह पर्याप्त उन्नति कर सकता है और सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक आदि क्षेत्रों में ऊँची से ऊँची स्थिति पा सकता है निम्न वर्ग की जनता में दूसरा वर्ग जन्म से निम्न है, जन्म उसके मार्ग में बाधक है और उसकी अनेक निर्योग्यताएँ हैं।
जन्म से निम्न वर्ग की जनता को पुनः दो भागों में बाँटा जा सकता है- जन्म से निम्न एक ऐसा वर्ग जो हमारी तरह मौहल्ले व गाँवों में रहता आया है लेकिन उसके साथ ठीक से व्यवहार नहीं हुआ है; उसका शोषण होता रहा है, उसे मन्दिर प्रवेश की अनुमति नहीं थी और उसे 'हरिजन' कहा गया है। जन्म से निम्न एक दूसरा वर्ग सभ्यता से दूर जंगलों, पहाड़ियों, घटियों, तराइयों आदि क्षेत्रों में आदिम अवस्था में रहता है। इसी वर्ग को जनजाति, आदिवासी, वनवासी आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। जनजाति को सभी विशेषताएँ भारत में बसने वाले आदिम समाजों में पाई जाती हैं।
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अनादिकाल से इस देश में इन आदिम समूहों का निवास रहा है। हजारों की संख्या में भारत की जनजातियाँ देश में उत्तरी छोर से लेकर कन्याकुमारी तक पर्वतमालाओं, घने जंगलों, घाटियों और समुद्री किनारों आदि के एकान्त प्रदेशों में निवास करती हैं। भिन्न-भिन्न जनजातियाँ भिन्न-भिन्न निश्चित क्षेत्रों में फैली हुई हैं। प्रत्येक जनजाति की अपनी पृथक भाषा है और अधिकांश जनजातियाँ अन्तर्विवाह समूह हैं। यहाँ तक कि अपने समूह में विवाह-पूर्व यौन सम्बन्धों में शिथिलता होते हुए भी अधिकांश जनजातियाँ बाहरी व्यक्तियों से यौन सम्बन्धों का निषेध करती है। भारतीय जनजातियों में विभिन्न प्रकार के प्रजातीय लक्षण पाये जाते हैं। प्रत्येक जनजाति के सदस्यों में समान प्रजातीय तत्व पाये जाते हैं।
यद्यपि भारत को अधिकांश जनजातियों में कुछ समान्य सांस्कृतिक तत्व पाये जाते हैं, तथापि प्रत्येक जनजाति अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक व्यवस्था के प्रति जागरूक है संकुचित जीवन दृष्टि और रूढ़िवादिता भी इन जनजातियों का विशेष संरक्षण है। जनजातीय पंचायतों का प्रभुत्व भी जनजाति में पाया जाता है, यद्यपि राजनैतिक औपचारिकता की दृष्टि से भारत की जनजातियों पर सरकार के कानून लागू होते हैं।
भारतीय जनजातियों में नातेदारी व्यवस्था का विशेष महत्व है। यह संस्था सामूहिक संगठन, एकता और नियंत्रण की दृष्टि से प्रकार्यात्मक भूमिका अदा करती है। लोकतांत्रिक पद्धति के विकास और सांस्कृतिक सम्पर्क के कारण भारत की अनेक जनजातियों में परिवर्तन के चिह्न दिखाई देने लगे हैं, किन्तु अब भी जनजाति की प्रचलित अवधारणा की अधिकांश विशेषताएँ उन पर लागू होती हैं।
मजूमदार और मदान ने भारतीय जनजातियों की कुछ अपनी पृथक विशिष्टताओं का उल्लेख किया है। युवागृह की संस्था, लड़कों और लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा का अभाव, जन्म, विवाह और मृत्यु सम्बन्धी विशिष्ट प्रथाएँ, हिन्दुओं, मुसलमानों और ईसाइयों के अलग नैतिक विधान, धार्मिक विश्वासों और कर्मकाण्डों की विशिष्टताएँ आदि ऐसे ही लक्षण हैं जिनके द्वारा हम भारतीय जनजातियों को शेष भारतीय समाज से पृथक देख सकते हैं।
भारतीय जनजातियों के विषय में यह कहना आवश्यक है कि वे बाहरी सम्पर्क से बिल्कुल अछूती नहीं रही हैं। प्रारम्भ से ही उनका सम्पर्क सभ्य समूहों से होता रहा है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने वनवास के समय भारत की अधिकांश जनजातियों के साथ सम्बन्ध स्थापित किया था। निषाद और वानर जनजातियों के द्वारा तो उन्हें विशेष सहायता दी गई। भिलनी (भील स्त्री) की भेंट भी रामायण में काफी प्रसिद्ध है। अनेक वनवासियों के साथ मेल-जोल बढ़ाते हुए अन्ततः राम ने आदिवासियों की संगठित शक्ति के आधार पर लंकाधिपति रावण को परास्त किया था। महाराणा प्रताप ने भी भीलों और अन्य वनवासियों की सहायता के बल पर ही मुगल सम्राट अकबर से मेवाड़ की रक्षा की थी।
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