बुन्देलखण्ड के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल |

बुन्देलखण्ड के ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल

(1) अजयगढ़

मुख्यालय पन्ना से 35 किमी. दूर अजयगढ़ (जयपुर दुर्ग) केन नदी के किनारे है। पर्वत के दक्षिणी भाग में हिन्दू, बौद्ध और जैन मूर्तियाँ प्राप्त हैं। इसका प्राचीन नाम नन्दीपुर भी है। केदार पर्वत पर धरातल 860 फीट ऊँचा दुर्ग का घेरा तीन मील है। द्वार उत्तर तथा पूर्व की ओर है। इसका निर्माण या जीर्णोद्धार अजयपाल ने कराया। खजुराहो शैली के चार विहार उल्लेखनीय हैं। 

बुन्देलखण्ड के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल |

शान्तिनाथ की 12 फीट तथा नृत्यगणेश की अष्टभुजी मूर्ति दर्शनीय है। भूतेश्वर और परमालताल दुर्ग के उत्तर-पूर्व तथा दक्षिणी सिरे में हैं। दुर्ग में गंगा-यमुना ताल तथा अजयपाल का ताल भी है। किनारे पर काले पाषाण की चतुर्भुजी विष्णु की मूर्ति है। भगवान शान्तिनाथ की खड़गासन पर विराजमान प्रतिमा है। तारहौनी द्वार (दक्षिण-पूर्व) के निकट अष्टदेवी की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं तथा एक शिलालेख में राजाओं के नाम अंकित हैं। एक भव्य मान स्तम्भ भी बना है, इसमें सैकड़ों जैन मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। दुर्ग में 16 शिलालेख सं. 1208 से लेकर 1372 वि. तक के प्राप्त हैं। पुरातत्व दशरथ के पिता 'अज' से भी जोड़ते हैं।

(2) एरछ

बौद्ध साहित्य का एरकक्ष, जैन साहित्य का दर्शाणपुर, चन्देल नरेश महोबा अभिलेख में अंकित एरछ पत्तला नदी के तट पर स्थित झाँसी मुख्यालय से 60 किमी. उत्तर-पूर्व है। व्यापारिक केन्द्र के साथ तलवार निर्माण के लिए प्रसिद्ध था। किवदन्ती के अनुसार हिरण्यकश्यप का वध यहीं हुआ था। दूसरी शती ई. में बैंबिक राजवंश की राजधानी थी। इस काल के सिक्के प्राप्त हुए हैं। दाममित्र का अभिलेख ब्राह्मी लिपि में प्राप्त है। राजा ने यहाँ सर्वमेध यज्ञ सम्पन्न किया था।

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(3) चन्देरी

चेदि जनपद की राजधानी चेदिवंशीय शिशुपाल का जन्म स्थान चन्देरी है। सन् 1612 ई. से सन् 1857 ई. तक वह बुन्देलों ने बनवाया था। मालवा का द्वार चन्देरी सिन्धिया वंश के अवशेष विद्यमान हैं। बादल महल का निर्माण सन् 1460 ई. में हुआ था।

(4) पवा

झाँसी से 41 किलोमीटर दूर ललितपुर जनपद में स्थित पवा एक जैन तीर्थ है। बेतवा और चेतना नदी से घिरी सिद्धों की पहाड़ी है। एक मूर्ति में विक्रमी सं. 1299 की तिथि के साथ पवा उत्कीर्ण है। यहाँ एक भोयरा (भूमितल) भी है।

(5) बानपुर

ललितपुर से 48 किमी. (टीकमगढ़ से 9 किमी.) जमडर और जामनेर नदियों के संगम पर बानपुर से सम्बन्धित जैनियों का अतिशय क्षेत्र है। सहस्रकूट चैत्यालय 1008 जिनका प्रतीक है। आदिनाथ के दोनों ओर पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा है। समीप ही चौबीस भुजी गणेश की मूर्ति प्राप्त है। शिव मन्दिर भी प्राचीन है। लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण चन्द्रजी के पौत्र अनिरुद्ध के श्वसुर बाणासुर शिव भक्त थे। सहस्रकूट चैत्यालय 50 फीट ऊँचा, 22 फीट चौड; आसन पर पच्चीकारी युक्त है। शान्तिनाथ की मूर्ति 18 फीट ऊँची दर्शनीय है।

(6) मड़फा

झाँसी-मानिकपुर लाइन के बदौसा स्टेशन से 23 किमी. दक्षिण पर्वतीय चोटी पर मड़फा जनपद बाँदा का दर्शनीय स्थल है। पुराणों में इस स्थान को माण्डव्य ऋषि की तपस्थली कहा गया है। मड़फा मण्डप का विकसित रूप प्रतीत होता है। शैलमालाओं से आवृत इस स्थान की आकृति मण्डल सदृश है। चन्देले, बुन्देल, बघेल सभी वंशों का यहाँ पर शासन था। यहाँ पर शिव की प्रसिद्ध देवालय, अनेक उपयुक्त मूर्तियाँ कुछ अभिलेखों से युक्त है।

(7) मदनपुर 

महरौनी से 36 किमी. दक्षिण-पश्चिम मदनपुर आल्हा की कचहरी नाम से विख्यात है। तीन जैन मन्दिर आदिनाथ, चन्द्रप्रभु, सम्भवनाथ के उपलब्ध हैं। मदन वर्मा ने इनका जीर्णोद्धार कराया होगा। जलाशय के निकट विष्णु और शिव के मन्दिर स्थित थे। एक लेख में जेज्जाक भुक्ति मण्डल पर पृथ्वीराज की परिमाल पर विजय का उल्लेख है। प्रसिद्ध वीर आल्हा का उल्लेख भी प्राप्त है जो अद्वितीय है।

(8) मलहरा 

छतरपुर से 17 किमी. दूर मलहरा में तकिया शरीफ एक सिद्ध स्थान है। वलियों की अनेक मजारें हैं। हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन सइयाह साहब कादरी सन् 1750 ई. में मलहरा आए। इनका निधन सन् 1807 ई. में हुआ। हजरत ख्वाजा बख्श मियाँ कादरी साहब वर्लीउल्ला साहब कादरी सन् 1899 ई. बनारस से आए। इनका निधन सन् 1926 ई. में हुआ। हजरत मौलाना मुहम्मद साहब चरखोरी से फारसी पढ़ाने हेतु आए। इनका निधन सन् 1943 ई. में हुआ। और इनके अतिरिक्त अनेक दरगाहें हैं।

(9) रसिन

मुख्यालय बाँदा से 45 किमी. दूर रसिन का नाम विक्रमी सम्वत् 1466 के अभिलेख में 'राजवासिन' अंकित है। इसकी स्थापना चन्देल नरेश राहिल ने की थी। यहीं अनेक भग्न मन्दिर, मूर्तियाँ, अभिलेख प्राप्त हैं। चन्द्रा महेश्वरी का मन्दिर चन्देलकालीन है। स्थापत्य कला की दृष्टि से यह अनुपम मन्दिर है।

(10) सिरोनखुर्द

ललितपुर के पश्चिमोत्तर से 18 किमी. दूरी पर सिरोनखुर्द है। इसमें एक शिलालेख प्राप्त है जिसमें मन्दिरों के निर्माण पर व्यापारियों एवं कलाकारों के योगदान का उल्लेख प्राप्त है। मूर्तियाँ 11वीं से 13वीं सदी की हैं। भगवान ऋषभनाथ का 50 फीट ऊँचा मन्दिर भग्न है।

(11) सौरोनजी

श्री देवीसिंह द्वारा निर्मित विशाल परकोटे में सिरोन जी तीर्थ ललितपुर से 19 किमी. दूरी पर हैं इसमें 18 फीट ऊँची शान्तिनाथ की मूर्ति दर्शनीय है। 2-3 मील के घेरे में मूर्तिया बिखरी हुई हैं। शिलाफलक में सं. 954 से 1451 वि. तक के विवरण प्राप्त हैं। 22 मन्दिरों के ध्वंशावशेष प्राप्त हैं। सारस्वती, चक्रेश्वरी, ज्वालामालिनी, पद्मावती की मूर्तियाँ प्राप्त हैं। सम्भवतया यह मूर्ति निर्माण का केन्द्र रहा होगा।

(12) सोनागिरि 

मध्य रेलवे की बम्बई-दिल्ली शाखा पर दतिया-ग्वालियर के बीच सोनागिरि, स्वर्णगिरि रेलवे स्टेशन है। जैनमुनियों की तपस्थली श्रीमणगिरी भी यही हैं। धनंजय और अमृतविजय ने यहाँ तपस्या की थी। नंग अनंग राजकुमारों के साथ सहस्रों स्त्री-पुरुषों ने संयम व्रत ग्रहण किया। पहाड़ी के ऊपर लगभग 80 मन्दिर हैं। मेरुआकार (चक्की) का आदिनाथ मन्दिर है। चन्द्रप्रभु की मूर्ति 12 फीट ऊँची हैं आठवे तीर्थंकर का समवशरण यहीं हुआ था। एक शिलालेख में सं. 355 उत्कीर्ण से सम्राट चन्द्रगुपत मौर्यकालीन तीर्थ प्रतीत होत है। चैत्र वदी परवा से पंचमी तक लक्खी मेला लगता है।

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