वर्तमान की नींव अतीत में होती है। हमारे देश में सर्वप्रथम वैदिक शिक्षा प्रणाली का विकास हुआ, वह हमारी वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली का नींव का पत्थर है। उसके बाद इस देश में बौद्ध काल में एक नई शिक्षा प्रणाली का विकास हुआ जिसे बौद्ध शिक्षा प्रणाली कहते हैं। यह शिक्षा प्रणाली कुछ अथों में वैदिक शिक्षा प्रणाली के समान थी और कुछ अर्थों में असमान। यूँ यह शिक्षा प्रणाली मुस्लिम काल में ही समाप्त हो गई थी परन्तु यह अपने कुछ अनुकरणीय पद चिह्न अवश्य छोड़ गई। बस उन्हीं को हम आधुनिक भारतीय शिक्षा के विकास में उसका योगदान मान सकते हैं।
शिक्षा पर केन्द्रीय नियन्त्रण की शुरुआत
वैदिक शिक्षा प्रणाली में शिक्षा का प्रशासन गुरुओं के व्यक्तिगत हाथों में था, बौद्ध शिक्षा प्रणाली में यह बौद्ध संघों के केन्द्रीय नियन्त्रण में थी। यूँ अभी भी यह राज्य के नियन्त्रण से मुक्त थी परन्तु इसमें केन्द्रीय नियन्त्रण का शुभारम्भ हो गया था। आज यह राज्य के केन्द्रीय नियन्त्रण में है। इसे हम बौद्ध शिक्षा प्रणाली की देन मानते हैं। बौद्ध काल में शिक्षा को राज्य का संरक्षण प्राप्त हुआ; आज वह पूर्णरूप से राज्य का उत्तरदायित्व हो गई है। इसे भी बौद्ध शिक्षा की देन माना जा सकता है। बौद्ध शिक्षा प्रणाली में प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क थी और उच्च शिक्षा में शुल्क लिया जाता था। हमारी आज की शिक्षा प्रणाली में भी ऐसा ही है। यह भी बौद्ध शिक्षा प्रणाली की देन है।
बौद्ध कालीन शिक्षा ||बौद्ध कालीन शिक्षा क्या है || (500B.C.–1200 A.D.)
शिक्षा का विभिन्न स्तरों में विभाजन
वैदिक शिक्षा प्रणाली में शिक्षा को दो हो स्तरों में बाँटा गया था-प्राथमिक एवं उच्च। बौद्ध शिक्षा प्रणाली में इसे तीन स्तरों में बाँटा गया-प्राथमिक, उच्च और भिक्षु शिक्षा। इसी नींव पर अब वह मनोवैज्ञानिक दृष्टि से पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च और विशिष्ट, अनेक स्तरों में विभाजित है।
शिक्षा के उद्देश्यों का रूप समयानुकूल
यदि आप ध्यानपूर्वक देखे-समझें तो स्पष्ट होगा कि वैदिक शिक्षा प्रणाली में शिक्षा के जो उद्देश्य निश्चित किए गए थे, वही उद्देश्य बौद्ध शिक्षा प्रणाली में निश्चित किए गए। बस अन्तर इतना हुआ कि बौद्ध शिक्षा प्रणाली में कला-कौशल एवं व्यावसायों की शिक्षा पर अपेक्षाकृत अधिक बल दिया जाने लगा था। बौद्ध शिक्षा प्रणाली के अनुसार आधुनिक शिक्षा प्रणाली में भी इनकी शिक्षा पर अधिक बल दिया जाता है। यह देन बौद शिक्षा प्रणाली की ही है।
शिक्षा की अति विस्तृत पाठ्यचर्या और अति बारीक विशिष्टीकरण
यूँ तो प्राथमिक स्तर पर समान पाठ्यचर्या और उच्च स्तर पर विशिष्ट पाठ्यचर्या के निर्माण की नींव वैदिक शिक्षा प्रणाली में ही रख दी गई थी परन्तु बौद्ध शिक्षा प्रणाली में इसे और अधिक बारीकी से देखा-समझा गया और उच्च स्तर पर अनेक अन्य विशिष्ट पाठ्यक्रम शुरु किए गए। इस प्रकार इसकी नींव वैदिक शिक्षा प्रणाली में रखी गई परन्तु इसका विकास बौद्ध शिक्षा प्रणाली में हुआ।
कक्षा शिक्षण और स्वाध्याय का शुभारम्भ
शिक्षण के क्षेत्र में बौद्ध शिक्षा प्रणाली को आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली को पहली देन यह है कि उसने लोकभाषा (पाली) को शिक्षा का माध्यम बनाया, आज उसी आधार पर मातृभाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाया गया है। दूसरी देन यह है कि उसने कक्षा (सामूहिक) शिक्षण का शुभारम्भ किया। और तीसरी देन यह है कि स्वाध्याय विधि का विकास किया। स्वाध्याय विधि के लिए पुस्तकालयों का निर्माण सर्वप्रथम बौद्ध शिक्षा प्रणाली में ही शुरु हुआ था। आज तो पुस्तकालयों को शिक्षकों का पूरक माना जाता है।
गुरु-शिष्य के बीच मधुर सम्बन्धों की निरन्तरता
बौद्ध काल में गुरु और शिष्य दोनों बौद्ध संघों के अनुशासन में रहते थे, दोनों एक-दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों का निष्ठा से पालन करते थे। गुरु शिष्यों के प्रति समर्पित थे और शिष्य गुरुओं के प्रति समर्पित थे। दोनों के बीच बहुत पवित्र और मधुर सम्बन्ध थे। यूँ हमारे देश में इस समय शिक्षक और शिक्षार्थियों के बीच इतने अच्छे सम्बन्ध तो नहीं हैं परन्तु हम उनसे यह अपेक्षा अवश्य करते हैं कि शिक्षक शिक्षार्थियों के प्रति समर्पित हों और शिक्षार्थी शिक्षकों का सम्मान करें।
विद्यालयी शिक्षा का शुभारम्भ
बौद्ध शिक्षण प्रणाली में शिक्षा की व्यवस्था बौद्ध मठों एवं विहारों में की गई, यह विद्यालयी शिक्षा का शुभारम्भ था। इन मठों एवं विहारों में बड़े-बड़े शिक्षण कक्ष थे, इनमें छात्र एक साथ बैठकर पढ़ते थे। इस प्रकार इस प्रणाली में कक्षा शिक्षण का शुभारम्भ किया गया। इन बौद्ध मठों एवं विहारों में भिन्न-भिन्न कक्षाओं को भिन्न-भिन्न विषय भिन्न-भिन्न शिक्षक (विषय विशेषज्ञ) पढ़ाते थे। यह बहुशिक्षक प्रणाली एवं विषय विशेषज्ञों द्वारा शिक्षण का शुभारम्भ था। आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली के विकास में बौद्ध शिक्षा प्रणाली की यह आधारभूत देन है।
जन शिक्षा की शुरुआत
बौद्धों ने सभी वर्षों के बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिया। साथ ही प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था मठों एवं विहारों में की। यह जन शिक्षा के क्षेत्र में पहला कदम था। परन्तु न तो उन्होंने शिक्षा को अनिवार्य किया और न शिक्षा को सर्वसुलभ बनाया। बहरहाल उन्होंने सबको शिक्षा का अधिकार तो दिया। आज अधिकार के माथ-साथ सुविधा प्रदान करने का भी प्रयत्न किया जा रहा है।
स्त्री-पुरुषों की समान शिक्षा
बौद्ध शिक्षा प्रणाली में स्त्रियों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं की गई थी। साथ ही उनके लिए पुरुषों को भाँति इतने कठोर नियम बना दिए गए थे कि बहुत कम बालिकाएँ ही मठों एवं विहारों में प्रवेश लेती थी। परन्तु स्त्रियों को पुरुषों की भाँति किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने की शुरुआत इस प्रणाली में कर दी गई थी। आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली को यह उसकी बड़ी देन है।
कला-कौशल एवं व्यावसायिक शिक्षा पर बल
बौद्धों ने सभी कला-कौशलों और व्यवसायों को सम्मान की दृष्टि से देखा और अपनी शिक्षण प्रणाली में इन सबकी शिक्षा की समुचित व्यवस्था की। आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली में भी ऐसी व्यवस्था है। यह बौद्ध शिक्षा प्रणाली की ही देन मानी जानी चाहिए।
धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा की निरन्तरता
वैदिक शिक्षा प्रणाली में वैदिक धर्म की शिक्षा अनिवार्य थी, बौद्ध शिक्षा प्रणाली में बौद्ध धर्म की शिक्षा अनिवार्य थी। आज इन दोनों शिक्षा प्रणालियों के विपरीत हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली में किसी भी धर्म की शिक्षा अनिवार्य नहीं है। हाँ, नैतिकता की शिक्षा को अनिवार्य किया गया है, परन्तु यह नैतिकता किसी धर्म विशेष पर आधारित न होकर मानवीय मूल्यों पर आधारित है।
कटु अनुभवों से सीख
हमने तो बौद्ध शिक्षा प्रणाली की कमियों से भी कुछ सीखा है और उसे आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली के विकास में उसका परोक्ष योगदान मानते हैं। बौद्ध शिक्षा प्रणाली का मुख्य उद्देश्य था बौद्ध धर्म का प्रचार और यहीं इसकी पाठ्यचर्या का मुख्य एवं अनिवार्य विषय था। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि वैदिक धर्मावलम्बी इस शिक्षा की ओर आकर्षित नहीं हुए, इसका लाभ नहीं उठा सके। आज तो हमारे देश में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं इसलिए हमने शिक्षा के क्षेत्र में धर्मनिरपेक्षता की नीति अपनाई है। बौद्ध शिक्षा प्रणाली को कठोर अनुशासन व्यवस्था के दुष्परिणामों से भी हमने लाभ उठाया है। आज हम छात्रों से न अति संयम बरतने की अपेक्षा करते हैं और न उन्हें कुछ भी करने की स्वतन्त्रता देते हैं। इसी प्रकार उसके अन्य दोषों से भी हमने सीख ली है।