आतंकवाद क्या है | आतंकवाद का अर्थ एवं परिभाषा | आतंकवाद के कारण और उपाय

आतंकवाद एक ऐसा सामरिक, राजनीतिक या सामाजिक आंदोलन है जिसका प्रमुख उद्देश्य भय और आतंक का लोगों को अनुभव कराकर एक समूह या संगठन द्वारा अपने राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक या सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति करना है। तथा इसका मुख्य लक्ष्य जनता में भय और असुरक्षा का माहौल बनाकर उन्हें दबाकर अपने मानवाधिकारों की चुनौती देना है।

आतंकवाद क्या है | आतंकवाद का अर्थ एवं परिभाषा | आतंकवाद के कारण और उपाय

आतंकवाद का अर्थ (Meaning of Terrorism)

आतंकवाद आतंक की आधारशिला पर टिका है। आतंक एक मनोवैज्ञानिक दशा है। यह अत्यधिक भय तथा चिन्ता की अवस्था है। इस अवस्था में जब 'वाद' जुड़ जाता है तब यह  मनोवैज्ञानिकता के क्षेत्र से उठकर विश्वास तथा विचार की परिधि में आ जाता है।

    संक्षेप में, हिंसा का भय दिखाकर, वैयक्तिक हिंसा के कार्य अथवा हिंसा के अभियान द्वारा लोगों में भय का समावेश करने का उद्देश्य रखने वाला प्रयास आतंकवाद है।

    इस प्रकार से आतंकवाद प्रमुखतया कुछ व्यक्तियों के एक समूह द्वारा लोगों, निजी अथवा सार्वजनीक सम्पत्ति एवं सुविधाओं के विरुद्ध किया गया आपराधिक कार्य है। आतंकवादी हिंसक कार्यवाही के द्वारा अपनी माँगें मनवाने का प्रयास करता है। हिंसक कार्यवाहियों के द्वारा जनता में भय तथा असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो जाती है और वह सरकार की क्षमता के प्रति सन्देह करने लगती है। आतंकवादी राज्य में राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न करके उसके औचित्य पर प्रश्न चिह्न लगाने का प्रयास करते हैं।

    आतंकवाद की परिभाषा (Definition of Terrorism)

    आतंकवाद को विभिन्न तरीकों से परिभाषित किया गया है, और विभिन्न संगठन और विद्वानों ने इसकी  अलग-अलग तरीकों से व्याख्या की है।

    अतः आतंकवाद की परिभाषाएं निम्नलिखित है-

    1. यूनाइटेड नेशंस के अनुसार- हिंसा या हत्या की क्रिया से जो लोगों को भयभीत करके उन्हें राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, या अन्य किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए मजबूर करता है, वह आतंकवाद है।

    2. भारतीय कानून के अनुसार- आत्मघाती हमले, बम विस्फोट, और उग्रवादी गतिविधियों से संबंधित अद्वितीय विधि और सुरक्षा से जोड़ा जा सकता है।

    3. यूरोपीय इकोनॉमिक कम्युनिटी के अनुसार- एक सार्वजनिक स्वास्थ्य या सुरक्षा में कुछ बदलाव करने के लिए धार्मिक, नैतिक, या सामाजिक उद्देश्यों के साथ हिंसा का उपयोग करके एक विशिष्ट समूह द्वारा किया जाने वाला हिंसक व्यवहार माना जाता है।

    सामाजिक विज्ञान में परिभाषा- आतंकवाद को सामाजिक या सामरिक उद्देश्यों के लिए हिंसा का एक सामंजस्यपूर्ण तरीका माना जाता है, जिसका उद्देश्य भ्रान्ति और असुरक्षा फैलाना होता है।

    ये विभिन्न परिभाषाएं है जो आतंकवाद को समझने में मदद करती हैं और इसे विभिन्न सांस्कृतिक, कानूनी, और सामाजिक संदर्भों में स्थापित करती हैं।

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    आतंकवाद के कारण (Causes of Terrorism)

    आतंकवाद के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं-

    1. शोषण तथा अन्याय की प्रवृत्ति

    सम्पूर्ण विश्व में आतंकवाद की उत्पति का एक कारण शोषण एवं अन्याय का पाया जाना है। यह प्रवृत्ति अनेक वर्षों से चली आ रही है। साम्राज्यवाद के द्वारा अविकसित तथा स्थानीय देशों का शोषण किया गया। स्वतन्त्र भारत में भी शोषण बरकरार है। ऐसी परिस्थितियों में आतंकवादी को यह विश्वास दिलाने का प्रयास करते हैं कि वे आतंकवादी नहीं हैं बल्कि शोषण एवं अन्याय के केन्द्र हैं।

    2. युवकों में तीव्र असन्तोष 

    बेरोजगारी, गरीबी, बीमारी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, आदि अनेक कारणों से युवकों में असन्तोष है। आज का युवा अधिक महत्वाकांक्षी है लेकिन अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उसके पास साधन नहीं हैं। इसलिए वह तस्करी, नशीले पदार्थों के व्यापार एवं आतंकवाद से जुड़ जाता है।

    3. अवैध शस्त्र व्यापार

    वर्तमान में अवैध शस्त्र व्यापार इतना अधिक बढ़ गया है कि आधुनिकतम तथा भयानक शस्त्रों को अवैध रूप से प्राप्त करना कोई मुश्किल बात नहीं है।

    4. आतंकवादियों को विदेशों से सहायता

    विश्व में ऐसे अनेक देश हैं जो आज भी आतंकवादियों को प्रशिक्षण एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराते हैं। दूसरे देशों को आतंकवाद रोकने में सहायता नहीं देते बल्कि दूसरे देशों में अस्थिरता फैलाने के लिए आतंकवादियों की आर्थिक एवं राजनीतिक सहायता करते हैं। पाकिस्तान भारत में इसी प्रकार का आतंक फैलाना चाहता है जिसके लिए आई. एस. आई, लश्कर-ए-तय्यबा आदि संगठन सक्रिय हैं।

    5. भ्रष्टाचार

    विश्व भर के देशों में भ्रष्टाचार का साम्राज्य है। नवयुवक वर्ग राजनैतिक नौकरशाही, व्यापारियों तथा उद्योगपतियों के आचरण को देखकर अपना धैर्य खो देता है। उच्च न्यायालय के पदाधिकारी रिश्वत, भ्रष्टाचारी तथा जालसाजी में लिप्त दिखाई देते हैं। ये सभी कारण आतंकवाद को बढ़ावा प्रदान देते हैं।

    6. न्याय

    न्याय व्यवस्था भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, आतंकवाद, जालसाजी जैसे मुकदमों मैं अनेक लगा देती है परिणामस्वरूप आतंकवादी निर्भीक होकर अपना काम करते रहते हैं।

    7. दलीय राजनीति

    राजनीतिक दल भी आतंकवाद में वृद्धि का कार्य करते हैं। वे वोटों के लालच में अनुचित से अनुचित काम करने को तैयार हो जाते हैं। चुनाव दल जीतने के लिए आतंकवादी संगठनों का सहारा भी लेते हैं। कभी-कभी तो दल हिंसक, आतंकवादी एवं गुण्डों को अपने दल से चुनाव भी लड़ाते हैं। 

    8. अन्य कारण

    कुछ अन्य कारण भी आतंकवाद की वृद्धि के लिए उत्तरदायी हैं, जैसे-

    • सेवाओं एवं प्रशासन की विफलता,
    • नैतिक शिक्षा का अभाव,
    • नैतिक मूल्यों का पतन।

    आतंकवाद को रोकने के उपाय (Measures To Stop Terrorism)

    आतंकवादी गतिविधियों को देखकर हम सभी का कर्त्तव्य हो जाता है कि हम विश्व बन्धुत्व की भावना का सभी प्रकार के आतंकवादी संगठनों का समूल नष्ट करने का प्रयास करें। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-

    1. अपने राष्ट्र की सुरक्षा के प्रश्न पर किसी को संसार की किसी भी ताकत के दबाव में नहीं आना चाहिए सभी देशवासियों को अपने-अपने देश की एकता और अखण्डता को नष्ट करने वाले किसी भी घातक आतंकवादी को अपनी भूमि पर नहीं पनपने देना चाहिए अन्यथा इसके दुष्परिणाम उसे भी भुगतने पड़ सकते हैं। पाकिस्तान अमरीका और अफगानिस्तान इस कथन के सबसे पुष्ट प्रमाण हैं।

    2. सभी राष्ट्रों में अधिकांश लोग साक्षर, विद्वान, सूझ-बूझ के धनी तथा रोजगार प्राप्त करने में सक्षम हों, तो निश्चित रूप से प्रत्येक राष्ट्र समान रूप से विकास कर सकता है।

    3. जिस राष्ट्र में अनेक प्रकार की कुरीतियाँ एवं अन्धविश्वास व्याप्त है वहाँ का समाज कष्टों को झेलने के लिए अभिशाप बना हुआ है। समाज या राष्ट्र में व्याप्त धर्मान्धता, कट्टरता, निरक्षरता, अन्धविश्वास, कुप्रथाएँ आवश्यकताएँ सम्पूर्ण राष्ट्र को विघटन की दिशा में ले जाती हैं। अतः इन सभी को पूर्ण रूप से समाप्त करना आवश्यक है।

    4. जनसामान्य को राजनीति की मुख्यधारा में लाने, अवगत कराने तथा उससे जोड़ने को प्रयास किया जाना चाहिए, ताकि सम्पूर्ण राष्ट्र में आपसी रचनात्मक और क्रान्तिकारी परिवर्तन लाया जा सके। जम्मू-कश्मीर में अभी हाल ही में सम्पन्न कराये गये निर्वाचन इस सम्बन्ध में एक सुन्दर उदाहरण हैं।

    5. प्रत्येक राष्ट्र के नागरिकों को स्वावलम्बी, सुखी एवं समृद्ध बने रहने के लिए दासता की मानसिकता का परित्याग कर देना चाहिए। अपनी भाषा, वेशभूषा और संस्कृति को सशक्त देखने के लिए स्वयं को अन्य राष्ट्रों से आयातित प्रदूषित वातावरण से सुरक्षित रखना चाहिए।

    6. सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ प्रत्येक राष्ट्र को नैतिक क्षेत्र में प्रगति करनी चाहिए तथा उसकी रक्षा के लिए उचित मानदण्ड अपनाने चाहिए।

    7. धनिक एवं उदार वृत्ति के लोगों को बगैर किसी भेदभाव के सर्वत्र स्कूल, कॉलेज, धर्मशाला अस्पताल, मठ, मन्दिर आदि परोपकार की भावनाओं से बनवाने चाहिए। धनिकों को निर्बलों की तथा विकसित राष्ट्रों को अविकसित राष्ट्रों की तन, मन, धन से सहायता करनी चाहिए, वसुधैव कुटुम्बकम् का मूलमन्त्र इस बात की पुष्टि करता है।

    8. विश्वव्यापी समरसता एवं मानववाद की स्थापना हेतु सभी राष्ट्रों के निवासियों को प्राण-सम्पन्न प्रयत्नशील रहना चाहिए।

    9. धूप, वायु, जल आदि सभी प्राकृतिक सम्पदाओं का उपयोग सभी धनी एवं निर्धन समान रूप से प्रयोग कर सकें इसके लिए जनजागृति लाना और जनसंख्या वृद्धि में नियन्त्रण लगाना नितान्त आवश्यक बन गया है। श्रमिक वर्ग को सर्वत्र उचित सम्मान और प्रतिष्ठा प्रदान की जानी चाहिए।

    10. सभी राष्ट्रों के सांसदों तथा विधानमण्डलों के कामकाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए एक न्याय तथा प्रभावशाली आचार संहिता का बनाना नितान्त आवश्यक है ताकि दूसरे राष्ट्रों के मध्य मैत्रीभाव बन सके।

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