बाल अपराध का अर्थ, परिभाषा एवं कारण

बाल अपराध का अर्थ एवं परिभाषा  

बाल अपराध के अर्थ के सम्बन्ध में अपराधशास्त्रियों तथा समाजशास्त्रियों में एकमत का अभाव है। अपराध की परिभाषा दो दृष्टिकोणों से दी जा सकती है-

(1) बाल-अपराध

सामाजिक दृष्टिकोण से प्रत्येक समाज के अपने रीति-रिवाज, प्रथाएँ, परम्पराएँ, रूढियाँ, संस्थाएँ आदर्श प्रतिमान आदि होते हैं। इन अनौपचारिक साधनों के द्वारा व्यक्ति का व्यवहार नियन्त्रित होता है। सामाजिक दृष्टिकोण से इन साधनों के विरुद्ध होने वाला व्यक्ति का व्यवहार ही बाल अपराध कहलाता है। सामाजिक दृष्टिकोण से बाल अपराध की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(i) विलियम हीले के अनुसार : "व्यवहार के समाजिक आदर्शों से विचलित होने वाले बालक को बाल अपराधी कहा जाता है।"

(ii) मार्टिन न्यूमेयर के अनुसार : "बाल अपराध का तात्पर्य समाज विरोधी व्यवहार का कोई प्रकार है, जो वैयक्तिक एवं सामाजिक विघटन उत्पन्न करता है।"

(2) बाल अपराध : कानूनी दृष्टिकोण

प्रत्येक देश के कुछ निश्चित नियम एवं कानून होते हैं। इन नियमों एवं कानूनों के द्वारा व्यक्ति के कुछ कार्यों को निषिद्ध घोषित किया जाता है। इन निषिद्ध कार्यों का बालकों के द्वारा किया जाना ही बाल अपराध कहलाता है। सभी देशों में बाल अपराधी की निम्नतम तथा उच्चतम आयु निश्चित होती है। कानूनी दृष्टिकोण से बाल-अपराध की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(i) एम. जे. सेथना के अनुसार : "बाल अपराध के अन्तर्गत एक राज्य विशेष में (उस समय लागू) कानून द्वारा निर्धारित एक निश्चित आयु से कम आयु के बच्चों या युवकों द्वारा किये गये अनुचित कार्यों का समावेश होता है।"

(ii) मार्टिन न्यूमेयर के अनुसार : "एक बाल अपराधी निर्धारित आयु से कम का वह व्यक्ति है जो समाज-विरोधी कार्य करने का दोषी है और जिसका दुराचरण कानून का उल्लंघन है।"

बाल अपराध के प्रमुख कारण

बाल अपराध के प्रमुख कारणों को निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है -

(I) व्यक्तिगत कारण

बाल अपराध के लिए अनेक व्यक्तिगत कारण उत्तरदायी होते हैं। इन कारणों में शारीरिक संरचना, स्वास्थ्य, बुद्धि, शारीरिक अथवा मानसिक कमियाँ आदि प्रमुख हैं। व्यक्तिगत कारणों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) शारीरिक कारण

व्यक्तिगत कारणों के अन्तर्गत सर्वप्रथम शारीरिक कारण आते हैं। इन शारीरिक कारणों में निम्नलिखित कारण बाल अपराध को जन्म देते हैं- 

(i) अस्वस्थ शरीर और बीमारियाँ- अस्वस्थ शरीर एवं लम्बी बीमारी के कारण बच्चा प्रत्येक क्षेत्र में निराशा से घिरा रहता है। जब वह अपने साथियों को निरन्तर खेलता हुआ देखता है तब उसके मन में हीनता की भावना विकसित हो जाती है। शारीरिक दुर्बलता के कारण वह स्वयं खेलकूद की क्रियाओं में भाग लेने में असमर्थ रहता है। इसके परिणामस्वरूप वह समाज-विरोधी क्रियाओं तथा बाल अपराध की ओर अग्रसर हो जाता है। 

(ii) शारीरिक दोष- 'न्यूमेयर' का मत है कि शारीरिक दोष एवं विकृतियाँ जैसे- अन्धापन, बहरापन, लँगड़ापन, हकलाना, चेहरे की कुरूपता आदि के कारण बच्चे सामान्य बच्चों से पृथक हो जाते हैं। इन विकृतियों के कारण जब समाज के सामान्य सदस्य इन बच्चों को घृणा की दृष्टि से देखते हैं तथा उपहास करते हैं तो उनसे समूह के प्रति प्रतिरोध की भावना जाग्रत हो जाती है। इस प्रतिरोध की भावना के परिणामस्वरूप बच्चे अपराध की ओर अग्रसर हो जाते हैं।

(2) मनोवैज्ञानिक कारण

बाल अपराध की समस्या में मनोवैज्ञानिक कारणों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन कारणों को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) मानसिक दुर्बलता- प्रत्येक समाज में पागल और अर्द्ध-पागल बच्चे कानून का उल्लंघन करते दिखाई पड़ते हैं। गोडार्ड ने अपराधियों पर किये गये एक अध्ययन से यह परिणाम निकाला कि बाल अपराधी व्यवहार निम्न स्तर की बुद्धिमता का एक फल है। विलियम हीले (William Healy) ने शिकागो में 1,000 बाल अपराधियों का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला कि उसमें से 668 बच्चे निम्न बुद्धि के थे।

(ii) मानसिक बीमारी- मानसिक बीमारियाँ भी बाल अपराधी व्यवहार के लिए उत्तरदायी हैं। अनेक मानसिक बीमारियाँ जैसे- साइकोसस (Psychoses) मोनिया (Monia) न्यूरोसिस (Neurosis) आदि के कारण बच्चों की सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है। बच्चे अपने व्यवहार एवं क्रियाओं पर कोई नियन्त्रण रखने में असमर्थ हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप आपराधिक कार्यों में वृद्धि होती है।

(iii) संवेगात्मक संघर्ष और अस्थिरता- जब बच्चे को निरन्तर तिरस्कार, घृणा, क्रूरता आदि का सामना करना पड़ता है तो उसके संवेगों को ठेस पहुँचती है। प्रत्येक बच्चे की अनेक इच्छाएँ होती है। इनमें से जिन इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो पाती, उन्हें अतृप्त इच्छाएँ कहते हैं। संवेगात्मक संघर्ष एवं अस्थिरता प्रायः असंतोष की अवस्था से उत्पन्न होती है। वास्तव में बच्चे की समाज-विरोधी एवं कानूनी विरोधी क्रियाओं के पीछे उसकी अतृप्त इच्छाएँ होती हैं। अपनी निम्न आर्थिक स्थिति से असन्तुष्ट होकर बच्चा सम्पत्ति के विरुद्ध अपराध करता है।

(II) पर्यावरण सम्बन्धी कारण 

बाल अपराध के लिए पर्यावरण सम्बन्धी कारण भी उत्तरदायी है। पर्यावरण से तात्पर्य उन परिस्थितियों से है जिनसे व्यक्ति घिरा रहता है। निम्नलिखित पर्यावरण सम्बन्धी कारण बाल अपराध में वृद्धि करते हैं-

(1) पारिवारिक कारण

निम्नलिखित पारिवारिक कारण बच्चों को अपराधी व्यवहार करने के लिए प्रेरित करते हैं-

(i) नष्ट घर- नष्ट घर से तात्पर्य ऐसे घर से है जिसमें माता-पिता के बीच तलाक हो गया है अथवा दोनों में से किसी एक ने घर त्याग दिया हो अथवा उनमें से किसी की मृत्यु हो गई हो अथवा कारावास हो गया हो। ऐसे परिवारों में बच्चे माता-पिता के स्नेह एवं प्यार से वंचित हो जाते हैं तथा उनका समाजीकरण उचित प्रकार से नहीं हो पाता है। नष्ट परिवारों में बच्चे के ऊपर नियन्त्रण का अभाव हो जाता है। ऐसे बच्चे बुरी संगति में रहकर बाल अपराध की ओर अग्रसर हो जाते हैं।

(ii) अनैतिक घर- अनैतिक घर से तात्पर्य उन घरों से है जिसमें सदस्य अनैतिक कार्यों जैसे- शराब बेचना, वेश्यावृत्ति एवं जुआ करवाने आदि में संलग्न रहते हैं। ऐसे परिवारों के बच्चे बचपन से ही अनैतिक कार्यों को देखते हैं जिसके परिणामस्वरूप उनमें भी दुर्गुणों का विकास हो जाता है। अनैतिक कार्यों को देखकर बच्चे भी उन कार्यों का अनुकरण करके बाल अपराधी बन जाते हैं।

(iii) अपराधी भाई-बहिन- बच्चों के व्यक्तित्व पर केवल माता-पिता का ही नहीं बल्कि बड़े भाई-बहिनों का भी प्रभाव पड़ता है। जिस घर के बड़े बच्चे अपराधी क्रियाओं एवं अनैतिक कार्यों में संलग्न हो जाते हैं तो उनका प्रभाव छोटे बच्चों पर भी पड़ता है।

(iv) तिरस्कृत बालक- माता-पिता द्वारा तिरस्कृत बच्चों को उचित सम्मान एवं स्नेह न मिलने के कारण उनमें अपराधी प्रवृत्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इसी प्रकार जिस परिवार में सौतेली माँ या सौतेला पिता होते हैं, उस परिवार के बच्चे भी प्रायः अपराध की ओर अग्रसर हो जाते हैं।

(v) माताओं का नौकरी करना- बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में माताओं का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। जब माताएँ नौकरी करती हैं तो उनकी अनुपस्थिति में बच्चों की देखभाल एवं पालन-पोषण उचित प्रकार से नहीं हो पाता है। उचित देखभाल के अभाव में वे घर के बाहर घूमते रहते हैं तथा कुसंगति में पड़कर असामाजिक एवं कानून विरोधी कार्य करने लगते हैं।

(2) सामुदायिक कारण

बच्चों को बनाने या बिगाड़ने में सामुदायिक परिस्थितियों का बड़ा योगदान रहता है। निम्नलिखित सामुदायिक परिस्थितियाँ बाल अपराध के कारण के रूप में उल्लेखनीय हैं-

(i) अपराधी क्षेत्र- पड़ोस एवं स्थानीय क्षेत्र का प्रभाव बच्चों पर अत्यधिक पड़ता है। यदि पड़ोस एवं स्थानीय क्षेत्र में वेश्यालय, मदिरालय, जुआघर तथा अन्य अनैतिक कार्यों के अड्डे हैं तो इन स्थानों पर चरित्रहीन, आवारा, गुण्डों, शराबियों, जुआरियों, चोरों, बदमाशों आदि का आवागमन बना रहता है। इन अपराधी क्षेत्रों के वातावरण का प्रभाव बच्चों पर आवश्यक रूप से पड़ता है।

(ii) बुरी संगति- यद्यपि संगति का प्रभाव प्रत्येक आयु के व्यक्ति पर पड़ता है, लेकिन बच्चे संगति से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इस सम्बन्ध में न्यूमेयर (Neumeyer) का मत है कि-"मित्रों का चुनाव ही एक बच्चे को बनाता या बिगाड़ता है।'

(iii) गन्दी बस्तियाँ- औद्योगीकरण और नगरीकरण के परिणामस्वरूप नगरों में जगह-जगह गन्दी बस्तियों का विकास हुआ है। निर्धनता के कारण जो परिवार इन बस्तियों मैं रहते हैं, उनके बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास उचित प्रकार से नहीं हो पाता है।

(iv) फिल्म एवं टेलीविजन- भारत में फिल्मों का निर्माण तथा टेलीविजन कार्यक्रमों का प्रसारण व्यवसाय के रूप में है। प्रत्येक व्यवसाय का उद्देश्य अधिक-से-अधिक मुनाफा कमाना होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए निर्माता अपनी फिल्म को अधिक रोचक बनाने का प्रयत्न करते हैं तथा दर्शकों को आकर्षित करने के लिए अश्लील दृश्यों का भी प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार टेलीविजन द्वारा ऐसी फिल्मों तथा कार्यक्रमों को प्रदर्शित किया जाता है, जिनसे न समझ बच्चों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

(v) समाचार पत्र- आधुनिक समय में समाचार-पत्र बच्चों के व्यवहार को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाचार-पत्रों में व्यावसायिक लाभ का दृष्टिकोण होने के कारण हत्या, आत्महत्या, अपहरण, बलात्कार, जुआ, शराबखोरी, चोरी-डकैती आदि आपराधिक घटनाओं की प्रमुखता होती है।

(vi) अश्लील साहित्य- निम्न स्तर के उपन्यास, पत्रिकाएँ, नग्न चित्रों के एलबम आदि अश्लील साहित्य के अन्तर्गत आते हैं। इस साहित्य के द्वारा कामवासना को भरपूर जगाने का प्रयास किया जाता है अश्लील साहित्य की बिक्री बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, फुटपाथों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर खुलकर होती है। इस साहित्य को पढ़ने से बच्चे यौन अपराध की ओर अग्रसर हो जाते हैं।

(vii) युद्ध- युद्ध काल और युद्ध के पश्चात् बाल अपराध की संख्या में वृद्धि होती है। युद्ध के दौरान पुरुष युद्ध-क्षेत्र में चले जाते हैं और स्त्रियाँ कारखानों, कार्यालयों आदि में कार्य करती हैं। ऐसी स्थिति में परिवार में बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता है।

(3) अन्य कारण

पर्यावरण से सम्बन्धित बाल अपराध के अन्य मुख्य कारण निम्नलिखित है-

(i) सांस्कृतिक कारण- आधुनिक समय में पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण की प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप भारतीय सामाजिक मूल्यों एवं संस्कृति में तीव्र गति से परिवर्तन हुए हैं। स्त्रियाँ पुरुषों की तरह सामाजिक कार्यों में भाग लेने तथा नौकरी करने लगी हैं। नई पीढ़ी की वेश-भूषा, रहन-सहन, व्यवहार करने के तरीकों, विचारों तथा अन्य सभी क्षेत्रों पर भौतिक संस्कृति का प्रभाव पड़ा। नई और पुरानी पीढ़ी के मध्य तनाव की स्थिति निरन्तर विद्यमान रहती है। इस भौतिकवादी युग में जब युवकों की आवश्यकताओं की पूर्ति उचित साधनों द्वारा नहीं हो पाती। इनकी पूर्ति के लिए वे अनुचित एवं गैर-कानूनी उपायों को अपनाते है। इसके अतिरिक्त पारिवारिक नियन्त्रण के अभाव में भी बच्चे असामाजिक एवं कानून विरोधी कार्यों को करने में अग्रसर हो जाते हैं।

(ii) राजनीतिक कारण- भारत में राजनैतिक जागृति में निरन्तर वृद्धि हो रही है। मतदान की आयु 18 वर्ष हो जाने से विद्यार्थी भी राजनीति में रुचि लेने लगे हैं। विभिन्न राजनीतिक दल अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए युवा संगठनों द्वारा प्रदर्शन और हड़ताल करवाते हैं। इन प्रदर्शनों में छात्रों द्वारा दुकानों को हानि पहुँचाना, लूटमार करना, विद्यालय की सम्पत्ति को हानि पहुँचाना; अध्यापकों के साथ मारपीट करना आदि समाज-विरोधी और कानून-विरोधी कार्य किये जाते हैं।

(iii) शिक्षण संस्थाएँ- बच्चों के चरित्र-निर्माण में परिवार के बाद शिक्षण संस्थाओं का योगदान होता है। शिक्षण संस्थाओं का दोषपूर्ण अनुशासन, अध्यापकों की आपसी गुटबन्धी, कक्षाएँ न लेना, तैयारी करके न पढ़ाना, अश्लील भाषा का प्रयोग करना, उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विद्यार्थियों की सहायता लेना, खेलकूद की सुविधाओं का न होना परिस्थितियों के कारण बच्चे कक्षाओं को छोड़कर स्कूल से भागने के लिए विवश हो जाते हैं। निर्धारित समय से पहले स्कूल छोड़ने पर बच्चे माता-पिता के डर से घर नहीं जाते और अपना समय गलियों, सड़कों, पार्कों अथवा सिनेमा गृहों में व्यतीत करते हैं। इन स्थानों पर असामाजिक तत्वों के सम्पर्क में आकर वे कानून विरोधी कार्य करने लगते हैं।

मूल्यांकन- बाल अपराध के कारण देशकाल और परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं। आधुनिक समय में बाल अपराध के लिए पर्यावरण सम्बन्धी कारण उत्तरदायी हैं, उनमें कई कारणों का लगभग 200 वर्ष पहले कोई अस्तित्व नहीं था। माताओं का नौकरी, करना, गन्दी बस्तियों का विकास, रेडियो, फिल्म एवं टेलीविजन, समाचार-पत्र, अश्लील साहित्य, शिक्षण संस्थाओं में अव्यवस्था अपराधी क्षेत्र, परिवार के नियन्त्रण में कमी आदि कारण औद्योगिक एवं पश्चिमी संस्कृति की देन है। 

अतः बाल अपराध के विभिन्न कारणों के विवेचन से स्पष्ट होता है कि बाल अपराध के लिए किसी एक कारण को उत्तरदायी नहीं माना जा सकता है। बाल अपराध एक सामाजिक समस्या है, जो अनेक कारणों के मिलने से उत्पन्न होती है।

यौनान्द के नए-नए तरीके खोजने से पैदा हुई मानसिकता तथा विकृतता ने अश्लील साहित्य तथा अश्लील फिल्मों के निर्माण एवं चलन को बहुत बढ़ा दिया है।

इंसानों द्वारा महिलाओं का यौन शोषण तो सदैव होता रहा है, किन्तु हाल के वर्षों में पुरुषों द्वारा बच्चे-बच्चियों के यौन शोषण में बहुत तेजी आयी है। वासना की अंधी दौड़ और मानसिक विकृतियों से भरे परिवेश में आज करोड़ों मासूम यौन शोषण का शिकार हो रहे हैं। बाल वेश्यावृत्ति के दुश्चक्र में फँसे ये बच्चे एक गन्दी जिन्दगी जीने को मजबूर हैं।

बाल वेश्याओं में सबसे अधिक संख्या उन बच्चों की होती है जो घर से भाग कर आते हैं। घर से भागे ये बच्चे शहर आने पर वेश्यावृत्ति के धन्धे में संलग्न दलालों के हाथ फँस जाते हैं। इन बच्चों के घर से भाग जाने के कारण परिवार वालों को अन्याय और परिवार में उनके साथ किया जाने वाला बलात्कार या यौन शोषण होता है। बाल वेश्याओं के बीच कराए गए एक सर्वेक्षण से स्पष्ट हुआ है कि इस धन्धे में आने से पहले इन बच्चियों के साथ या तो यौन शोषण किया गया था या उनके साथ बलात्कार जिन बच्चियों के साथ बचपन में इस तरह की घटनाएँ घट जाती है, उन बच्चियों के पास वेश्यावृत्ति के अतिरिक्त दूसरा कोई उपाय नहीं रहता।

नाबालिग बच्चियों को वेश्यावृत्ति में लगाने का मुख्य कारण यह है कि अवयस्क वेश्याओं को कीमत वयस्क वेश्याओं की तुलना में कहीं ज्यादा होती है। इस कारण लड़कियों के साथ बचपन में ही बलात्कार कर उन्हें बाल वेश्यावृत्ति में आने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। ये बच्चियाँ दलालों के लिए सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी साबित होती हैं।

इन बच्चों को देह की नुमाइश करने पर विवश करने के लिए उनके साथ पहले काफी मारपीट की जाती है। जब ये बच्चे ऐसा करने को तैयार हो जाते हैं तो उन्हें देह व्यापार का प्रशिक्षण दिया जाता है तथा उसके पश्चात् उन्हें व्यवसाय में लगा दिया जाता है। 

बाल वेश्यावृत्ति के अड्डों पर प्रशिक्षित बच्चों की ही अधिक माँग होती है। हालांकि इस व्यापार में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों की भी बहुत माँग होती है और कभी-कभी लड़कियों की तुलना में लड़कों को अधिक कीमत दी जाती है। गरीबी की वजह से भी इस व्यापार को बढ़ावा मिला है। बच्चे गरीबी से परेशान होकर या तो खुद इस पेशे से जुड़ जाते हैं या माँ-बाप पैसे के लिए अपने मासूम बच्चों को यह धन्धा अपनाने के लिए विवश कर देते हैं। 

एक सर्वेक्षण के आधार पर इस व्यवसाय में अन्य व्यवसायों की तुलना 26 गुना अधिक कमा लेते हैं। बच्चों को इस व्यवसाय में लगाने के लिये लोग कानून का सहारा लेने लगे हैं, जिससे भविष्य में उन्हें किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। इसके तहत् अभिभावकों की सहमति से कानूनन बच्चे को गोद लिया जाता है फिर उनसे वेश्यावृत्ति करायी जाती है।

यहाँ तक कि लावारिस तथा खोए बच्चों को भी गोद लेकर उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। कभी-कभी भोले-भाले बच्चों को नौकरी या फिल्मों में काम देने के बहाने शहर लाया जाता है तथा इन्हें वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर कर दिया जाता है। इनकी खरीद-फरोक्त के लिए कई मण्डियाँ भी हैं जिनमें धौलपुर (राजस्थान) बसई (उत्तर प्रदेश) जलपीगू और हैदराबाद (आन्ध्र प्रदेश) पुणे (महाराष्ट्र) भुवनेश्वर (ओडिशा) मुजफ्फरपुर ( बिहार ) तथा मण्डी (हिमाचल प्रदेश) प्रमुख हैं।

एक अध्ययन के अनुसार बाल वेश्यावृत्ति में संलग्न ज्यादातर बच्चे उत्तर प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार, सिक्किम, ओडिशा, आन्ध्रप्रदेश, नेपाल और कर्नाटक से आते हैं।

अब बाल वेश्यावृत्ति विश्व समस्या बन गयी है यूनिसेफ (UNICEF) द्वारा हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर बाल वेश्यावृत्ति व्यापार का प्रमुख केन्द्र एशिया है। एशिया में अनुमानतः 10 लाख ऐसे बच्चे हैं जो इस व्यवसाय में संलिप्त है। थाइलैण्ड स्थित संगठन 'चाइल्ड प्रॉस्टीट्यूशन इन एशियन टूरिज्म के अनुसार भारत में बाल वेश्याओं की संख्या 3 लाख, थाइलैण्ड में एक लाख, ताइवान में एक लाख, फिलीपीन्स में एक लाख, वियतनाम में 40 हजार तथा श्रीलंका में 30 हजार हैं।

यद्यपि बाल यौन शोषण के विरुद्ध कुछ कानून भी बन गए हैं। थाइलैण्ड में इस व्यवसाय में संलिप्त लोगों के लिए 10 साल के कैद की सजा का प्रावधान है। जर्मनी, नार्वे तथा स्वीडन ने भी बाल अपराध में संलिप्त यौन पर्यटकों पर उनके अपने देश में मुकद्दमा चलाने की स्वीकृति दे दी है। बाल अधिकारों पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हस्ताक्षर करने वाले 187 देशों ने बाल शोषण को रोकने के लिए लगभग असफल रहने के बाद अन्त में सामूहिक रूप से इस समस्या को पूरी तरह नष्ट करने का प्रयत्न किया है।

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