भारत देश में 'दूरस्थ शिक्षा' शब्द एक नवीनतम् शब्द है। लेकिन इसका 'मूल प्रत्यय' अत्यन्त प्राचीन है। यह वैदिक शिक्षा प्रणाली के श्रवण, मनन, निधिध्यासन की स्वाध्याय एवं स्वतः स्फूर्त शिक्षा से उत्पन्न हुआ है। औपचारिक रूप से भारतवर्ष में दूरस्थ शिक्षा का प्रारम्भ सन् 1962 से माना जाता है। दूरस्थ शिक्षा को प्रारम्भ करने का श्रेय दिल्ली विश्वविद्यालय को है।
दूरस्थ शिक्षा के इतिहास में भारतवर्ष में सन् 1975 में सेटेलाइट टेलीविजन एक्सपेरीमेण्ट की स्थापना एक सार्थक कदम सिद्ध हुआ है। आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए राज्यों के 2330 ग्रामों को इसने सम्पर्क सूत्र में बाँधा है। 'दूरस्थ शिक्षा' के अन्तर्गत दूरदर्शन कई कार्यक्रम प्रस्तुत करता है जैसे- एजुकेशन, हायर एजूकेशन टेलीविजन (HETV) UGC कंट्रीवाइड क्लास कम, IGNOU तथा टीचर्स प्रोग्राम आदि। भारत में दूरस्थ शिक्षा के इतिहास में इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की सन् 1985 में स्थापना एक महत्त्वपूर्ण घटना है।
दूरस्थ शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा
साधारण शब्दों में दूर की शिक्षा वह शिक्षा है जिसके माध्यम से देश के किसी भी भाग में शिक्षा प्राप्ति के इच्छुक विद्यार्थियों की शिक्षा का अवसर प्रदान किया जाता है। इस प्रकार की शिक्षा में, खुले अधिगम को महत्ता प्रदान करते हुए सम्प्रेषण साधनों का प्रयोग किया जाता है।
प्रो. होमवर्ग के अनुसार- "शिक्षा की प्रक्रिया में छात्रों को शिक्षा संस्थानों में जाकर शिक्षकों के आमने-सामने कक्षा में बैठकर, व्याख्यान सुनने के समान" "दूरी की शिक्षा" नहीं है और न ही शिक्षा संगठनों की शिक्षण व्यवस्था के समान छात्रों को लाभ होता है बल्कि दूरी की शिक्षा में खुले अधिगम को सम्प्रेषण माध्यमों अथवा शिक्षा तकनीकी के द्वारा सम्पादित किया जाता है। दूरदर्शन की सहायता से शिक्षक ही, छात्रों के पास तक पहुँचकर शिक्षा प्रदान करता है। इसके अन्तर्गत शिक्षक छात्र अन्तर्क्रिया एकपक्षीय ही होती है। दूरी की शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य खुले अधिगम के लिये परिस्थिति उत्पन्न कराता है।"
डॉ. आर. ए. शर्मा के अनुसार- "खुले अधिगम की परिस्थितियाँ लचीली, स्वतन्त्र व स्वच्छन्द होती है। छात्र अपनी इच्छा व आवश्यकता के अनुरूप अपने अध्ययन की व्यवस्था कर सकते हैं।"
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दूरस्थ शिक्षा की मुख्य विशेषताएँ
दूरस्थ शिक्षा की विशेषताएं निम्नलिखित है-
- दूरस्थ शिक्षा में वांछित अधिगम स्वरूपों के लिये परिस्थितियाँ उत्पन्न को जाती हैं।
- दूरस्थ शिक्षा अनुदेशन की प्रक्रिया का गुणात्मक विकास किया जा सकता है।
- दूरस्थ शिक्षा में, छात्र के स्थान पर शिक्षक ही बहु-माध्यमों के उपयोग से छात्रों तक पहुँचता है।
- दूरस्थ शिक्षा में खुले अधिगम की परिस्थितियों का सृजन करके छात्रों को अध्ययन करने की स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है।
- दूरस्थ शिक्षा में रेडियो, टेलीविजन, टेप रिकॉर्डर, वीडियो और सम्प्रेषण माध्यमों के प्रयोग पर विशेष बल दिया जाता है।
- दूरस्थ शिक्षा में, आकाशवाणी दूरदर्शन एवं अन्य संचार माध्यमों को जनसाधारण की शिक्षा हेतु प्रयुक्त किया जा सकता है।
- दूरस्थ शिक्षा के आधार पर, सम्प्रेषण माध्यम के घटकों तथा अधिगम की प्रक्रिया में पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है।
- पत्राचार पाठ्यक्रम, विवृत्त विश्वविद्यालय तथा सतत् शिक्षा को दूरगामी शिक्षा का प्रत्यय ही अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
- दूरस्थ शिक्षा में खुले अधिगम की परिस्थितियों का सृजन करके छात्रों को, अध्ययन करने की स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है।
- दूरस्थ शिक्षा में, शैक्षिक नियोजन, शिक्षण अधिगम की परिस्थितियों तथा मूल्यांकन की व्यवस्था, विश्लेषण उपागम की सहायता से की जाती है।
दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता
दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकताएं निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट होती हैं-
1. जीवन पर्यन्त शिक्षा के लिए
दूरस्थ शिक्षा प्रणाली जीवनपर्यन्त शिक्षा के लिए उपयुक्त है, क्योंकि यह एक ऐसी पद्धति है जिससे व्यक्ति जीवन में किसी भी समय, किसी भी स्थान पर अपनी गति से अपनी आवश्यकतानुसार शिक्षा ग्रहण कर सकता है।
2. प्रौढ़ शिक्षा, ग्रामीणों की शिक्षा एवं आदिवासियों की शिक्षा के लिए
महिलाओं के अतिरिक्त शिक्षित वयस्क, रोजगार में लगे बालक व वयस्क जन समुदाय, खेतों में कार्यरत कृषक, कारखानों में काम करने वाले मजदूर तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति, आदिवासियों तथा अपंगों को समान रूप से शैक्षिक अवसर प्रदान करने की दृष्टि से दूरस्थ शिक्षा अति आवश्यक है।
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3. स्त्री शिक्षा के लिए
भारत में स्त्री शिक्षा का स्तर अभी भी निम्न है। उच्च शिक्षा में इनका प्रतिशत अत्यधिक कम है, जबकि प्राथमिक स्तर पर इनकी स्थिति में कुछ सुधार आया है। प्राथमिक स्तर पर इनकी शिक्षा में अपव्यय और अवरोध बहुत अधिक है। भारत के बहुत से हिन्दी भाषी प्रदेश में महिलाएँ अशिक्षा के श्राप से अधिक ग्रस्त शोषित अवस्था में रहने को बाध्य हैं। आज के तेजी से बदलते वैज्ञानिक युग में भारत यदि विश्व में अपनी गरिमा और अस्तित्व को बनाये रखना चाहता है तो हमारे समाज की सहभागिनी महिलाओं को शिक्षा सुविधा प्रदान करना आवश्यक है। पारस्परिक शिक्षा महिलाओं के एक बड़े प्रतिशत को शिक्षा प्रदान करने में असमर्थ है, जबकि "दूरस्थ शिक्षा'- गृह शिक्षा के रूप में महिला को आसानी से उपलब्ध हो सकती है।
4. निरक्षरता उन्मूलन तथा सतत् शिक्षा के लिए
निरक्षरता उन्मूलन के विभिन्न कार्यक्रमों के अन्तर्गत दूरस्थ शिक्षा एक अधिक प्रभावशाली कार्यक्रम है। सह पूर्ण साक्षरता कार्यक्रमों' को गति देने में सहायक है। दूरस्थ शिक्षा उत्तर साक्षरता तथा सतत् शिक्षा के कार्यक्रम प्रसारित कर साक्षरता अभियान को सार्थक बनाने में अपनी सहायता प्रदान कर रही है।
5. शिक्षा में उन्नत प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए
आज जबकि सम्पूर्ण विश्व में विकास का एकमात्र आधार उन्नत प्रौद्योगिकी है, हमारे देश में भी राष्ट्रीय विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत शिक्षा में प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की दृष्टि से दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता है। प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत अनेक बहु संचार माध्यमों जैसे रेडियो, टी. बी. ऑडियो-वीडियो कैसेट, कम्प्यूटर आदि का आविष्कार हुआ, जिनका प्रयोग मुख्यतः मनोरंजन तथा औद्योगिक क्षेत्रों तक सीमित था. लेकिन दूरस्थ शिक्षा की संकल्पना ने इन उपकरणों का प्रयोग शिक्षा में करने की जानकारी दी। दूरस्थ शिक्षा शैक्षिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से शिक्षा के प्रसार-प्रचार में सहायक सिद्ध हुई है।
6. शिक्षा की बढ़ती मांग की पूर्ति के लिए
बढ़ती जनसंख्या और ज्ञान के विस्फोट के कारण समाज के सभी वर्गों में शिक्षा की माँग बढ़ रही है। पारस्परिक शिक्षा प्रणाली बढ़ती हुई शैक्षिक माँग को पूरा करने में असमर्थ है, अतः दूरस्थ शिक्षा अपनी अन्तर्निहित गुणवत्ता के कारण सभी इच्छुक जन समूह को शिक्षा प्रदान करने में सामर्थ्यवान है।
7. शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लिए
स्वतन्त्र भारत में शिक्षा के सार्वभौमीकरण का निरन्तर प्रयास किया जाता रहा है लेकिन अभी तक हमारे देश में लगभग 64 प्रतिशत जनता शिक्षा सुविधाओं से वंचित है। ऐसी स्थिति में दूरस्थ शिक्षा हो देश के कोने-कोने में मुख्य धारा शिक्षा से वंचित लोगों को शिक्षा उपलब्ध कराने का एक प्रमुख साधन है।
दूरस्थ शिक्षा हेतु सुझाव
दूरस्थ शिक्षा के सुचारु रूप से क्रियान्वयन करने के लिए निम्न सुझाव प्रमुख हैं-
- अनौपचारिक शिक्षा के विस्तार से सम्बन्धित कार्यक्रमों पर विशेष बल दिया जाना चाहिए।
- दूरगामी शिक्षा के द्वारा उन स्थानों के छात्रों को लाभान्वित करने का प्रयास किया जाना चाहिए जहाँ शिक्षा संस्थाएँ पर्याप्त मात्रा में सुलभ नहीं हैं।
- दूरस्थ शिक्षा को व्यापक कार्यक्रम बनाने पर बल दिया जाना चाहिए।