व्यवसाय का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं

व्यवसाय का अर्थ

प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्बन्ध व्यवसाय से अवश्य होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि "व्यवसाय का अर्थ उन समस्त मानवीय क्रियाओं से होता है जो मनुष्य द्वारा धनोत्पादन के उद्देश्य से की जाती है।"

व्यवसाय की परिभाषाएँ

विभिन्न विद्वानों ने व्यवसाय की परिभाषाएँ निम्नलिखित प्रकार से दी हैं- 

(1) प्रो० हने के अनुसार- "व्यावसायिक क्रिया से आशय उन मानवीय क्रियाओं से है, जोकि वस्तुओं के क्रय-विक्रय द्वारा सम्पत्ति उत्पन्न करने या उसके प्राप्त करने से सम्बन्ध रखती हैं।

(2) थॉमस के विचारानुसार- "व्यवसाय एक ऐसा कार्य है, जिसका मुख्य उद्देश्य मौद्रिक लाभ तथा जिसकी जोखिम मौद्रिक हानि है।" 

(3) स्त्रीगल के शब्दों में-"व्यावसायिक क्रियाओं के अन्तर्गत उन समस्त क्रियाओं का समावेश किया जाता है, जिनका सम्बन्ध वस्तुओं या सेवाओं के निर्माण व विक्रय से होता है।" 

(4) जे० स्टीफेन्सन के मतानुसार- "व्यवसाय के अन्तर्गत व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग तीनों ही सम्मिलित हैं।लाभ कमाने हेतु वस्तुओं के क्रय-विक्रय को ही व्यापार की संज्ञा प्रदान की जाती है, जबकि वाणिज्य में वस्तुओं के क्रय-विक्रय की सहायक प्रक्रियाएँ; जैसे- यातायात, डाक-तार व टेलीफोन, बैंक व स्टॉक एक्सचेंज आदि सम्मिलित हैं।"

उचित परिभाषा- उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि "कोई भी क्रिया जो लाभ प्राप्ति के लिए की जाती है, 'व्यवसाय' कहलाती है; क्योंकि लाभ और व्यवसाय को एक-दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता है।"

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व्यवसाय की विशेषताएँ या लक्षण

व्यवसाय एक आर्थिक क्रिया है, किन्तु प्रत्येक आर्थिक क्रिया को व्यवसाय नहीं कहा जा सकता, क्योंकि व्यवसाय की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं, जो निम्नलिखित है-

(1) जोखिम  

प्रत्येक व्यवसाय में जोखिम का तत्त्व अनिवार्य रूप से पाया जाता है। यह जोखिम कम या अधिक हो सकती है। जोखिम के कारण ही व्यवसायी हमेशा सतर्क रहता है; क्योंकि थोड़ी-सी लापरवाही हानि का कारण बन सकती है।

(2) साहस का तत्त्व

प्रत्येक व्यवसाय में साहस का तत्त्व पाया जाता है; क्योंकि साहस व्यवसायी में नई आशा का संचार करता है। इससे वह पुनः भारी से भारी कार्य करने एवं जोखिम उठाने के लिए तत्पर रहता है।

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(3) लाभ-प्रयोजन

प्रत्येक व्यवसायों का उद्देश्य लाभ कमाना होता है; लाभ की प्रेरणा से ही व्यवसाय में निरन्तरता बनी रहती है। दूसरे, लाभ कमाने के उद्देश्य से हो प्रत्येक मनुष्य किसी व्यवसाय में जोखिम उठाने के लिए सदैव तत्पर रहता है।

(4) सेवाभाव 

लाभ के साथ-साथ सेवाभाव भी होना आवश्यक है; क्योंकि सेवाभाव व्यावसायिक सफलता का मूल मन्त्र है। इस सेवाभाव के कारण ही हेनरी फोर्ड एक साधारण व्यवसायी से विश्व के प्रमुख उद्योगपति बन गए।

(5) विनिमय का तत्त्व

व्यावसायिक क्रियाओं की एक विशेषता यह भी है कि इनमें प्रत्यक्ष या परोक्ष, किसी-न-किसी रूप में वस्तुओं या सेवाओं का विक्रय, हस्तान्तरण या विनिमय अवश्य ही होता है। 

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(6) उपयोगिता का सृजन

व्यवसाय के माध्यम से उपयोगिता का सृजन होता है; क्योंकि जो वस्तु पहले हमारे लिए कम उपयोगी होती है, वह व्यवसाय के द्वारा अधिक उपयोगी हो जाती है।

(7) लेन-देन में नियमितता 

वस्तुओं या सेवाओं का वही विनिमय 'व्यवसाय' कहलाता है, जो निरन्तर या नियमित रूप से किया जाता है। यदा कदा होने वाले लेन-देनों को व्यवसाय नहीं माना जाता।

(8) उपभोक्ता को सन्तुष्टि

व्यवसाय का लक्ष्य सदैव 'उपभोक्ता की सन्तुष्टि' ही रहता है; क्योंकि व्यवसाय की सफलता वास्तव में उपभोक्ता पर ही निर्भर रहती है।

(9) व्यवसाय से सम्बद्ध व्यक्तियों की सन्तुष्टि 

व्यवसाय में व्यवसाय से सम्बद्ध व्यक्तियों को सन्तुष्टि आवश्यक होती है।

(10) वस्तुओं या सेवाओं का लेन-देन 

प्रत्येक व्यवसाय के अन्तर्गत वस्तुओं या सेवाओं का लेन देन होना आवश्यक है। वस्तुएँ उपभोग सम्बन्धी या पूँजीगत हो सकती हैं तथा सेवाएँ अदृश्य पदार्थ होती हैं, जो संचित करके नहीं रखी जा सकतीं।

(11) मानवीय क्रिया 

केवल मानवीय क्रियाओं को ही व्यवसाय में सम्मिलित करते हैं। पशुओं, देवों आदि की क्रियाएँ व्यवसाय में शामिल नहीं हैं।

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पेशे से आशय

पेशे से आशय उस कार्य से है जिसके लिए एक विशिष्ट ज्ञान की उपलब्धि आवश्यक होती है। इस विशिष्ट ज्ञान की प्राप्ति के लिए एक निश्चित पाठ्यक्रमानुसार अध्ययन करके अभ्यास करना होता है; जैसे- डॉक्टर, वकील, चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट, कम्पनी सेक्रेटरी प्रोफेसर व इंजीनियर आदि । 

पेशे की विशेषताएँ

उपर्युक्त आशय के अनुसार पेशे की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) इसमें मूल उद्देश्य सेवाभाव का होता है।

(2) इसमें ज्ञान का उपयोग दूसरे व्यक्तियों के लिए किया जाता है।

(3) इसमें लाभ के स्थान पर सेवा को प्राथमिकता दी जाती है।

(4) इसमें नैतिक गुणों का पाया जाना भी अत्यन्त आवश्यक है।

(5) इसके लिए सम्बन्धित सिद्धान्तों एवं तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक होता है।

(6) पेशेवर व्यक्ति में प्रायः नैतिकता एवं ईमानदारी का गुण पाया जाता है। 

(7) इसकी अपनी आचार संहिता होती है जिसको पेशेवर व्यक्तियों को अपनाना होता है।

व्यवसाय तथा पेशे में अन्तर

व्यवसाय तथा पेशे में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर पाए जाते हैं-

क्र० सं०

अन्तर का आधार

व्यवसाय

पेशा

1.

उद्देश्य

इसका मुख्य उद्देश्य लाभोपार्जन करना होता है।

इसका प्रमुख उद्देश्य सेवाभाव होता है।

2.

प्रशिक्षण

इसके लिए व्यवसायी का प्रशिक्षित होना। आवश्यक नहीं है।

इसके लिए व्यक्ति का प्रशिक्षित होना आवश्यक है।

3.

दक्षता

इसके लिए व्यवसायी को कई विषयों में दक्षता प्राप्त करनी होती है। 

इसके लिए व्यक्ति का अपने निश्चित पेशे में दक्ष होना आवश्यक होता है। 

4.

पूँजी की आवश्यकता

इसमें अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।

इसमें कम पूँजी की आवश्यकता होती है।

5.

जोखिम की मात्रा

इसमें जोखिम की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक | होती है।

इसमें जोखिम की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।

6.

लाभ की प्राप्ति

इसमें लाभ प्राप्त होता हैजो प्रायः अनिश्चित होता है।

इसमें पारिश्रमिक प्राप्त होता हैजो प्रायः पूर्व-निश्चित होता है।

7.

सम्मान

यह पेशे की अपेक्षा कम सम्मानजनक होता है।

यह व्यवसाय की अपेक्षा अधिक सम्मानजनक होता है।

8.

दृष्टिकोण

इसका दृष्टिकोण सामूहिक होता है। 

इसका दृष्टिकोण व्यक्तिगत होता है।

9.

प्रतिफल के लिए न्यायालय में वाद

यह अपने प्रतिफल के लिए न्यायालय में वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता  

यह अपने पारिश्रमिक के लिए न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकता है।

10.

सदस्यता 

किसी भी व्यवसाय में सदस्यता सम्बन्धी नामांकन अनिवार्य नहीं होता

कुछ दशाओं में पेशेवर व्यक्तियों के लिए सदस्यता सम्बन्धी नामांकन अनिवार्य होता है ।

11.

प्रदान की जाने वाली सेवाएँ

व्यवसायी द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ सामान्य और अगोपनीय स्वभाव की होती हैं।

पेशेवर व्यक्ति द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ विशिष्ट व गोपनीय प्रकृति की होती हैं।

12.

पुरस्कार

वस्तुओं सेवाओं की पूर्ति के बदले व्यवसायी को जो प्रतिफल प्राप्त होता हैउसे 'कीमतकहते हैं।

पेशेवर व्यक्ति को अपनी सेवाओं के लिए जो पुरस्कार प्राप्त होता हैउसे 'फीसकहते हैं।

13.

विज्ञापन

व्यवसायी पर विज्ञापन के सम्बन्ध में कोई रोक नहीं है और वह प्रतियोगी- बाजार में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए समाचार-पत्रों आदि के द्वारा विज्ञापन कराता है।

एक पेशेवर व्यक्ति समाचार-पत्रों में शायद ही कभी अपनी सेवाओं का विज्ञापन कराता हो। कुछ दशाओं में तो ऐसा करना वर्जित भी है।

 

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