पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ
पर्यावरण, जिसमें मनुष्य सहित सभी जीव रहते हैं, एक विशाल पारिस्थितिक तन्त्र है। इसके अनेक घटक हैं इन सभी घटकों की परस्पर क्रिया-प्रतिक्रियाओं के कारण ही सन्तुलन बना रहता है और जीव अपना जीवन-चक्र पूरा करता रहता है; किन्तु इस सन्तुलन के बिगड़ जाने पर जीवों को अपना जीवन चक्र चलाने में कठिनाई होने लगती है।
ऐसे किसी घटक को कम या अधिक कर देना अथवा किसी अन्य प्रकार के पदार्थों का वातावरण में प्रवेश पर्यावरण के इस सन्तुलन को बिगाड़ देता है। यही 'पर्यावरण प्रदूषण' है। किसी भी प्रकार के भौतिक परिवर्तन, रासायनिक परिवर्तन या अन्य किसी प्रकार के परिवर्तन, जो जीवों के जीवन-क्रम में किसी प्रकार के अवांछनीय परिवर्तन करते हैं, प्रदूषण का हो एक भाग हैं। ई० जे० रॉस (E. J. Ross) के अनुसार, "पर्यावरण एक बाह्य शक्ति है, जो हमें प्रभावित करती है।"
पर्यावरण प्रदूषण की परिभाषा
पर्यावरणीय प्रदूषण की प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-
अमेरिका के राष्ट्रपति की विज्ञान सलाहकार समिति (1965 ई०) ने पर्यावरणीय प्रदूषण को इस प्रकार परिभाषित किया है- "पर्यावरणीय प्रदूषण मनुष्यों की गतिविधियों द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्पन्न उप-उत्पाद है, जो वातावरण का पूर्ण रूप से अथवा अधिकतम प्रतिकूल परिवर्तन उत्पन्न करता है; ऊर्जा स्वरूपों, विकिरण स्तरों, रासायनिक तथा भौतिक संगठन और जीवों की संख्या में परिवर्तन को प्रदूषित करता है।"
सम्पूर्ण पृथ्वी का जीवन मण्डल एक है; अतः पर्यावरणीय प्रदूषण एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है, जो जनसंख्या को वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती जा रही है।
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इस सम्बन्ध में 'संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की पर्यावरण समिति (1966 ई०)' ने कहा है- "चूँकि पृथ्वी अधिक भीड़युक्त हो रही है; अतः प्रदूषण से बचने का कोई रास्ता नहीं है। एक व्यक्ति का कूड़ादान दूसरे व्यक्ति का निवास स्थल है।"
प्रसिद्ध पारिस्थितिक विज्ञानवेत्ता ओडम के शब्दों में- "प्रदूषण हमारी हवा, भूमि एवं जल के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक लक्षणों में अवांछनीय परिवर्तन है, जो मानव-जीवन तथा अन्य जीवों, हमारी औद्योगिक प्रक्रिया जीवन-दशाओं तथा सांस्कृतिक विरासतों को हानिकारक रूप में प्रभावित करता है अथवा प्रभावित करेगा और जो कच्चे पदार्थों के स्रोतों को नष्ट कर सकता है या करेगा।"
पर्यावरण प्रदूषण के कारण
पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-
- कार्बन डाइ ऑक्साइड की बढ़ती मात्रा ।
- घरेलू अपमार्जकों का अधिकाधिक प्रयोग ।
- वाहित मल का नदियों में गिराया जाना ।
- उद्योगों से अपशिष्ट रासायनिक पदार्थों का निकास ।
- स्वचालित वाहनों में पेट्रोल, डीजल आदि पदार्थों के जलने से वातावरण में विषैली गैसों का फैलाव ।
- परमाणु परीक्षणों से वातावरण में रेडियोधर्मी पदार्थों का फैल जाना।
- कीटनाशक व अपतृणनाशी रासायनिक पदार्थों का बढ़ता प्रयोग।
पर्यावरणीय प्रदूषण के प्रकार
पारिस्थितिक विज्ञान के अनुसार, पृथ्वी को तीन प्रमुख भागों में बाँटा गया है-
(1) स्थलमण्डल (2) वायुमण्डल तथा (3) जलमण्डल।
प्रदूषण के मुख्य प्रकार निम्नांकित है-
(1) वायु प्रदूषण (2) जल प्रदूषण (3) मृदा प्रदूषण (4) ध्वनि प्रदूषण एवं (5) रेडियोधर्मी प्रदूषण।
(1) वायु प्रदूषण (Air Pollution)
ऑक्सीजन को छोड़कर वायु में किसी भी गैस की मात्रा सन्तुलित अनुपात से अधिक होने पर वायु साँस लेने के योग्य नहीं रहती। अतः वायु में ऑक्सीजन के अतिरिक्त किसी भी गैस की वृद्धि अथवा अन्य पदार्थ का समावेश हो 'वायु प्रदूषण' है। श्वसन क्रिया में सभी जीव कार्बन डाइ ऑक्साइड निकालते तथा ऑक्सीजन लेते हैं; किन्तु हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइ ऑक्साइड का उपयोग करके ऑक्सीजन वायु में छोड़ते रहते हैं। इस
प्रकार इन दोनों गैसों का अनुपात सन्तुलित रहता है। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार से इस सन्तुलन को बिगाड़ता है। एक ओर तो वह वन इत्यादि को काटता रहता है, दूसरी ओर कल-कारखाने, औद्योगिक संस्थान आदि चलाकर वायु में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा ही नहीं बढ़ाता, अपितु नाइट्रोजन, सल्फर आदि अनेक तत्त्वों के ऑक्साइड्स इत्यादि को भी वायुमण्डल में मिला देता है।
स्वचालित मोटरगाड़ियों, जैसे- ट्रक, बस, कार, विमान आदि से अनेक प्रकार के अदग्ध हाइड्रोकार्बन्स तथा अन्य विषैली गैसें निकलती है। ये गैसें अनेक छोटे-छोटे विषैले कण वायु में विकिरित करके वायु को प्रदूषित करती रहती हैं।
(2) जल प्रदूषण (Water Pollution)
जल में अनेक प्रकार के खनिज, कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसों के एक निश्चित अनुपात से अधिक अथवा अन्य अनावश्यक तथा हानिकारक पदार्थ घुले होने से जल प्रदूषित हो जाता है। यह प्रदूषित जल जीवों में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न कर सकता है।
जल प्रदूषक विभिन्न रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु, वाइरस आदि कीटाणुनाशक पदार्थ, अपतॄणनाशी पदार्थ, रासायनिक खादें, अन्य कार्बनिक पदार्थ, औद्योगिक संस्थानों से निकले अनावश्यक पदार्थ, बाहित मल आदि अनेक पदार्थ हो सकते हैं। इन पदार्थों का स्वास्थ्य पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है।
(3) मृदा प्रदूषण (Soil Pollution)
पौधों का मूल-तन्त्र भूमि के अन्दर मृदा में रहता है। मृदा से वे अपने लिए अधिकतर कच्चे पदार्थों का अवशोषण करते हैं। जड़ों के सुव्यवस्थित बने रहने के लिए उन्हें आवश्यकतानुसार जल तथा वायु (ऑक्सीजनयुक्त) प्राप्त होती रहनी चाहिए।
प्रदूषित जल तथा वायु के कारण मृदा भी प्रदूषित हो जाती है। वर्षा के जल के साथ ये प्रदूषक (पदार्थ) मिट्टी में आ जाते हैं, जैसे- वायु में सल्फर डाइऑक्साइड वर्षा के जल के साथ मिलकर सल्फ्यूरस अम्ल बना लेती है। इसी प्रकार जनसंख्या को वृद्धि के साथ-साथ अधिक फसल पैदा करने के लिए तथा भूमि की उर्वरता बढ़ाने या बनाए रखने के लिए उर्वरकों का उपयोग किया जाता है।
विभिन्न प्रकार के कीटाणुनाशक पदार्थ, अपतृणनाशी पदार्थ आदि फसलों पर छिड़के जाते हैं। ये सब पदार्थ, मृदा के साथ मिलकर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार प्रदूषण पौधे की वृद्धि रोकने, कम करने या उसको मृत्यु का कारण हो सकता है।
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(4) ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution)
ध्वनि विभिन्न प्रकार के यन्त्रों, वाहनों, मशीनों आदि से उत्पन्न होती है। लाउडस्पीकर, साइरन, बाजे, मोटरकार, बस, ट्रक तथा वायुयान आदि इसके अनेक उदाहरण हैं। ध्वनि की तरंगें जीवों की विभिन्न उपापचयी क्रियाओं को प्रभावित करती हैं। इससे श्रवण शक्ति का हास होता है, तन्त्रिका तन्त्र सम्बन्धी रोग हो सकते हैं, नींद न आने का रोग हो सकता है तथा रक्तचाप बढ़कर हृदय रोग हो सकता है। कुछ प्रकार की ध्वनि सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देती है। इससे जैव अपघटन क्रिया में भी बाधा उत्पन्न होती है।
(5) रेडियोधर्मी प्रदूषण (Radio-active Pollution)
रेडियोधर्मी पदार्थ वातावरण में विभिन्न प्रकार के कण और किरणें उत्पन्न करते हैं। परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों और आणविक परीक्षणों इत्यादि से वातावरण की रेडियोधर्मिता बढ़ती जाती है। जल, वायु और मिट्टी का इन कणों के द्वारा प्रदूषण विभिन्न प्रकार के भयानक आनुवंशिक रोगों को उत्पन्न कर सकता है। एक नाभिकीय विस्फोट में इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन कणों के साथ-साथ (alfa, vita, gama) कण या किरणें भी निकलती हैं।
इनके द्वारा कोशिकाओं के अन्दर उपस्थित गुणसूत्रों के जीन्स में परिवर्तन या उत्परिवर्तन हो जाते हैं। ऐसे परिवर्तन आनुवंशिक होते हैं। परमाणु विस्फोटन के समय तो अत्यधिक ताप उत्पन्न होता है, जिससे कई किलोमीटर दूर तक ऊष्मा के कारण लकड़ी जल जाती है तथा धातुएं पिघल जाती हैं। विस्फोटन से उत्पन्न रेडियोधर्मी पदार्थ वातावरण की विभिन्न पर्तों में (बाह्य पर्तों में भी) प्रवेश कर जाते हैं। बाद में ये पदार्थ ठण्डे तथा संघनित होकर बूंदों का रूप ले लेते हैं, जो छोटे-छोटे धूल के कणों की भाँति ठोस होकर वायु के साथ समस्त संसार में फैल जाते हैं।
कुछ समय के पश्चात् यह रेडियोधर्मी धूल पृथ्वी पर बैठने लगती है और पौधों की पत्तियों पर चिपककर अथवा अन्य प्रकार से पौधों के अन्दर प्रवेश कर जाती है। पौधों के विभिन्न भागों को जब जन्तु या मनुष्य भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं, तो ये रेडियोधर्मी कण उनके शरीर में पहुँचकर विभिन्न रोग उत्पन्न कर देते हैं। इन नाभिकीय विस्फोटनों में प्रायः 5% स्टान्शियम- 90 निकलता है।
इसके अतिरिक्त, अन्य रेडियोधर्मी पदार्थ बनते हैं। जब रेडियोधर्मी पदार्थों के कण भूमि पर बादलों की तरह बरसते हैं तो इसे 'रेडियोधर्मी फाल-आउट' कहते हैं। रेडियोधर्मी फाल-आउट के कारण ही जल, वायु तथा मृदा प्रदूषित हो जाती है।
इस प्रकार के प्रदूषण से कैंसर, ल्यूकीमिया आदि अनेक प्रकार के भयानक रोग उत्पन्न हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त रोग अवरोधक शक्ति का हास हो जाता है, तन्त्रिका तन्त्र में अनेक प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं। रेडियोधर्मी पदार्थ बच्चों के लिए अत्यधिक हानिकारक हैं।
पर्यावरण प्रदूषण का उद्योग एवं व्यापार पर प्रभाव
पर्यावरण प्रदुषण ने उद्दोग एवं व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
इसे निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
(I) वायु प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Air Pollution)
वायु प्रदूषण के प्रमुख प्रभाव इस प्रकार हैं-
- वायु प्रदूषण ने निर्माण उद्योग को क्षति पहुँचाई है और ऊंची-ऊँची अट्टालिकाओं में प्रयुक्त सामग्री को पर्यावरणीय प्रदूषण ने उद्योग एवं व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। इसे निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया दूषित किया है।
- वायु प्रदूषण के कारण वायुमण्डल में ऑक्सीजन की कमी होकर कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा बढ़ी है। इससे वायुमण्डल का ताप बढ़ा है, जिससे लोगों के स्वास्थ्य और उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
- वायु प्रदूषण से वनस्पतियों की वृद्धि एवं विकास अवरुद्ध होता है, जिसका औषध उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- जनशक्ति औद्योगिक विकास का मूलाधार है। वायु प्रदूषण मनुष्य को रोगी बनाता है, उसकी कार्यक्षमता को कम करता है, उसको अशक्त बनाता है तथा उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है। इससे प्रति व्यक्ति औद्योगिक उत्पादकता कम हो जाती है।
- अकुशल एवं रोगी जनशक्ति के कारण उत्पादन का स्तर गिरता है।
- प्रदूषण के कारण उद्योगों में कार्य करने की दशाएँ कुप्रभावित होती हैं, जिससे औद्योगिक संघर्षो में वृद्धि होती है।
खनिज पदार्थ वर्तमान आर्थिक प्रगति के आधार हैं। जिन देशों ने अपने खनिज पदार्थों का जितना ही अधिक उपयोग किया है, वे उतने ही अधिक प्रगतिशील तथा समृद्ध बन गए हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान व ब्रिटेन की समृद्धि का आधार उनके खनिज ही तो हैं। जिन देशों ने अपने खनिजों का उपयोग नहीं किया, वे आज भी गरीब बने हुए हैं।
(II) जल प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Water Pollution)
जल प्रदूषण के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित है-
- जल-प्रदूषण जल स्रोतों को प्रदूषित कर देता है।
- प्रदूषित जल से सींचे गए पौधे रोगग्रस्त हो जाते हैं, उनकी विकास एवं वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है जिससे उद्योगों के समक्ष कच्चे माल की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
- प्रदूषित जल से सींचे जाने से उत्पन्न फल प्रदूषित, रोगमस्त एवं अनाकर्षक हो जाते हैं, जिसका फलों के व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- प्रदूषित जल से मनुष्य रोगग्रस्त हो जाता है, जिससे उसकी उत्पादन क्षमता गिर जाती है।
- नदियों एवं सागरों में प्रदूषित जल से जलीय जीव, मछलियाँ आदि मरने लगते हैं, जिससे मत्स्य पालन उद्योग का विकास अवरुद्ध हो जाता है।
(III) मृदा प्रदूषण का प्रभाव (Effects of Soil Pollution)
मृदा प्रदूषण के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित है-
- मृदा-प्रदूषण के कारण मृदा में अनेक विषैले पदार्थों का प्रवेश हो जाने से उसमें विद्यमान जीव-जन्तु अपनी प्राकृतिक क्रिया सम्पन्न नहीं कर पाते। इससे मृदा की उर्वरा शक्ति का ह्रास होता है, कृषि उत्पादकता का स्तर गिरता है। और कृषि पर आधारित उद्योगों को कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता।
- कृषि-उत्पादकता का स्तर गिरने पर कृषिजन्य वस्तुओं के व्यापार को ठेस पहुँचती है।
- मृदा में मिले प्रदूषित पदार्थ सिंचाई जल अथवा वर्षा के साथ जल स्रोतों में पहुँच जाते हैं। इस प्रदूषित जल का वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- प्रदूषित मृदा से उत्पन्न खाद्य पदार्थ भी प्रदूषित होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालकर उसको कार्यक्षमता को कम करते हैं जिसका औद्योगिक उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- आन्तरिक जल यातायात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(IV) खनिज प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Mineral Pollution)
- विगत 52 वर्षो में मानव ने खनिज पदार्थों का इतनी बेदर्दी से खनन व उपयोग किया है कि अनेक खनिज पदार्थों के 21वीं शताब्दी के अन्त तक समाप्त हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
- खनन से वनस्पतियों व जीव-जन्तुओं के नुकसान के साथ-साथ वनों को भी हानि होती है, जिससे वनों पर आधारित उद्योगों के लिए कच्चे माल की कमी हो जाती है।
- खनन के समय अनेक प्रकार की गैसों के निकलने से वायु प्रदूषण होता है जिससे उद्योग व व्यापार प्रभावित होता है।
- खनन कार्य से भूमि प्रयोग का ढाँचा बुरी तरह प्रभावित होता है और उस क्षेत्र में भूमि का कटाव होता है, जिससे कृषि व उद्योग प्रभावित होते हैं।
- खनन से निकाले जाने वाले खनिज निचली सतह तथा भूमिगत जल से मिलते हैं, जिससे जल-संसाधन प्रदूषित हो जाते हैं।
- खनिज क्षेत्रों में स्थित ऐतिहासिक स्मारकों व धार्मिक स्थलों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है; जैसे- कर्नाटक में श्रवणबेलगोला पहाड़ी पर स्थित धर्मस्थल।