एड्स क्या है | एड्स का इलाज है या नहीं | एड्स क्यों होता है?

 एच. आई. वी. / एड्स (H.I.V/AIDS)

एड्स मनुष्यों को होने वाली एक बीमारी है जो कैंसर से भी अधिक खतरनाक होती है। कैंसर का रोगी तो इलाज के द्वारा 10-20 वर्षों तक भी जिन्दा रह सकता है, लेकिन एड्स रोग से ग्रसित व्यक्ति प्राय: 1-3 वर्षों के बीच इस दुनिया से चला जाता है। इसलिए इसे महारोग कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। आज एड्स इस शताब्दी की भयंकरतम बीमारी बन चुकी है। 'एड्स' रोग का संक्षिप्त अंग्रेजी नाम है यह अंग्रेजी के चार अक्षरों ए. आई. डी. एस.(AIDS) से मिलकर बना है, जिसका पूरा नाम है- एक्वायर्ड इम्यून डिफिशिएंसी सिंड्रोम (Acquired Immune Deficiency Syndrome)। अक्सर इसे 'एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम' भी कहते हैं।

    इसे सरल हिन्दी भाषा में कहें तो यह ऐसे लक्षणों वाली बीमारी है, जिसमें मनुष्य की रोग प्रतिरोधक शक्ति चली जाती है। यह कोई साधारण सी बात नहीं है क्योंकि रोग-प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो जाने से शरीर कई तरह के संक्रमणों से ग्रस्त हो जाता है। दवाइयाँ अपना प्रभाव नहीं दिखा पार्ती और एक छोटा-सा रोग बड़ा रूप लेकर मरीज को मौत की नींद सुला देता है। यदि रोगी को दस्त लगने शुरू होते हैं तो महीनों लगे रहते हैं, बुखार या निमोनिया होता है तो वह भी ठीक नहीं हो पाता। यहाँ तक कि प्रतिरक्षा के अभाव में मरीज की त्वचा या रक्तवाहिकाओं की दीवारों का कैंसर भी हो जाता है। रोगी का वजन गिरता जाता है। ऊपर से परिवार और समाज की उपेक्षा तथा तिरस्कार उसे मानसिक रूप से भी तोड़ देता है।

    एड्स क्या है | एड्स का इलाज है या नहीं | एड्स क्यों होता है

    संक्षेप में, बीमारी को इस तरह परिभाषित कर सकते हैं- एड्स विषाणुजन्य' ऐसे रोगों का समूह है, जिनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट होने के कारण कई लक्षण; जैसे- वजन कम होना, दस्त लगना, बुखार, लसिका ग्रन्थियों में सूजन आना इत्यादि उत्पन्न होने के साथ ही निमोनिया, टी.बी. जैसे अवसरवादी रोग भी हो जाते हैं।

    वस्तुतः एड्स एक रोग न होकर रोगों का समूह है जो अतिसूक्ष्म जैविक इकाई 'विषाणु' द्वारा उत्पन्न होता है। यह विषाणु रक्त कोशिकाओं पर आक्रमण करके शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को नष्ट कर देता है।

    एड्स एक संक्रामक बीमारी है

    (AIDS is an Infectious Disease) संक्रामक बीमारी का अर्थ होता है, बीमारी का सम्पर्क द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुँच जाना। एड्स संक्रामक रोग तो है, लेकिन छूत की बीमारी कतई नहीं है; यानि यह रोगी के पास जाने, खाँसने, खखारने अथवा उसके बरतनों के प्रयोग से नहीं होती। यह रोग मच्छर-मक्खी तथा अन्य कीड़ों द्वारा भी नहीं होता। एड्स विषाणु के संक्रमण के लिए विषाणु का स्वस्थ व्यक्ति के रक्त से सीधा सम्पर्क जरूरी है। 

    यदि एड्स विषाणु से संक्रमित रोगी का रक्त भूल से किसी अन्य मरीज को चढ़ा दिया जाए तो वह भी एड्स रोग के विषाणु से संक्रमित हो जाएगा। इसी प्रकार यदि एक स्वस्थ व्यक्ति एड्स रोगी के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित करे तो उसे भी यह संक्रमण हो सकता है; क्योंकि रक्त के अलावा वीर्य एवं योनि स्राव में भी एड्स के विषाणु मौजूद रहते हैं। यौन-क्रिया के दौरान श्लेष्मा झिल्ली के कटने-फटने से विषाणु रक्त में जा सकते हैं और यह संक्रमण स्वस्थ व्यक्ति को भी हो सकता है। एड्स विषाणु से दूषित खून वाले इंजेक्शनों से भी रोग लग सकता है। इस तरह एड्स एक संक्रामक रोग है।

    एड्स का फैलाव

    (Expansion of AIDS) एड्स के विषाणु जब तक रक्त में न पहुँचे तब तक रोग नहीं हो सकता। रोगी के उपयोग के वस्त्रों अथवा उसके जूठे बर्तनों का इस्तेमाल करने से हाथ मिलाने या गले मिलने से या खाँसने से यह नहीं फैलता।

    इस तरह यह स्पष्ट है कि जब तक एड्स विषाणु खून से सम्पर्क में न आएँ, संक्रमण नहीं होता। यहाँ तक कि रोगी के साथ रहने से भी नहीं होता; लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं है कि संक्रमित रोगी से सावधान ही न रहा जाए। उसके साथ यौन सम्पर्क करने से रोग लग सकता है। इसके द्वारा उपयोग में लाए ब्लेड, इंजेक्शन इत्यादि से भी रोग लगने की सम्भावना रहती है। इसलिए एड्स रोगी से कुछ मामलों में सावधानी बरतना आवश्यक है।

    एड्स विषाणुयुक्त रक्त अथवा रक्त उत्पाद देने से भी रोग लग सकता है। यद्यपि एच. आई. बी. खून के अलावा रक्त उत्पाद, वीर्य, योनि स्राव, माँ के दूध, आँसू, पसीना, मल-मूत्र इत्यादि में भी पाए गए हैं लेकिन प्रमुख रूप से संक्रमण रक्त वीर्य और योनि स्राव द्वारा ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति से पहुँचता है। उदाहरणार्थ, यदि विषाणुयुक्त रक्त, वीर्य या योनि स्राव किसी स्वस्थ व्यक्ति के घाव अथवा कटे हुए स्थान पर लग जाए तो रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसके अलावा अस्पतालों, प्रसूतिकागृहों, जाँच केन्द्रों एवं रक्त बैंकों में जीवाणुरहित करने वाली प्रक्रियाओं को ठीक से न अपनाने से भी यह रोग एक व्यक्ति से अनेक व्यक्तियों में पहुँच जाता है।

    अमर्यादित यौन सम्बन्धों की इस रोग में प्रमुख भूमिका है। हमारे यहाँ वैश्यावृत्ति करने वाली महिलाएँ भी रोग को फैलाने में प्रमुख भूमिका निभा रही है। सर्वेक्षणों द्वारा यह साबित हो चुका है कि समलिंगी और विषमलिंगी दोनों तरह के यौन सम्बन्धों से एड्स होने की सम्भावना लगभग बराबर होती है।

    उदभवन काल- 

    6 माह से 5 वर्ष या अधिक हो सकता है। 

    लक्षण (Symptoms)- 

    निम्नलिखित लक्षण होते हैं-

    • शरीर के वजन में अचानक कमी आता।
    • एक माह से अधिक समय के लिए दस्त व ज्वर रहता है।
    • लसिका ग्रन्थियों में सूजन होना, गले में खले व गिल्टियाँ होना। 
    • अत्यधिक पसीना तथा माँसपेशियों में दर्द व कमजोरी रहती है।

    प्रतिरक्षण अभी तक कोई टीका (Vaccine) उपलब्ध नहीं है उपचारीय औषधि उपलब्ध नहीं है। इस कारण व्यक्तिगत बचाव ही एकमात्र तरीका है। इसके लिए जागरूकता, जनचेतना, सुरक्षित यौन सम्बन्ध, कण्डोम का उपयोग करना चाहिए।

    एड्स से संक्रमित महिला को गर्भधारण नहीं करना चाहिए या गर्भ समाप्त कर लेना चाहिए। रक्तदान करते समय डिस्पोजेबल सिरिंज का प्रयोग करना चाहिए। रक्तदान करते समय संक्रमित रक्त नहीं हो, उसका परीक्षण करना चाहिए। इसी प्रकार से रक्त से निर्मित औषधियों के लिए आवश्यक प्रमाणपत्र प्राप्त कर लेना चाहिए।

    किशोर युवक-युवतियों को पाठ्यक्रम, पत्र-पत्रिकाएँ, जन-संचार माध्यम से स्वास्थ्य शिक्षा देना तथा जागरूकता उत्पन्न करनी चाहिए।

    एड्स से बचाव (Prevention from AIDS)

     एड्स का कोई उपचार या टीका नहीं है, मात्र निम्न सावधानियों से इससे बचा जा सकता है-

    • जीवन साथी के अलावा किसी अन्य के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित न करें। 
    • कुछ बीमारियाँ यौन सम्पर्क द्वारा लगती हैं, जिन्हें एस.टी.डी. (Sexually Transmitted Disease) या यौनजनित रोग कहते हैं। यौन रोगों की उपस्थिति में एच. आई. वी. के संक्रमण की सम्भावना 10 गुना बढ़ जाती है। अतः यौन सम्पर्क के समय निरोध (कण्डोम) का प्रयोग करें।
    • मादक औषधियों के अभ्यस्त व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त सुई का प्रयोग अन्य व्यक्ति नहीं करें।
    • डिस्पोजल सिरिंज या 20 मिनट तक पानी में उबली हुई सुई को काम में लें।
    • एड्स पीड़ित महिलाओं को गर्भधारण करना नहीं चाहिए।
    • किसी का इस्तेमाल किया हुआ ब्लेड काम में नहीं लें। 
    • रक्त की आवश्यकता होने पर एच.आई.वी. जाँच किया हुआ रक्त ही ग्रहण करें।
    • शरीर गोदने व नाक-कान छेदने के उपकरण भी कीटाणु रहित करके प्रयोग में लें।

    भारत में तेजी से फैलते एड्स पर नियन्त्रण के लिए राष्ट्रीय एड्स नियन्त्रण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। एड्स ग्रस्त लोगों को काउन्सलिंग करके चिकित्सा व्यवस्था एवं घर पर की जाने वाली देखभाल की जानकारी दी जाती है। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर नाको संगठन (National Aids Control Organization, NACO) कार्यरत है। विभिन्न राज्यों में भी एड्स नियन्त्रण संगठनों की स्थापना की गयी है। अनेक स्वयंसेवी संस्थाएँ भी निःशुल्क सेवाएँ प्रदान कर रही हैं। एड्स से बचाव ही उसका उपचार है।

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