तलपट से प्रकट होने वाली अशुद्धियों को बताइए- Trial Balance

तलपट द्वारा ज्ञात न हो सकने वाली अशुद्धियाँ

Trial Balance : सामान्यतः तलपट के दोनों पक्षों का योग मिल जाने पर यह समझ लिया जाता है कि खाताबही में की गई खतौनी शुद्ध है, परन्तु यह धारणा त्रुटिपूर्ण है कुछ अशुद्धियाँ ऐसी होती हैं, जिनके पुस्तकों में विद्यमान रहने पर भी तलपट के दोनों पक्षों का योग मिल जाता है। इसी कारण यह कहा जाता है कि "तलपट खातों की शुद्धता का अन्तिम प्रमाण नहीं है।" 

ये अशुद्धियाँ निम्नलिखित हैं-

(1) भूल की अशुद्धियाँ

वे अशुद्धियाँ जिनका प्रारम्भिक बहियों में बिलकुल ही लेखा नहीं किया जाता, 'भूल की अशुद्धियाँ' कहलाती है; जैसे- राम से 500 रु० का माल खरीदा और जर्नल में भूल से इसका लेखा नहीं किया गया। तब ऐसी दशा में न तो क्रय खाते के ऋणी पक्ष की ओर लेखा किया जाएगा और न हो राम के खाते के धनी पक्ष में। इसके अतिरिक्त इन अशुद्धियों में वे रकमें भी सम्मिलित की जाती हैं, जिनके कारण प्रारम्भिक बहियों में रकमें कुछ कम लिखी जाती हैं, जैसे- राम से 500 रु० का माल खरीदा, परन्तु लेखा 500 रु० के स्थान पर केवल 50 रु० से हो किया जाए। ऐसी दशा में इस अशुद्धि का तलपट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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(2) सिद्धान्त की अशुद्धियाँ

वे अशुद्धियाँ जो दोहरे लेखा प्रणाली के सिद्धान्त को ध्यान में न रखने के कारण उत्पन्न हुई हैं अर्थात् पूँजीगत व्यय तथा आयगत व्यय में अन्तर न करने के कारण हुई हैं, "सिद्धान्त की अशुद्धियाँ' कहलाती है, जैसे- 5,000 रु० को एक तिजोरी खरीदी, लेकिन उसका लेखा तिजोरी खाते के स्थान पर क्रय खाते में कर दिया गया या 10,000 रु० भवन को मरम्मत पर व्यय किए गए, लेकिन इसका लेखा मरम्मत खाते के स्थान पर भवन खाते में कर दिया गया। इस प्रकार इन अशुद्धियों के होने से तलपट के योग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

(3) क्षतिपूरक अशुद्धियाँ 

वे अशुद्धियाँ जो एक-दूसरे का समतोलन करती हैं। अर्थात् जिनमें एक अशुद्धि का प्रभाव दूसरी अशुद्धि के प्रभाव से स्वयं दूर हो जाता है, 'क्षतिपूरक अशुद्धियाँ' कहलाती हैं- क्रय खाते के ऋणी पक्ष की ओर 100 रु० कम लिखे गए साथ ही मोहन के व्यक्तिगत खाते के धनी पक्ष में जैसे- 70 रु० और सोहन के व्यक्तिगत खाते के धनी पक्ष में 30 रु० कम लिखे गए, जिससे त्रुटियों का प्रभाव ऋणी व धनी पक्ष की ओर बराबर रहा,अतः यह अशुद्धि तलपट पर कोई प्रभाव नहीं डालेगी।

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(4) हिसाब की अशुद्धियाँ

वे अशुद्धियाँ जो गलत जोड़ने, घटाने व खतियाने के कारण होती हैं, 'हिसाब की अशुद्धियाँ' कहलाती हैं। इस प्रकार की प्रमुख अशुद्धियाँ निम्नलिखित हैं- 

  • खाताबही में गलत खतौनी होना।
  • बहियों में जोड़ने तथा खातों के मेल मिलाने में अशुद्धियाँ होना।
  • बहियों में गलत लेखा होना।
  • ठीक पक्ष में गलत रकम की खतौनी कर देना।

(5) प्रारम्भिक लेखे की अशुद्धियाँ

यदि प्रारम्भिक लेखा करते समय, जर्नल या किसी अन्य सहायक वही में किसी लेन-देन की रकम अशुद्ध लिख दी जाती है, तो खाता बही में भी उतनी ही रकम से खतौनी होती है। अतः इस प्रकार की अशुद्धि हो जाने पर भी तलपट का योग मिल जाएगा। 

(6) दोहरे लेखे की अशुद्धियाँ

यदि किसी लेन-देन का पुस्तकों में दो बार लेखा हो जाता है, तो ऐसी अशुद्धि से तलपट प्रभावित नहीं होता है।

(7) खतौनी होने से छूट जाने वाली अशुद्धियाँ 

यदि किसी जर्नल लेखे की खाताबही में खतौनी होने से छूट जाती है, तो तलपट तो मिल जाएगा, लेकिन अशुद्धि बनी रहेगी।

(8) अशुद्ध खतौनी 

कभी-कभी गलती से एक लेखा दूसरे खाते के सही पक्ष में खता दिया जाता है, तो इस दशा में भी तलपट मिल जाएगा, लेकिन अशुद्धि बनी रहेगी।

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तलपट का योग न मिलने पर किए जाने वाले उपाय 

यदि तलपट नहीं मिलता है, तो अशुद्धियों को खोज या अशुद्धियों का पता लगाना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है।अशुद्धि ढूंढने के कोई विशेष नियम नहीं हैं, लेकिन फिर भी इसके लिए निम्नलिखित उपाय प्रयोग में लाने चाहिए-

(1) सर्वप्रथम तलपट के दोनों पक्षों को पुनः जोड़ना चाहिए। यदि तलपट के दोनों पक्षों का योग ठीक है, तो तलपट के अन्तर को अलग लिख देना चाहिए।

(2) इस अन्तर को लिखने के बाद यह देखना चाहिए कि इस अन्तर के बराबर की कोई राशि खाताबही से तलपट में लिखने से छूट तो नहीं गई है। 

(3) अन्तर की राशि को आधा करके यह देखना चाहिए कि यह राशि तलपट के गलत पक्ष में तो नहीं लिख दी गई है।

(4) अन्तर का 1/9 करना चाहिए। हो सकता है कि राशि में भूल से शून्य बढ़ गया हो या शून्य कम हो गया हो या संख्याएँ उलट गई हों। यदि शून्य बढ़ गया हो, तो राशि 10 गुनी हो गई होगी और यदि शून्य घट गया हो तो राशि 1/10 रह गई होगी, ऐसी दशा में अन्तर 9 से अवश्य विभाजित हो जाएगा। 

(5) यह भी जाँच कर लेनी चाहिए कि खाताबही के समस्त खाते तलपट में लिख दिए गए हैं।

(6) यह भी जाँच कर लेनी चाहिए कि सभी राशियाँ सही-सही और ठौक पक्ष में लिख दी गई हैं। 

(7) यह भी जाँच कर लेनी चाहिए कि पिछले वर्ष के लाए हुए प्रारम्भिक शेष इस वर्ष की पुस्तकों में ठोक लिखे गए हैं या नहीं।

(8) यदि रोजनामचे या खाताबही की पूर्ण जाँच करने के बाद भी अन्तर ज्ञात न हो पाए तो इस अन्तर को 'उचन्त खाते' (Suspense Account) में लिखकर तलपट को मिला देना चाहिए। भविष्य में जैसे ही समस्त अशुद्धियाँ ज्ञात हो जाती है, उचन्त खाता स्वतः ही बन्द हो जाता है।

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