स्मरणीय तथ्य
जन्म- सन् 1907 ई० में फर्रुखाबाद, उत्तर
प्रदेश। मृत्यु- सन् 1987 ई०। शिंक्षा- एम०ए० (संस्कृत) 'रचनाएँ- 'नीहार', 'रश्मि', 'नीरजा', 'सान्ध्यगीत', 'यामा', 'दीपशिखा'। काव्यगत विशेषताएँ वर्ण्य- विषय- छायावाद, रहस्यवाद, प्रकृति-चित्रण (वेदना तथा करुणा की प्रधानता हैं)। भाषा- संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त कोमल, सरल एवं शुद्ध खड़ीबोली। शैली-भावात्मक-गीत- शैली। रचनाएँ- महादेवी जी की प्रतिभा बहुमुखी थी। इन्होंने गद्य और पद्य दोनों में रचनाएँ की हैं। काव्य-नीहार, रश्मि, नीरजा, सान्ध्यगीत आदि। गद्य-अतीत के चलचित्र, श्रृंखला की कड़ियाँ, स्मृति की रेखायें, मेरा परिवार, पथ के साथी, क्षणदा और हिन्दी का विवेचनात्मक गद्य आदि।
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काव्यगत विशेषताएँ
(क) भाव-पक्ष
महादेवी वर्मा की प्रारम्भिक रचनाएँ ब्रजभाषा में हैं। आगे चलकर इन्होंने खड़ीबोली में रचना आरम्भ किया और हिन्दी साहित्य में प्रमुख कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हुईं।
महादेवी जी की कविता में छायावाद तथा रहस्यवाद की भावनाएँ लक्षित होती हैं। उन्होंने अपने काव्य में मुख्य रूप से आत्मा-परमात्मा का मिलन, वियोग तथा प्रकृति के व्यापारों का मधुर भावमय चित्रण किया है। उनके सम्पूर्ण काव्य में प्रेम की गहराई के साथ वेदना और पीड़ा की प्रधानता है। यही उनकी कविता का प्राण है। अपने प्रेम और विरह भावनाओं के कारण वे आधुनिक युग की मीरा कही जाती हैं।
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प्रकृति चित्रण
महादेवी जी ने अपने काव्य में प्रकृति का मधुर भावमय चित्रण प्रस्तुत किया है। उनका प्रकृति चित्रण उद्दीपन के रूप में हुआ है। प्रकृति उनके ही समान ही रोती गाती और प्रियतम से मिलने के लिए व्याकुल दिखायी देती है। मुरझाये हुए फूल को देखकर वह दुःखी होकर कहती हैं कि-
मत व्यथित हो फूल! किसको
सुख दिया संसार ने?
इसी तरह प्रकृति को अपने संयोग की अनुभूतियों के साथ जोड़ती हुई वे कहती हैं कि-
लाये कौन सन्देश नये धन,
अम्बर गर्वित हो, आया मन,
चिर निस्पन्द हृदय में उसके
उमड़े री पुलकों के सावन ।
(ख) कला पक्ष
भाषा-शैली- महादेवी वर्मा की भाषा शुद्ध परिष्कृत खड़ीबोली है। उसमें एक विशेष सुकुमारता और माधुर्य है। उसमें प्रवाह के साथ अनेक गुण विद्यमान हैं। आपका शब्द चयन अद्वितीय है।
महादेवी वर्मा की काव्य-शैली मुक्तक गीति शैली है। वह भावपरक और अनुभूति प्रधान है। संगीतात्मकता उसका प्रधान गुण है।
रस, छन्द, अलंकार- महादेवी जी ने अलंकारों का पर्याप्त प्रयोग किया है। उसमें उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, श्लेष, अन्योक्ति, मानवीकरण आदि अलंकार मुख्य हैं। उनका अलंकारों का प्रयोग अत्यन्त स्वाभाविक, सरल और सुन्दर है। उन्होंने विविध मात्रिक छन्दों का प्रयोग किया है। काव्य में सर्वत्र करुणा एवं वियोग की अजस्त्र धारा प्रवाहित होती है।
साहित्य में स्थान
आधुनिक हिन्दी कवियों में महादेवी जी का विशिष्ट स्थान है। वे छायावादी काव्यधारा की अन्यतम कवयित्री हैं। उनकी कविता चित्रकला, संगीत और काव्य-कला की पावन 'त्रिवेणी' है। वे भावपूर्ण गद्य लेखन में अद्वितीय हैं।