स्मरणीय तथ्य जन्म- सन् 1904 ई०, प्रयाग। मृत्यु- सन् 1948 ई०। पिता- -ठाकुर रामनाथ सिंह। पति- श्री लक्ष्मणसिंह चौहान। रचनाएँ- 'मुकुल', 'त्रिधारा', 'बिखरे मोती', 'उन्मादिनी' ।। काव्यगत विशेषताएँ- वर्ण्य विषय- राष्ट्र भक्ति, वात्सल्य प्रेम, प्रणय प्रधान रचनाएँ। रस- वात्सल्य, वीर तथा श्रृंगार । भाषा- सरल खड़ीबोली। शैली- ओज, प्रसाद एवं माधुर्य गुण से पूर्ण। अलंकार- अनुप्रास, उपमा, रूपक आदि। |
सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय
हिन्दी साहित्य में सर्वप्रथम राष्ट्रीय भावनाओं को गुंजाने वाली कवयित्री श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान का जन्म प्रयाग के निहालपुर मुहल्ले में सन् 1904 ई० में हुआ था। इनके पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा प्रयाग में हुई। इनका विवाह पन्द्रह वर्ष की अवस्था में खण्डवा निवासी ठाकुर लक्ष्मणसिंह, डी० ए० एल० बी० से हुआ था। विवाह के पश्चात् कुछ समय तक इन्होंने वाराणसी में अध्ययन किया। इसी समय गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेश सेवा का व्रत से लिया। इस कारण इन्हें कई बार जेल यात्रा करनी पड़ी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ये मध्य प्रदेश विधानसभा की सदस्या भी रहीं। 'मुकुल' नामक काव्य ग्रन्थ पर इन्हें सेक्सेरिया पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
सन् 1948 ई० में एक कार दुर्घटना में इनकी असामयिक मृत्यु हो गयी।
सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ
सुभद्रा जी का मुख्य क्षेत्र कविता था।
कविता- संग्रह-मुकुल, विधारा।
कहानी संग्रह- बिखरे मोती, उन्मादिनी, सीधे-सादे चित्रशान साहित्य सभा के खेल।
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काव्यगत विशेषताएँ
(क) भाव-पक्ष
सुभद्रा जी की कविता का भाव पक्ष प्रधान है। इनके काव्य में हमें हार्दिक अनुभूति, तल्लीनता एवं स्वाभाविकता के दर्शन होते हैं। उनकी अनुभूतियों में कोमलता और कल्पनाओं में हृदय की सरलता भरी हुई है। उनकी कविताओं को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
(i) राष्ट्र-प्रेम, (i). वात्सल्य भावना, (iii) प्रणय-भावना।
राष्ट्र प्रेम- सुभद्रा जी ने देश के स्वातन्त्र्य संग्राम में सक्रिय भाग लिया था, इसीलिए उनकी राष्ट्रप्रेम से सम्बन्धित कविताओं में सजीवता, स्वाभाविकता और उमंग है वह राष्ट्रीय जागरण के स्वर को मुखरित करने वाली प्रथम महिला कवयित्री हैं।
इनकी देश-प्रेम सम्बन्धी रचनाओं में वास्तविक जीवन की झाँकी दिखायी देती है। इन्होंने राष्ट्र के गौरव गीत गाकर देशवासियों को उत्साहित किया और उन्हें दासता से मुक्त होने के लिए प्रेरित किया। उनकी झांसी की 'रानी', 'जलियाँवाला बाग' एवं 'वीरों का कैसा हो बसन्त' आदि रचनाएँ त्याग और बलिदान की प्रेरणा देने वाली हैं जो देश के युवक-युवतियों के हृदय में देश भक्ति और स्वतन्त्रता की लहर दौड़ा देती हैं।
वात्सल्य भावना- सुभद्रा जी की दूसरी प्रकार की रचनाओं में उनके हृदय की वात्सल्य भावना है। इनमें नारी-हृदय और मातृ-भावना के अनूठे चित्र है। 'बालिका परिचय' शीर्षक कविता में मातृ-गौरव की अपूर्व झाँकी देखिए-
यह मेरी गोदी की शोभा सुख सुहाग की है लाली।
शाही शान भिखारिन की है, मनोकामना मतवाली।।
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परिचय पूछ रहे हो इसका कैसे परिचय दूँ इसका।
वही जान सकता है इसका, माता का दिल है जिसका ।।
प्रणय-भावना- सुभद्रा जी की अन्य कविताओं में दाम्पत्य प्रेम का स्वाभाविक एवं हृदयग्राही वर्णन है। उनके प्रणय गीतों में हृदय की सच्ची उमंग के साथ त्याग, पवित्रता और संयम है। प्रेम के संयोग और वियोग दोनों प्रकार के वर्णन में उनके हृदय का त्याग और आत्मसमर्पण एवं कर्तव्य की पुकार लक्षित होती है।
सुभद्रा जी अपनी राष्ट्रीय सेवाओं और कोमल भावनाओं के कारण हिन्दी साहित्य में अमर हैं।
(ख) कला पक्ष
सुभद्रा जी के कला-पक्ष की सबसे बड़ी विशेषता है- उनकी सरलता और स्वाभाविकता, इसीलिए इनकी कविता जन साधारण में इतनी लोकप्रिय बन सकी।
भाषा- सुभद्रा जी की कविता की भाषा सरल तथा सुबोध खड़ी बोली है। संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग उसमें अवश्य हुआ है, परन्तु उसके कारण भाषा में क्लिष्टता नहीं आने पायी है। प्रसाद गुण से युक्त इनकी भाषा आडम्बरहीन एवं सजीव है। कहीं-कहीं उर्दू शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। इनके जैसा प्रवाह अन्यत्र कम दिखायी। देता है।
शैली- सुभद्रा जी की शैली सीधी-सादी और व्यावहारिक है। ओज-माधुर्य और प्रसाद गुणों से युक्त इनकी रचनाएँ बड़ी ओजपूर्ण हैं। इनके भावों में सर्वत्र सत्यता और स्वाभाविकता है।
रस- सुभद्रा जी की कविताओं में वीर, श्रृंगार और करुण रस ही प्रधान है। राष्ट्र प्रेम कविताओं में वीर रस तथा वात्सल्य और प्रणय-भावना में शृंगार छन्दों का प्रयोग प्रवाहपूर्ण बनाकर किया गया है।
अलंकार - सुभद्रा जी ने चमत्कार प्रदर्शन के लिए अलंकारों का प्रयोग नहीं किया है, बल्कि भावों को व्यक्त करने में अलंकार स्वयं ही आ गये हैं। उनमें अनुप्रास, उपमा, यमक, रूपक उल्लेख आदि मुख्य हैं, जैसे-
दीप शिखा है अन्धकार की घनी घटा की उजियाली।
ऊषा है यह कमल भृंग की है पतझड़ की हरियाली।।
सुभद्राकुमारी चौहान अपने सजीव कार्यों एवं साहित्य सेवाओं के कारण हिन्दी साहित्य में अमर हैं। इन्होंने जिस निष्ठा से हिन्दी और हिन्दुस्तान की सेवा की वह अविस्मरणीय है। अतः आधुनिक काल की कवयित्रियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है।