स्मरणीय तथ्य जन्म- सन् 1911 ई० सतलखा (जिला
दरभंगा, बिहार) । मृत्यु- सन् 1998 ई०। शिक्षा- स्थानीय संस्कृत पाठशाला में, बौद्ध धर्म की दीक्षा । वास्तविक नाम- वैद्यनाथ मिश्र । रचनाएँ- युगधारा, प्यासी पथराई
आँखें, सतरंगे पंखोंवाली,
तुमने कहा था, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहोंवाली, पुरानी जूतियों का कोरस, भस्मांकुर (खण्डकाव्य), बलचनमा, रतिनाथ की चाची, नयी पौध कुम्भीपाक,
उग्रतारा (उपन्यास), दीपक, विश्व बन्धु (सम्पादन)। काव्यगत विशेषताएँ वर्ण्य विषय- सम-सामयिक राजनीतिक तथा सामाजिक
समस्याओं का चित्रण, दलित वर्ग के प्रति संवेदना, अत्याचार पीड़ित
एवं त्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति । भाषा-शैली- तत्सम शब्दावली प्रधान शुद्ध
खड़ीबोली। ग्रामीण और देशज शब्दों का प्रयोग । प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग। अलंकार व छन्द- उपमा, रूपक, अनुप्रास। मुक्तक छन्द। |
नागार्जुन का जीवन परिचय
श्री नागार्जुन का जन्म दरभंगा जिले के सतलखा ग्राम में सन् 1911 ई0 में हुआ था। आपका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र है। आपका आरम्भिक जीवन अभावों का जीवन था। जीवन के अभावों ने ही आगे चलकर आपके संघर्षशील व्यक्तित्व का निर्माण किया। व्यक्तिगत दुःख ने आपको मानवता के दुःख को समझने की क्षमता प्रदान की है। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत पाठशाला में हुई। 1936 ई0 में आप श्रीलंका गये और वहाँ पर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। 1938 ई० में आप स्वदेश लौट आये। राजनीतिक कार्यकलापों के कारण आपको कई बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी। आप बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा घुमक्कड़ एवं फक्कड़ किस्म के व्यक्ति हैं। आप निरन्तर भ्रमण करते रहे। सन् 1998 ई० में आपका निधन हो गया।
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आपकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं-
काव्य-कृतियाँ- युगधारा, प्यासी पथराई आँखें, सतरंगे पंखोंवाली, तुमने कहा था, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहोंवाली, पुरानी जूतियों का कोरस, भस्मांकुर (खण्डकाव्य) आदि।
उपन्यास- बलचनमा, रतिनाथ की चाची, नयी पौध कुम्भीपाक, उग्रतारा आदि।
सम्पादन- दीपक, विश्व बन्धु पत्रिका।
मैथिली के 'पत्र हीन नग्न गाछ' काव्य-संकलन पर आपको साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिल चुका है।
काव्यगत विशेषताएँ
नागार्जुन के काव्य में जन भावनाओं की अभिव्यक्ति, देश-प्रेम, श्रमिकों के प्रति सहानुभूति, संवेदनशीलता तथा व्यंग्य की प्रधानता आदि प्रमुख विशेषताएँ पायी जाती हैं। अपनी कविताओं में आप अत्याचार पीड़ित, त्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करके ही सन्तुष्ट नहीं होते हैं, बल्कि उनको अनीति और अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा भी देते हैं। व्यंग्य करने में आपको संकोच नहीं होता। तीखी और सीधी चोट करनेवाले आप वर्तमान युग के प्रमुख व्यंग्यकार है। नागार्जुन जीवन के धरती के, जनता के तथा श्रम के गीत गाने वाले कवि हैं, जिनकी रचनाएँ किसी वाद की सीमा में नहीं बंधी हैं।
भाषा-शैली
नागार्जुन जी की भाषा-शैली सरल, स्पष्ट तथा मार्मिक प्रभाव डालनेवाली हैं। काव्य-विषय आपके प्रतीकों के माध्यम से स्पष्ट उभरकर आते हैं। आपके गीतों में जन-जीवन का संगीत है। आपकी भाषा तत्सम शब्द प्रधान शुद्ध खड़ीबोली है, जिसमें अरबी व फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।
अलंकार व छन्द- आपकी कविता में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। उपमा, रूपक, अनुप्रास आदि अलंकार ही देखने को मिलते हैं। प्रतीक विधान और विम्बं योजना भी सुष्ठु बन पड़ी है।
साहित्य में स्थान- नि:स्सन्देह नागार्जुन जी का काव्य भाव पक्ष तथा कलापक्ष की दृष्टि से हिन्दी साहित्य का अमूल्य कोष है।