स्मरणीय तथ्य जन्म- सन् 1889 ई० में, जिला होशंगाबाद (म0प्र0) में। मृत्यु- सन् 1968 ई०। रचनाएँ- काव्य- 'हिम-तरंगिणी', 'हिम-किरीटिनी', 'समर्पण', 'युगदरण' । काव्यगत विशेषताएँ-वर्णन का क्षेत्र- राष्ट्र प्रेम सम्बन्धी प्रेम सम्बन्धी तथा
आध्यात्मिक कविताएँ। रस- वीर रस तथा शृंगार रस । भाषा- ओजपूर्ण खड़ीबोली। शैली- ओजपूर्ण भावात्मक शैली। अलंकार- उपमा, उत्प्रेक्षा, विशेषणविपर्यय, मानवीकरण। |
माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन-परिचय
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म सन् 1889 ई० में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई नमक ग्राम में हुआ था। इनके पिता पं० नन्दलाल चतुर्वेदी एक विद्या-प्रेमी वैष्णव भक्त एवं सदाशय व्यक्ति थे। नार्मल परीक्षा पास करने के बाद माखनलाल जी ने एक अध्यापक के रूप में अपना जीवन प्रारम्भ किया। इसी समय इन्होंने अंग्रेजी, गुजराती, मराठी और बंगला का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया।
चतुर्वेदी जी बचपन से ही साहित्य-प्रेमी थे आपकी पहली कविता 'रसिक चित्र' प्रकाशित हुई थी। इसके बाद 'प्रभा' नामक पत्रिका का सम्पादन किया और 'प्रताप' के सम्पादक हुए। फिर खण्डवा से प्रकाशित होने वाले पत्र 'कर्मवीर' का प्रकाशन आरम्भ किया। इसी पत्र के द्वारा आप जनता के सम्पर्क में आये और राजनीति में भाग लेने के कारण जेल यात्रा की। आप एक कुशल लेखक और वक्ता थे। कवि के रूप में आप 'एक भारतीय आत्मा' के नाम से प्रसिद्ध थे। 1943 ई० में आप हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति भी थे। आपका स्वर्गवास सन् 1968 ईo में हुआ।
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रचनाएँ
चतुर्वेदी जी की प्रतिभा बहुमुखी थी। आप एक भावुक कवि, सफल नाटककार, उत्कृष्ट कहानी लेखक, समालोचक एवं वक्ता थे।
इनकी कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
काव्य- संग्रह हिम किरीटिनी, हिमतरंगिणी, माता समर्पण और युगचरण।
नाटक - कृष्णार्जुन युद्ध।
निबन्ध संग्रह- साहित्य देवता।
अनुवाद- शिशुपाल वध।
कहानी संग्रह- कला का अनुवाद।।
पत्र-पत्रिकाएँ- प्रभा, प्रताप, कर्मवीर।
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काव्यगत विशेषताएँ
(क) भाव पक्ष
चतुर्वेदी जी की सभी रचनाओं में भारतीयता पूर्ण रूप से विद्यमान है। भावों की दृष्टि से इनकी रचनाएँ तीन वर्गों में विभाजित की जाती हैं-
(1) राष्ट्रीय, (2) प्रेम सम्बन्धी, (3) आध्यात्मिक।
राष्ट्रीय कविताएँ - चतुर्वेदी जी की राष्ट्रीय रचनाओं पर गाँधीवाद का पूर्ण प्रभाव है, अतः उसमें देशोन्नति के साथ त्याग और उत्सर्ग की भावना है। उनकी देशभक्ति की रचनाएँ मुख्य रूप से क्रियात्मक हैं। 'एक फूल की चाह नामक कविता में उनकी इन भावनाओं का दर्शन होता है वे कहते हैं-
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।
इनकी राष्ट्रीय कविताओं में क्रांति की उम्र भावना है, जागरण का अमर सन्देश है और आत्मोत्सर्ग की प्रेरणा है।
प्रेम सम्बन्धी रचनाएँ- चतुर्वेदी जी की द्वितीय वर्ग की रचनाएँ प्रेम की कोमल और सुकुमार भावनाओं से ओतप्रोत हैं। इनके प्रेम का क्षेत्र अतिव्यापक है। उसमें सौन्दर्य के साथ वेदना, टीस, कसक तथा सहानुभूति के दर्शन होते हैं।
आध्यात्मिक कविताएँ- चतुर्वेदी जी अपनी आध्यात्मिक कविताओं में साकार से निराकार की ओर अग्रसर होते दिखायी देते हैं। ऐसी रचनाएँ भावप्रधान तथा प्रेमात्मक होने के कारण 'रहस्यवादी' हो गयी हैं। इनकी कविता में सर्वत्र ओज दिखायी देता है। वे प्रेम के कवि हैं, किन्तु उनका प्रेम राष्ट्र-कल्याण की ओर प्रवाहित हुआ है। शृंगार और अध्यात्म के क्षेत्र में भी अपने प्रेम का परिचय दिया है किन्तु ये अपनी देश-प्रेम प्रधान रचनाओं के कारण हिन्दी जगत में प्रसिद्ध हैं।
(ख) कला-पक्ष
भाषा- चतुर्वेदी जी की भाषा साहित्यिक खड़ीबोली है। उसमें संस्कृत के सरल और परिचित तत्सम शब्दों के साथ फारसी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। इनकी भाषा में कहीं-कहीं व्याकरण के दोष मिलते हैं तथा संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ उर्दू शब्द का प्रयोग खटकता है। कहीं-कहीं भाषा भावों के साथ चलने में असमर्थ हो जाती है, जिससे भाव अस्पष्ट हो जाता है।
शैली- चतुर्वेदी जी ने मुक्तक काव्य लिखा है, उनकी शैली में ओज की मात्रा अधिक है। भावों की तीव्रता में कहीं-कहीं उनकी शैली दुरूह और अस्पष्ट हो गयी है। वे वीर, श्रृंगार और शान्त रस के उत्तम कवि हैं। अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग इनकी रचना की विशेषता है। उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अनुप्रास, यमक आदि अलंकार इनकी रचनाओं में स्वाभाविक रूप से आ गये हैं। इनके सभी छन्द नवीन हैं। छन्द योजना में इन्होंने स्वतन्त्र मार्ग का अनुसरण किया है।
हिन्दी के राष्ट्रीय कवियों में चतुर्वेदी जी का प्रमुख स्थान है जो उत्साह, जो प्रेरणा, जो आत्मोत्सर्ग की भावना इनकी कविताओं में मिलती है, वह हिन्दी के अन्य किसी कवि में नहीं दिखायी देती।