स्मरणीय तथ्य जन्म- सन् 1905 ई०, जिला सागर, मध्य
प्रदेश प्रान्त में। पिता- लक्ष्मीप्रसाद वर्मा। शिक्षा- प्रारम्भिक शिक्षा नरसिंहपुर, जबलपुर, प्रयाग
विश्वविद्यालय से एम० ए०। मृत्यु- 5 अक्टूबर 1990 ई०। रचनाएँ- 'चित्ररेखा', 'चन्द्रकिरण', 'संकेत', 'आकाश गंगा', 'अंजलि', 'अभिशाप', 'रूपराशि', 'एकलव्य' एवं 'उत्तरायण'। काव्यगत विशेषताएँ वर्ण्य विषय- छायावाद और रहस्यवाद विषयक काव्यों की रचना । भाषा- शुद्ध एवं परिमार्जित खड़ीबोली, संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग । शैली- गीत काव्य शैली। छन्द- आधुनिक गीत छन्द । अलंकार- अनुप्रास, उपमा, रूपक, मानवीकरण, अतिशयोक्ति आदि अलंकार का प्रयोग।
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जीवन-परिचय
डॉ० रामकुमार वर्मा का जन्म सागर (मध्य प्रदेश) जनपद के गोपालगंज ग्राम में 1905 ई0 में हुआ था। इनके पिता लक्ष्मीप्रसाद वर्मा डिप्टी कलक्टर थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा जबलपुर और प्रयाग विश्वविद्यालय में हुई। सन् 1928 ई० में इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय की एम० ए० (हिन्दी) परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होकर प्रथम स्थान प्राप्त किया और वहीं अध्यापन कार्य करने लगे। सन् 1949 ई० में नागपुर विश्वविद्यालय से पी-एच० डी० की उपाधि प्राप्त की। हिन्दी के प्रोफेसर होकर ये रूस और श्रीलंका भी जा चुके हैं। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण और हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने साहित्य वाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया है। इन्होंने देव पुरस्कार और कालिदास पुरस्कार भी प्राप्त किया है। प्रयाग विश्वविद्यालय के हिन्दी अध्यक्ष पद से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् सन् 1966 से सतत साहित्य साधनों में लीन रहे। इनकी मृत्यु 5 अक्टूबर, सन् 1990 ई0 में हुई।
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रचनाएँ
चित्ररेखा, चन्द्र किरण, संकेत, आकाश गंगा इनके काव्य संग्रह हैं तथा एकलव्य और उत्तरायण प्रबन्ध काव्य हैं। इनके अतिरिक्त पृथ्वीराज की आँखें, शिवाजी, चार ऐतिहासिक एकांकी, रूप-रंग, रेशमी टाई, नाटक और एकांकियों के संग्रह तथा हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, साहित्य समालोचना तथा कबीर का रहस्यवाद आदि प्रमुख आलोचनात्मक ग्रंथ हैं। डॉ० वर्मा हिन्दी में कवि की अपेक्षा नाटककार के रूप में विशेष विख्यात हैं। वे आधुनिक एकांकी के जनक कहे जाते हैं।
काव्यगत विशेषताएँ
(क) भाव पक्ष
- डॉ० रामकुमार वर्मा का कवि व्यक्तित्व द्विवेदीयुगीन प्रवृत्तियों से उदित छायावाद के क्षेत्र में महान् उपलब्धि के रूप में सिद्ध हुआ।
- इनकी काव्यगत विशेषताओं में इनकी रहस्यमय सौन्दर्य दृष्टि, कल्पना भूमि और संगीतात्मकता अपने ढंग की अनूठी है।
- हिन्दी रहस्यवाद के क्षेत्र में इनकी विशेष देन है। इन्होंने प्रकृति और मानवीय हृदय के सूक्ष्मतम तत्त्वों का बड़ा ही सुन्दर विवेचन किया है जिसमें अलौकिक सत्ता की स्पष्ट झलक दृष्टिगोचर होती है। प्रकृति की विराट् सत्ता में इन्हें सर्वत्र ईश्वरी संकेत की अनुभूति होती है।
- इनके काव्य में एक और आध्यात्मिक संकेत है तो दूसरी ओर अलौकिक अभिव्यंजना
- डॉo वर्मा कवि होने के साथ-साथ सुप्रसिद्ध एकांकीकार, नाटककार तथा आलोचक हैं। चित्ररेखा काव्य संग्रह पर आपको हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ देव पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
(ख) कला-पक्ष
1. भाषा शैली- वर्मा जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्राचुर्य है। इनकी भाषा सशक्त और सजीव है। इसमें नादसौन्दर्य के साथ-साथ चित्रमयता और मधुरता है। वर्मा जी ने काव्योचित शैली का प्रयोग किया है। इनका शब्द चयन उच्चकोटि का है। वर्मा जी के उपमानों में नवीनता है। अमूर्त उपमानों के प्रयोग में वे अत्यन्त ही सफल हुए हैं। उनके काव्य में मुख्यतः गीति काव्य की मुक्तक शैली को ही अपनाया गया है। प्रारम्भिक कुछ रचनाएँ द्विवेदीयुगीन इतिवृत्तात्मक शैली से प्रभावित अवश्य हैं।
2. रस, छन्द, अलंकार - वर्मा जी के काव्य में शृंगार, करुण और रौद्र रस का प्रयोग हुआ है। इनके प्रेम काव्यों में संयोग के दोनों रूपों का चित्रण है। वर्मा जी काव्य में मुक्तक छन्द के पक्षपाती नहीं हैं। इनकी रचनाएँ तुक तथा कोमलकांत पदावली से युक्त हैं। इनका अलंकार विधान सर्वथा नवीन और भावानुकूल है। उसमें नवीन उपमानों का प्रयोग हुआ है। अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, रूपक आदि अलंकारों का विशेष प्रयोग हुआ है। छायावादी मानवीकरण की परम्परा को वर्मा जी ने अपने काव्य में अपनाया है जो पाश्चात्य साहित्य की देन है।
हिन्दी साहित्य में स्थान
डॉ० रामकुमार वर्मा हिन्दी साहित्य में अपनी रहस्यवादी प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति के लिए कवियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। कवि की अपेक्षा इनका नाटककार सम्बन्धी साहित्यिक व्यक्तित्व विशेष निखरा हुआ है। उनके नाटकों में सांस्कृतिक एवं साहित्यिक मान्यताओं का सुन्दर समन्वय है। इनका एकांकीकार व्यक्तित्व आधुनिक हिन्दी नाट्य साहित्य का प्रकाश स्तम्भ है।