बैंक समाधान विवरण क्या है- Bank Samaadhaan Vivaran Kya Hai

बैंक समाधान विवरण से आशय

प्रायः सभी व्यापारी अपना चालू खाता बैंक में रखते हैं तथा बैंक से सम्बन्धित समस्त लेन-देनों का लेखा अपनी रोकड़ बही में करते हैं तथा बैंक पास बुक में बैंक में जमा की गई एवं निकाली गई राशि तथा जमा शेष राशि का लेखा रहता है। बैंक में जमा शेष का मिलान रोकड़ बही के बैंक खाने के शेष से किया जाता है; अतः रोकड़ बही के बैंक खाने का शेष तथा बैंक की पास बुक का शेष समान होना चाहिए, लेकिन व्यापार में ऐसा बहुत कम देखने में आता है कि किसी विशेष तिथि को दोनों शेष समान हो। 

ऐसा किसी अशुद्धि के कारण नहीं होता वरन कुछ विशेष कारणों के फलस्वरूप होता है। उदाहरणार्थ- कुछ लेन-देन ऐसे होते हैं, जो रोकड़ बही में तो लिख दिए जाते हैं, लेकिन पास बुक में उनका लेखा बाद में होता है, जबकि कुछ लेन-देन ऐसे होते हैं जो पास बुक में तुरन्त लिख दिए जाते हैं लेकिन अमुक तिथि तक उनका रोकड़ बही में लेखा नहीं हो पाता। 

अतः प्रत्येक व्यापारी के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह समय-समय पर अपनी रोकड़ बही का पासबुक से मिलान करता रहे, जिससे रोकड़ बही या पास बुक में लेखा करने में कोई अशुद्धि रह गई हो, तो उसे ठीक किया जा सके। इस अन्तर को ज्ञात करने के लिए एक विवरण बनाया जाता है, जिसे बैंक समाधान विवरण' कहा जाता है।

बैंक समाधान विवरण को तैयार करने का कोई निश्चित समय नहीं होता, इसे कभी भी तैयार किया जा सकता है। इसको तैयार करते समय रोकड़ बही एवं बैंक पास बुक का मिलान किया जाता है तथा जो लेखे दोनों में समान होते हैं। उनको छोड़ दिया जाता है या उन पर किसी प्रकार का निशान या चिह्न (V) लगा दिया जाता है। 

शेष लेखों को एक पृथक् कागज पर लिख लिया जाता है तथा बाद में इन लेखों का आपस में मिलान किया जाता है। इसके बाद किसी एक शेष (रोकड वही या बैंक पास बुक) को लेकर उसमें इन लेखों को घटा देते हैं अथवा जोड़ देते हैं। इस प्रकार, अन्त में दोनों पुस्तकों के शेष समान हो जाते हैं।

रोकड़ बही तथा बैंक पास बुक के शेष में अन्तर के कारण

रोकड़ बही तथा बैंक पास बुक के शेषों में अन्तर प्रायः निम्नलिखित कारणों से हो सकता है-

(1) चैक निर्गमित किए गए हों, परन्तु भुगतान के लिए बैंक में प्रस्तुत ही न किए गए हो

कभी-कभी ऐसा होता है कि व्यापारी अपने किसी लेनदार को अथवा क्रय किए गए माल के भुगतान में चैक काटकर देता है, परन्तु मिलान की तिथि तक वे भुगतान के लिए बैंक में उपस्थित नहीं किए जा सके हों, तो ऐसी दशा में दोनों बाकियों में अन्तर होगा; क्योंकि व्यापारी जब चैक काटकर देता है, तो उसका लेखा तुरन्त ही रोकड़ बही में कर लेता है, परन्तु पास बुक में उसका लेखा नहीं हो पाता; अर्थात् रोकड़ पुस्तक में बैंक का शेष कम हो जाता है, जबकि बैंक अपने ग्राहक के खाते में से वह रकम तब तक कम नहीं करता जब तक कि उस चैक का भुगतान नहीं कर देता; अतः दोनों में अन्तर हो जाता है।

(2) चैक बैंक में वसूली के लिए भेजे, परन्तु वसूल नहीं हुए 

व्यापारी को जब भुगतान में अथवा अपने देनदार से चैक प्राप्त होते हैं, तब वह उनको वसूली के लिए बैंक में भेज देता है तथा बैंक का शेष उतनी रकम से बढ़ा लेता है, परन्तु बैंक अपने ग्राहक के खाते; अर्थात् पास बुक का शेष उस समय तक नहीं बढ़ाता जब तक कि वह उन चैकों का भुगतान वसूल नहीं कर लेता। इस प्रकार रोकड़ बही के बैंक खाने का शेष बढ़ जाता है, जबकि पास बुक में यह उतना ही बना रहता है।

(3) बैंक ब्याज 

जब बैंक व्यापारी को अर्थात् अपने ग्राहक को जमा राशि पर ब्याज देता है, तो वह नकद न देकर उसके खाते में जमा कर देता है। इस प्रकार बैंक पास बुक का शेष बढ़ जाता है, जबकि ग्राहक को इसका पता बाद में चलता है।

इसी प्रकार बैंक यदि अधिविकर्ष (Overdraft) पर ब्याज लेता है तो वह उस व्याज को ग्राहक के खाते में ऋणी पक्ष में लिख देता है, जबकि ग्राहक या व्यापारी इसे अपनी रोकड़ बही में बाद में लिखता है और इस प्रकार जब तक दोनों के यहाँ इसका लेखा न हो जाए, अन्तर बना रहता है।

(4) बैंक व्यय तथा कमीशन 

अपने व्यापारी के प्रति बैंक विभिन्न प्रकार की सेवाएँ अर्पित करता है, जिनके लिए वह अपने ग्राहक से कुछ रकम वसूल करता है। इस रकम को 'बैक व्यय या बँक कमीशन' कहते हैं। यह रकम बैंक पास बुक में से तो कम कर देता है, परन्तु रोकड़ बही में से यह बाद में ज्ञात होने पर कम किए जाते हैं; अतः रोकड़ बही व पास बुक के शेषों में अन्तर बना रहता है।

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(5) बैंक द्वारा वसूल की गई रकमें 

बैंक अपने ग्राहक की ओर से कुछ भुगतान प्राप्त करता है; जैसे- व्याज, लाभांश एवं प्राप्य बिल आदि। इनका लेखा बैंक द्वारा पास बुक में तो तुरन्त कर दिया जाता है, परन्तु ग्राहक कोई सूचना प्राप्त न होने के कारण रोकड़ बही में इसका लेखा नहीं कर पाता ।

(6) किसी ग्राहक द्वारा व्यापारी के खाते में बैंक में सीधा रुपया जमा कर देना 

कभी-कभी कोई ग्राहक या देनदार व्यापारी को सीधे भुगतान न देकर उसके बैंक खाते में जमा कर देता है। ऐसी रकमें पास बुक में तो जमा हो जाती हैं, परन्तु रोकड़ बही में उनका लेखा सूचना मिलने या मिलान करने पर ही हो पाता है।

(7) बैंक द्वारा ग्राहक के आदेशानुसार भुगतान करना 

कभी-कभी बैंक अपने ग्राहक के पूर्व आदेशानुसार कुछ भुगतान कर देता है; जैसे- चन्दा, बीमा की किस्त, देय बिल आदि । इनका लेखा बैंक भुगतान करते समय ही पास बुक में कर देता है, परन्तु ग्राहक सूचना प्राप्त होने पर ही इनका लेखा अपनी रोकड़ बही में करता है। इस प्रकार रोकड़ बही के शेष व पास बुक के शेष में अन्तर बना रहता है।

(8) चैक अथवा विनिमय विपत्रों का अनादृत होना

कभी- कभी व्यापारी द्वारा वसूली के लिए भेजे गए चैक, विनिमय विपत्र एवं हुण्डी आदि तिरस्कृत या अनादृत हो जाते हैं। इनका लेखा तो इनको बैंक भेजते समय ही रोकड़ बही में कर दिया जाता है, जबकि इनके तिरस्कृत या अनादृत हो जाने पर इनका लेखा पासबुक में नहीं किया जाता अथवा वे चैक या विनिमय विपत्र जिनको हमने बैंक से भुना लिया है और जिनका भुगतान देय तिथि पर बैंक को नहीं मिला तो इस प्रकार की रकमें बैंक ग्राहक के खाते में से कम कर देता है, लेकिन रोकड़ बही में सूचना न मिलने के कारण शेष कम नहीं होता, अतः अन्तर बना रहता है।

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(9) प्राप्त चैकों का लेखा रोकड़ बही में तो कर लिया जाए, परन्तु वह बैंक भेजने से रह जाए

कभी-कभी प्राप्त चैकों का लेखा रोकड़ बही में तो कर दिया जाता है, परन्तु वह बैंक भेजे जाने से रह जाते हैं। इस प्रकार उनका लेखा पास बुक में नहीं हो पाता और दोनों में अन्तर हो जाता है।

(10) चैक बैंक भेज दिए गए, परन्तु रोकड़ बही में उनका लेखा नहीं हो पाया 

कभी-कभी चैक वसूली के लिए बैंक भेज दिए जाते हैं और उनका रुपया भी वसूल हो जाता है, परन्तु रोकड़ बही में उनका लेखा होना छूट जाता है। इस प्रकार रोकड़ बही एवं पास बुक के शेषों में अन्तर हो जाता है।

(11) चैक निर्गमित किए, परन्तु रोकड़ वही में उनका लेखा होने से छूट गया

कभी-कभी व्यापारी भुगतान में अपने लेनदार को चैक काटकर देता है, लेकिन रोकड़ बही में उसका लेखा करना भूल जाता है; अतः चैक का बैंक से भुगतान होने पर रोकड़ बही और पास बुक के शेषों में अन्तर हो जाता है।

(12) शेष निकालने में अशुद्धि 

कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि पास बुक या रोकड़ बही में रकम लिखने अथवा शेष निकालने में अशुद्धि हो जाती है, जिसके फलस्वरूप दोनों का शेष नहीं मिल पाता।

बैंक समाधान विवरण तैयार करना 

बैंक समाधान विवरण दो प्रकार से बनाया जा सकता है-

  • रोकड़ बही के शेष द्वारा (By Balance as per Cash Book) एवं 
  • पास बुक के शेष द्वारा (By Balance as per Pass Book )। 

रोकड़ वही व पास बुक के शेषों की पहचान

  • (अ) रोकड़ बही का शेष ऋणी (Dr.) शेष होता हैं। 
  • (ब) पास बुक का शेष धनी (Cr.) शेष होता है।
  • (स) रोकड़ बही का धनी (Cr.) शेष अधिविकर्ष या ओवरड्राफ्ट होता है।
  • (द) पास-बुक का ऋणो (Dr.) शेष अधिविकर्ष या ओवरड्राफ्ट होता है। 

(1) रोकड़ बही के शेष द्वारा

रोकड पुस्तक के बैंक खाते का शेष दो प्रकार का हो सकता है। एक ऋणी शेष, जो बैंक में रुपया जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा धनी शेष, जो ओवरड्राफ्ट (Overdraft) की स्थिति बतलाता है।

जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ पुस्तक का ऋणी (Dr.) शेष लेकर बनाया जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में जोड़ देंगे-

  • चैक निर्गमित किए गए लेकिन भुगतान के लिए बैंक में प्रस्तुत ही नहीं किए गए। 
  • बैंक द्वारा व्यापारी को दिया गया ब्याज। 
  • बैंक द्वारा पाहक की ओर से प्राप्त किया गया कोई भुगतान।
  • किसी माहक द्वारा सीधे बैंक में रुपया जमा कर देना।
  • चैक जो रोकड़ बही में बिना लेखा किए बैंक भेज दिए गए।

जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ वही का ऋणी (Dr.) शेष लेकर बनाया जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में से घटा देंगे-

  • चैक जो वसूली के लिए जमा किए गए, परन्तु वसूल नहीं हुए।
  • बैंक चार्जेज।
  • बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से किया गया कोई भुगतान।
  • संग्रह के लिए भेजे गए चैक या बिल जो तिरस्कृत या अनादृत हो गए।
  • चैक जो रोकड़ बही में लिख दिए गए, लेकिन बैंक वसूली के लिए भेजने से रह गए। 

(2) पास बुक के शेष द्वारा

जब बैंक समाधान विवरण पास बुक के धनी (Cr.) शेष द्वारा बनाया जाता है, तो उपर्युक्त विधि के अन्तर्गत वर्णित जोड़ी जाने वाली मदों को घटाकर दिखाया जाता है तथा घटाई जाने वाली मदों को जोड़कर दिखाया जाता है। इसके विपरीत जब पास बुक के ऋणी (Dr.) शेष या अधिविकर्ष (Overdraft) द्वारा बनाया जाता है, तो उपर्युक्त जोड़ी जाने वाली मदों को इसमें जोड़ कर तथा घटाई जाने वाली मदों को घटाकर दिखाया जाता है।

बैंक समाधान विवरण की उपयोगिता

बैंक समाधान विवरण का बनाया जाना वैसे तो आवश्यक या अनिवार्य नहीं है, लेकिन फिर भी निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इसे बनाया जाता है- 

  • इसके बनाने से कर्मचारियों के द्वारा रोकड़ बही लिखने में छल-कपट, गबन तथा लापरवाही की सम्भावनाएँ बहुत कम हो जाती हैं।
  • यदि रोकड़ बही तथा पास बुक के लिखने में कोई भूल हो जाती है, तो उसे सुधारा जा सकता हैं। 
  • बहुत से लेन-देन ऐसे होते हैं जो पास बुक में तो लिख दिए जाते हैं, लेकिन रोकड़ बही में इस विवरण के बनाने के बाद ही लिखे जा सकते हैं, जैसे- बैंक व्यय एवं बैंक द्वारा दिया गया ब्याज आदि ।
  • व्यापारी, स्वामी या प्रबन्धकों को बैंक में जमा शेष का सही एवं वास्तविक ज्ञान हो जाता है। 
  • बैंक समाधान विवरण बनाए जाने से व्यापारी द्वारा समय-समय पर रोकड़ बही तथा पास बुक को पूरा कर लिया जाता है।

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