सृजनात्मकता क्या है (Srjanaatmakata kya hai)- अर्थ एवं परिभाषा

सृजनात्मकता का अर्थ

सृजनात्मकता शब्द अंग्रेजी के क्रियेटिविटी (Creativity) से बना है। इस शब्द के समानान्तर विधायकता, उत्पादन, रचनात्मकता डिस्कवरी आदि का प्रयोग होता है। फादर कामिल बुल्के ने क्रियेटिक शब्द के समानान्तर सर्जनात्मक, रचनात्मक सर्जक शब्द बताए। डा. रघुवीर ने इसका अर्थ सर्जन, उत्पन्न करना, सर्जित करना, बनाना बताया है।

    सृजन (Creativity) वह अवधारणा है जिसमें उपलब्ध साधनों से नवीन या अनजानी वस्तु, विचार या धारणा को जन्म दिया जाता है। सृजनात्मक से अभिप्राय है रचना सम्बन्धी योग्यता. नवीन उत्पाद की रचना। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सृजनात्मक स्थिति अन्वेषणात्मक होती है। रूश के अनुसार- "सृजनात्मकता मौलिकता वास्तव में किसी भी प्रकार की क्रिया में घटित होती है।"

    सृजनात्मकता ज्ञान, सूचना तथा कौशल के क्षेत्र में पाई जाती है। नवीन तथ्यों, सिद्धान्तों का प्रतिपादन, सूचना ग्रहण करने तथा कराने की नवीन प्रणालियों तथा नवीन वस्तु, विचार की प्रस्तुति सृजनात्मकता के अन्तर्गत आती है।

    सृजनात्मकता की परिभाषा

    सृजनात्मकता की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

    राबर्ट फ़ास्ट के अनुसार- "मौलिकता क्या है ? यह मुक्त साहचर्य है। जब कविता की पंक्तियाँ या उसके विचार आपको उद्वेलित करते हैं, साधारणीकरण के लिये बाध्य करते हैं। यह दो वस्तुओं का सम्बन्ध होता है, परन्तु साहचर्य को देखने की कामना आप नहीं करते, आप तो उसका आनन्द उठाते हैं।"

    मेडनिक के अनुसार- "सर्जनात्मक चिन्तन में साहचर्य के तत्वों का मिश्रण रहता है जो विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संयोगशील होते हैं या किसी अन्य रूप में लाभदायक होते हैं। नवीन संयोग के विचार जितने कम होंगे, सृजनात्मकता की सम्भावना उतनी ही अधिक होगी।"

    स्टेन के अनुसार- "जब किसी कार्य का परिणाम नवीन हो, जो किसी समय में समूह द्वारा उपयोगी शान्य हो, वह कार्य सृजनात्मकता कहलाता है।"

    जेम्स ड्रेवर के अनुसार- "अनिवार्य रूप से किसी नई वस्तु का सृजन करना है, रचना (विस्तृत अर्थ में, जहाँ पर नये विचारों का संग्रह हो यहाँ पर प्रतिभा का सृजन (विशेषतः वह अनुकृत न होकर स्वयं प्रेरित हो), जहाँ पर मानसिक सर्जन का आहान न हो।"

    सी. वी. गुड के अनुसार- "सृजनात्मकता का विचार है जो किसी समूह में विस्तृत सातत्य का निर्माण करता है। सर्जनात्मकता के कारक हैं- साहचर्य, आदर्शात्मक मौलिकता, अनुकूलता, सातत्य, लोच तथा तार्किक विकास की योग्यता।"

    क्रो एवं क्रो के अनुसार- "सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को व्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।" 

    जेम्स ड्रेवर के अनुसार- "सृजनात्मकता मुख्यतः नवीन रचना या उत्पादन में होती है।"

    कोल एवं ब्रूस के अनुसार- "सृजनात्मकता एक मौलिक उत्पादन के रूप में मानव मन की ग्रहण करके अभिव्यक्त करने और गुणांकन करने की योग्यता एवं क्रिया है।"

    सृजनात्मकता की विशेषतायें 

    अतः इन उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर सर्जनात्मकता की विशेषतायें इस प्रकार व्यक्त की जा सकती है-

    • सृजनात्मकता मौलिक अथवा नवीन हो।
    • सृजनात्मकता कार्य उपयोगी हो।
    • सृजनात्मक कार्य को समान रूप से मान्यता मिलनी चाहिये। 
    • सृजनात्मक कार्य में दो या अधिक वस्तुओं, तथ्यों आदि के संयोग से नवीनता का सृजन होना चाहिए।
    • सृजनात्मक कार्य द्वारा व्यक्ति की प्रतिभा का विकास होना आवश्यक है।

    प्रो. सुरेश भटनागर के अनुसार- "यद्यपि सृजनात्मकता कलाकारों के जीवन में अधिक व्यापक रूप से पायी जाती है। लेखक, चित्रकार, कवि, विद्वान, अभिनेता आदि में सर्जनशीलता विद्यमान रहती है। यदि वातावरण इस युग के विकास के अनुकूल हो तो व्यक्ति की क्षमता का मौलिक विकास होता है। भारत में छात्रों में निहित सर्जनशीलता का विकास न होने से हजारो-लाखों प्रतिभायें अविकसित रह जाती हैं। इससे राष्ट्र की हानि होती है।

    सृजनात्मकता के तत्व

    गिलफोर्ड ने सर्जनात्मकता के तत्व इस प्रकार बताये हैं- 

    तात्कालिक स्थिति से परे जाने की योग्यता 

    जो व्यक्ति वर्तमान परिस्थितियों से हटकर, उससे आगे की सोचता है और अपने चिन्तन को मूर्त रूप देता है, उसमें सर्जनात्मक तत्व पाया जाता है।

    समस्या की पुनर्व्याख्या

    सृजनात्मकता का एक तत्व समस्या की पुनर्व्याख्या है। वकील, अध्यापक, व्याख्याता, नेता आदि इस रूप में सृजनात्मक कहलाते है कि वे समस्या की व्याख्या अपने ढंग से करते हैं। 

    सामंजस्य

    जो बालक तथा व्यक्ति असामान्य किन्तु प्रासंगिक विचार तथा तथ्यों के साथ समन्वय स्थापित करते हैं वे सृजनात्मक कहलाते हैं। 

    अन्यों के विचारों में परिवर्तन 

    ऐसे व्यक्तियों में भी सृजनात्मकता विद्यमान रहती है जो तर्क, चिन्तन तथा प्रमाण द्वारा दूसरे व्यक्तियों के विचारों में परिवर्तन कर देते हैं।

    सृजनात्मकता के सिद्धान्त

    सृजनात्मकता के सिद्धान्त इस प्रकार है- 

    मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त 

    इस सिद्धान्त का आधार फ्रायड एवं जुंग की धारणायें है । रुचि के सशक्त विचलन, प्रतिस्थापन तथा उत्तेजनात्मक उपादान व्यक्ति को नवीन कार्य के लिये प्रेरणा देते हैं। पूर्व चेतना के विकास पर ही सर्जनात्मकता निर्भर करती है। 

    साहचर्यवाद 

    रिबोट (Ribot) के अनुसार- सर्जनात्मकता, संयोगों (Bonds) का पुनर्गठन है। निरभ्रता (Serendipity), समानता (Similarity) तथा मध्यस्थता (Mediation) से साहचर्य सर्जनात्मकता के लिये उत्तरदायी होते हैं।

    अन्तर्दृष्टिवाद  

    वर्दीमर ने सर्जनात्मक चिन्तन तथा समस्या समाधान आदि की आलोचना करते हुए अवबोध (Understanding) पर बल दिया है। वर्दीमर के शब्दों में- समस्त प्रक्रिया चिन्तन की अविभाज्य रेखा है। यह विभक्त पदार्थों का एकत्रीकरण मात्र नहीं है। कोई भी पद इस कार्य में आवश्यक तथा अवबोध नहीं है। प्रत्येक पद समस्त स्थिति का सर्वेक्षण करता है। 

    अस्तित्ववाद 

    अस्तित्ववाद मिलन तथा सामंजस्य में विश्वास करता है। अस्तित्ववादियों का विचार है- सर्जनात्मकता एक प्रक्रिया एक कार्य विशेष रूप से व्यक्ति और उसके संसार को जोड़ने की प्रक्रिया है।

    सृजनात्मकता की पहचान

    सृजनात्मकता की पहचान करना शिक्षक के लिए अत्यन्त आवश्यक है। सृजनात्मक बालकों की पहचान इस प्रकार की जा सकती है- 

    • सर्जनशील बालकों में मौलिकता के दर्शन होते हैं। सर्जनशील बालकों का दृष्टिकोण सामान्य व्यक्तियों से अलग होता है। 
    • स्वतन्त्र निर्णय क्षमता-सर्जनशीलता की पहचान है। जो व्यक्ति किसी समस्या के प्रति निर्णय लेने में स्वतन्त्र होता है तो वह सर्जनात्मक समझा जाता है। 
    • परिहासप्रियता भी सृजनात्मकता की पहचान है।सृजनात्मकता बालकों में हँसी-मजाक की प्रवृत्ति पाई जाती है।
    • उत्सुकता भी सृजनात्मकता का एक आवश्यक तत्व है। 
    • सर्जनशील बालकों में संवेदनशीलता अधिक पाई जाती है।
    • सर्जनशील बालकों में स्वायत्तता का भाव पाया जाता है।

    सृजनात्मकता के परीक्षण

    सृजनात्मकता की पहचान के लिये गिलफोर्ड ने अनेक परीक्षणों का निर्माण किया है। ये परीक्षण निरन्तरता (Fluency), लोचनीयता (Flexibility), मौलिकता (Originality) तथा विस्तार (Elaboration) का मापन करते हैं। प्रमुख परीक्षण इस प्रकार है-

    चित्रपूर्ति परीक्षण 

    चित्रपूर्ति परीक्षण में अपूर्ण चित्रों को पूरा करना पड़ता है।

    वृत्त परीक्षण

    इस परीक्षण में वृत्त (Circle) में चित्र बनाये जाते हैं। 

    प्रोडक्ट इम्प्रूवमेन्ट टास्क

    चूने के खिलौनों द्वारा नूतन विचारों को लेखबद्ध करके सृजनात्मकता पर बल दिया जाता है।

    टीन के डिब्बे

    खाली डिब्बों से नवीन वस्तुओं का सर्जन कराया जाता है।

    सर्जनात्मकता और शिक्षक

    बालकों में सृजनात्मकता का विकास करना, व्यक्ति तथा समाज, दोनों के हित में है। क्रो एवं क्रो के अनुसार- "जैसे-जैसे बालक में प्रतिबोध एवं संबोध का विकास होता जाता है, वह अपने वातावरण में परिवर्तन करना चाहता है जबकि प्रौढ़ व्यक्ति परिस्थितिनुगत यथार्थ होता है। छोटा बालक अत्यधिक कल्पनाशील होता है। वह अपने खिलौनों को अलग ले जाता है और उनको दूसरे में ले जाता है। घटनाओं की पुनर्गणना में वह इतना व्यस्त हो जाता है कि उनको पहचानने में भी कठिनाई होने लगती है।"

    शिक्षक को चाहिए कि बालकों में सृजनात्मकता का विकास करने के लिए उपाय करे।

    समस्या के स्तरों की पहचान

    स्टेनले ग्रे के शब्दों में- समस्या समाधान की योग्यता दो पदों पर निर्भर करती है। एक व्यक्ति के सीखने की या अधिगम पाने की बुद्धिवादी क्षमता या बुद्धि और दूसरा यह कि क्या उक्त व्यक्ति ने क्षमता के भीतर अधिगम पा लिया है। 

    तथ्यों का अधिगम

    समस्या को हल करने में कौन-कौन से तथ्यों को सिखाया जाय, शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

    मौलिकता 

    शिक्षक को चाहिए कि वह तथ्यों के आधार पर मौलिकता के दर्शन कराये। 

    मूल्यांकन

    छात्रों में अपना मूल्यांकन स्वयं करने की प्रवृत्ति का विकास करना चाहिए।

    जाँच

    छात्रों में जाँच करने की कुशलता का अर्जन कराया जाय। 

    पाठ्य सहगामी क्रियायें

    विद्यालय मे बुलेटिन बोर्ड, मैगजीन,पुस्तकालय, वाद-विवाद, खेलकूद स्काउटिंग, एन. सी. सी. आदि क्रियाओं द्वारा नवीन उद्भावनाओं का विकास करना चाहिए। सृजनात्मकता बालकों में निहित विशिष्ट गुण है। इस गुण का विकास किया जाना आवश्यक है। शिक्षक को इस बात से परिचित होना चाहिये कि सृजनशील बालक स्वतन्त्र निर्णय शक्ति वाले होते है, अपनी बात पर दृढ़ होते हैं, वे जटिल समस्याओं के समाधान में रुचि लेते हैं, वे उच्च स्तर की प्रतिक्रिया करते हैं।

    इसलिये शिक्षक को कक्षा शिक्षण के दौरान सर्जनात्मकता के विकास की ओर ध्यान देना चाहिए। पाठ्यक्रम में भी सर्जनात्मकता को स्थान दिया जाना चाहिये। 

    डीवी के अनुसार -विद्यालय या विद्यालय के बाहर प्राप्त अनुभवों में उत्कृष्ट कोटि की सृजनात्मकता निहित रहती है, जैसे- किसी बालक की अभिव्यक्ति का माध्यम खेलकूद हो सकता है जिमनास्टिक का अभ्यास नृत्यकला की आधारशिला बन सकता है। यहाँ पर शिक्षक की भूमिका ऐसी होनी चाहिए कि वह विद्यार्थी को उसकी सृजनात्मकता की प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति हेतु उपयुक्त माध्यम ढूँढने में समुचित मार्गदर्शन प्रदान करे।

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