रसखान का जीवन परिचय | Rasakhaan ka Jeevan Parichay

रसखान का जीवन परिचय | Rasakhaan ka Jeevan Parichay

रसखान का जीवन परिचय | Rasakhaan ka Jeevan Parichay

स्मरणीय तथ्य

जन्म- सन् 1558 ई०, दिल्ली।

मृत्यु- सन् 1618 ई०।

रचनाएँ- 'प्रेम वाटिका', 'सुजान रसखान'

काव्यगत विशेषताएँ

वर्णन का क्षेत्र 

1. प्रेम के सामान्य अलौकिक रूप का चित्रण |

2. कृष्ण को आधार मानकर प्रेम के भक्ति समन्वित रूप का चित्रण ।

रस- भक्ति, श्रृंगार का संयोग पक्ष तथा वात्सल्य । भाषा सरल तथा मधुर ब्रजभाषा जिसमें संस्कृत के तद्भव शब्दों, अरबी, फारसी के बोलचाल के शब्दों मुहावरों का उचित प्रयोग है।

शैली- प्रसाद गुणयुक्त वर्णनात्मक शैली।

अलंकार- उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा का सीमित प्रयोग तथा अनुप्रास और यमक की अधिकता ।

 

रसखान का जीवन परिचय 

रसखान का असली नाम इब्राहीम था। ये पठान सरदार थे। इनका जन्म दिल्ली में सन् 1558 ई0 के आस-पास हुआ था। इनके सम्बन्ध में किवदन्ती प्रचलित है कि ये किसी बनिये की लड़की के सौन्दर्य पर आसक्त थे। उनका यह सौन्दर्य प्रेम बाद में चलकर कृष्णभक्ति में परिणत हो गयी। मुसलमान होते। हुए भी ईश्वर के अवतार पर विश्वास मानकर श्रीकृष्ण की और उन्मुख हुए थे। इन्होंने गोसाई विट्ठलनाथ जी से दीक्षा ली थी इनका देहान्त सन् 1618 ई० के आस-पास हुआ। 

रचनाएँ

रसखान की लिखी दो पुस्तकें लोकप्रिय हैं- 

  • सुजान रसखान, 
  • प्रेम वाटिका । 

नागरी प्रचारिणी सभा काशी से रसखान की सभी रचनाओं का संग्रह, 'रसखान ग्रन्थावली' नाम से प्रकाशित हुआ है। 'सुजान' रसखान की रचना कवित्त और सवैया छन्द में है और 'प्रेम वाटिका' दोहा छन्द में लिखी गयी है।

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काव्यगत विशेषताएँ

यद्यपि रसखान कालक्रम के अनुसार रीतिकालीन कवि हैं किन्तु उनकी रचना भक्तिकालीन सगुण काव्यधारा की कृष्णभक्ति शाखा की परम्परा में है। रसखान प्रेमी व्यक्ति हैं। इनका लौकिक प्रेम ही आगे चलकर पारलौकिक प्रेम में परिणत हो जाता है। श्रीकृष्ण के रूप सौन्दर्य पर मुग्ध होने के साथ-साथ ये उनकी लीला भूमि ब्रज के प्राकृतिक सौन्दर्य से भी अनुरक्त है। रसखान की श्रीकृष्ण सम्बन्धी प्रेम-भावना में सूफियों की तीव्रता, गहनता एवं आवेशपूर्ण तन्मयता है। इसमें हृदय को छू लेनेवाली मर्मस्पर्शिता है। इनके काव्य में सरसता और सरलता के साथ- साथ भावों की गहराई और हृदय की कोमलता है जो इनकी लोकप्रियता का मुख्य कारण है।

(क) भाव पक्ष

  • काव्य का माध्यम श्रीकृष्ण भक्ति है। उसमें सरस माधुर्यपूर्ण भक्ति है।
  • भाषा सरल, सरस तथा प्रवाहपूर्ण है। इसमें संगीतात्मकता का पूर्ण समावेश है। भाषा ब्रज है। 
  • प्रेम तत्त्व की प्रधानता - काव्य प्रेम राग से परिपूर्ण है। उनका लौकिक प्रेम सरल भगवत् भक्ति में परिवर्तित हुआ है।
  • कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम मुसलमान होते हुए भी रसखान कृष्ण के प्रति अपना अनन्य प्रेम रखते हैं। वह अपनी इस्लामी आस्था के प्रतिकूल पुनर्जन्म में विश्वास करके श्रीकृष्ण के सामीप्य की कामना करते हैं।

(ख) कला पक्ष

1. भाषा- रसखान की भाषा शुद्ध ब्रजभाषा है जो अत्यन्त ही मधुर और भावप्रवण है। उसमें हृदयंगम भावों को सरल और बोधगम्य भाषा में व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता है। रसखान की आडम्बरहीन सीधी-सादी भाषा का प्रवाह इनके काव्य को अत्यन्त ही आकर्षक बना देता है। 

2. शैली- इनकी शैली मुक्तक काव्य की शैली है जिनमें कवित्त, सवैया और दोहा के माध्यम से विचार को अलग-अलग व्यक्त किया गया है। 

3. रस-छन्द- अलंकार-रसखान मुख्यतः भक्ति और शृंगार रस के कवि हैं। इनकी रचनाओं में शृंगार के संयोग और वियोग दोनों रूपों का बड़ा ही मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है। भक्ति सम्बन्धी छन्दों में सखा कोटि की भक्ति की प्रधानता है। इन्होंने काव्य में कविता, सवैया और दोहा छन्दों का प्रयोग किया है। 'सुजान रसखान' में कविता और सवैया तथा 'प्रेम वाटिका में दोहा छन्द की प्रधानता है। इनकी कविता में यमक, श्लेष, उपमा, रूपक, अनुप्रास, अलंकारों का विशेष प्रयोग हुआ है। इनकी कविता अलंकारों से बोझिल नहीं है। अलंकार स्वतः इनके काव्य में आकर स्वाभाविक रूप में उसके सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं।

साहित्य में स्थान 

रसखान का स्थान हिन्दी के सगुणोपासक कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवियों में अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। इनके काव्य में एक ओर भाषा सौन्दर्य की निराली छटा देखने को मिलती है तो दूसरी ओर उनका भाव सौन्दर्य पाठकों को मुग्ध कर देता है।

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