मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ
मानसिक स्वास्थ्य की अवधारणा अत्यन्त प्राचीन है। पहले उस व्यक्ति को मानसिक रोगी समझा जाता था, जो समाज तथा परिवार विरोधी कार्य करता था पर वह क्यों कर रहा है इसका पता उसे स्वयं नहीं होता था। दौरे पड़ना, वस्त्रविहीन हो जाना आदि भूत-प्रेत के उत्पात माने जाते थे और तंत्र-मंत्र द्वारा मानसिक चिकित्सा की जाती थी। अशिक्षित क्षेत्रों में आज भी ऐसा किया जाता है। मनोविज्ञान ने मानसिक रोगों के बारे में नवीन अवधारणायें प्रस्तुत की है।
गुड (Good) के अनुसार- मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान आधुनिक शताब्दी का लोकहितकारी आन्दोलन है। इसको आरम्भ करने का श्रेय सी. डब्ल्यू बीयर्स (C. W. Beers) को है। उसने 1908 में अपनी पुस्तक "A Mind that Found itself" को प्रकाशित करके इस आन्दोलन का सूत्रपात, चिकित्सालयों में पागलों की दशा में सुधार करने के लिए किया। धीरे-धीरे इनमें मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित सभी पहलुओं का समावेश हो गया है।
'मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान' का शाब्दिक अर्थ है- मस्तिष्क को स्वस्थ या नीरोग रखने वाला विज्ञान। जिस प्रकार शारीरिक स्वास्थ्य विज्ञान का सम्बन्ध शरीर से है, उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य का सम्बन्ध मस्तिष्क से है। अतः हम कह सकते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान वह विज्ञान है, जो मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने, मानसिक रोगों को दूर करने और इन रोगों की रोकथाम के उपाय बताता है।
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की परिभाषा
1. क्रो व क्रो के अनुसार- "मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान वह विज्ञान है, जिसका सम्बन्ध मानव-कल्याण से है और जो मानव-सम्बन्धों के सब क्षेत्रों को प्रभावित करता है।"
2. ड्रेवर के अनुसार- "मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ है- मानसिक स्वास्थ्य के नियमों की खोज करना और उसके संरक्षण के उपाय करना। "
3. स्किनर के अनुसार- "मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का मुख्य सम्बन्ध अधिक स्वस्थ मानव-सम्बन्धों के विकास से है। इसका अर्थ है, व्यक्तियों के व्यवहार के सम्बन्ध में अर्जित ज्ञान को दैनिक जीवन में प्रयोग करना।"
4. कालसनिक के अनुसार- "मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान, नियमों का समूह है जो व्यक्ति को स्वयं तथा दूसरों के साथ शांति से रहने के योग्य बनाता है। "
5. ए. जे. रोजनफ के अनुसार- "मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान, व्यक्तियों की कठिनाइयों को दूर करने में सहायता देता है तथा कठिनाइयों के समाधान के लिये साधन प्रस्तुत करता है। "
6. हेडफील्ड के अनुसार- " मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का सम्बन्ध मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा और मानसिक अव्यवस्थापन को दूर करना है।"
वेबस्टर शब्दकोश में मानसिक स्वाथ्य विज्ञान की व्याख्या इन शब्दों में की गई है- मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान वह विज्ञान है जिसके द्वारा हम मानसिक स्वास्थ्य को स्थिर रखते हैं तथा पागलपन और स्नायु सम्बन्धी क्षेत्रों को पनपने से रोकते हैं। साधारण स्वास्थ्य विज्ञान में केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर ही ध्यान दिया जाता है। परन्तु मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान में मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य को भी सम्मिलित किया जाता है क्योंकि बिना शारीरिक स्वास्थ्य के मानसिक स्वास्थ्य सम्भव नहीं है।
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान, मनोविज्ञान तथा चिकित्सा के क्षेत्र में एक नई अध्ययन शाखा तथा व्यावहारिक विज्ञान के रूप में विकसित हो रहा है। इसका मूल उद्देश्य व्यक्ति को सुखी बनाना है।
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मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के पहलू
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का मूल उद्देश्य व्यक्ति को सुखी बनाना है अतः इसके अनेक पक्ष है। ये पक्ष इसके कार्य एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हैं।
(अ) स्किनर के अनुसार :
1. सकारात्मक पहलू- प्रारम्भिक अवस्था में मानसिक रोगों की खोज करना ऐसे रोगों की रोकथाम करना और समाज के अधिक-से-अधिक व्यक्तियों के स्वस्थ जीवन की व्यवस्था करना ।
2. नकारात्मक पहलू- मानसिक रोगियों की अधिक उदारता और कुशलता से चिकित्सा करना और उन्हें समाज के योग्य बनाना ।
(ब) अन्य विद्वानों के अनुसार :
1. उपचारात्मक पहलू- मानसिक रोगों को दूर करने के उपाय बताना। ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करना जिनसे मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहे।
2. निरोधात्मक पहलू- मानसिक रोगों की रोकथाम के उपाय बताना।
3. संरक्षणात्मक पहलू- मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने की विधियों को बताना।
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के उद्देश्य
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान, मनुष्य एवं समाज के लिये उन परिस्थितियों का निर्माण करता है जिससे उनमें सन्तुलन बना रहे। इस दृष्टि से मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के उद्देश्य इस प्रकार है-
1. शेफर (Shaffer) के अनुसार- व्यक्ति को अधिक पूर्ण, अधिक सुखी, अधिक सामंजस्यपूर्ण और अधिक प्रभावपूर्ण जीवन प्राप्त करने में सहायता देना।
2. बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfeld & Weld) के अनुसार- 'चिन्ताओं और कुसमायोजनाओं (Maladjustments) का अन्त करके लोगों को अधिक सन्तोषजनक और अधिक उत्पादक जीवन प्राप्त करने में सहायता देना।"
3. क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) के अनुसार- (i) स्वस्थ व्यक्तित्व के विकास और जीवन के अनुभवों के सम्बन्धों को समझकर मानसिक अव्यवस्थाओं (Mental Disorders) की रोकथाम करना,
(ii) व्यक्ति और समूह के मानसिक स्वास्थ्य का संरक्षण करना,
(iii) मानसिक रोगों को दूर करने के उपायों की खोज करना और उनका प्रयोग करना ।
मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ
मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ व्यापक है। इसका स्पष्टीकरण करते हुए कुप्पूस्वामी ने लिखा है-"मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ मानसिक रोगों की अनुपस्थिति नहीं है। इसके विपरीत, यह व्यक्ति के दैनिक जीवन का सक्रिय और निश्चित गुण है। यह गुण उस व्यक्ति के व्यवहार में व्यक्त होता है, जिसका शरीर और मस्तिष्क एक ही दिशा में साथ-साथ कार्य करते हैं। उसके विचार, भावनायें और क्रियायें एक ही उद्देश्य की ओर सम्मिलित रूप से कार्य करती हैं। मानसिक स्वास्थ्य, कार्य की ऐसी आदतों और व्यक्तियों तथा वस्तुओं के प्रति ऐसे दृष्टिकोणों को व्यक्त करता है, जिनसे व्यक्ति को अधिकतम संतोष और आनन्द प्राप्त होता है। पर व्यक्ति को यह संतोष और आनन्द उस समूह या समाज से, जिसका कि वह सदस्य होता है, तनिक भी विरोध किये बिना प्राप्त करना पड़ता है। इस प्रकार, मानसिक स्वास्थ्य, समायोजन की वह प्रक्रिया है, जिसमें समझौता और सामंजस्य, विकास और निरन्तरता का समावेश रहता है।"
मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा
मानसिक स्वास्थ्य की निम्नलिखित परिभाषायें हैं-
1. लैडेल के अनुसार- "मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है-वास्तविकता के धरातल पर वातावरण से पर्याप्त सामंजस्य करने की योग्यता ।"
2. कुप्पूस्वामी के अनुसार- "मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है- दैनिक जीवन में भावनाओं, इच्छाओं, महत्त्वाकांक्षाओं और आदशों में सन्तुलन रखने की योग्यता इसका अर्थ है-जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने और उनको स्वीकार करने की योग्यता।"
3. हैडफील्ड के अनुसार- "सामान्य रूप से मानसिक स्वास्थ्य सम्पूर्ण व्यक्तित्व का सामंजस्य पूर्णता के साथ कार्य करना है।"
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की विशेषताएँ
कुप्पूस्वामी के अनुसार : मानसिक रूप से स्वस्थ या सुसमायोजित (Well-adjusted) व्यक्ति में अग्रांकित विशेषतायें पाई जाती हैं-
1. सहनशीलता
ऐसे व्यक्ति में सहनशीलता होती है। अतः उसे अपने जीवन की निराशाओं को सहन करने में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है।
2. आत्मविश्वास
ऐसे व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है। उसे यह विश्वास होता है कि वह अपनी योग्यता के कारण सफलता प्राप्त कर सकता है। उसे यह भी विश्वास होता है कि वह प्रत्येक कार्य को उचित विधि से कर सकता है। वह अधिकतर अपने ही प्रयास से अपनी समस्याओं का समाधान करता है।
3. जीवन-दर्शन
ऐसे व्यक्ति का एक निश्चित जीवन-दर्शन होता है, जो उसके दैनिक कार्यों को अर्थ और उद्देश्य प्रदान करता है। उसके जीवन-दर्शन का सम्बन्ध इसी संसार से होता है। अतः उसमें इस संसार से दूर रहने की प्रवृत्ति नहीं होती है। इसी प्रवृत्ति के कारण वह अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए वास्तविक कार्य करता है। वह अपने कर्त्तव्यों और उत्तरदायित्वों की कभी भी अवहेलना नहीं करता है।
4. संवेगात्मक परिपक्वता
ऐसा व्यक्ति अपने व्यवहार में संवेगात्मक परिपक्वता का प्रमाण देता है। इसका अभिप्राय यह है कि उसमें भय, क्रोध, ईर्ष्या ऐसे संवेगों को नियन्त्रण में रखने और उनको वांछनीय ढंग से व्यक्त करने की क्षमता होती है। वह भय, क्रोध और चिन्ताओं से अस्त-व्यस्त नहीं होता है।
5. वातावरण का ज्ञान
ऐसे व्यक्ति को वातावरण और उसकी शक्तियों का ज्ञान होता है। इस ज्ञान के आधार पर वह निर्भर होकर भावी योजनायें बनाता है। उसमें जीवन की वास्तविकताओं का उचित ढंग से सामना करने की शक्ति होती है।
6. सामंजस्य की योग्यता
ऐसे व्यक्ति में सामंजस्य करने की योग्यता होती है। इसका अभिप्राय यह है कि वह दूसरों के विचारों और समस्याओं को एवं उनमें पाई जाने वाली विभिन्नताओं को स्वाभाविक बात समझता है। वह स्थायी रूप से प्रेम कर सकता है. प्रेम प्राप्त कर सकता है और मित्र बना सकता है।
7. निर्णय करने की योग्यता
ऐसे व्यक्ति में निर्णय करने की योग्यता होती है। वह स्पष्ट रूप से विचार करके प्रत्येक कार्य के सम्बन्ध में उचित निर्णय कर सकता है।
8. वास्तविक संसार में निवास
ऐसा व्यक्ति वास्तविक संसार में, न कि काल्पनिक संसार में, निवास करता है। उसका व्यवहार वास्तविक बातों से, न कि इच्छाओं और काल्पनिक भयों से निर्देशित होता है।
9. शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति ध्यान
ऐसा व्यक्ति अपने शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति पूर्ण ध्यान देता है। वह स्वस्थ रहने के लिए नियमित जीवन व्यतीत करता है। वह भोजन, नींद, आराम, शारीरिक कार्य, व्यक्तिगत स्वच्छता और रोगों से सुरक्षा के सम्बन्ध में स्वास्थ्य प्रदान करने वाली आदतों का निर्माण करता है।
10. आत्म सम्मान की भावना
ऐसे व्यक्ति में आत्म-सम्मान की भावना होती है। वह अपनी योग्यता और महत्त्व को भली-भाँति समझता है एवं दूसरों से उनके सम्मान की आशा करता है।
11. व्यक्तिगत सुरक्षा की भावना
ऐसे व्यक्ति में व्यक्तिगत सुरक्षा की भावना होती है। वह अपने समूह में अपने को सुरक्षित समझता है। वह जानता है कि उसका समूह उससे प्रेम करता है और उसे उसकी आवश्यकता है।
12. आत्म-मूल्यांकन की क्षमता
ऐसे व्यक्ति में आत्म-मूल्यांकन की क्षमता होती है। उसे अपने गुणों, दोषों, विचारों और इच्छाओं का ज्ञान होता है। वह निष्पक्ष रूप से अपने व्यवहार के औचित्य और अनौचित्य का निर्णय कर सकता है। वह अपने दोषों को सहज ही स्वीकार कर लेता है।
मानसिक रूप से व्यक्ति का स्वस्थ होना अत्यन्त आवश्यक है। वह स्वस्थ तभी रह सकता है जब उचित वातावरण द्वारा वह उपरोक्त सभी गुणों को अपने में सन्तुलित रूप से विकसित करे।