बालक और शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकता
बालक और शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य का शिक्षा में अत्यधिक ध्यान रखा जाता है। बालक,भविष्य की नींव है, इसलिये उसका मानसिक रूप से स्वस्थ बने रहना आवश्यक है। शिक्षक, भविष्य का निर्माता है, इसलिये,अगर निर्माता मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होगा तो भावी समाज विकृत हो जायेगा। इसलिये बालक तथा शिक्षक,दोनों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना अति आवश्यक है।
इन शब्दों में यह संकेत निहित है कि बालक और शिक्षक दोनों का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होना अनिवार्य है। इसके अभाव में न तो बालक सफलतापूर्वक शिक्षा ग्रहण कर सकता है और न शिक्षक सफलतापूर्वक शिक्षण का कार्य कर सकता है। उनके मानसिक स्वास्थ्य पर किन कारकों का हानिकारक प्रभाव पड़ता है और उसमें उन्नति करने के लिए किन उपायों का प्रयोग किया जा सकता है हम इन पर निम्नांकित पंक्तियों में विचार कर रहे हैं-
लेडेल के अनुसार- "मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है वास्तविकता से पर्याप्त सामंजस्य करने की योग्यता।"
कुप्पूस्वामी के अनुसार- "मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है- दैनिक जीवन में भावनाओं, इच्छाओं, महत्त्वाकांक्षाओं, आदशों में संतुलन करने की योग्यता। इसका अर्थ है जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने और उनको स्वीकार करने की योग्यता ।"
बालक के मानसिक स्वास्थ्य में बाधा डालने वाले कारक
ऐसे अनेक कारक या कारण है, जो बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं और उसकी समायोजन की शक्ति को क्षीण कर देते हैं। ये कारण निम्नलिखित है-
1. वंशानुक्रम का प्रभाव
कुप्पूस्वामी के अनुसार : बालक दोषपूर्ण वंशानुक्रम से मानसिक निर्बलता, एक विशेष प्रकार का मानसिक अस्वास्थ्य और कुछ मानसिक एवं स्नायु सम्बन्धी रोग प्राप्त करता है। फलस्वरूप वह समायोजन करने में कठिनाई का अनुभव करता है।
2. शारीरिक स्वास्थ्य का प्रभाव
शारीरिक स्वास्थ्य को मानसिक स्वास्थ्य का आधार माना जाता है। यदि बालक का शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं है, तो उसके मानसिक स्वास्थ्य का अच्छा न होना स्वाभाविक है।
कुप्पूस्वामी के अनुसार- "स्वस्थ व्यक्तियों की अपेक्षा रोगी व्यक्ति नई परिस्थितियों से सामंजस्य करने में अधिक कठिनाई का अनुभव करते हैं।"
3. शारीरिक दोषों का प्रभाव
शारीरिक दोष असमायोजन के लिए उत्तरदायी होते हैं।
कुप्पूस्वामी का मत है-"गम्भीर शारीरिक दोष बालक में हीनता की भावनायें उत्पन्न करके समायोजन की समस्याएँ उपस्थित कर सकते हैं।"
4. समाज का प्रभाव
समाज का अभिन्न अंग होने के कारण बालक पर उसका व्यापक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। यदि समाज का संगठन दोषपूर्ण है, तो बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर उसका विपरीत प्रभाव पड़ना आवश्यक है। समाज के आन्तरिक झगडे, धार्मिक और जातीय संघर्ष, विभिन्न समूहों के राजनीतिक दाँव पेंच, धनी वर्गों के संकीर्ण स्वार्थ, निर्धन वर्गों की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की माँग, ऊँच-नीच और अस्पृश्यता की भावनायें, व्यक्तिगत सुरक्षा और स्वतन्त्रता का अभाव- ये सभी बातें बालक में मानसिक तनाव उत्पन्न कर देती हैं। परिणामतः उसके मानसिक स्वास्थ्य का विकास अवरुद्ध हो जाता है।
5. परिवार का प्रभाव
परिवार, बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुमुखी प्रभाव डालता है-
(i) परिवार का विघटन- आधुनिक समय में औद्योगीकरण के कारण परिवार का अति तीव्र गति से विघटन हो रहा है। बालक, परिवार के सदस्यों में अलगाव की प्रबल भावना देखता है। फलस्वरूप, उसमें भी अलगाव की भावना उत्पन्न हो जाती है, जिससे वह असमायोजन की ओर अग्रसर होता है।
(ii) परिवार का अनुशासन- यदि परिवार में बालक पर कठोर अनुशासन रखा जाता है और उसे छोटी-छोटी बातों पर डॉटा डपटा जाता है, तो उसमें आत्महीनता की भावना घर कर लेती है। ऐसी स्थिति में उसका मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
(iii) परिवार की निर्धनता- प्लांट (Plant) ने अपनी पुस्तक "Personality & the Cultural Pattern" में लिखा है, कि परिवार की निर्धनता के कारण बालक का व्यक्तित्व उम्र और कठोर हो जाता है उसमें हीनता और असुरक्षा की भावना विकसित हो जाती है एवं उसमें आत्मविश्वास का स्थायी अभाव हो जाता है। ये सब बातें उसके मानसिक स्वास्थ्य को खराब कर देती हैं।
(iv) पारिवारिक संघर्ष- परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से बालक के माता-पिता के पारस्परिक संघर्ष उसके मानसिक स्वास्थ्य पर इतना दूषित प्रभाव डालते हैं कि वह समायोजन करने में असमर्थ होता है।
कुप्पूस्वामी के शब्दों में- "जिन माता-पिता में निरन्तर संघर्ष होता रहता है, वे समायोजन की समस्याओं वाले बालकों में अत्यधिक प्रतिशत का कारण होते हैं।"
(v) माता-पिता का व्यवहार- कुछ माता-पिता अपने बच्चों को अत्यधिक लाड़-प्यार से पालते हैं. कुछ उनसे किसी कारणवश बहुत समय अलग रहते हैं, कुछ उनको पर्याप्त प्रेम और सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं, कुछ उनको अयोग्य और निकम्मा समझते हैं, कुछ उनको अपने ऊपर आवश्यकता से अधिक निर्भर बना लेते हैं, कुछ उनके प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार करते हैं, कुछ उनसे अपने आदर्शों पर न पहुँच पाने के कारण घृणा करने लगते है।
अतः इस प्रकार के सब माता-पिता अपने बच्चों के मानसिक अस्वास्थ्य को दृढ़ आधार प्रदान करते हैं।
6. विद्यालय का प्रभाव
परिवार के समान विद्यालय भी बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर अनेक प्रकार के अवांछनीय प्रभाव डालता है-
(i) विद्यालय का वातावरण- यदि विद्यालय में बालक के व्यक्तित्व का सम्मान नहीं किया जाता है, यदि उसकी इच्छाओं का दमन किया जाता है, यदि उसे अपने विचारों को व्यक्त करने का अवसर नहीं दिया जाता है और यदि उसकी विशिष्ट रुचियों का विकास करने के लिए पाठ्यक्रम सहयोगी क्रियाओं का आयोजन नहीं किया जाता है, तो उसके मानरिक स्वास्थ्य की उन्नति का स्पष्ट रूप से विरोध किया जाता है। इसके अतिरिक्त, यदि विद्यालय में निरन्तर भय और आतंक का वातावरण एवं जाति-भेद का बोलबाला रहता है, तो बालक का मस्तिष्क असन्तुलित हो जाता है।
(ii) पाठ्यक्रम- यदि पाठ्यक्रम सब बालकों के लिए समान होता है, यदि वह अत्यधिक बोझिल होता है, यदि वह बालकों की माँगों और आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं करता है, यदि वह उनकी रुचियों और क्षमताओं के प्रतिकूल होता है तो वह उनके मानसिक स्वास्थ्य का विकास करने में पूर्णतया असफल होता है।
(iii) शिक्षण विधियाँ- परम्परागत और अमनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियाँ बालक के ज्ञान प्राप्ति के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करती हैं। अतः वह हतोत्साहित होकर अपना मानसिक स्वास्थ्य खो बैठता है।
(iv) परीक्षा-प्रणाली-अधिकांश विद्यालयों में आत्मनिष्ठ परीक्षाओं की प्रधानता है। ये परीक्षायें बालकों की वास्तविक प्रगति का मूल्यांकन नहीं कर पाती हैं। इन परीक्षाओं के प्रचलन के कारण कुछ योग्य बालकों को कक्षोन्नति नहीं दी जाती और कुछ अयोग्य बालकों को दे दी जाती है। पहली प्रकार के बालक निराश और निरुत्साहित होकर अपने को वास्तव में अयोग्य समझने लगते हैं। दूसरे प्रकार के बालक अयोग्य होने के कारण अपने को अगली कक्षा में अयोग्य पाकर विद्यालय कार्य से मुख मोड़ लेते हैं। इस तरह दोनों प्रकार के बालक असमायोजित हो जाते हैं।
(v) कक्षा का वातावरण- यदि कक्षा में वायु प्रकाश और बैठन के स्थान का अभाव होता है, यदि उसका वातावरण भय और आतंक पर आधारित होता है, यदि बालकों को छोटी-छोटी त्रुटियों के लिए अविवेकपूर्ण ढंग से दण्ड दिया जाता है और यदि उनके विचारों एवं इच्छाओं का दमन किया जाता है, तो उनको उनके मानसिक स्वास्थ्य से बलपूर्वक वंचित किया जाता है।
(iv) शिक्षक का व्यवहार- यदि शिक्षक, बालकों के प्रति तनिक भी प्रेम और सहानुभूति व्यक्त नहीं करता है, यदि वह उनके प्रति सदैव कठोर और पक्षपातपूर्ण व्यवहार करता है, यदि वह उनको अकारण दण्ड देता है और यदि वह उनकी भावनाओं को कुचलने का प्रयास करता है तो वह उनके मानसिक अस्वास्थ्य में अत्यधिक योग देता है।
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मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान | मानसिक स्वास्थ्य
बालक के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति करने वाले कारक
ऐसे अनेक कारक या उपाय हैं, जो बालक के स्वास्थ्य को बनाये रखने, अस्वस्थ न होने देने और उन्नति करने में सहायता दे सकते हैं। इस प्रकार, ये कारक न केवल बालक की असमायोजन (Maladjustment) से रक्षा कर सकते हैं, वरन् उसकी समायोजन की क्षमता में वृद्धि भी कर सकते हैं। ये कारक निम्नलिखित है-
1. समाज के कार्य
प्रत्येक बालक, समाज में जन्म लेता है और समाज में ही अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करता है। अतः उसके मानसिक स्वास्थ्य को विकसित करने का उत्तरदायित्व समाज पर है। इस उत्तरदायित्व का निर्वाह करने के लिये समाज अनेक कार्य कर सकता है, जैसे-
(1) बालक की आधारभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करना,
(2) उसे सुख और सुरक्षा प्रदान करना,
(3) उसे शारीरिक व्याधियों से मुक्त रखने के लिए चिकित्सकों का निर्माण करना,
(4) उसके सन्तुलित संवेगात्मक विकास के लिए साधन जुटाना,
(5) उसके लिए विभिन्न प्रकार के मनोरंजनों की समुचित व्यवस्था करना,
(6) उसके लिए सभी प्रकार की उत्तम शिक्षा संस्थाओं का संचालन करना।
2. परिवार के कार्य
फ्रेंडसन के शब्दों में- ''परिवार, बालक को मानसिक स्वास्थ्य या असमायोजन की दिशा में अग्रसर करता है।"
परिवार, बालक को मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में किस प्रकार अग्रसर करता है, इसका वर्णन नीचे की पंक्तियों में पढ़िए-
(i) विकास की उत्तम दशायें- फ्रेंडसन (Frandsen)के मतानुसार : मानसिक रूप से स्वस्थ बालक में 6 वर्ष की आयु तक उत्तरदायित्व, स्वतन्त्रता और आत्मविश्वास की भावनाओं का विकास हो जाता है। यह तभी सम्भव है, जब परिवार इनके विकास के लिए उत्तम दशायें प्रदान करे। ऐसा न करने से इनका विकास असम्भव हो जाता है और फलस्वरूप बालक के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति नहीं हो पाती है।
(ii) परिवार का शान्तिपूर्ण वातावरण- जिस परिवार में शान्ति और सामंजस्य का वातावरण होता है, उसमें बालक के मानसिक स्वास्थ्य में निश्चित रूप से वृद्धि होती है। इस सम्बन्ध में कुप्पूस्वामी के ये शब्द मनन के योग्य है-"अच्छा परिवार, जिसमें माता-पिता में सामंजस्यपूर्ण सम्बन्ध होता है और जिसमें आनन्द एवं स्वतन्त्रता का वातावरण होता है, प्रत्येक बालक के मानसिक स्वास्थ्य की उन्नति में अतिशय योग देता है।"
(iii) माता-पिता का मानसिक स्वास्थ्य- बालक के मानसिक विकास की वृद्धि तभी सम्भव है, जब उसके माता-पिता का मानसिक स्वास्थ्य उत्तम दिशा में हो। इस सन्दर्भ में फ्रेंडसन ने ये शब्द अंकित किए हैं-"प्रत्येक बालक को मानसिक रूप से स्वस्थ और एक-दूसरे से प्रेम करने वाले माता-पिता की आवश्यकता है।"
(iv) माता-पिता का व्यवहार- बच्चों के प्रति उनके माता-पिता का उचित व्यवहार उनके मानसिक स्वास्थ्य के विकास में महत्त्वपूर्ण योग देता है। इस व्यवहार को अक्षरबद्ध करते हुए कुप्पूस्वामी ने लिखा है- "जो माता-पिता अपने बच्चों को प्रेम और सुरक्षा प्रदान करते हैं, वह उनके मानसिक स्वास्थ्य में योग देती है जो पिता अपने बच्चों के साथ अपना जीवन और समय व्यतीत करता है, वह उनको स्वस्थ मानसिक दृष्टिकोणों का विकास करने में सहायता देता है।"
(v) अन्य कारक- फ्रेंडसन (Frandsen) के अनुसार : बालक के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति करने वाले अन्य कारक हैं-
(1) बालक और उसके माता-पिता के मधुर सम्बन्ध,
(2) बालक की स्थिति व व्यक्तित्व का सम्मान,
(3) बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक और संवेगात्मक विकास की उचित दिशा,
(4) बालक की आधारभूत शारीरिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति,
(5) बालक की रुचियों, आकांक्षाओं और मानसिक योग्यताओं के विकास के लिए उपयुक्त अवसर,
(6) बालक को सफलताओं और असफलताओं में समान रूप से प्रोत्साहन,
(7) बालक को अपनी समस्याओं का समाधान करने में सहायता व निर्देशन,
(8) परिवार में जनतन्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित अनुशासन।
3. विद्यालय के कार्य
फ्रेंडसन के शब्दों में-''मानसिक स्वास्थ्य का विकास, शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य और प्रभावशाली अधिगम की एक अनिवार्य शर्त- दोनों हैं।"
मानसिक स्वास्थ्य के उल्लिखित महत्त्व से अवगत होने वाले शिक्षक, विद्यालय में उपलब्ध प्रत्येक साधन का प्रयोग, बालकों के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति करने के लिये करते हैं। इस सम्बन्ध में प्रमुख तथ्य आपके अवलोकन के लिए लेखबद्ध किये जा रहे हैं-
(i) शिक्षक का सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार- बालकों के प्रति शिक्षक का व्यवहार नम्र, शिष्ट और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए। पक्षपात या भेदभाव किये बिना उसे सब बालकों के साथ समान और प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर अत्युत्तम प्रभाव पड़ता है।
(ii) जनतन्त्रीय अनुशासन- विद्यालय का अनुशासन- भय, दण्ड, दमन और कठोरता पर आधारित न होकर जनतन्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित होना चाहिए। बालकों में आत्म-अनुशासन की भावना का विकास करने के लिए छात्र स्वशासन को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके अलावा, बालकों को उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सौंप कर विद्यालय के प्रशासन में साझीदार बनाना चाहिए। इन सब बातों के फलस्वरूप उनके मानसिक स्वास्थ्य में निरन्तर उन्नति होती चली जाती है।
(iii) विभिन्न व उपयुक्त पाठ्यक्रम- विद्यालय का पाठ्यक्रम सभी बालकों के लिए उपयुक्त होना चाहिए। अतः वह सबके लिए समान न होकर विभिन्न व्यवर्ग के बालकों के लिए विभिन्न होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए और उस सब बालकों की रुचियों एवं आवश्यकताओं को पूर्ण करना चाहिए। इस प्रकार का पाठ्यक्रम बालकों के मानसिक स्वास्थ्य को शक्ति प्रदान करता है।
(iv) अल्प गृह-कार्य- शिक्षक बहुधा बालकों को इतना अधिक गृह-कार्य दे देते हैं कि उसे पूर्ण करना उनके सामर्थ्य से परे की बात होती है। पूर्ण न कर सकने के कारण वे दण्ड का विचार करके भय और चिन्ता में ग्रस्त हो जाते हैं इससे उनमें मानसिक तनाव उत्पन्न हो जाता है। अतः शिक्षकों को केवल इतना ही गृह-कार्य देना चाहिए जिसे बालक सरलता से पूर्ण करके चिन्तामुक्त रह सकें। ऐसी मानसिक दशा उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए निश्चित रूप से हितकर सिद्ध हो सकती है।
(v) विभिन्न क्रियाओं का आयोजन- विद्यालय में खेलकूद, मनोरंजन, अभिनय, स्काउटिंग, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं अधिक से अधिक प्रकार की पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का भरपूर आयोजन होना चाहिए। बालक इनमें से किसी न किसी को माध्यम बनाकर अपने संवेगों, इच्छाओं, मूलप्रवृत्तियों, विशिष्ट रुचियों, जन्मजात क्षमताओं आदि की अभिव्यक्ति करते हैं। उनको ऐसा करने से वंचित करना, उनके मस्तिष्क को असन्तुलित करके, उन्हें मानसिक अस्वास्थ्य का शिकार बनाना है।
(vi) निर्देशन की व्यवस्था- बालकों के समक्ष कभी-न-कभी शैक्षिक, व्यक्तिगत और व्यावसायिक उलझनों का प्रकट होना आवश्यक है। उनको इनका समाधान करने और इन पर विजय प्राप्त करने के लिए विद्यालय में शैक्षिक, व्यक्तिगत और व्यावसायिक निर्देशन देने के लिए कुशल व्यक्तियों का होना आवश्यक है। निर्देशन प्राप्त न होने से वे अपनी उलझनों में अधिक ही अधिक उलझते चले जाते हैं और परिणामस्वरूप अपने मानसिक स्वास्थ्य से हाथ धो बैठते हैं।
(vii) अन्य कारक- फ्रेंडसन के अनुसार: बालक के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति करने वाले अन्य कारक है-
(1) शिक्षण विधियों में मानसिक स्वास्थ्य के सिद्धान्तों का प्रयोग,
(2) बालक और उनके साथियों के सम्बन्धों की देखभाल,
(3) अभिभावक अध्यापक सम्मेलन,
(4) बालक के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति करने के लिए शिक्षकों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के सम्मिलित प्रयास।
शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य में बाधा डालने वाले कारक
शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य में बाधा डालने वाले और उसमें व्यक्तिगत असमायोजन (Personal Maladjustment) उत्पन्न करने वाले कारक इस प्रकार हैं-
1. आर्थिक कठिनाई
शिक्षा आयोग' (1964-66) की सिफारिश के अनुसार : प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक का न्यूनतम वेतन 100 रुपये और माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक का न्यूनतम वेतन 220 रुपये मासिक है। आज की कमरतोड़ महँगाई के समय में इतना अल्प वेतन उनको सदैव आर्थिक कठिनाइयों में फँसाये रहता है। इस परिस्थिति का उनके मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ना अनिवार्य है।
2. पद की असुरक्षा
राजकीय सहायता प्राप्त सब विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति जिला विद्यालय निरीक्षक की स्वीकृति से होती है और उसी की स्वीकृति से उनको अपने पद से पृथक किया जा सकता है पर अनेक विद्यालय प्रबन्धक धन की अनुचित बचत करने के लिए अनेक शिक्षकों को किसी न किसी बहाने ग्रीष्मावकाश से पूर्व ही विद्यालय से अलविदाई दे देते हैं। इस प्रकार, अधिकांश शिक्षकों को अपने पदों को खोने का भय सदैव त्रासपूर्ण रखता है। इसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर अति अवांछनीय प्रभाव पड़ता है।
3. कार्य का अत्यधिक भार
आम लोगों का विचार है कि शिक्षक को प्रतिदिन कम घंटे काम करना पड़ता है और छुट्टियों भी अधिक मिलती है। काम के घंटे भले ही कम हो, पर उन सब घंटों में उसे अपने ध्यान को निरन्तर और इतना अधिक केन्द्रित रखना पड़ता है कि विद्यालय समाप्ति के समय वह उसमें खालीपन का अनुभव करने लगता है। जहाँ तक छुट्टियों की बात है, यदि उसे इतनी छुट्टियाँ न मिलें, तो उसे विद्यालय सम्बन्धी कार्यों को समाप्त करना असम्भव हो जाये।
"The Commonwealth Teacher Training Study" के अनुसार इन कार्यों की संख्या 1,001 है, जिनमें से कुछ सामान्य कार्य हैं- पाठ तैयार करना, उसे बालकों को पढ़ाना, उनके लिखित कार्य को जाँचना, उनकी साप्ताहिक, मासिक, अर्द्धवार्षिक और वार्षिक परीक्षा लेना, उनके लिए विभिन्न क्रियाओं का आयोजन करना आदि-आदि। सारांश में, उस पर कार्य का इतना अधिक भार रहता है कि उसे व्यक्तिगत समायोजन करने की बात सोचने का अवकाश ही नहीं मिलता है।
4. अपरिपक्व बुद्धि के बालकों से सम्पर्क
शिक्षक का प्रतिदिन कई घण्टे अपरिपक्व बुद्धि के बालकों से सम्पर्क रहता है। वे अपने व्यवहार से ऐसी परिस्थितियाँ और समस्यायें उत्पन्न करते रहते हैं कि शिक्षक को उन्हें सुलझाने में बहुत मानसिक परेशानी होती है। इस प्रकार की परेशानी उसके मानसिक स्वास्थ्य के विकास में अवरोध उपस्थित कर देती है।
5. शिक्षक सामग्री का अभाव
एलिस ने लिखा है- "शिक्षक सामग्री जितनी ही कम होती है, उतना ही अधिक शिक्षक को बोलना पड़ता है। और उतना ही अधिक समय उसे शिक्षक सामग्री को तैयार या एकत्र करने में व्यतीत करना पड़ता है।" अधिक बोलने और अधिक व्यस्त रहने से शिक्षक की मानसिक थकान थोड़ी या अधिक मात्रा में सदैव बनी रहती है। फलस्वरूप उसका मानसिक स्वास्थ्य गिरता चला जाता है।
6. मनोरंजन का अभाव
शिक्षक प्रतिदिन कई घण्टे कठोर मानसिक परिश्रम करता है। इतने परिश्रम के पश्चात् वह अपने मस्तिष्क को पुनः ताजा करने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता पर विचार करता है। पर दरिद्र नारायण उसे अपने विचार को कार्य में परिणित करने का निषेध करते हैं। परिणामतः उसके मस्तिष्क का तनाव यथावत् बना रहता है, जो उसके मानसिक स्वास्थ्य को जर्जर करने में अति सतर्कता से कार्य करता है।
7. बाहरी कार्यों पर प्रतिबन्ध
शिक्षक के सभी प्रकार के बाहरी कार्यों पर, जिनका विद्यालय और शिक्षण से सम्बन्ध नहीं होता है, पूर्ण प्रतिबन्ध रहता है। उसे लेख या पुस्तक लिखने, निर्धारित संख्या से अधिक बालकों की ट्यूशन करने, यहाँ तक कि अपनी शैक्षिक योग्यता में वृद्धि करने के लिए किसी सार्वजनिक परीक्षा में सम्मिलित होने की भी अनुमति नहीं होती है। इस प्रतिबन्ध के दुष्परिणाम के विषय में "The Ninth Yearbook of the Department of Classroom Teachers" में लिखा गया है-"इस प्रतिबन्ध का निश्चित परिणाम होता है, भय, कपट और कटुता जो मानसिक स्वास्थ्य की विरोधी अभिवृत्तियाँ हैं।"
8. जातीय विद्यालय
हमारे देश के अधिकांश विद्यालयों का संचालन सूत्र किसी न किसी जाति के हाथ में है। इस प्रकार के जातीय विद्यालय मे उसी जाति के शिक्षक को नियुक्त करने की प्रथा है। यदि संयोग से किसी अन्य जाति का शिक्षक नियुक्त हो जाता है, तो उसे घृणित और स्वाज्य समझकर निश्चित दूरी पर रखा जाता है। इस प्रकार का दुर्व्यवहार उस शिक्षक की समायोजन की क्षमता का विनाश कर देता है।
9. विद्यालय के निरंकुश शासक
विद्यालय के प्रिंसिपल, प्रबन्धक और निरीक्षक सभी निरंकुश शासक होते हैं और सभी में निरंकुशता की सीमा पर पहुँचने के लिए होड़ लगी रहती है। उनकी निरंकुशता का आघात सहन करना पड़ता है शिक्षक को। वह उनसे इतना भयभीत रहता है कि अपनी मुसीबतों के बारे में एक शब्द बोलने के लिए भी अपना मुँह खोलने का साहस नहीं करता है। ऐसे शिक्षक की इच्छाओं का दमन और आत्मा का हनन हो जाता है। अतः उससे किसी प्रकार के समायोजन की आशा करना व्यर्थ हो जाता है।
10. समाज में निम्न स्थिति
समाज के इस परिश्रमी और परहितकारी सदस्य का समाज में कोई स्थान नहीं है। उसे इतनी निम्न स्थिति प्रदान की जाती है कि उसका सम्मान और स्वागत करने वाले को शंका की दृष्टि से देखा जाता है। सत्य यह है कि समाज के भावी सदस्यों का निर्माता और पथ-प्रदर्शक होने पर भी शिक्षक के प्रति घोर पातकी का सा व्यवहार किया जाता है। इससे उसकी सभी आशाओं और सभी अभिलाषाओं पर इतना भारी हिमपात हो जाता है कि वह अपने मानसिक स्वास्थ्य के विकास को असम्भव समझकर स्थायी रूप से विस्मृत कर देता है।
11. अस्वस्थ निवास स्थान
दरिद्रता का चिर सखा होने के कारण शिक्षक दरिद्रों की किसी घनी और अस्वस्थ बस्ती में किराये का छोटा-सा मकान लेकर, जिसमें धूप, वायु और प्रकाश का स्थायी अभाव रहता है, अपने जीवन के दिन काटता है। इस प्रकार का अस्वस्थ निवास स्थान उसको मानसिक रूप में सदैव के लिए अस्वस्थ बना देता है।
12. शिक्षकों का पारस्परिक संघर्ष
हमारे देश का शिक्षक वर्ग अपने संघर्ष और एकता के अभाव के लिए काफी बदनाम है। ऐसे विद्यालय के दर्शन होने दुर्लभ है, जिसमें शिक्षकों या शिक्षकों और प्रधानाचार्य का संघर्ष अविराम गति से न चलता हो। इस प्रकार का संघर्ष शिक्षक के मस्तिष्क को संघर्षपूर्ण बनाकर उसे अपने समायोजन और मानसिक स्वास्थ्य का विनाश करने के लिए बाध्य करता है।
शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति करने वाले कारक
शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति करने और उसे व्यक्तिगत समायोजन में सहायता देने में निम्नांकित कारकों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता है-
1. कार्य भार में कमी
प्रत्येक व्यक्ति की कार्य करने की सीमा होती है। यदि उसे उससे अधिक कार्य दे दिया जाता है तो उसे अपनी अतिरिक्त शक्ति का प्रयोग करना पड़ता है। परिणामतः कुछ समय के उपरान्त उनका शारीरिक स्वास्थ्य गिरने लगता है, जिसका कुप्रभाव उसके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। अतः शिक्षक का मानसिक स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए उसे उतना ही कार्य सौपा जाना चाहिये, जितना वह कर सकता है।
2. पद की सुरक्षा
अपने असुरक्षित पद के सम्बन्ध में शिक्षक इतना अधिक चिन्तित रहता है कि उसे एक क्षण के लिए भी मानसिक शान्ति नहीं मिलती है। अतः उसके पद को इतना सुरक्षित कर देना चाहिए कि विद्यालय प्रबन्धक लाख प्रयत्न करने पर भी उसे अपने पद से पृथक न कर सके। पद की ऐसी सुरक्षा उसके मानसिक स्वास्थ्य की वृद्धि का शक्तिशाली कारण है।
3. वेतन वृद्धि व नियमित वेतन
शिक्षक को इतना अल्प वेतन मिलता है कि वह सदैव चिन्ताग्रस्त रहकर अपने मानसिक स्वास्थ्य को खो देता है। अतः उसके वेतन में इतनी वृद्धि कर दी जानी चाहिए कि वह आर्थिक चिन्ता से मुक्त होकर मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति कर सके। पर केवल वेतन वृद्धि ही पर्याप्त नहीं है, क्योंकि ऐसे अनेक विद्यालय हैं, जिनमें शिक्षको को नियमित रूप से वेतन नहीं मिलता है और उनको कई-कई माह तक दूसरों का आर्थिक आश्रय लेना पड़ता है। इससे न केवल उनके मानसिक स्वास्थ्य पर दूषित प्रभाव पड़ता है, वरन वे असमायोजन की ओर और भी द्रुत गति से अग्रसर होते हैं। उनको इन अभिशापों के पाश से स्वतन्त्र रखने के लिए प्रतिमास निश्चित तिथि पर वेतन दिए जाने की दृढ़ व्यवस्था की परम आवश्यकता है।
4. शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान
शारीरिक स्वास्थ्य के आधार पर ही मानसिक स्वास्थ्य की उन्नति की जा सकती है। अतः शिक्षक के शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि उसके लिए मनोरंजन, स्वस्थ निवास स्थान, निःशुल्क चिकित्सा, कार्य की उत्तम दशाओं आदि की समुचित व्यवस्था की जाय।
5. शिक्षण की दशाओं में सुधार
शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति करने के लिए शिक्षण की पुरातन और परम्परागत दशाओं में सुधार करके उनको नवीनतम रूप प्रदान करना अनिवार्य है। गेट्स तथा अन्य ने ठीक ही लिखा है- "शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति करने के लिए शिक्षक की दशाओं में उन्नति करना आवश्यक है।"
6. मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की शिक्षा
प्रशिक्षण के समय अध्यापक को मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की उत्तम शिक्षा दी जानी चाहिए। इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करके वह अपने मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने और उसकी उन्नति करने में सफल हो सकता है।
7. विद्यालय का जनतन्त्रीय वातावरण
जातीयता, पक्षपात, चाटुकारी और निरंकुशता द्वारा निर्मित विद्यालय के वातावरण को समानता और जनतन्त्रीय सिद्धान्तों के अनुकूल बनाया जाना चाहिए। इस प्रकार का वातावरण शिक्षक का मानसिक सन्तुलन बनाये रखकर मानसिक स्वास्थ्य के विकास में सहायता दे सकता है।
8. विद्यालय प्रशासन में साझेदारी
विद्यालय के प्रिंसिपल, प्रबन्धक और निरीक्षक, शिक्षक के प्रति इतना अमानुषिक व्यवहार करते हैं कि उसका समायोजन और मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। इसका उपचार बताते हुए एलिस ने लिखा है-"विद्यालयों के संचालन और नीतियों एवं विधियों को निर्धारित करने में शिक्षकों का अधिक भाग होना चाहिए।"
9. सामाजिक सम्मान की प्राप्ति
सामाजिक स्वीकृति और सम्मान न मिलने के कारण शिक्षक में उत्पन्न होने वाला अन्तर्द्वन्द्व उसके मानसिक स्वास्थ्य को चूर-चूर कर देता है। सामाजिक स्वीकृति और सम्मान प्राप्ति करने की सर्वोत्तम विधि यह है कि शिक्षक अति उत्साह से सामाजिक कार्यों में भाग ले। यही कारण है कि टर्मन (Terman) ने अपनी पुस्तक "The Teacher's Health" में इस बात पर बल दिया है कि शिक्षकों को सामाजिक कार्यों में अधिक-से-अधिक भाग लेना चाहिए।
10. शिक्षक संघों का संगठन
शिक्षकों की हीन दशा में सुधार करके, उनके मानसिक स्वास्थ्य के स्तर को ऊँचा उठाने का एक उत्तम उपाय है, स्थानीय, प्रान्तीय और राष्ट्रीय स्तरों पर शक्तिशाली शिक्षक संघों का संगठन। ये संघ, शिक्षकों के हितों की रक्षा और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करके उनके मानसिक स्वास्थ्य के विकास में अपूर्व योग दे सकते हैं।
11. शिक्षण संस्थाओं का योग
प्रशिक्षण संस्थायें शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य की उन्नति में योग दे सकती है। इस सम्बन्ध में गेट्स तथा अन्य ने लिखा है- "प्रशिक्षण संस्थाओं द्वारा उत्तम नागरिक और मानसिक स्वास्थ्य के छात्रों का चुनाव, शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति कर सकता है।"
12. शिक्षक का योग
स्वयं शिक्षक अपने मानसिक स्वास्थ्य की उन्नति में योग दे सकता है। इस पर प्रकाश डालते हुए गेट्स एवं अन्य ने लिखा है-"यदि शिक्षक अपने-आपको अधिक अच्छी तरह समझ ले और यदि वह अपने-आपको वैसा ही मान ले, जैसा कि वह है और यदि वह अपने जीवन को निर्देशित करने में सक्रिय भाग ले, तो वह अपने स्वयं के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति कर सकता है।"