परीक्षण (Test) किसी भी योग्यता, क्षमता तथा उपलब्धि के मापन का सर्वोत्तम उपकरण होता है। उपकरण यदि सार्थक और प्रामाणिक है तथा उस पर देश, काल तथा परिस्थिति का प्रभाव नहीं पड़ता है तो उसे उत्तम परीक्षण कहा जाता है।
अब हम उत्तम प्रमापित परीक्षण (Good Standardized Test) की विशेषताओं अथवा उसके निर्माण के सिद्धान्तों पर विचार करेंगे।
उत्तम परीक्षण की विशेषताएँ
1. वैधता (Validity)
उत्तम परीक्षण में वैधता का गुण या विशेषता होती है। इसका अभिप्राय यह है कि परीक्षण को बालक की उसी योग्यता की जाँच करनी चाहिए, जिसकी जाँच करने के लिए उसे बनाया गया है। हम 'वैधता का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत कर रहे हैं-
(अ) वैधता का अर्थ (Meaning of Validity)- वैधता के अर्थ पर प्रकाश डालते हुए प्रेसी, रॉबिन्सन व हॉरक्स ने लिखा है- "परीक्षण में वैधता तभी होती है, जब वह वास्तव में उसी बात का मापन करता है, जिसके मापन की उससे आशा की जाती है।"
"वैधता के अर्थ को हम उदाहरण द्वारा अधिक भली-भाँति स्पष्ट कर सकते हैं। हम फुटरूल से लम्बाई नाप सकते हैं, गोलाई नहीं। इस प्रकार, हम इतिहास के टेस्ट से बालक के इतिहास के ज्ञान की जाँच कर सकते हैं, उसके भूगोल के ज्ञान की नहीं। इतना ही नहीं, वरन् इतिहास का टेस्ट इस प्रकार निर्मित किया जाना चाहिए कि उससे बालक के इतिहास सम्बन्धी ज्ञान का मापन किया जा सके, न कि उसकी पढ़ने की गति और कुशलता का तभी इतिहास के टेस्ट से वैधता का वास्तवकि गुण प्रकट हो सकता है।
(ब) वैधता के प्रकार (Types of Validity)- क्लासमियर एवं गुडविन (Klausmeier and Goodwin) के अनुसार, वैधता निम्नलिखित चार प्रकार की होती है, जिनमें से उत्तम परीक्षण से कम-से-कम एक का होना अनिवार्य है-
(i) विषय-वस्तु की वैधता (Content Validity)- यदि परीक्षण में अध्यापक द्वारा पढ़ाई गई विषय-वस्तु का पूर्ण या पर्याप्त समावेश है, तो उसमें विषय-वस्तु की वैधता होती है।
(ii) पूर्व-कथन की वैधता (Predictive Validity)- यदि परीक्षण में बालक द्वारा प्राप्त किये गये अंक छात्र के विषय में यह भविष्यवाणी करते हैं कि वह आगे चलकर क्या करेगा, तो उसमें पूर्व कथन की वैधता होती है।
(iii) निर्माण की वैधता (Construct Validity)- यदि परीक्षण में बालक द्वारा प्राप्त किये गए अंक उतने ही है, जितने उसके द्वारा प्राप्त किये जाने की आशा थी, तो उसमे परीक्षण-निर्माण की वैधता होती है।
(iv) समवती- वैधता (Concurrent Validity)- यदि परीक्षण में बालक द्वारा प्राप्त किये गये अंक उसके चालू कार्यों से सह-सम्बन्ध बताते हैं, तो उसमें समवर्ती वैधता होती है।
'वैधता' के जो प्रकार ऊपर बताये गये हैं, उनमें विषय-वस्तु की वैधता को उपलब्धि परीक्षण: के लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। कारण यह है कि इसी की सहायता से छात्रों की उपलब्धियों का मूल्यांकन करके उनका श्रेणी-विभाजन एवं वर्गीकरण किया जाता है और उनकी कक्षोन्नति भी की जाती है। इसलिए, क्लासमियर व गुडविन ने लिखा है- "उपलब्धि परीक्षण में विषय-वस्तु की वैधता अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।"
2. विश्वसनीयता (Reliability)
उत्तम परीक्षण में विश्वसनीयता का गुण होता है। हम इसके विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाल रहे हैं-
(अ) विश्वसनीयता का अर्थ (Meaning of Reliability)- विश्वसनीयता का अर्थ यह है कि परीक्षण का जब भी प्रयोग किया जाय, तब उसके परिणामों में किसी प्रकार का अन्तर न होकर समानता ही हो। उदाहरणार्थ, यदि किसी बालक के लिए एक ही परीक्षण का चार बार प्रयोग किया जाय और यदि उस अवधि में उसके ज्ञान में किसी प्रकार की वृद्धि न हो, तो चारों बार समान अंक प्राप्त होने चाहिए। यदि उसके अंकों में परिवर्तन हो जाता है, तो परीक्षण को विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता है। इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि विश्वसनीयता का अर्थ है-परिणाम की समानता या स्थिरता।
क्लासमियर व गुडविन का कथन है- "विश्वसनीयता उस सीमा का उल्लेख करती है, जिस सीमा तक परीक्षण द्वारा प्राप्त मापनों में समानता या स्थिरता होती है। "
(ब) विश्वसनीयता में वृद्धि करने के उपाय (Ways to Increase Reliability)- विश्वसनीयता' एक सापेक्षिक शब्द है। अतः उसकी वृद्धि तो की जा सकती है, पर उसे पूर्ण नहीं बनाया जा सकता है। डगलस एवं हॉलैण्ड के अनुसार, उसमें वृद्धि करने के लिए निम्नांकित उपाय लाभप्रद सिद्ध हो सकते हैं-
(i) परीक्षण को लम्बा होना चाहिए, ताकि उसमें विषय या पाठ्यक्रम की लगभग सभी बातों समावेश हो जाय।
(ii) परीक्षण के प्रश्न छोटे होने चाहिये, ताकि उनके उत्तर शीघ्रता और सरलता से दिये जा सकें।
(iii) परीक्षण के प्रश्न की रचना इस प्रकार की जानी चाहिए कि उनके उत्तर चिन्ह बनाकर संख्या लिखकर या एक-दो शब्दों के द्वारा दिये जा सके।
(iv) परीक्षण के प्रश्न ऐसे होने चाहिए कि उनके उत्तर या तो निश्चित रूप से सही हो या गलत।
(v) परीक्षण में प्रश्नों की संख्या अधिक होनी चाहिए, ताकि अनुमानित उत्तरों के कारण उसकी विश्वसनीयता पर कम प्रभाव पड़े। उदाहरणार्थ, यदि परीक्षण में केवल 10 प्रश्न है, तो बालक उनमें से 3 या 4 का अनुमान से उत्तर देकर उसकी विश्वसनीयता को कम कर सकते हैं। इसके विपरीत यदि प्रश्नों की संख्या 100 है, तो अनुमानित उत्तरों का विश्वसनीयता पर तुलनात्मक प्रभाव बहुत कम पड़ता है।
(vi) परीक्षण का समय, दशायें और निर्देश बिल्कुल स्पष्ट रूप में अंकित होनी चाहिए।
(vii) एक ही परीक्षण एक ही कक्षा के बालकों को दो बार देना चाहिए। दोनों बार के परिणामों में जितनी अधिक समानता होती है, परीक्षण उतना ही अधिक विश्वसनीय होता है।
(viii) एक ही परीक्षण को दो समान कक्षाओं या समूहों के बालकों को देना चाहिए। दोनों समूहों के परिणामों में जितनी अधिक समानता होती है, परीक्षण उतना ही अधिक विश्वसनीय होता है।
(स) निष्कर्ष (Conclusion)-निष्कर्ष के रूप में हम ऐलिस के शब्दों में कह सकते हैं-
"विश्वसनीयता, परीक्षण सामग्री के विवेकपूर्ण चयन पर और विशेष रूप से परीक्षण की लम्बाई पर भी निर्भर रहती है। यदि अन्य बातें समान हैं, तो परीक्षण जितना अधिक लम्बा होता है, उतना ही अधिक विश्वसनीय होता है।"
3. व्यावहारिकता (Practicability or Usability)
उत्तम परीक्षण में 'व्यावहारिकता' या सफलता- पूर्वक प्रयोग किये जाने का गुण होता है। इसका अर्थ यह है कि परीक्षण के लिए विशेष प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति, विशेष तैयारी और सामग्री एवं अधिक समय की आवश्यकता नहीं होती है। अतः उसके प्रयोग में किसी भी प्रकार की कठिनाई नहीं होती है।
4. निश्चित उद्देश्य (Specific Aims)
उत्तम परीक्षण में 'निश्चित उद्देश्य' का गुण होता है। ये उद्देश्य उस विषय या पाठ्यक्रम का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने के उपरान्त निश्चित किये जाते हैं, जिसके लिए परीक्षण का निर्माण किया जाता है।
5. सरलता (Simplicity)
उत्तम परीक्षण में 'सरलता' का गुण होता है। दूसरे शब्दों में, प्रश्न से निर्देश और अक देने की विधियों इतनी सरल होती हैं कि परीक्षक और परीक्षार्थी उनको अति सरलता समझ जाते हैं। अतः किसी प्रकार की त्रुटि की आशंका नहीं रहती है।
6. वस्तुनिष्ठता (Objectivity)
उत्तम परीक्षण में 'वस्तुनिष्ठता का गुण विशेष रूप से पाया जाता है। इस परीक्षण में बालक, प्रश्नों को निश्चित निर्देशों के अनुसार करते हैं और परीक्षक अंक तालिका की सहायता से अंक देता है। अतः यह परीक्षण पूर्णरूप से निष्पक्ष होता है। इस पर विद्यार्थी की जाँच और परीक्षक की मनोदशा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
7. व्यापकता (Comprehensiveness)
उत्तम परीक्षण में 'व्यापकता' का गुण होता है। इसका अभिप्राय यह है कि बालकों की जिस योग्यता का माप किया जाता है, इसके सब पहलुओं से सम्बन्धित प्रश्न होते हैं। ऐसा कोई भी महत्त्वपूर्ण पहलू नहीं होता है, जिस पर प्रश्न न हो। अतः परीक्षण एकांगी न होकर व्यापक होता है।
8. रोचकता (Interesting)
उत्तम परीक्षण में 'रोचकता' का गुण होता है। इसी गुण के कारण बालक इसमें पूर्ण तन्मयता से कार्य करते है। फलस्वरूप इसके परिणाम अशुद्ध नहीं होने पाते हैं।
9. मितव्ययता (Economy)
उत्तम परीक्षण में 'मितव्ययता' का गुण होता है। इसमें किसी विशेष यन्त्र या सामग्री की आवश्यकता न होने के कारण व्यय का कोई प्रश्न नहीं उठता है। बालक कागज पर छपे हुए प्रश्नों के उत्तर कलम या पेन्सिल का प्रयोग करके दे सकता है।
10. सुविधा (Convenience)
उत्तम परीक्षण 'सुविधाजनक' होता है। इसका तात्पर्य यह है कि इसके लिए किसी विशेष व्यवस्था की आवश्यकता नहीं होती है। यह कम स्थान और कम समय में अधिक-से-अधिक बालकों के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
11. विभेदीकरण (Differentiation)
उत्तम परीक्षण में 'विभेदीकरण' का गुण अनिवार्य रूप से वर्तमान रहता है। दूसरे शब्दों में, यह परीक्षण प्रतिभाशाली और मन्दबुद्धि बालकों में अन्तर करता है। इस उद्देश्य से इसके सब प्रश्न जटिल नहीं होते हैं, क्योंकि उनको केवल प्रतिभाशाली बालक ही कर सकते हैं। इसमें सरल प्रश्न भी होते हैं, ताकि मन्दबुद्धि बालकों को भी उनको करने का अवसर प्राप्त हो।
12. प्रमापित (Standardized)
उत्तम परीक्षण 'प्रमापित' होता है। इसका अर्थ यह है कि परीक्षण में दिये जाने वाले प्रश्नों, निर्देशों, परीक्षा लेने की विधियों और अंक देने के लिए ढंगों को पहले से निश्चित कर लिया जाता है और यह जाँच कर ली जाती है कि ये सब बात ठीक हैं या नहीं।
13. सामान्य स्तर (Norms)
उत्तम परीक्षण का एक या अधिक 'सामान्य स्तर होता है। परीक्षण-निर्माता पहले ही इस बात का निश्चय कर लेता है कि बालकों की किस योग्यता में किस स्तर के होने की आशा की जा सकती है। सामान्य स्तर पहले से निश्चित होने के कारण इस बात का सुगमता से ज्ञान हो जाता है कि बालक की मानसिक आयु इस स्तर से कम, अधिक या बराबर है।
14. कठिनाई का क्रम (Gradation in Difficulty)
उत्तम परीक्षण में प्रश्नों का क्रम सरल से जटिल की ओर चलता है। परीक्षार्थी प्रारम्भिक प्रश्नों को सरल पाता है. पर जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे प्रश्न अधिक-ही-अधिक जटिल होते चले जाते हैं।