उपचारात्मक शिक्षण का अर्थ
उपचारात्मक शिक्षण, वास्तव में, नवीन नहीं है, क्योंकि प्राचीन काल से आज तक योग्य शिक्षक अपने छात्रों के अधिगम सम्बन्धी दोषों को दूर करके, उनकी गति के पथ को प्रशस्त करने का प्रयास करते चले आ रहे है। आधुनिक शिक्षाशास्त्र में 'उपचारात्मक' शब्द-औषधिशास्त्र से ग्रहण किया गया है। जिस प्रकार चिकित्सक व्यक्तियों के विभिन्न रोगों का उपचार करके, उनको उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने की चेष्टा करते हैं, उसी प्रकार शिक्षक छात्रों को अधिगम सम्बन्धी दोषों से मुक्त करके, उनको ज्ञानार्जन की उचित दिशा की ओर मोडने का उद्योग करते हैं।
उपचारात्मक शिक्षण की परिभाषा
योकम व सिम्पसन के अनुसार : "उपचारात्मक शिक्षण उस विधि को खोजने का प्रयत्न करता है, जो छात्र को अपनी कुशलता या विचार की त्रुटियों को दूर करने में सफलता प्रदान करे।"
ब्लेयर, जोन्स व सिम्पसन के अनुसार : "उपचारात्मक शिक्षण, वास्तव में, उत्तम शिक्षण है, जो छात्र को अपनी वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्रदान करता है और जो सुप्रेरित क्रियाओं द्वारा उसको अपनी कमजोरियों के क्षेत्रों में अधिक योग्यता की दिशा में अग्रसर करता है।"
उपचारात्मक शिक्षण के उद्देश्य
उपचारात्मक शिक्षण के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. छात्रों की ज्ञान सम्बन्धी त्रुटियों का अन्त करना।
2. छात्रों के अधिगम सम्बन्धी दोषों को दूर करके उनको भविष्य में उन दोषों से मुक्त रखना।
3. छात्रों की दोषपूर्ण आदतों, कुशलताओं एवं मनोवृत्तियों को समाप्त करके, उनको उत्तम रूप प्रदान करना।
4. छात्रों को उन आवश्यक आदतों, कुशलताओं एवं मनोवृत्तियों को सिखाना, जो उनके द्वारा सीखी नहीं गई है।
5. छात्रों की अवांछनीय रुचियों, आदर्शों एवं दृष्टिकोणों को बांछनीय रुचियों, आदशों एवं दृष्टिकोणो मे परिवर्तित करना।
एक अन्य उद्देश्य के प्रति हमारे ध्यान को आकृष्ट करते हुए, योकम व सिम्पसन ने लिखा है- "उपचारात्मक शिक्षण का उद्देश्य सब प्रकार की अधिगम सम्बन्धी त्रुटियों को शुद्ध करने के लिए प्रभावशाली विधियों का विकास करना है।"
उपचारात्मक शिक्षण छात्रों के विभिन्न दोषों का निवारण करके ही उल्लिखित उद्देश्यों की प्राप्ति में सफलता प्रदान कर सकता है। योकम व सिम्पसन का यह कथन वास्तव में अक्षरश: सत्य है-"जब तक बालक के शारीरिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक दोषों का सफलतापूर्वक उपचार नहीं किया जायगा. तब तक अधिगम की विधि के दोषों की व्याख्या पर आधारित उपचारात्मक उपाय विफल रहेंगे।"
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उपचारात्मक शिक्षण प्रदान करने की विधियाँ
योकम एवं सिम्पसन (Yoakam & Simpson) के अनुसार : छात्रों को उपचारात्मक शिक्षण प्रदान करने के लिए निम्नलिखित पाँच विधियों का प्रयोग किया जा सकता है-
1. छात्रों की त्रुटियों को यदा-कदा शुद्ध करना।
2. प्रत्येक छात्र के अधिगम सम्बन्धी दोषों का व्यक्तिगत रूप से अध्ययन करके उसे उनको दूर करने के उपाय बताना।
3. छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार, उनको विभिन्न समूहों में विभाजित करके, उनके शिक्षण की व्यवस्था करना।
4. छात्रों को छोटे-छोटे समूहों में विभाजित करके, उनको उनकी आवश्यकताओं के अनुसार, शिक्षा प्रदान करना।
5. कक्षा के छात्रों के अधिगम सम्बन्धी दोषों, कमजोरियों और बुरी आदतों का निदान करके, उनको उनसे मुक्त करना।
उक्त लेखकों ने पहली विधि को पूर्णतया अनुपयोगी और दूसरी विधि को अत्यधिक कठिन बताया. है। तीसरी और चौथी विधियों के विषय में उनका मत यह है- कि कक्षा-कक्ष में शिक्षक इन दोनों विधियों का प्रयोग तभी कर सकता है, जब वह छोटे समूहों में छात्रों को शिक्षा प्रदान करने में भली-भाँति प्रशिक्षित हो और अपनी शिक्षण विधि को प्रत्येक छात्र की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप बना सके। ये दोनों विधि प्रभावशाली अवश्य है, पर इनका सामान्य रूप से प्रयोग किया जाना अत्यधिक कठिन है। केवल पाँचवीं विधि ही ऐसी है. जिसका सुगमता से प्रयोग किया जा सकता है।
योकम व सिम्पसन ने पाँचवीं विधि को व्यावहारिक बताते हुए और शिक्षक के एक मुख्य कार्य का उल्लेख करते हुए लिखा है-"कक्षा-कक्ष के नियमित कार्य में शिक्षक के कार्यों में एक कार्य यह है सब प्रकार की त्रुटियों के उपचार करने के लिए विधियों एवं उपायों की खोज करना। "
हम उदाहरण के लिए कुछ त्रुटियों के उपचार की विधियों को अंकित कर रहे हैं जैसे-
1. यदि छात्रों में उच्चारण-सम्बन्धी दोष है, तो शिक्षक उनको शुद्ध उच्चारण बताकर उनसे उनका अभ्यास कराए।
2. यदि छात्रों की वाचन की गति धीमी है, तो उसमें वृद्धि करने के लिए शिक्षक उनको अधिक वाचन करने के लिए प्रोत्साहित या प्रेरित करे।
3. यदि छात्रों में वाचन सम्बन्धी दोष है तो शिक्षक-वाचन में उनकी वास्तविक योग्यता का पता लगाकर उनमें वृद्धि करने की चेष्टा करे। इस कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए वह छात्रों के लिए वाचन की ऐसी सामग्री की व्याख्या करे, जिससे उनको आनन्द प्राप्त हो ।
4. यदि छात्रों की शब्दावली कम विस्तृत है तो उसको अधिक विस्तृत करने के लिए, शिक्षक उनको अधिक पढ़ने और शब्दकोष में नवीन शब्दों के अर्थों को देखने के लिए प्रोत्साहित करे।
उपचारात्मक शिक्षण के विषय क्षेत्र
निदानात्मक शिक्षण की तुलना में उपचारात्मक शिक्षण का क्षेत्र अधिक विस्तृत है। पर क्योंकि आधारभूत विषयों में पूर्ण सफलता प्राप्त न कर सकने के कारण छात्र के समक्ष अधिगम सम्बन्धी अनेक कठिनाइयाँ उपस्थित हो सकती हैं. इसलिए उपचारात्मक शिक्षण में बहुधा आधारभूत विषयों को ही स्थान दिया जाता है।
योकम एवं सिम्पसन के अनुसार ये विषय है- वाचन, लेखन, उच्चारण, भाषा और अंकगणित (Reading, Writing, Spelling, Language and Arithmetic)। उपरिलिखित तथ्य के बावजूद उपचारात्मक शिक्षण के अन्तर्गत विद्यालय पाठ्यक्रम के लगभग सब विषयों का अपना विशिष्ट स्थान है। योकम व सिम्पसन का कथन है- "उपचारात्मक कार्य से सम्बन्धित अधिकांश साहित्य, विद्यालय विषयों के अधिगम में उपस्थित होने वाली कठिनाइयों के उपचार बताने का प्रयास करता है।"
उपचारात्मक शिक्षण के परीक्षणों का प्रयोग
परीक्षण-उपचारात्मक शिक्षण के अभिन्न अंग हैं। वे छात्रों के अधिगम सम्बन्धी दोषों का निवारण करने के लिए प्रयोग की जाने वाली विधियों की सफलता या असफलता का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए परम आवश्यक है। परीक्षणों का प्रयोग किए बिना यह जानकारी असम्भव है कि छात्रों की अधिगम सम्बन्धी त्रुटियों का अन्त करने के लिए कौन-सी विधियां सबसे अधिक लाभप्रद एवं सन्तोषजनक सिद्ध हुई थीं।
उक्त परीक्षण किस प्रकार के होने चाहिए ? इसका स्पष्टीकरण करते हुए, योकम एवं सिम्पसन ने लिखा है-प्रमापित परीक्षण (Standardized Tests) उपचारात्मक कार्यों के लिए उपयोगी नहीं है। इसका कारण यह है कि वे इन कार्यों के सम्बन्ध में सामान्य ज्ञान प्रदान करते हैं। यह ज्ञान-छात्रों के अधिगम सम्बन्धी दोषों का उन्मूलन करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
अतः योकम व सिम्पसन का मत है- "शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह उपचारात्मक कार्य के लिए अपने स्वयं के परीक्षणों की योजना बनाए। ये छोटे वस्तुनिष्ठ परीक्षण होने चाहिए। यह आवश्यक है कि इन शिक्षक-निर्मित वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में किसी विषय सामग्री के अधिगम में निहित सब कठिनाइयाँ आ जायें।"
उपचारात्मक शिक्षण के परिणाम
उपचारात्मक शिक्षण के परिणामों की उपयोगिता एवं अनुपयोगिता के विषय में केवल छात्रों का निर्णय ही मान्य है। यदि ये इस शिक्षण से लाभान्वित हुए हैं, तो इसको उपयोगी माना जा सकता है अन्यथा नहीं। योकम एवं सिम्पसन का कथन है- "जिस प्रकार औषधि-शास्त्र में किसी चिकित्सा का परिणाम रोगी का अपने रोग से मुक्त होकर पूर्ण रूप से स्वस्थ होना है। उसी प्रकार उपचारात्मक शिक्षण में छात्र को स्वयं यह अनुभव करना चाहिए कि उसके ज्ञान, आदत.. कुशलता तथा दृष्टिकोण में निश्चित रूप से परिवर्तन हो गया है।"
उपचारात्मक शिक्षण के जिन परिणामों के फलस्वरूप छात्र यह अनुभव करता है, उनकी सूची योकम एवं सिम्पसन ने इस प्रकार दी है-
1. छात्रों में सामान्य समायोजन की क्षमता।
2. छात्र की अपनी विशिष्ट कठिनाइयों पर विजय।
3. छात्र की मानसिक एवं संवेगात्मक संघर्षो से मुक्ति ।
4. छात्र में अपने विचारों को सुनियोजित करने की योग्यता ।
5. छात्र में अधिक स्पष्ट रूप से विचार करने और अपने विचारों को व्यक्त करने की योग्यता।
योकम व सिम्पसन ने लिखा है- "उपचारात्मक शिक्षण के सहगामी परिणाम है, छात्रों के आत्म- विश्वास में वृद्धि सफल उपलब्धि से प्राप्त होने वाला सन्तोष और भावी कठिनाइयों से बचने के लिए उत्तम अधिगम एवं अध्ययन की विधियों का उत्तम प्रयोग।"