शिक्षा की प्रक्रिया में मापन तथा मूल्यांकन, ये दो ऐसे अंग है, जिनके बिना यह प्रक्रिया अधूरी रहती है। हम यहाँ पहले मूल्यांकन (Evaluation) की, और फिर मापन (Measurement) की अवधारणा का स्पष्टीकरण प्रस्तुत करते हैं।
मूल्यांकन का अर्थ
शिक्षा में मापन एवं मूल्यांकन वह स्थिति है जहाँ पर बालकों की निष्पत्ति उनके द्वारा अर्जित ज्ञान तथा कौशल की मात्रा का पता लगाया जाता है तथा उनको एक स्थिति (Rank) प्रदान की जाती है। मनोवैज्ञानिकों ने परीक्षण द्वारा मापन तथा मूल्यांकन की विधियाँ विकसित की हैं मौखिक प्रश्नोत्तर, विद्यालय कार्य, गृह कार्य, छात्रों के व्यवहार परिवर्तन का निरीक्षण, साक्षात्कार लिखित परीक्षण, प्रयोगात्मक परीक्षण आदि के द्वारा छात्रों की योग्यताओं एवं क्षमताओं का मापन किया जाता है तथा बालकों में हो रहे समग्र व्यवहार परिवर्तन का मूल्यांकन किया जाता है।
वाण्ट एवं ब्राउन ने इसीलिये कहा है- सही मापन सही मूल्यांकन के लिये पूर्ण आवश्यकता है। सही निर्णय गलत साक्ष्य पर कभी आधारित नहीं किये जा सकते। इसीलिये शिक्षण मनोवैज्ञानिक केवल मानसिक उन्नति पर नहीं बल्कि सम्पूर्ण बालक के व्यक्तित्व के विकास पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं।
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मूल्याकन की परिभाषायें
रैमर्स एव गेज के अनुसार- "मूल्यांकन में, व्यक्ति या समाज या दोनों की दृष्टि से जो अच्छा है अथवा वांछनीय है, उसको मानकर चला जाता है।"
टारगेरसन एवं एडम्स के अनुसार- "मूल्यांकन का अर्थ है-किसी वस्तु या प्रक्रिरण का मूल्य निश्चित करना। इस प्रकार शैक्षिक मूल्यांकन से तात्पर्य है- शिक्षण-प्रक्रिया तथा सीखने की क्रियाओं से उत्पन्न अनुभवों की उपयोगिता के बारे में निर्णय देना।"
कोठारी कमीशन के अनुसार- "मूल्यांकन एक क्रमिक प्रक्रिया है जो कि सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का एक अंग है, जो शिक्षा के उद्देश्यों से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।"
शैक्षिक मापन
मापन की निम्नलिखित परिभाषायें है-
कारलिंगर के अनुसार- "मापन, नियमानुसार वस्तुओं या घटनाओं को संख्या प्रदान करना है।
क्लासमेयर एवं गुडविन के अनुसार- "शैक्षिक मापन विद्यार्थी अधिगम, शिक्षण प्रभावशीलता या किसी अन्य शैक्षिक पक्ष की मात्रा, विस्तार और कोटि के निर्धारण से सम्बन्धित है। "
मूल्यांकन तथा मापन में अन्तर
मूल्यांकन तथा मापन की विशेषतायें निम्न प्रकार हैं-
मूल्यांकन |
मापन |
शिक्षण उद्देश्यों का निर्धारण। |
शिक्षण उद्देश्यों की उपलब्धियों का मापन। |
मापन के मापदण्ड बनाना। |
मापन के उपकरणों का उपयोग। |
मापन को मानदण्ड से जोड़ना। |
मापन के मानदण्डों के आधार पर गणना। |
निर्णय लेना। |
मापन परिणाम की व्याख्या। |
- बुद्धि परिक्षण,
- उपलब्धि परिक्षण,
- अभिक्षमता,
- रूचि परिक्षण एवं,
- व्यक्तित्व परिक्षण ।
मापन |
मूल्यांकन |
1. घटना या परिणाम के लिये प्रतीक निर्धारण। 2. उत्तर
के आधार पर अंक प्रदान करना । 3. किसी
एक गुण या चर का मापन । 4. निश्चित
धारणा नहीं बनाई जा सकती । 5. समय, धन तथा श्रम लगता है। 6. सार्थक
भविष्यवाणी नहीं। 7. मापन
का ज्ञान अपूर्ण है। 8. मापन, मूल्यांकन से पहले होता
है। 9. मापन
के लिये उद्देश्य जानना आवश्यक नहीं।
|
1. घटना या तथ्य का मूल्य निर्धारण। 2. स्थिति
(Rank) निर्धारण
जैसे श्रेष्ठी, प्रथम, द्वितीय। 3. व्यापक
क्षेत्र। 4. कई
परीक्षणों के आधार पर बालक के विषय में धारणा बनाई जाती है। 5. समय, श्रम तथा धन अधिक लगता
है। 6. सार्थक
भविष्यवाणी सम्भव । 7. मूल्यांकन
का ज्ञान पूर्ण है। 8. मूल्यांकन
मापन के बाद होता है। 9. मूल्यांकन, उद्देश्य आधारित होता है। |
अधिगम की प्रक्रिया में मापन तथा मूल्यांकन
अधिगम की प्रक्रिया में मापन तथा मूल्यांकन, प्रतिपुष्टि (Feedback) तथा पुनर्बलन (Reinforcement) के रूप में सशक्त भूमिका का निर्वाह करते है. इससे शिक्षकों को निम्न लाभ होते हैं-
1. शिक्षण विधि की उपयुक्तता की पहचान ।
2. अध्ययन क्षेत्र की पहचान।
3. अभिभावकों, प्रबन्धकों, प्रशासकों को छात्रों की उपलब्धि के विषय में बताना।
4. छात्रों को प्रेरणा देना ।
5. छात्रों की क्षमताओं का ज्ञान।
6. छात्रों का योग्यता तथा क्षमता के आधार पर वर्गीकरण करना ।
7. छात्रों को आगामी कक्षा में उन्नति देना ।
8. निदानात्मक शिक्षण देना।
9. छात्रों को मार्गदर्शन देना।
10. मापन हेतु उपकरणों अर्थात् परीक्षण बनाना।
शैक्षिक मापन में लिखित, मौखिक तथा प्रायोगिक परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है। निबन्धात्मक तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का निर्माण कर छात्रों की उपलब्धि की मात्रा जानी जाती है।
मूल्यांकन में व्यक्ति के कक्षागत तथा कक्षा के बाहर के समस्त व्यवहार तथा उनमें होने वाले परिवर्तनों को मापा जाता है। बुद्धि व्यक्तित्व, निष्पत्ति तथा विशेष योग्यताओं का मापन तथा व्यक्ति पर उनके प्रभाव मापन तथा मूल्यांकन के अन्तर्गत आते हैं।
मूल्यांकन की प्रक्रिया के सम्पादन में शिक्षक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वह वस्तुनिष्ठ परिणामों को स्वीकार करता है। परीक्षणों की वैधता तथा विश्वसनीयता की जाँच करता है। परीक्षण सुधार की सम्भावनाओं का पता लगाता है। अतः स्पष्ट है कि मापन तथा मूल्यांकन के अभाव में शैक्षिक प्रक्रिया प्राणहीन है।