विस्मृति का अर्थ
स्मृति की भाँति विस्मृति भी एक मानसिक क्रिया है। अन्तर केवल इतना है कि विस्मृति एक निष्क्रिय तथा नकारात्मक क्रिया है। स्मृति के साथ-साथ विस्मृति का अध्ययन भी महत्त्वपूर्ण है। यदि विस्मृति अधिक होने लगती है तो यह व्यक्ति में असामान्य व्यवहार पैदा करती है।
जब हम कोई नई बात सीखते हैं या नया अनुभव प्राप्त करते हैं, तब हमारे मस्तिष्क में उसका चित्र अंकित हो जाता है। हम अपनी स्मृति की सहायता से उस अनुभव को अपनी चेतना में फिर लाकर उसका स्मरण कर सकते हैं। पर कभी-कभी, हम ऐसा करने में सफल नहीं होते हैं। हमारी यही असफल क्रिया- 'विस्मृति' कहलाती है। दूसरे शब्दों में, "भूतकाल के किसी अनुभव को वर्तमान चेतना में लाने की असफलता को 'विस्मृति' कहते हैं।"
विस्मृति की परिभाषा
मन के अनुसार- "सीखी हुई बात को स्मरण रखने या पुनः स्मरण करने की असफलता को विस्मृति कहते हैं।"
ड्रेवर के अनुसार- "विस्मृति का अर्थ है-किसी समय प्रयास करने पर भी किसी पूर्व अनुभव का स्मरण करने या पहले सीखे हुए किसी कार्य को करने में असफलता।"
फ्रायड के अनुसार- "विस्मरण वह प्रवृत्ति है जिसके द्वारा दुःखद अनुभवों को स्मृति से अलग कर दिया जाता है।"
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विस्मृति के प्रकार
विस्मृति दो प्रकार की होती है-
- सक्रिय विस्मृति
- निष्क्रिय विस्मृति
1. सक्रिय विस्मृति
इस विस्मृति का कारण व्यक्ति है। वह स्वयं किसी बात को भूलने का प्रयत्न करके उसे भुला देता है। फ्रायड (Freud) का कथन है-"हम विस्मृति की क्रिया द्वारा अपने दुःखद अनुभव को स्मृति से निकाल देते हैं।"
2. निष्क्रिय विस्मृति
इस विस्मृति का कारण व्यक्ति नहीं है। वह प्रयास न करने पर भी किसी बात को स्वयं भूल जाता है।
विस्मृति के कारण
'विस्मृति' या विस्मरण के कारणों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं-
(अ) सैद्धान्तिक कारण
बाधा, दमन और अनभ्यास के सिद्धान्त।
(ब) सामान्य कारण
समय का प्रभाव, रुचि का अभाव, विषय की मात्रा इत्यादि ।
हम इन कारणों का क्रमबद्ध वर्णन कर रहे है जो इस प्रकार से है-
बाधा का सिद्धान्त : इस सिद्धान्त के अनुसार, यदि हम एक पाठ को याद करने के बाद दूसरा पाठ याद करने लगते हैं, तो हमारे मस्तिष्क में पहले पाठ के स्मृति-चिन्हों (Memory Traces) में बाधा पड़ती है। फलस्वरूप, वे निर्बल होते चले जाते हैं और हम पहले पाठ को भूल जाते हैं।
अनभ्यास का सिद्धान्त : थार्नडाइक एवं एबिंगहॉस (Thorndike and Ebbinghaus) ने विस्मृति का कारण अभ्यास का अभाव बताया है। यदि हम सीखी हुई बात का बार-बार अभ्यास करते हैं, तो हम उसको भूल जाते हैं।
समय का प्रभाव : हैरिस (Harris) के अनुसार- सीखी हुई बात पर समय का प्रभाव पड़ता है। अधिक समय पहले सीखी हुई बात अधिक और कम समय पहले सीखी हुई बात कम भूलती है।
रुचि, ध्यान व इच्छा का अभाव : जिस कार्य को हम जितनी कम रुचि, ध्यान और इच्छा से सीखते हैं, उतनी ही जल्दी हम उसको भूलते हैं। स्टाउट के अनुसार "जिन बातों के प्रति हमारा ध्यान रहता है, उन्हें हम स्मरण रखते हैं।"
विषय का स्वरूप : हमें सरल, सार्थक और लाभप्रद बातें बहुत समय तक स्मरण रहती हैं। इसके विपरीत, हम कठिन, निरर्थक और हानिप्रद बातों को शीघ्र ही भूल जाते हैं। मर्सेल के अनुसार- "निरर्थक विषय की तुलना में सार्थक निषय का विस्मरण बहुत धीरे-धीरे होता है।"
विषय की मात्रा : विस्मरण, विषय की मात्रा के कारण भी होता है। हम छोटे विषय को देर में और लम्बे विषय को जल्दी भूलते हैं।
सीखने में कमी : हम कम सीखी हुई बात को शीघ्र और भली प्रकार सीखी हुई बात को विलम्ब से भूलते हैं।
सीखने की दोषपूर्ण विधि : यदि शिक्षक, बालकों को सीखने के लिए उचित विधियों का प्रयोग न करके दोषपूर्ण विधियों का प्रयोग करता है, तो वे उसको थोड़े ही समय में भूल जाते हैं।
मानसिक आघात : सिर मे आघात या चोट लगने से स्नायु कोष्ट छिन्न-भिन्न हो जाते है। अतः उन पर बने स्मृति-चिन्ह अस्त-व्यस्त हो जाते हैं। फलस्वरूप, व्यक्ति स्मरण की हुई बातों को भूल जाता है। वह कम चोट लगने से कम और अधिक चोट लगने से अधिक भूलता है।
मानसिक द्वन्द्व : मानसिक द्वन्द्व के कारण मस्तिष्क में किसी-न-किसी प्रकार की परेशानी उत्पन्न हो जाती है। यह परेशानी, विस्मृति का कारण बनती है।
मानसिक रोग : कुछ मानसिक रोग ऐसे हैं, जो स्मरण शक्ति को निर्बल बना देते हैं, जिसके फलस्वरूप विस्मरण की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार का एक मानसिक रोग-दुःसाध्य उन्माद (Psychosis) है।
मादक वस्तुओं का प्रयोग : मादक वस्तुओं का प्रयोग मानसिक शक्ति को क्षीण कर देता है। अतः विस्मरण एक स्वाभाविक बात हो जाती है।
स्मरण न करने की इच्छा : यदि हम किसी बात को स्मरण नहीं रखना चाहते हैं, तो हम उसे अवश्य भूल जाते हैं, स्टर्ट व ओकडन का कथन है-"हम बहुत-सी बातों को स्मरण न रखने की इच्छा के कारण भूल जाते हैं।"
संवेगात्मक असन्तुलन : किसी संवेग के उत्तेजित होने पर व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक दशा में असाधारण परिवर्तन हो जाता है। उस दशा में उसे पिछली बातों का स्मरण करना कठिन हो जाता है। बालक, भय के कारण भली प्रकार याद पाठ को भी भूल जाता है। भाटिया का विचार है-"संवेगात्मक असन्तुलन विस्मृति के सामान्य कारण है।'
विस्मृति के सिद्धान्त
स्मृति तथा विस्मृति दोनों का सम्बन्ध अधिगम से है। अधिगम, धारणा, प्रत्यास्मरण तथा प्रत्याभिज्ञान के द्वारा स्मृति भी प्रक्रिया सम्पूर्ण होती है। विद्वानों ने विस्मृति को शास्त्रीय स्वरूप देने के लिये इन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है-
चिन्हहास सिद्धान्त
यह सिद्धान्त सामान्य अनुभवों पर आधारित है। इसका आधार समय है। समय के अन्तराल के साथ-साथ हम बहुत सी चीजों को भूल जाते हैं। इस सिद्धान्त में अनुपयोग (Disuse) का नियम लागू होता है।
व्यतिकरण (Interference) का सिद्धान्त
गुलर, वुडवर्थ तथा मिल्जेकर आदि मनोवैज्ञानिकों ने बताया कि अधिगम के समय उत्पन्न बाधायें धारण को प्रभावित करती हैं। भूत, वर्तमान तथा भविष्य काल का प्रभावात्मक सम्बन्ध होता है। यह व्यतिकरण अग्रोन्मुख (Proactive) तथा पृष्ठोन्मुख (Retroactive) होता है। अग्रोन्मुख व्यतिकरण में भूतकाल की सामग्री वर्तमान को प्रभावित करती है। पृष्ठोन्मुखी व्यतिकरण में अधिगम से पूर्व ही बाधा आती है। अतः हमारे जीवन में विस्मरण प्रायः अग्रोन्मुख तथा पृष्ठोन्मुख दोनों कारणों से होता है।
पुनर्प्राप्ति की विफलता
विस्मरण का कोई स्थायी रूप नहीं होता है। प्रत्यास्मरण (Recall) के समय स्मृति कोष से स्मरण की गई सामग्री को खोजा जाता है। इस कार्य में विफलता से विस्मरण होता है।
अभिप्रेरणा का सिद्धान्त
इसे दमन का सिद्धान्त भी कहते हैं जिगारनिक (Zeigarnik) के अनुसार "अपूर्ण कार्यों के प्रत्यास्मरण में सफलता का कारण वे अभिप्रेरणाये होती है जिनकी उपलब्धि पूर्ण नहीं होती और उद्देश्य की प्राप्ति का आकर्षण बना रहता है किन्तु पूर्ण कार्यों में उपलब्धि के कारण अभिप्रेरणा संतुष्ट हो चुकी होती है।"
अनुबद्धता (Consolidation) का सिद्धान्त
जब स्मृति परिपक्व तथा संगठित नहीं होती तो प्रत्यास्मरण ठीक प्रकार नहीं होता। एक धारणा पर दूसरी धारणा हावी हो जाती है तो विस्मरण होने लगता है।
विस्मृति कम करने के उपाय
किसी बात की कम विस्मृति का अर्थ है- उसे अधिक समय तक स्मरण रखने या स्मृति में धारण रखने (Retention) की क्षमता न होना अतः विस्मृति को कम करने या धारण शक्ति में उन्नति करने के लिए निम्नांकित उपायों को प्रयोग में लाया जा सकता है-
पाठ की विषय-वस्तु
कोलेसनिक (Kolesnik) का मत है पाठ की विषय-वस्तु अर्थपूर्ण, क्रमबद्ध और बालक की मानसिक योग्यता के अनुरूप होनी चाहिए. क्योंकि इस प्रकार की विषय-वस्तु की विस्मृति की गति और मात्रा बहुत कम होती है। इसके अतिरिक्त, पाठ में आवश्यकता से अधिक तथ्य तिथियों और विस्तृत सूचनाएं नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इनकी विस्मृति की गति और मात्रा बहुत तीव्र होती है।
पूरे पाठ का स्मरण
बालक को पूरा पाठ सोच-समझकर याद करना चाहिए। जब तक उसे पूरा पाठ याद न हो जाय तब तक उसे स्मरण करने का कार्य स्थगित नहीं करना चाहिए। साथ ही, उसे पाठ को आंशिक रूप से स्मरण नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पाठ का मूल जाना आवश्यक है।
पाठ का अधिक स्मरण
पाठ स्मरण हो जाने के बाद भी बालक को उसे कुछ समय तक और स्मरण करना चाहिए। इसका कारण बताते हुए नन (Nunn) ने लिखा है- "पाठ स्मरण हो जाने के बाद जितना अधिक रमरण किया जाता है, उतना ही अधिक वह स्मृति में धारण रहता है।"
बालक का स्मरण करने में ध्यान
पाठ को स्मरण करते समय बालक को अपना पूर्ण ध्यान उस पर केन्द्रित रखना चाहिए। वुडवर्थ के शब्दों में इसका कारण यह है- "सीखने वाला जितना अधिक ध्यान देता है, उतनी ही जल्दी वह सीखता है। और बाद में उतनी ही अधिक देर में वह भूलता है।"
अधिक समय तक स्मरण रखने का विचार
बालक की पाठ यह विचार करके स्मरण करना चाहिए कि उसे उसको बहुत समय तक याद रखना है तभी वह उसे शीघ्र भूलने की सम्भावना का अन्त कर सकता है। बोरिंग, लैंगफील्ड एवं बील्ड ने लिखा है-"अधिक समय तक स्मरण रखने के विचार से याद किया हुआ पाठ अधिक समय तक स्मरण रहता है।"
विचार-साहचर्य के नियमों का पालन
पाठ याद करते समय बालक को विचार-साहचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। उसे नवीन तथ्यों और घटनाओं का उन तथ्यों और घटनाओं से सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए, जिनको वह जानता है। ऐसा करने से वह सम्भवतः पाठ का कभी विस्मरण नहीं करेगा।
पूर्ण व अन्तरयुक्त विधियों का प्रयोग
बालक को पाठ याद करने के लिए पूर्ण (Whole) और अन्तरयुक्त (Spaced) विधियों का प्रयोग करना चाहिए।इसका कारण यह है कि खण्ड (Part) और अन्तरहीन (Unspaced) विधियों की अपेक्षा इन विधियों से याद किए गए पाठ का विस्मरण कम होता है।
सस्वर वाचन
बालक को पाठ बोल-बोलकर स्मरण करना चाहिए। वुडवर्थ के शब्दों में इसका कारण यह है "सक्रिय सस्वर वाचन के पश्चात् विस्मरण की गति धीमी होती है।"
स्मरण के बाद विश्राम
बालक को पाठ स्मरण करने के उपरान्त कुछ समय तक विश्राम अवश्य करना चाहिए, ताकि पाठ के स्मृति चिन्ह उसके मस्तिष्क में स्पष्ट रूप से अंकित हो जायें। वुडवर्थ (Woodworth) के शब्दों में- "सीखने के बाद कुछ समय तक विश्राम का महत्त्व अनेक परीक्षणों द्वारा सिद्ध किया गया है।''
पाठ की पुनरावृत्ति
पाठ को स्मरण करने के बाद बालक को उसे थोडे-थोड़े समय के उपरान्त दोहराते रहना चाहिए। पाठ की जितनी ही अधिक पुनरावृत्ति की जाती है, उतनी ही अधि एक देर से वह भूलता है। वुडवर्थ ने लिखा है-"पुनः अधिगम स्मृति-चिन्हों को सजीव बनाता है और विस्मरण को कम करता है।"
स्मरण करने के नियमों का प्रयोग
बालक को विस्मरण कम करने के लिए स्मरण करने की मितव्ययी विधियों का प्रयोग करना चाहिए। इसकी पुष्टि करते हुए वुडवर्थ ने लिखा है-"स्मरण के लिए मितव्ययिता के नियम धारण शक्ति के लिए भी लागू होते हैं।"
शिक्षा में विस्मृति का महत्त्व
कॉलिन्स व ड्रेवर ने लिखा है- "यह सत्य है कि विस्मरण, स्मरण के विपरीत है, पर व्यावहारिक दृष्टिकोण से विस्मरण लगभग उतना ही लाभप्रद है, जितना कि स्मरण।"
विस्मरण लाभप्रद क्यों है ? बालक की शिक्षा में उसका कार्य, महत्त्व और आवश्यकता क्या है ? हम इनसे सम्बन्धित तथ्यों पर निम्नलिखित वर्णन कर रहे हैं-
क्षणिक महत्व की बातों को भुलाना
बालक, विद्यालय में ऐसी अनेक बातें सीखता है, जो उसके लिए क्षणिक महत्त्व की होती है। अतः उसके लिए उन्हें स्थायी रूप से स्मरण न रखकर भुला देना ही अच्छा है। कोलेसनिक के अनुसार- "जीवन के अनेक अनुभवों का केवल क्षणिक महत्व होता है और वे स्मरण रखने के योग्य नहीं होते हैं।"
समान रूप से अनुपयोगी बातों का भुलाना
बालक प्रतिदिन अनेक बातें सीखता है। वे सब उसके लिए समान रूप से उपयोगी नहीं होती है। अत: जैसा कि क्रो एवं क्रो ने लिखा है- "सीखने वाले के लिए यह जानना आवश्यक है कि यह क्या स्मरण रखे और क्या भुला दे ?"
अस्त-व्यस्तता से बचाव
यदि बालक के मस्तिष्क में सभी बातों के स्मृति-चिन्ह अंकित होते चले जाएँ, तो उसके विचार पूर्ण रूप से अस्त-व्यस्त हो जायेंगे। अत अपने विचारों को व्यवस्थित रूप प्रदान करने के लिए उसे कुछ बातों का भुलाना अनिवार्य है। स्टर्ट एवं ओकडन का मत है-"यदि हम अपने विचारों में व्यवस्था और बल चाहते हैं, तो हमारे लिए विस्मरण आवश्यक है।"
दुःखद अनुभवों को भूलना
बालक को अपने विद्यालय और पारिवारिक जीवन में समय-समय पर कटु या दुःखद अनुभव होते हैं। ये अनुभव, स्मरण की प्रक्रिया में बाधा उपस्थित करते हैं। अतः इनका विस्मरण करके ही बालक विद्यार्जन के लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है। भाटिया के शब्दों में "भली प्रकार स्मरण करने के लिए हमें बहुत कुछ भुला देना आवश्यक है।"
भाषा शिक्षण में उपयोगी
बालक शुद्ध लेखन और शुद्ध उच्चारण के अतिरिक्त विभिन्न विषयों कुछ सीमा तक सफलता प्राप्त करने का इच्छुक रहता है। वह गलत कार्यों और गलत विधियों का विस्मरण करके ही ऐसा कर सकता है। मन के अनुसार- "उचित प्रतिक्रिया का अर्जन करने के लिए हमें अनुचित प्रतिक्रियाओं को बहुधा भूल जाना आवश्यक है।"
सीमित क्षेत्र का उपयोग
बालक का स्मृति-क्षेत्र सीमित होता है। अतः यदि यह सब बातों को स्मरण रखे, तो उसे अपने स्मृति-क्षेत्र में नवीन बातों को स्थान देना असम्भव हो जायेगा। इस दृष्टि से उसे पुरानी बातों का विस्मरण करना आवश्यक है। कोलिन्स एवं ड्रेवर (Collins & Drever) का कथन है- विस्मरण किसी भी प्रकार के लाभप्रद अधिगम का आवश्यक अंग है।"
पुरानी बातों को भूलकर नई बातों को सीखना
ऐसी अनेक बातें होती है, जिनको बालक पुरानी बातों को भूलकर ही सीख सकता है। जैसे-पढ़ने या लिखने की उपयुक्त विधियों। अतः उसे उन विधियों को भुला देना आवश्यक है, जिनका प्रयोग वह करता चला आ रहा है। वुडवर्थ के अनुसार - "नई बातों का सीखना पुरानी बातों के स्मरण में बाधा डालता है और पुरानी बातों का स्मरण नई बातों को सीखने में बाधा डालता है।" उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बालक की शिक्षा में विस्मरण का स्थान अति महत्त्वपूर्ण है। वह विस्मरण करके ही शिक्षा सम्बन्धी नई बातों को सीख सकता है। रिबट ने ठीक लिखा है-"स्मरण करने की एक शर्त यह है कि हमें विस्मरण करना चाहिए।"
शिक्षक को चाहिये कि वह छात्रों में नवीन चीजों को सीखने पर बल दे। उन्हें संतुलित रूप से सिखाये। संवेगात्मक संतुलन बनाये रखे। मानसिक द्वन्द्व तथा संघर्ष को दूर करे। ऐसा करने से विस्मृति स्वाभाविक होगी जो बालक का मानसिक स्वास्थ्य बनाने में योग देगी।