थकान : थकान का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, कारण, उपाय एवं प्रभाव

थकान का अर्थ :- 

थकान से तात्पर्य है कि जब हम कोई भी कार्य करते हैं, तब कुछ समय के बाद ऐसी स्थिति आ जाती है, जब हमारी कार्य करने की इच्छा कम होती है और हमारा शरीर शिथिल हो जाता है। फलस्वरूप हम पहले से कम कार्य कर पाते है। मन और शरीर की इस अवस्था को थकान कहते हैं। दूसरे शब्दों में- थकान व्यक्ति की वह विशेष शारीरिक और सामाजिक दशा है, जिसके कारण उसकी वास्तविक कार्यक्षमता में लगातार कमी होती जाती है।

    थकान की परिभाषा :-

    हम थकान के अर्थ को निम्नलिखित परिभाषाओं से और अधिक स्पष्ट कर रहे हैं-

    ड्रेवर के अनुसार- "थकान का अर्थ है- कार्य करने में शक्ति के पूर्व व्यय के कारण कार्य करने की कम कुशलता या योग्यता।" 

    बोरिंग, लैंगफील्ड व वेल्ड के अनुसार- "थकान की सर्वोत्तम परिभाषा निरन्तर कार्य करने के परिणामस्वरूप कुशलता में कमी के रूप में की जाती है।"

    थकान के प्रकार :-

    थकान मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है- 

    शारीरिक थकान :

    यह थकान, शरीर की वह अवस्था है जब निरन्तर शारीरिक कार्य करने के कारण शरीर की शक्ति कम हो जाती है, अंग शिथिल हो जाते हैं और व्यक्ति कार्य न करके विश्राम करना चाहता है।

    मानसिक थकान :

    यह थकान, मस्तिष्क की वह अवस्था है, जब निरन्तर मानसिक कार्य करने के कारण मस्तिष्क की ध्यान, चिन्तन आदि शक्तियों कम हो जाती है और व्यक्ति, कार्य को स्थगित करके कुछ और करना चाहता है।

    टिप्पणी- शारीरिक थकान को मानसिक थकान का कारण माना जाता है। यदि व्यक्ति में शारीरिक थकान होती है, तो वह मानसिक कार्य नहीं करना चाहता है। आधुनिक 'व्यावहारिक मनोविज्ञान' (Experimental Psychology) मानसिक थकान को नहीं मानता है। इस सम्बन्ध में वेलेन्टाइन ने लिखा है- "मानसिक थकान साधारणतः केवल बोरियत है। जब एक व्यक्ति की कार्य में रुचि बनी रहती है, तब तक वह किसी प्रकार की मानसिक थकान का अनुभव नहीं करता है।" 

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    शारीरिक थकान के लक्षण :- 

    शारीरिक थकान की मात्रा के अनुसार उसके एक या अनेक लक्षण हो सकते हैं, जैसे-

    1. शरीर का शिथिल होना।

    2. चेहरे का पीला और निस्तेज होना।

    3. जम्हाई लेना और नींद की झपकी आना।

    4. मुँह से साँस लेना और मुँह का खुला रह जाना।

    5. कधे झुकाकर बैठना या खड़ा होना।

    6. शक्ति और कुशलता में कमी का अनुभव करना ।

    7. बार-बार आसन (Posture) बदलना और दोषपूर्ण आसनों का प्रयोग करना।

    8. कार्य के प्रति उदासीनता व्यक्त करना।

    9. कार्य करने की गति धीमी होना।

    10. कार्य पर ध्यान केन्द्रित न होने के कारण कार्य करने के औजारों का हाथ से गिरना ।

    मानसिक थकान के लक्षण :-

    मानसिक थकान की स्थिति में व्यक्ति में शारीरिक तथा मानसिक, दोनों प्रकार की शिथिलता आती है। मानसिक थकान के लक्षण इस प्रकार है-

    1. मस्तिष्क में भारीपन का अनुभव करना।

    2. चेहरे का पीला और निस्तेज होना।

    3. जम्हाई लेना और नींद की झपकी आना। 

    4. स्वभाव से बेचैनी, घबड़ाहट और चिड़चिड़ापन उत्पन्न होना।

    5. सोचने समझने और विचार करने की शक्तियों का कम होना।

    6. व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं का प्रकट होना, जैसे- आपस में बातचीत करना, अनुशासनहीनता के कार्य आदि।

    7. कार्य पर ध्यान केन्द्रित करने में असफल होना।

    8 कार्य करने में अत्यधिक गलतियाँ करना। 

    9. कार्य के प्रति किसी प्रकार का उत्साह व्यक्त न करना।

    10. कार्य करने से मन का ऊब जाना और उसमें रुचि न लेना।

    विद्यालय में थकान के कारण :-

    विद्यालय में बालक को लगभग छः घंटे रहना पड़ता है। इस दौरान बालक यदि एक जैसा कार्य करता रहे, अगर  शिक्षण अरुचिकर हो तो थकान का होना स्वाभाविक है। सिम्पसन का कथन है-"अनेक सामान्य दशाओं को थकान के मुख्य कारण माना जा सकता है। इस प्रकार के कारणों में वे दशायें सम्मिलित हैं, जिनका स्वरूप भौतिक, मनोवैज्ञानिक और शैक्षिक है।"

    थकान के ये प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

    1. दोषपूर्ण पाठ्यक्रम और अरोचक एवं अमनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियों का प्रयोग प्रेसी, रॉबिन्सनहॉरक्स के अनुसार- "अविवेकपूर्ण शिक्षण थकान का कारण होता है।"

    2. कमरे में शुद्ध वायु के अभाव के कारण बालकों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलने में कठिनाई। 

    3. कमरे में पर्याप्त प्रकाश न होने के कारण पढ़ते समय आँखों पर आवश्यकता से अधिक बल ।

    4. कमरे में बालकों के बैठने के लिए स्थान की कमी।

    5. बालकों के बैठने के लिए अनुपयुक्त फर्नीचर  के बारे में सिम्पसन ने लिखा है-"अनुपयुक्त फर्नीचर बालकों की वास्तविक शारीरिक थकान में प्रत्यक्ष योग देता है।"

    6. बालकों के बैठने के दोषपूर्ण आसन ।

    7. बालकों की पौष्टिक और सन्तुलित भोजन के अभाव के कारण शारीरिक निर्बलता और अस्वस्थता ।

    8. बालकों के शारीरिक दोष, जैसे- बहरापन, निकट दृष्टि आदि।

    9. बालकों के लिए व्यायाम और मनोरंजन की दोषपूर्ण व्यवस्था। 

    10. थकाने वाले शारीरिक व्यायाम के बाद मानसिक कार्य ।

    11. दोषपूर्ण समय तालिका, अर्थात् दो कठिन विषयों का लगातार शिक्षण, लगातार देर तक लिखने का कार्य आदि।

    12. धुएँ और निरन्तर शोरगुल के कारण विद्यालय की दोषपूर्ण स्थिति। सिम्पसन के अनुसार- "ध्यान को विचलित करने वाला शोर, थकान की भावना में योग देता है।" 

    13. भय और दण्ड पर आधारित कठोर अनुशासन के कारण बालकों में सर्वगात्मक असन्तुलन उत्पत्ति ।

    14. कार्य का बालकों की रुचि के अनुकूल न होना।

    15. कार्य का बालकों के मानसिक स्तर से ऊँचा होना। 

    16. अधिक गृहकार्य या अन्य किसी कारण से रात में देर तक जागना ।

    17. घर के पास किसी उपद्रव के कारण नींद न आना।

    थकान कम करने के उपाय :-

    विद्यालय में थकान को कम करने के लिये निम्नलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है- 

    1. विद्यालय का समय प्रतिदिन 6 घण्टे या 8 पीरियड से अधिक नहीं होना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में समय की यह अवधि 1 घण्टे कम होनी चाहिए। 

    2 ग्रीष्म ऋतु में पहले पाँच घण्टे 35-35 मिनट के और अन्तिम 5 घण्टे 30-30 मिनट के होने चाहिए। शीत ऋतु में घण्टों की अवधि 5-5 मिनट बढ़ाई जा सकती है।

    3. विद्यालय में दो अवकाश होने चाहिए- पहला, छोटा अवकाश तीसरे घण्टे के बाद और दूसरा बड़ा अवकाश पाँचवें घण्टे के बाद। बालकों को थोड़ा विश्राम मिल जाने से उनमें पुनः नवीन स्फूर्ति आ जाती है।

    4. विद्यालय के कमरों में वायु और प्रकाश के लिए काफी दरवाजे, खिड़कियाँ और रोशनदान होने चाहिए।

    5. विद्यालय में बालकों के लिए दूध या अल्प आहार की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। 

    6. कक्षा में बालकों के बैठने के लिए पर्याप्त स्थान और उपयुक्त फर्नीचर होना चाहिए। 

    7. समय-सारणी इस प्रकार बनानी चाहिए कि एक विषय के दो घण्टे लिखित कार्य के दो घण्टे और कठिन विषयों के दो घण्टे लगातार न आये।

    8. समय-सारणी में लिखित कार्य के बाद मौखिक कार्य और कठिन विषय के बाद सरल विषय आना चाहिए।

    9. शिक्षक को रोचक और मनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए। 

    10. बालकों के लिए तीसरे या चौथे घण्टे के बाद व्यायाम, मनोरंजन, खेल-कूद और पाठ्यक्रम- सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था होनी चाहिए। 

    11. बालकों की कार्य में रुचि उत्पन्न करनी चाहिए और उनको अधिक गृह-कार्य नहीं दिया जाना चाहिए। 

    12. बालकों को घर पर पर्याप्त विश्राम करने, सोने एवं पौष्टिक और सन्तुलित भोजन करने का परामर्श देना चाहिए।

    शिक्षक को विद्यालय के वातावरण और बालकों के शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक पहलुओं में इतने विवेक और कुशलता से सामंजस्य स्थापित करना चाहिए कि वे थकान का अनुभव न करें। पर इससे अधिक आवश्यक यह है- बालकों में यह विश्वास उत्पन्न करना कि उनको अपने शिक्षा-सम्बन्धी कार्य में असफलता का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसकी पुष्टि में सिम्पसन के निम्नांकित शब्द उद्धत किए जा सकते हैं-"अनावश्यक थकान उत्पन्न न होने देने के लिए शिक्षकों द्वारा सामंजस्य स्थापित किए जाने वाले अनेक कार्यों में से सर्वश्रेष्ठ यह है कि वे बालकों में आत्म-विश्वास और सुरक्षा की भावना का विकास करें।"

    थकान का सीखने पर प्रभाव :-

    मनोवैज्ञानिकों ने सीखने की प्रक्रिया पर थकान के सम्बन्ध में अनेक परीक्षण किए हैं। हम उनके निष्कर्षो को विभिन्न लेखकों के अनुसार नीचे की पंक्तियों में अक्षरबद्ध कर रहे है- 

    कुशलता में कमी :

    सोरेन्सन के अनुसार- "थकान की भावना को कार्य में कम कुशल बना सकती है।" 

    रुचि व उत्साह में कमी : 

    थकान के कारण बालकों की कार्य में रुचि नहीं रहती है, ये उसके प्रति किसी प्रकार का उत्साह व्यक्त नहीं करते है और उस पर अपने ध्यान को केन्द्रित नहीं कर पाते हैं। पर यदि कार्य में परिवर्तन कर दिया जाता है और बालकों को उसे करने के लिए पर्याप्त रूप से अभिप्रेरित (Motivate) कर दिया जाता है, तो वे उसको पूर्ण स्फूर्ति से करने लगते हैं।

    मानसिक कार्य क्षमता में कमी :

    शारीरिक थकान का मानसिक थकान पर प्रभाव पड़ता है। इसीलिए, यदि बालकों में किसी कारण से शारीरिक थकान है, तो उनकी मानसिक कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है।

    कार्य में अधिक गलतियाँ :

    क्रॅपलिन (Kraepelin) ने बालकों को गुणा करने के लिए कुछ प्रश्न दिए। उसने उनसे ये प्रश्न दो अवसरों पर करवाये जब वे थके हुए थे और जब वे थके हुए नहीं थे, अपने इन परीक्षणों से उसने यह निष्कर्ष निकाला कि थकान के कारण बालक अधिक गलतियाँ करते हैं।" 

    कार्य की गति में शिथिलता : 

    एवरिल (Averill) के शब्दों में-"जब बालक थक जाता है, तब उसकी कार्य करने की गति धीमी हो जाती है, चाहे कार्य शारीरिक हो या मानसिक । "

    कार्य की मात्रा व गुण में अपरिवर्तन :

    प्रेसी, रॉबिन्सन एवं हॉरेक्स (Pressey, Robinson & Horrocks)ने लिखा है-"अनेक घण्टों तक अधिकतम परिश्रम से किये जाने वाले मानसिक कार्य का साधारणतः उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। थकान और कार्य के गुण में कोई सम्बन्ध नहीं है।"

    व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार प्रभाव :

    बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार उन पर थकान का कम या अधिक प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप उनके सीखने का कार्य भिन्न प्रकार से प्रभावित होता है।

    छोटे बालकों पर अधिक प्रभाव :

    एवरिल (Averill) के अनुसार- "बालकों की आयु जितनी कम होती है, उतनी ही जल्दी और अधिक थकान का वे अनुभव करते हैं। फलस्वरूप उनकी सीखने की गति और कुशलता उतनी ही कम होती है।"

    मानसिक थकान की प्रभावहीनता :

    व्यावहारिक मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मानसिक थकान नाम की कोई चीज नहीं है। अतः यदि कार्य की रोचकता में कमी नहीं आती है, तो बालक मानसिक थकान का अनुभव न करके अपनी पूर्व गति में उसे करते रहते हैं। हम अपने इस कथन की पुष्टि में क्रो व क्रो (Crow & Crow) का निम्नांकित वाक्य प्रस्तुत कर रहे है- "जिसे बहुधा थकान माना जाता है, वह उस कार्य में रुचि की कमी है, जिसमें बालक संलग्न है।"

    प्रारम्भिक थकान के बाद कुशलता :

    सोरेन्सन (Sorenson) के विचारानुसार- थकान की प्रारम्भिक भावना का अनुभव करने के बाद प्रयास और कुशलता में निश्चित रूप से वृद्धि होती है। अतः थकान अनुभव करते ही कार्य करना बन्द नहीं कर देना चाहिए। सोरेन्सन ने लिखा है- "थोड़ी-सी थकान का अनुभव करना अच्छा प्रशिक्षण है, क्योंकि वह व्यक्ति को अधिक कठिन कार्य करने के लिए तैयार करती है।"


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