स्मृति का अर्थ
स्मृति एक मानसिक क्रिया है स्मृति का आधार अर्जित अनुभव है इनका पुनरुत्पादन परिस्थिति के अनुसार होता है। हमारे बहुत से मानसिक संस्कार स्मृति के माध्यम से ही जाग्रत होते हैं।
स्मृति की परिभाषा
स्मृति के सम्बन्ध में कुछ वैज्ञानिकों ने परिभाषाएं दी हैं जो इस प्रकार से हैं-
वुडवर्थ के अनुसार- "जो बात पहले सीखी जा चुकी है, उसे स्मरण रखना ही स्मृति है।"
रायबर्न के अनुसार- "अपने अनुभवों को संचित रखने और उनको प्राप्त करने के कुछ समय बाद चेतना के क्षेत्र में पुनः लाने की जो शक्ति हममें होती है, उसी को स्मृति कहते हैं।"
जेम्स के अनुसार-"स्मृति उस घटना या तथ्य का ज्ञान है, जिसके बारे में हमने कुछ समय तक नहीं सोचा है, पर जिसके बारे में हमको यह चेतना है कि हम उसका पहले विचार या अनुभव कर चुके है।"
स्टाउट के अनुसार- "स्मृति एक आदर्श पुनरावृत्ति है।"
मैकडुगल के अनुसार-"स्मृति से तात्पर्य अतीत की घटनाओं की कल्पना करना और इस तथ्य को पहचान लेना भी ये अतीत के अनुभव है।"
अतः इन परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि-
(1) स्मृति एक आदर्श पुनरावृत्ति है,
(2) यह सीखी हुई वस्तु का सीधा उपयोग है,
(3) इसमें अतीत में घटी घटनाओं की कल्पना द्वारा पहचान की जाती है,
(4) अतीत के अनुभवों को पुनः चेतना में लाया जाता है।
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स्मृतियों के प्रकार
स्मृति का मुख्य कार्य है कि हमें किसी पूर्व अनुभव का स्मरण कराना। इसका अभिप्राय यह हुआ कि. प्रत्येक अनुभव के लिए पृथक स्मृति होनी चाहिए। इतना ही नहीं, पर जैसा कि स्टाउट ने लिखा है- "केवल नाम के लिए पृथक स्मृति नहीं होनी चाहिए, वरन् प्रत्येक विशिष्ट नाम के लिए भी पृथक स्मृति होनी चाहिए।"
स्टाउट (Stout) के इस कथन का अभिप्राय यह है कि स्मृतियाँ अनेकानेक प्रकार की होती है, जो किसी मामले के लिए अच्छी और किसी के लिए खराब हो सकती है। जैसे- किसी व्यक्ति की स्मृति स्थानों के बारे में अच्छी, पर नामों के बारे में खराब हो सकती है। इसी प्रकार, दूसरे व्यक्तियों की स्मृति जैसे- गणित, विज्ञान, साहित्य आदि के लिए अच्छी या खराब हो सकती है।
अतः हम इस जटिल समस्या में न पडकर मुख्य प्रकार की स्मृतियों का परिचय दे रहे हैंजो इस प्रकार से है-
व्यक्तिगत स्मृति
इस स्मृति में हम अपने अतीत के व्यक्तिगत अनुभवों को स्मरण रखते हैं। हमें यह सदैव स्मरण रहता है कि संकट के समय हमारी सहायता किसने की थी।
अव्यक्तिगत स्मृति
इस स्मृति में हम बिना व्यक्तिगत अनुभव किए बहुत-सी पिछली बातों को याद रखते हैं। हम इन अनुभवों को साधारणतः पुस्तकों से प्राप्त करते हैं। अतः ये अनुभव सब व्यक्तियों में समान होते हैं।
स्थायी स्मृति
इस स्मृति में हम याद की हुई बात को कभी नहीं भूलते हैं। यह स्मृति बालकों की अपेक्षा वयस्कों में अधिक होती है।
तात्कालिक स्मृति
इस स्मृति में हम याद की हुई बात को तत्काल सुना देते हैं. पर हम उसको साधारणतः कुछ समय के बाद भूल जाते है। यह स्मृति सब व्यक्तियों में एक सी नहीं होती है और बालकों की अपेक्षा वयस्कों में अधिक होती है।
सक्रिय स्मृति
इस स्मृति में हमें अपने पिछले अनुभवों का पुनःस्मरण करने के लिए प्रयास करना पड़ता है। वर्णनात्मक निबन्ध लिखते समय छात्रों को उससे सम्बन्धित तथ्यों का स्मरण करने के लिए प्रयास करना पड़ता है।
निष्क्रिय स्मृति
इस स्मृति में हमें अपने पिछले अनुभवों का पुनः स्मरण करने में किसी प्रकार का प्रयास नहीं करना पड़ता है। पढ़ी हुई कहानी को सुनते समय छात्रों को उसकी घटनाएँ स्वतः याद आ जाती हैं।
तार्किक स्मृति
इस स्मृति में हम किसी बात को भली-भाँति सोच- समझकर और तर्क करके स्मरण करते हैं। इस प्रकार प्राप्त किया जाने वाला ज्ञान वास्तविक होता है।
यान्त्रिक (रटन्त) स्मृति
इस स्मृति में हम किसी तथ्य को या किसी प्रश्न के उत्तर को बिना सोचे-समझे रटकर स्मरण करते हैं। गिनती और पहाड़ों को याद करने और रटने की साधारण विधि यही है।
आदत स्मृति
इस स्मृति में हम किसी कार्य को बार-बार दोहरा कर और उसे आदत का रूप देकर स्मरण करते हैं। हम उसे जितनी अधिक बार दोहराते हैं, उतनी ही अधिक उसकी स्मृति हो जाती है।
शारीरिक स्मृति
इस स्मृति में हम अपने शरीर के किसी अंग या अंगों द्वारा किए जाने वाले कार्य को स्मरण रखते है। हमें उँगलियों से टाइप करना और हारमोनियम बजाना स्मरण रहता है।
इन्द्रिय-अनुभव
इस स्मृति में हम इन्द्रियों का प्रयोग करके अतीत के अनुभवों को फिर स्मरण कर सकते हैं। हम बन्द आँखों से उन वस्तुओं को छूकर, चखकर या सूँघकर बता सकते हैं, जिनको हम जानते हैं।
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सच्ची या शुद्ध स्मृति
इस स्मृति में हम याद किये हुए तथ्यों का स्वतन्त्र रूप से वास्तविक पुनः स्मरण कर सकते हैं। हम जो कुछ याद करते हैं, उसका हमें क्रमबद्ध ज्ञान रहता है। इसीलिए इस स्मृति को सर्वोत्तम माना जाता है।
स्मृति के अंग
स्मृति एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है। वुडवर्थ (Woodworth) के अनुसार, स्मृति या स्मरण की पूर्ण क्रिया के निम्नलिखित 4 अंग, पद या खंड होते हैं-
सीखना
स्मृति का पहला अंग है- सीखना हम जिस बात को याद रखना चाहते हैं, उसको हमें सबसे पहले सीखना पड़ता है। गिलफोर्ड का कथन है-"किसी बात को भली-भाँति याद रखने के लिए अच्छी तरह सीख लेना आधी से अधिक लड़ाई जीत लेना है।"
धारण
स्मृति का दूसरा अंग है- धारण इसका अर्थ है- सीखी हुई बात को मस्तिष्क में संचित रखना हम जो बात सीखते हैं, वह कुछ समय के बाद हमारे अचेतन में चली जाती है। वहाँ वह निष्क्रिय दशा में रहती है। इस दशा में वह कितने समय तक संचित रह सकती है, यह व्यक्ति की धारण शक्ति पर विशेष निर्भर रहता है।
रायबर्न का मत है-"अधिकांश व्यक्तियों की धारण शक्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता है।"
परिवर्तन न होने के बावजूद भी कुछ बातें ऐसी हैं, जो हमें अपने अनुभव को अधिक समय तक स्मरण रखने में सहायता देती हैं,जैसे-
- स्वस्थ व्यक्ति सीखी हुई बात को अधिक समय तक स्मरण रखता है।
- अधिक अच्छी विधि से सीखी हुई बात अधिक समय तक स्मरण रहती है।
- सीखी हुई बात को जितना अधिक दोहराया जाता है, उतने ही अधिक समय तक वह स्मरण रहती है।
- रुचि और ध्यान से सीखी जाने वाली बात अधिक समय तक स्मरण रहती है।
- कठिन और जटिल बात की अपेक्षा सरल और रोचक बात अधिक समय तक स्मरण रहती है।
- अत्यधिक दुख, सुख, भय, निराशा आदि की बातें मस्तिष्क पर इतनी गहरी छाप अंकित कर देती है कि वे बहुत समय तक स्मरण रहती हैं।
पुनःस्मरण
स्मृति का तीसरा अंग है- पुनः स्मरण इसका अर्थ है- सीखी हुई बात को अचेतन मन से चेतन मन मे लाना। जो बात जितनी अच्छी तरह धारण की गई है, उतनी ही सरलता से उसका पुनः स्मरण होता है पर ऐसा सदैव नहीं होता है। भय, चिन्ता, शीघ्रता, परेशानी आदि पुनः स्मरण में बाधा उपस्थित करते हैं। बालक भय के कारण भली-भाँति स्मरण पाठ को अच्छी तरह नहीं सुना पाता है। हम जल्दी में बहुत से काम करना भूल जाते हैं।
पहचान
स्मृति का चौथा अंग है- पहचान इसका अर्थ है-फिर याद आने वाली बात में किसी प्रकार की गलती न करना। जैसे- हम पाँच वर्ष पूर्व मोहनलाल नामक व्यक्ति से दिल्ली में मिले थे जब हम उससे फिर मिलते हैं, तब उसके सम्बन्ध में सब बातों का ठीक-ठीक पुनः स्मरण हो जाता है। हम यह जानने में किसी प्रकार की गलती नहीं करते हैं कि वह कौन है, उसका क्या नाम है, हम उससे कब, कहाँ और क्यों मिले थे ? आदि ।
अच्छी स्मृति के लक्षण/ विशेषतायें
जीवन में वही व्यक्ति सफलता के शिखर पर शीघ्र पहुँचता है जिसकी स्मृति अच्छी होती है। ऐसा व्यक्ति भूतकाल की घटनाओं का स्मरण कर वर्तमान में उसका लाभ उठाकर, भविष्य को अच्छा बनाता है।
स्टाउट (Stout) के अनुसार : अच्छी स्मृति में निम्नलिखित गुण, लक्षण या विशेषताएँ होती हैं
शीघ्र अधिगम
अच्छी स्मृति का पहला गुण है- जल्दी सीखना या याद होना । जो व्यक्ति किसी बात को शीघ्र सीख लेता है, उसकी स्मृति अच्छी समझी जाती है।
उत्तम धारण-शक्ति
अच्छी स्मृति का दूसरा गुण है- सीखी हुई बात को बिना दोहराए हुए देर तक स्मरण रखना। जो व्यक्ति एक बात को जितने अधिक समय तक मस्तिष्क में धारण रख सकता है, उसकी स्मृति उतनी ही अधिक अच्छी होती है।
शीघ्र पुनःस्मरण
अच्छी स्मृति का तीसरा गुण है- सीखी हुई बात का शीघ्र याद आना। जिस व्यक्ति को सीखी हुई बात जितनी जल्दी याद आती है, उसकी स्मृति उतनी ही अधिक अच्छी होती हैं।
शीघ्र पहचान
अच्छी स्मृति का चौथा गुण है- शीघ्र पहचान किसी बात का शीघ्र पुनःस्मरण ही पर्याप्त नहीं है। इसके साथ यह भी आवश्यक है कि आप शीघ्र ही यह जान जाये कि आप जिस बात को स्मरण करना चाहते हैं वही बात आपको याद आई है।
अनावश्यक बातों की विस्मृति
अच्छी स्मृति का पाँचवाँ गुण है- अनावश्यक या व्यर्थ की बातों को भूल जाना। यदि ऐसा नहीं है, तो मस्तिष्क को व्यर्थ में बहुत-सी ऐसी बातें स्मरण रखनी पड़ती है, जिनकी भविष्य में कभी आवश्यकता नहीं पड़ती है। वकील मुकदमे के समय उससे सम्बन्धित सब बातों को याद रखता है, पर उसके समाप्त हो जाने पर उसमे से अनावश्यक बातों को भूल जाता है।
उपयोगिता
अच्छी स्मृति का अन्तिम गुण है- उपयोगिता। इसका अभिप्राय यह है कि वही स्मृति अच्छी होती है, जो अवसर आने पर उपयोगी सिद्ध होती है। यदि परीक्षा देते समय बालक स्मरण की हुई सब बातों को लिखने में सफल हो जाता है, तो उसकी स्मृति उपयोगी है, अन्यथा नहीं।
स्मृति के नियम
बी. एन. झा का मत है - "स्मृति के नियम ये दशाएँ हैं, जो अनुभव के पुनःस्मरण में सहायता देती हैं।"
स्पष्टता का नियम
बी. एन. झा के अनुसार- "विचार जितना अधिक स्पष्ट होता है, उतना ही अधिक सरलता से उसका पुनः स्मरण होता है।" बालक जिस पाठ को जितने अधिक स्पष्ट रूप से समझ जाता है, उतनी ही अधिक देर तक वह उसे स्मरण रहता है।
मनोभाव का नियम
व्यक्ति के मन में जिस समय जैसे भाव या विचार होते है, वैसे ही अनुभवों का वह स्मरण करता है। दुःखी मनुष्य केवल दुःख और कष्ट की बातों का ही स्मरण कर सकता है। भाटिया ने लिखा है जब हम प्रसन्न होते हैं, तब हमें सुख एवं आनन्द की बातों का स्मरण होता है और जब हम दुःखी दशा में होते हैं, तब हमारे विचारों में उदासीनता होती है।"