संवेदना का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएँ, महत्त्व

संवेदना का अर्थ 

संवेदना को ज्ञान का द्वार कहा गया है। हमारे शरीर में ज्ञानवाही तथा गतिवाही तन्तुओं का जाल फैला है। ज्ञानवाही तन्तुओं में एक सिरा ग्राहक (Receptor) होता है और दूसरे का सम्बन्ध बोध केन्द्र (Sensory centre) से होता है। कोई सूचना ग्राहक के द्वारा तन्तुओं से होती हुई बोध केन्द्र में पहुँचती है।। बोध केन्द्र, मस्तिष्क को सूचना देता है। मस्तिष्क गतिवाही तन्तुओं को सूचित करता है और प्राप्त सूचना की प्रतिक्रिया होने लगती है। इसी ज्ञान को संवेदना अथवा इन्द्रियजन्य ज्ञान कहते हैं।

    जब बालक का जन्म होता है, तब वह अपने वातावरण के बारे में कुछ भी नहीं जानता है। कुछ समय के बाद उसकी ज्ञानेन्द्रियों कार्य करना आरम्भ कर देती है। फलस्वरूप उसे उनसे विभिन्न प्रकार का ज्ञान प्राप्त होने लगता है। इसी ज्ञान को 'संवेदना' या 'इन्द्रिय-ज्ञान' कहते हैं।
    'संवेदना' सबसे साधारण मानसिक अनुभव और मानसिक प्रक्रिया का सबसे सामान्य रूप है। यह ज्ञान-प्राप्ति की पहली सीढ़ी है। यह सभी प्रकार के ज्ञान में होती है। इसके अभाव में किसी प्रकार का अनुभव सम्भव नहीं है। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने 'संवेदना' को केवल नवजात शिशु द्वारा अनुभव किया जाने वाला शुद्ध ज्ञान माना है। वार्ड (Ward) उनसे सहमत न होकर लिखता है- "शुद्ध संवेदना, मनोवैज्ञानिक कल्पना है।" 

    संवेदना की परिभाषा 

    जलोटा के अनुसार- "संवेदना एक साधारण ज्ञानात्मक अनुभव है।"

    जेम्स के अनुसार- "संवेदनायें ज्ञान के मार्ग में पहली वस्तुएँ हैं।"

    डगलस व हॉलैण्ड के अनुसार- "संवेदना शब्द का प्रयोग सब चेतना-अनुभवों में सबसे सरलतम का वर्णन करने के लिए किया जाता है। " 

    संवेदना से प्राप्त ज्ञान, मनोक्रिया का प्रथम चरण है। उसे मानसिक प्रक्रिया का सामान्य रूप माना जाता है। संवेदना, सभी प्रकार के ज्ञान के लिए उत्तरदायी है। संवेदना के अभाव में किसी भी प्रकार के ज्ञान की अनुभूति नहीं की जा सकती।

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    संवेदना के प्रकार

    ज्ञानेन्द्रियों के अलावा, शरीर की माँसपेशियाँ, शरीर के भीतर के अंग आदि भी संवेदनाओं के कारण है। हैरिक्स (Harricks) ने अपनी पुस्तक "Introduction to Neurology" में उनकी बहुत लम्बी सूची दी है उनमें से डगलस व हालैण्ड ने निम्नलिखित को महत्वपूर्ण बताया है जो इस प्रकार से हैं-

    1. दृष्टि संवेदना (Visual Sensation)- सब प्रकार के रंग-रूप आदि । 

    2. ध्वनि संवेदना (Hearing Sensation)- सब प्रकार की आवाजें ध्वनियाँ आदि । 

    3. घ्राण-संवेदना (Smell Sensation)- सब प्रकार की गन्ध ।

    4. स्वाद- संवेदना (Taste Sensation)- सब प्रकार के स्वाद । 

    5. स्पर्श-संवेदना (Touch Sensation)- सब प्रकार के स्पर्श, दबाव आदि ।

    6. माँसपेशी- संवेदना (Muscle Sensation)- सब प्रकार की माँसपेशियों की गतियों से सम्बन्धित । 

    7. शारीरिक संवेदना (Organic Sensation)- शरीर के अन्दर के अंगों द्वारा प्राप्त होने वाले सब प्रकार के अनुभव। 

    संवेदना के इन सभी प्रकार को तीन श्रेणियों-स्नायविक (स्थिति, गति, प्रतिरोध). शारीरिक (अंग-प्रत्यंग से प्राप्त), विशिष्ट (दृष्टि, श्रवण, घाण, स्वाद तथा स्पर्श) में रखा जा सकता है।

    संवेदना की विशेषताएँ

    संवेदना के गुण या विशेषतायें निम्नलिखित हैं- 

    गुण (Quality) 

    प्रत्येक संवेदना में एक विशेष गुण पाया जाता है। एक ज्ञानेन्द्रिय द्वारा अनुभव की जाने वाली दो संवेदनाओं में भी समानता नहीं होती है, उदाहरणार्थ, दो फूलों की सुगन्ध और दो मनुष्यों की आवाज में भिन्नता होती है।

    तीव्रता (Intensity) 

    प्रत्येक संवेदना में तीव्रता की विशेषता होती है। दो संवेदनाएँ समान रूप तीव्रता में अन्तर होता है। उसका अनुभव नहीं करता है। कुछ संवेदनायें अल्पकालीन होती हैं और कुछ दीर्घकालीन, उदाहरणार्थ, एक मिनट सुनी जाने वाली आवाज की संवेदना अल्पकालीन और एक घण्टे सुनी जाने वाली आवाज की से तीव्र नहीं होती है। उनमें से एक प्रबल और एक निर्बल होती है; उदाहरणार्थ, लाल और सफेद रंगों की तीव्रता में अंतर होता है।  

    अवधि (Duration) 

    प्रत्येक संवेदना की एक निश्चित अवधि होती है। उसके बाद व्यक्ति संवेदना दीर्घकालीन होती है। 

    स्पष्टता (Clearness) 

    प्रत्येक संवेदना में स्पष्टता की विशेषता पाई जाती है। अल्पकालीन संवेदना की तुलना में दीर्घकालीन संवेदना अधिक स्पष्ट होती है। इसके अलावा, जिस संवेदना पर हमारा ध्यान जितना अधिक केन्द्रित होता है, उतनी ही अधिक उसमें स्पष्टता होती है।

    स्थानीय चिन्ह (Local Sign)

    प्रत्येक संवेदना में स्थानीय चिन्ह की विशेषता होती है, उदाहरणार्थ, यदि हमारे हाथ को किसी स्थान पर दबाया जाए, तो हम बता सकते है कि इस स्पर्श संवेदना का स्थान कौन-सा है। 

    विस्तार (Extension)

    यह विशेषता प्रत्येक संवेदना में नहीं पाई जाती है। ज्ञानेन्द्रिय के कम क्षेत्र को प्रभावित करने वाली संवेदना का विस्तार कम और अधिक क्षेत्र को प्रभावित करने वाली संवेदना का विस्तार अधिक होता है; उदाहरणार्थ, सुई की नोक से होने वाली संवेदना की तुलना में तकुए की नोंक से होने वाली संवेदना का विस्तार अधिक होता है।

    संवेदना का शिक्षा में महत्त्व

    संवेदना को ज्ञान की प्रथम सीढ़ी कहा गया है. इसलिए बालक की शिक्षा का आरम्भ संवेदना से होता है। संवेदना से वस्तु की सत्ता का आभास होता है। संवेदना का शिक्षा में महत्त्व इस प्रकार है-

    1. प्रारंम्भिक ज्ञान के उपरान्त वस्तु के गुण समझना। 

    2. वस्तु की सत्ता का ज्ञान होना।

    3. अर्थज्ञान के लिये पृष्ठभूमि तैयार करना।

    4. प्रत्यक्षीकरण के लिये संवेदना का होना आवश्यक का ज्ञान।

    5. मान्टेसरी एवं किन्डरगार्टन जैसी शिक्षण पद्धतियों 

    6. ज्ञानेन्द्रियों का उचित प्रयोग।

    7. मानसिक विकास में सहायक।

    इन सभी विशेषताओं के कारण संवेदना शिक्षा की प्रक्रिया में विशेष महत्त्व रखती है।

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