स्किनर (Skinner) के अनुसार- "सीखना, व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है।" वुडवर्थ (Woodworth) का कथन है- "नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया है, सीखने की प्रक्रिया है।"
इन दोनों कथनों से यह स्पष्ट है कि अधिगम या सीखना एक कौशल है। कुछ लोग जल्दी सीखते है और कुछ देर से सीखने का विषय शीघ्र अधिगमित कर लेते हैं, यही कुशलता है। सीखने के कौशलों में नवीन ज्ञान, नवीन क्रिया, आदत, अनुभवों का उपयोग, ज्ञान तथा स्थानान्तरण, स्मृति तथा अनुकूलन ये सभी अधिगम कौशल है। इनको सीखना पड़ता है।
अधिगम कौशल
हम जो भी सीखते हैं, वह एक प्रकार से अनुभव प्राप्त करते हैं और उसमें दक्षता प्राप्त करते हैं। मॉर्गन एवं मिलिलैन्ड ने ठीक ही कहा है- सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप प्राणी के व्यवहार में परिमार्जन है जो प्राणी द्वारा कुछ समय के लिये धारण किया जाता है। इस दृष्टि से सीखने के कौशल इस प्रकार हैं।
अधिगम कौशलों में सर्वप्रमुख है मनोवृत्ति का निर्माण करना। मनोवृत्ति से किसी विशेष प्रकार के कार्य करने का कौशल विकसित होता है। अभिवृद्धि तथा विकास, समूह प्रक्रिया, मानसिक स्वास्थ्य, विद्यालयी अधिगम, मापन तथा मूल्यांकन वे क्षेत्र है जिनमें अधिगम कौशलों का परिचय मिलता है।
मनोवृत्ति (Attitude) अर्जित होती है। शिक्षण, व्यक्ति, विचार तथा परिस्थिति के प्रति हमारी धारणायें सीखे हुए दुखद अथवा सुखद अनुभवों से बनती है। सीखने का स्थानान्तरण, विस्थापन, अनुकूलन, सन्तुष्ट असन्तुष्ट होना अधिगम द्वारा ही मनोवृत्ति को निर्मित करता है।
यह भी पढ़ें-
- अधिगम क्या है ?
- अधिगम का अर्थ, परिभाषा, लक्षण, विशेषताएं, एवं अधिगम की प्रक्रिया
- प्रभावशाली अधिगम के घटक एवं अवरोधों का वर्णन
- अधिगम | विद्यालय में सीखना | परिस्थिति एवं परिणाम
व्यक्तित्व तथा सामाजिक प्रेरणा भी मनोवृत्ति को विकसित करती है। व्यक्ति में भाषा ज्ञान अर्थात् मौखिक तथा लिखित अभिव्यक्ति का महत्त्व अधिक होता है। इन कौशलों में बोलना (Speech), उच्चारण (Pronunciation), व्याकरण की शुद्धता (Grammatical correctness), लेखन (Writing), वर्तना (Spelling), रचना (Composition) आदि हैं। मनोवृत्ति इन कौशलों को लिखने में महत्त्वपूर्ण योग देती हैं।
अधिगम की प्रक्रिया में, विशेष रूप से बाल्यावस्था व युवावस्था में परिपक्वता का विशेष स्थान होता है। बाह्य घटकों के कारण प्रतिक्रिया में संशोधन होता है विद्यालयी अधिगम में अधिगम लक्ष्य, अधिगम के निर्देशों, संतोष तथा प्रभाव में निहित होते हैं।
अधिगम कौशलों में सामाजिक अधिगम का विशेष महत्त्व है। इसके लिये मनोवृत्ति का विकास इस प्रकार किया जा सकता है-
1. समुदाय के लोगों को विद्यालय के दायित्वों का निर्वाह करना चाहिये।
2. शिक्षा एक सहकारी प्रयास है, इसमें विद्यालय तथा समुदाय का पारस्परिक सहयोग बना रहना चाहिये।
3. विद्यालय कार्यक्रम छात्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित होना चाहिये।
4. सामाजिक अधिगम के लिये नकारात्मक तथा सकारात्मक गुणों का प्रयोग इस प्रकार करना चाहिये कि आचरण की प्रतिबद्धता हो सके।
5. परिवार, साथियों, समुदाय, विद्यालयों, विपरीत सैक्स के प्रति अपनी भूमिका का निर्वाह ठीक प्रकार होना चाहिये।
अतः विद्यालयों में शिक्षण व्यवहार, छात्रों में समायोजन से विकास करता है।
अध्यापक भूमिका
अधिगम कौशल तथा मनोवृत्ति का विकास करने में शिक्षक अपनी भूमिका का निर्वाह इस प्रकार कर सकता है-
1. बालकों की आवश्यकताओं को समझना आवश्यक है। शिक्षक उन्हीं आवश्यकताओं के आधार पर बालकों की समस्याओं का समाधान करता है।
2. बालकों की संवेगात्मक स्थिरता का ध्यान रखना भी आवश्यक है।
3. बालकों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिये।
4. शिक्षक को बालकों के मनोभाव तथा शिक्षण की परिस्थिति का ध्यान रखकर अधिगम कराना चाहिये।
5. शिक्षकों को रचना कौशल के प्रति मनोवृत्ति विकसित होनी चाहिये।
6. आदर्श व्यवहार द्वारा अधिगम के मानक प्रस्तुत किये जाने चाहिये।
7. यथासम्भव दृश्य-श्रव्य सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिये।
मनोवृत्ति का अर्थ
मनोवृत्ति (Attitude) शब्द लैटिन भाषा के Abtus शब्द से उत्पन्न है। इसका अर्थ है. योग्यता या सुविधा। मनोविज्ञान में अभिवृत्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अभिवृत्ति को अनुभव किया जाता है। इसका सम्बन्ध अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव से है। यह एक मानसिक दशा है जो सामाजिक व्यवहार की अभिव्यक्ति करने में विशेष भूमिका प्रस्तुत करती है।
मनोवृत्ति की परिभाषायें
हमारे प्रमुख विद्वानों ने मनोवृत्ति की परिभाषायें इस प्रकार दी है-
1. आलपोर्ट (Allport)- मनोवृत्ति, प्रत्युत्तर देने की वह मानसिक और स्नायुविक तत्परता से सम्बन्धित अवस्था है जो अनुभव द्वारा संगठित होती है तथा जिसके व्यवहार पर निर्देशात्मक तथा गत्यात्मक का प्रभाव पड़ता है।
2. सीकार्ड एवं बैकमैन (Secard and Backman )- अपने वातावरण के कुछ पक्षों के प्रति व्यक्ति के नियमित भाव, विचार और कार्य करने की पूर्व वृत्ति की अभिवृत्ति कहलाती है।
3. जेम्स ड्रेवर (James Drever)- मनोवृत्ति, रुचि या उद्देश्य की एक स्थायी प्रवृत्ति है जिसमें एक विशेष प्रकार के अनुभव की आशा और एक उचित प्रतिक्रिया की तैयारी निहित होती है।
इसे भी पढ़ें-
- अधिगम | मितव्ययिता | सामाजिक अधिगम
- अधिगम स्थानान्तरण का अर्थ, परिभाषा,प्रकार, सिद्धांत, दशायें एवं शिक्षक की भूमिका
4. आइजनेक (Eyesneck)- मनोवृत्ति, किसी वस्तु या समूह के सम्बन्ध में प्रत्यक्षात्मक बाह्य उत्तेजनाओं की उपस्थिति में व्यक्ति की स्थिति तथा उसकी तत्परता है।
5. न्यूकाम्ब (Newcomb)- एक व्यक्ति की मनोवृत्ति किसी वस्तु की ओर कार्य करने का सोचने का तथा अनुभव करने का उसका पूर्ण विन्यास है।
6. बोगार्डस (Bogardus)- मनोवृत्ति कार्य करने की प्रवृत्ति है जो कि वातावरण से सम्बन्धित तत्त्वों की ओर होती है या उसके विरुद्ध होती है जिसके कारण यह एक सकारात्मक मूल्य की ओर हो जाती है। मनोवृत्ति की इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि-
1. मनोवृत्ति जन्मजात नहीं होती।
2. मनोवृत्ति में स्थायित्व होता है।
3. मनोवृत्ति का सम्बन्ध बाह्य वस्तुओं, विचारों तथा प्रतिभाओं से होता है।
4. मनोवृत्ति व्यवहार की दिशा प्रदान करती है।
5. मनोवृत्ति में प्रेरणात्मक तत्त्व होते हैं।
6. मनोवृत्ति संवेगों से सम्बन्धित होती है।
7. मनोवृत्ति का सम्बन्ध आवश्यकताओं और समस्याओं से होता है।
8. मनोवृत्तियों की घटक विशेषताओं में से इनका भाव प्रमुख है।
9. मनोवृत्ति में संगति तथा अनुरूपता पाई जाती है।
मनोवृत्ति के प्रकार
मनोवृत्तियों को तीन भागों में बाँटा जाता है-
सामाजिक मनोवृत्ति
समाज की उद्दीपक परिस्थितियों के कारण सामाजिक मनोवृत्ति का निर्माण होता है। समाज के प्रमुख रिवाज तथा समूहों के विषय में विकसित धारणायें इसी मनोवृत्ति का परिणाम है।
विशेष व्यक्तियों के विषय में धारणायें
समाज के प्रमुख व्यक्तियों के प्रति विकसित धारणायें इसी मनोवृत्ति के कारण होती हैं।
विशिष्ट समूहों के प्रति
विशेष समूहों, समुदाय, जाति, वर्ग, विद्यालय, खेल टीम आदि के प्रति विकसित धारणायें इसी कोटि में आती है।
मनोवृत्ति की प्रकृति
मनोवृत्ति में तीन प्रकार की प्रकृति पाई जाती है-
धनात्मक मनोवृत्ति
इसमें किसी भी सम्बन्धित व्यक्ति, घटना तथा समूह के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण धनात्मक प्रकृति की मनोवृत्ति है।
ऋणात्मक मनोवृत्ति
इसमें व्यक्ति, समूह तथा घटनाओं के प्रति ऋणात्मक दृष्टिकोण पाया जाता है।
शून्य मनोवृत्ति
यह मनोवृत्ति न तो सकारात्मक होती है और न नकारात्मक तथा किसी भी प्रकार की कोई मनोवृत्ति किसी व्यक्ति, समूह या घटना के प्रति न होना शून्य मनोवृत्ति कहलाती है।
शिक्षक की भूमिका
बालकों में किसी भी प्रकार की मनोवृत्ति को विकसित करने की क्षमता उत्पन्न करने का दायित्व शिक्षक का है। मनोवृत्ति के विकास के लिये शिक्षक इन विधियों का प्रयोग कर सकता है-
1. सूचना तथा प्रचार (Information and propaganda)
2. सामाजिक अधिगम (Social learning)
3. व्यक्तित्व (Personality)
4. प्रेरणात्मक कारक (Motivational Factors)
5. समूह प्रभाव (Group effects)
6. आवश्यकताओं की संतुष्टि (Satisfaction by needs)
7. प्रत्यक्षीकरण कारक (Perception Factors)
8. सांस्कृतिक कारक (Cultural Factors)
9. सम्पर्क (Contact)
10. प्रकार्यात्मक कारक (Functional Factors)
ये सभी विधियाँ परिस्थिति तथा व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार प्रयोग में लानी चाहिये। मनोवृत्ति का विकास एक दोधार बाली तलवार है। इसका प्रयोग अत्यन्त सावधानी से करना चाहिये। एक भी गलत या नकारात्मक मनोवृत्ति न केवल व्यक्ति को अपितु समाज को भी हानि पहुँचाता है।
यह भी ध्यान रखना चाहिये कि मनोवृत्ति में परिवर्तन की प्रक्रिया में तादात्मीकरण (Identi- fication), अन्त करण (Internalization) तथा अनुपालन (Compliance) की अहम् भूमिका होती है। यह प्रक्रिया अनुकूल (Congrant) तथा प्रतिकूल (Incongrant) परिवर्तन होते हैं। जनसंचार एवं सम्प्रेषण के साधन, विद्यालय, सम्पर्क, व्यक्तिगत अनुभव, प्रतिष्ठा निर्देश, समूह संस्कृति तथा अभिवृत्ति विशेषताओं का प्रभाव मनोवृत्ति पर पड़ता है और उनमें परिवर्तन होता है।