विद्यालय वह स्थान है जहाँ बालकों को सोद्देश्य अधिगम (Purposeful Learning) के लिये तैयार किया जाता है। उन्हें वहाँ नियन्त्रित वातावरण में शिक्षा दी जाती है। जॉन ड्यूवी के शब्दों में-"विद्यालय एक ऐसा विशिष्ट वातावरण है जहाँ जीवन के कुछ गुणों और कुछ विशेष प्रकार की क्रियाओं तथा व्यवसायों की शिक्षा इस उद्देश्य से दी जाती है कि बालक का विकास वांछित दिशा में हो। "
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इस दृष्टि से विद्यालयों का समाज में स्थान इस प्रकार है-
1. बच्चों की शिक्षा का दायित्व निभाना,
2. सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करना,
3. विशिष्ट वातावरण का निर्माण,
4. घर को संसार से जोड़ने की कड़ी,
5. बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण तथा सन्तुलित विकास,
6. बहुमुखी सांस्कृतिक चेतना का विकास,
7. समाज की निरन्तरता को बनाये रखना,
8. शिक्षित नागरिकों का निर्माण।
टी. पी. नन के शब्दों में- "एक राष्ट्र के विद्यालय उसके जीवन के अंग है, जिनका विशेष कार्य है, उसकी आध्यात्मिक शक्ति को दृढ़ बनाना, उसकी ऐतिहासिक निरन्तरता को बनाये रखना, उसकी भूतकाल की सफलताओं को सुरक्षित रखना और उसके भविष्य की गारन्टी करना।"
विद्यालय में बालकों के व्यवहार में इस प्रकार परिमार्जन किया जाता है कि वे समाज सम्मत व्यवहार सीख सके। विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा में ज्ञान (Knowledge), कौशल (Skill), श्लाघा (Appreciation), अवबोध (Understanding) पर बल दिया जाता है। प्रत्येक विषय में ये चार तत्त्व बीज घटक (Root) के रूप में कार्य करते है। विद्यालय में दिये जाने वाले अधिगम के विषय में सुरेश भटनागर का कथन है-"शिक्षा एवं शिक्षण की प्रक्रिया में अधिगम का स्थान महत्त्वपूर्ण है, अधिगम निरन्तर चलने वाली सार्वभौम क्रिया है वह जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। विद्यालयी वातावरण में सीखना उसे समाज के वातावरण में क्रियाशील होने के अवसर प्रदान करता है। अधिगम वांछित अनुक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया है।"
विद्यालय में अधिगम, शिक्षण की प्रक्रिया के द्वारा सम्पन्न होता है। शिक्षण, शिक्षक द्वारा होता है और अधिगम छात्र द्वारा दिये जाने वाले अनुभव, पाठ्यक्रम द्वारा प्रदान किये जाते हैं। यो पाठ्यक्रम के द्वारा शिक्षक, छात्रों को अनुभव प्रदान करता है। यह स्थिति छात्र को विद्यालयी जीवन में अनेक उपलब्धियाँ प्रदान करती है।
विद्यालय में शिक्षण तथा अधिगम
विद्यालय में शिक्षण तथा अधिगम मिलकर छात्रों में इन गुणों को विकसित करते हैं-
1. सामान्य विचार की व्याख्या, शिक्षण के द्वारा सम्पन्न होती है और अधिगम के द्वारा उसका पुनर्प्रयोग किया जाता है।
2. बालक के ज्ञान के भण्डार में वृद्धि होती है।
3. मान्यताओं का विकास करने में शिक्षण तथा अधिगम सहायक होते हैं।
4. शैक्षिक उद्देश्य, विश्लेषण, छात्र व्यवहार आदि शैक्षिक क्रिया का नियमन करते हैं।
5. शिक्षण तथा अधिगम छात्रों के व्यवहार का अनुकूलन करती है।
जी० एल० एण्डरसन के अनुसार- "वैज्ञानिक रूप में मनोवैज्ञानिक उन परिस्थितियों के सत्यापन योग्य स्पष्ट और विस्तृत तथ्य चाहता है जिनमें अधिगम की क्रिया सम्पन्न होती है। संग्रहीत तथ्यों की व्याख्या तथा सामान्यीकरण के नियम संगठित करता है। इससे बौद्धिकता, तथ्यात्मकता, गुण-दोष, विवेचन, सीखने के तत्त्व तथा अध्ययन विधियों विद्यालय में सीखी जाती है। "
विद्यालय में बालक औपचारिक रूप से कतिपय कौशलों को सीखता है। ये कौशल उसे जीवन भर वांछित व्यवहार करने तथा वांछित जीवन जीने के लिये तैयार करते हैं। विद्यालयों में औपचारिक ढंग से अनौपचारिक व्यवहार तथा कौशलों को सिखाया जाता है जिनके उपयोग व्यक्ति जीवन में औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों रूपों में करता है। सांस्कृतिक विरासत प्रदान करने में विद्यालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
विद्यालय वस्तुतः परिवार तथा समाज दोनों को जोड़ने की पहल करता है और यह अत्यन्त सार्थक होती है। शिक्षित नागरिकों का निर्माण करने में विद्यालय का स्थान पहला है। विद्यालय में शिक्षण भी होता है और अधिगम भी शिक्षण अधिगम की यह प्रक्रिया, बालक को कुशल वयस्क, जिम्मेदार नागरिक तथा प्रबुद्ध व्यक्ति बनाती है और वह अपने में निहित समस्त गुणों तथा क्षमताओं का सकारात्मक उपयोग करता है। विद्यालय में सार्थक अधिगम होता है और इसका आभास छात्रों की उपलब्धि से होता है। इसमें संज्ञानात्मकता विकसित होती है और अधिगम सोद्देश्य हो जाता है।
शिक्षा में योगदान
कक्षा शिक्षण, विद्यालयी जीवन का अपरिहार्य अंग है। कक्षा शिक्षण तथा विद्यालयी परिस्थितियाँ छात्रों को अधिगम के इन स्वरूपों पर ध्यान देते हैं-
औपचारिक परिणाम
(1) चरित्र निर्माण और आध्यत्मिकता का प्रशिक्षण,
(2) सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण तथा हस्तातरण,
(3) निर्णय शक्ति का विकास,
(4) नेतृत्व गुणों का विकास,
(5) जीविकोपार्जन की क्षमता का विकास,
(6) संतुलित मस्तिष्क के विकास द्वारा साध्य प्राप्त करना।
अनौपचारिक परिणाम
(1) समाज सेवा का प्रशिक्षण,
(2) सक्रिय वातावरण द्वारा रचनात्मकता का विकास,
(3) खेलकूद आदि के द्वारा शारीरिक विकास.
(4) पाठ्य सहगामी क्रियाओं द्वारा अनुशासन का विकास।
टॉमसन ने मानसिक प्रशिक्षण, चारित्रिक प्रशिक्षण, सामुदायिक जीवन का प्रशिक्षण, राष्ट्र प्रेम, स्वच्छता एवं स्वास्थ्य का प्रशिक्षण विद्यालयों में छात्रों द्वारा सीखने पर बल दिया है। विद्यालय, शिक्षण अधिगम के सशक्त साधन बनें, इसके लिये कुछ उपाय प्रस्तुत किये जा रहे हैं-
1. परिवार से सहयोग तथा सम्पर्क बनाये रखना।
2. अभिभावक संघों, अभिभावक दिवस द्वारा।
3. समाज सेवा, सामुदायिक सम्पर्क सामुदायिक जीवन से सम्बन्ध द्वारा विद्यालयों का लाभ उठाना।
विद्यालयी वातावरण में अधिगम के परिणाम इस प्रकार दिखाई देते हैं-
1. यह नवीन अधिगम पर बल देते हैं।
2. शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया के रूप में स्वीकारते हैं।
3. शिक्षा की प्रक्रिया शिक्षण तथा अधिगम के रूप में सम्पन्न होती है।
4. बालकों में छिपे गुण विकसित होते हैं।
5. नवीन अवधारणाओं का विकास होता है।
6. सार्थक तथा सोद्देश्य अधिगम सम्पन्न होता है। विद्यालयी अधिगम को प्रभावशाली बनाने के लिये उद्देश्य निर्धारण, सीखने की दशाओं की व्यवस्था प्रभावशाली प्रेरणा प्रोत्साहन, प्रगति का ज्ञान दृश्य-श्रव्य सामग्री का उपयोग, कक्षागत घटक, विश्राम, दुश्चिंता, वातावरण निर्माण, उत्तम आदतों का निर्माण तथा शिक्षण अधिगम की धारणा आवश्यक तत्त्व है।